24 साल की उम्र में देश के लिए बलिदान दे कर अखंड कीर्ति प्राप्त करना हर किसी के लिए संभव नहीं लेकिन आज ही के दिन यानी, 9 सितंबर, 2022 को जन्मे कैप्टन विक्रम बत्रा के नाम यह उपलब्धि है। कारगिल युद्ध में विक्रम बत्रा की शौर्यगाथा का वर्णन, जितना भी किया जाए उतना कम है, लेकिन आज हम आपका ध्यान उनके युवा जीवन पर केंद्रित करना चाहते हैं।
विक्रम बत्रा जयंती
9 सितंबर, 1974 को पालमपुर के हिमाचल प्रदेश में गिरधारी लाल बत्रा और कमल कांता बत्रा के घर जुड़वा बेटों का जन्म हुआ था। माँ कमल कांता की रामचरितमानस में अपार श्रद्धा थी इसीलिए जुड़वा भाइयों का नाम ‘लव और कुश’ रख दिया गया।
उन्होंने डीएवी पब्लिक स्कूल में मिडिल स्टैंडर्ड और सेंट्रल स्कूल, पालमपुर में वरिष्ठ माध्यमिक स्तर तक की शिक्षा प्राप्त की।
विक्रम बत्रा – यूथ आयकॉन
विक्रम बत्