भारत जोड़ो यात्रा दक्षिण भारतीय राज्यों से होकर पश्चिमी और मध्य भारत होते हुए उत्तरी भारत में प्रवेश कर चुकी है। अब तक यात्रा के परिणाम, प्रभाव दिख जाने चाहिए थे। यात्रा के प्रभाव सन्दर्भ में प्रोफेसर योगेंद्र यादव यात्रा के उत्तरी भारत में प्रवेश करने पर स्थानीय साम्प्रदायिकता को लेकर एक अनुमान प्रस्तुत कर रहे हैं।
योगेन्द्र यादव के अनुसार उनको भारत जोड़ो यात्रा के स्थानीय साम्प्रदायिकता पर प्रभाव का अनुमान यात्रा के मध्य प्रदेश में होने के दौरान लगा। प्रोफेसर यादव भारत जोड़ो यात्रा के सूत्रधारों में से एक हैं और लगातार यात्रा से जुड़े संस्मरणों के आधार पर समाज और राजनीति से जुड़े अनुमान लगाते रहते हैं।
भारत जोड़ो यात्रा के परिप्रेक्ष्य में प्रोफेसर यादव ने साम्प्रदायिकता के संगठित और पूर्व नियोजित कृत्यों जैसे दंगा, हिंसा और घृणाजनित अपराधों के इतर रोजमर्रा के सांप्रदायिक उद्गारों को लेकर अपने अनुमान व्यक्त किए हैं। हालांकि भारत जोड़ो यात्रा के स्पष्ट प्रभावों को लेकर कोई सर्वेक्षण उपलब्ध न होने के कारण कुछ कहा नहीं जा सकता लेकिन प्रोफेसर यादव की परिकल्पना का विश्लेषण पहले से उपलब्ध सर्वेक्षणों के आधार पर किया जा सकता है।
यहाँ मैं इस संभावना की जांच कर रहा हूँ कि क्या प्रोफेसर यादव का भारत जोड़ो यात्रा के संप्रदायवाद पर पड़े प्रभावों के बारे में अनुमान पर किसी अन्य प्रक्रिया का प्रभाव हो सकता है? क्या प्रोफेसर यादव किसी अन्य प्रक्रिया के उत्पाद को भारत जोड़ो यात्रा का उत्पाद समझ रहे हैं? इस सन्दर्भ में, मैं पिउ(PEW) रिसर्च सेंटर द्वारा भारतीय नागरिकों के धार्मिक व्यवहार पर किये गए एक नमूना सर्वेक्षण के निष्कर्षों पर पाठकों का ध्यानाकर्षण कराना चाहूंगा।
उक्त सर्वेक्षण के क्रियान्वयन की कालावधि नवम्बर, 2019 से मार्च, 2020 के अंतिम सप्ताह की है। ये वो समय है जब जम्मू कश्मीर से धारा 370 जा चुकी थी और शाहीन बाग़ में ‘लोकतान्त्रिक’ धरना शुरू हुआ था। एक ऐसे ही चक्काजाम का उपसंहार दिल्ली में दंगों के तौर पर हुआ। ये दंगे ठीक उस समय शुरू हुए जब अमेरिका के राष्ट्रपति भारत में थे। भारत में “अल्पसंख्यक मुस्लिम” संकट में हैं- इस संदेश को दुनिया तक पहुंचाने का इससे बेहतर समय नहीं हो सकता था।
हर समझदार व्यक्ति यह मानेगा कि इस समयकाल में हुए सर्वेक्षण की अवधि समकालीन भारत के सांप्रदायिक इतिहास की बड़ी घटना को रेखांकित करती है। मोदी के भारत में साम्प्रदायवाद का शिखर बिंदु दिल्ली में हुए दंगे थे। दिल्ली में मुख्यमंत्री ने सेना बुलाने की सिफारिश तक कर दी थी। प्रधानमंत्री के सलाहकार अजीत डोभाल तक को सड़क पर उतरना पड़ा था।
ऐसे समय में हुआ सर्वेक्षण भारत में दैनिक व्यवहार में साम्प्रदायवाद की चरमसीमा का अनुमान प्रस्तुत करेगा, यह समझना कोई रॉकेट साइंस नहीं है। दिल्ली में हुए दंगे में सरकारी आंकड़ों के अनुसार 53 लोग मारे गए थे। यह बताना जरूरी है कि इन 53 में दो तिहाई मुस्लिम थे।
यह भी बताना जरूरी है कि आम आदमी पार्टी का एक सभासद दंगों में संलिप्तता के कारण अभी तक जेल में है। सभ्य समाज से आने वाले शरजील इमाम आदि आदि इसी मामले में गंभीर धाराओं में जेल के अंदर बाहर हो रहे हैं।
प्रोफेसर योगेंद्र यादव से लेकर कांग्रेस का प्रथम परिवार तक, सभी मोदी सरकार के लाये CAA कानून के खिलाफ थे, मुखर थे और शाहीन बाग़ और अन्य स्थानों पर चल रहे छोटे और शांतिपूर्ण चक्काजाम को अपना समर्थन और आवाज़ दे रहे थे। असम, बंगाल, उत्तर प्रदेश में NRC को लेकर आगजनी और हिंसा हो रही थी और अन्य राज्यों में भी प्रदर्शन चल रहे थे। ऐसे समय में हुआ सर्वेक्षण भारतीयों के धार्मिक व्यवहार की एक ध्रुवीकृत तस्वीर प्रस्तुत करेगा।
इस ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य को ध्यान में रखते हुए इस सर्वेक्षण की कुछ प्राप्तियां, खास कर भारतीयों में धार्मिक पृथक्करण और धार्मिक स्वतंत्रता से संबंधित प्रवृत्तियां ध्यान देने योग्य है। इस सर्वेक्षण निष्कर्षों के अनुसार भारतीय अपने धार्मिक समाज में रहना चाहता है और अपनी धार्मिक पहचान विवाह जैसी सामाजिक संस्थाओं के माध्यम से पृथक बनाये रखना चाहता है।
सर्वे के निष्कर्षों के अनुसार 37 प्रतिशत भारतीय मुस्लिम तीन तलाक को बनाए रखना चाहते हैं और भारतीय मुस्लिमों में भी पूर्व और दक्षिण के मुस्लिम तीन तलाक की परंपरा के ज्यादा हिमायती हैं। सर्वे के एक अन्य निष्कर्ष के अनुसार अगर पाकिस्तान में इस्लामिक कट्टरवाद है तो भारत के मुसलमान का हिन्दुकरण या भारतीयकरण हुआ है और उसके विश्वास भारतीय हिन्दू के कहीं नज़दीक हैं।
धार्मिक स्वतंत्रता को लेकर किसी व्यक्ति के व्यक्तिगत विश्वास उस व्यक्ति के दैनिक सांप्रदायिक अनुभवों से स्वतंत्र नहीं है। व्यक्ति के दैनिक सांप्रदायिक अनुभव उसके धार्मिक स्वतंत्रता को लेकर व्यक्तिगत विश्वास को प्रभावित करते हैं। इस संदर्भ में पिउ(PEW) सर्वेक्षण में पूछा गया यह सवाल कि “क्या आप मानते हैं कि भारत में आप और अन्य धर्मावलम्बियों को धार्मिक स्वतंत्रता है?”, रोजमर्रा की साम्प्रदायिकता के बारे में व्यक्तियों की समझ को रेखांकित करता है।
इस प्रश्न के उत्तर में पिउ(PEW) सर्वेक्षण के नतीजों के अनुसार, 91 (81) प्रतिशत हिन्दुओं (मुस्लिमों) को लगता था कि उनको धार्मिक स्वतंत्रता है जबकि 71 (80) प्रतिशत हिन्दुओं (मुस्लिमों) को लगता था कि अन्य भारतीयों को भी धार्मिक स्वतंत्रता मिली हुई है। ऐसा हिन्दू और मुसलमान तब सोच रहे थे जब देश दंगों, दंगाइयों और दंगा भड़काउओं के प्रभाव में था।
समय बीता है और देश में 2020 जैसे हालात बिलकुल नहीं है। आज उन 10-11 प्रतिशत हिन्दुओं और मुसलमानों का वह वर्ग जो मानता था कि उसको धार्मिक स्वतंत्रता से वंचित किया जा रहा है, कम ही हुआ होगा। इसी तरह से जो 20(21) प्रतिशत हिन्दू (मुसलमान) दूसरों की धार्मिक स्वतंत्रता को लेकर संशय में थे, कम हुए होंगे।
प्रोफेसर यादव को भारत जोड़ो यात्रा के साम्प्रदायिकता पर पड़े प्रभावों के बारे में अपने अनुमान में इस तत्व को ध्यान में रखना चाहिए। 2020 में दंगों के बाद, 2021 में किसान आंदोलन ने भी भारत के सांप्रदायिक जीवन में कम उथल-पुथल नहीं मचाई थी।
भारत जोड़ो यात्रा इन घटनाओं के 1 वर्ष बाद हो रही है और यात्रा के मोहब्बत की दुकान के जुमले को इस समयकाल के बाहर रख कर देखने का कोई सामाजिक विज्ञानी कारण नहीं दिखाई देता।
समय तत्व को ध्यान रखने पर साम्प्रदायिकता को लेकर प्रोफेसर योगेंद्र यादव के अनुमान भारत जोड़ो यात्रा का प्रभाव नहीं बल्कि अत्यधिक सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के काल से सामान्य समय की तरफ प्रवाह का प्रभाव हैं जिसमे भारत जोड़ो यात्रा की नाव तैर रही है। नाव में बैठे सहयात्रियों को ऐसा भ्रम होता है जिसमें वो नदी के वेग को नाव की गति समझ लेते हैं।
एक और बात जो इस सर्वेक्षण से समझ आती है वो ये है कि भारत में स्वयं और दूसरों की धार्मिक स्वतंत्रता को लेकर सबसे चिंतित सिख समाज है। क्षेत्रीय स्तर पर, उत्तर भारत, पूर्वी भारत और दक्षिण भारत के लोगों को अन्य धर्मावलम्बियों की धार्मिक स्वतंत्रता को लेकर चिंता हिंदी हृदय स्थल कहे जाने वाले मध्य भारत की तुलना में कहीं ज्यादा है।
इससे ये पता चलता है कि मध्य और पश्चिमी भारत में धार्मिक स्वतंत्रता को लेकर संशय अपेक्षाकृत कम है। इन आंकड़ों की दृष्टि में भारत जोड़ो यात्रा के मार्ग को देखने से पता चलता है कि दक्षिण भारत, जहाँ लोगों में खुद की और दूसरों की धार्मिक स्वतंत्रता को लेकर ज्यादा संशय था, से मध्य भारत के धार्मिक स्वतंत्रता के मामले में निश्चिंत लोगों के बीच में आना प्रोफेसर योगेंद्र यादव के भीतर भारत जोड़ो यात्रा की सफलता को लेकर एक छद्म परिकल्पना को जन्म दे रहा है।
भारत जोड़ो यात्रा के दौरान कम धार्मिक निश्चिंतता से ज्यादा धार्मिक निश्चिंतता वाले स्थान को भ्रमण के फलस्वरूप सांप्रदायिक तनाव में कमी को महसूस करना भारत जोड़ो यात्रा का प्रभाव नहीं बल्कि भारत के विभिन्न क्षेत्रों में धार्मिक स्वतंत्रता के प्रति विश्वास के वितरण के कारण उत्पन्न हुआ प्रभाव है।
भारत, भारत जोड़ो यात्रा के पहले से ही वैसा था जैसा प्रोफेसर योगेंद्र यादव ने भारत जोड़ो यात्रा के दौरान महसूस किया है। प्रोफेसर योगेंद्र यादव हिन्दुस्तान घूमने के बाद हिन्दुस्तान के बारे में जो बता रहे हैं वो भारत जोड़ो यात्रा से उत्पन्न हुआ प्रभाव नहीं है बल्कि यात्रा के दौरान उनके स्थान बदलने के कारण उत्पन्न हुआ प्रभाव है।
समय, काल और परिस्थिति के संदर्भ में प्रोफेसर यादव के अनुमानों की जांच करने पर यह समझ में आता है कि प्रोफेसर यादव भारत जोड़ो यात्रा को जिस प्रभाव के पीछे का कारण बता रहे हों वह प्रभाव दिल्ली दंगों से शुरू हुए सांप्रदायिक उन्माद के क्रमिक कमजोर पड़ने के कारण उत्पन्न हुआ है।
हाँ, भारत जोड़ो यात्रा जनसामान्य के मध्य साम्प्रदायिकता कम होने की सूचना लोगों तक पंहुचा रही है जो भारत जोड़ो यात्रा की सफलता है।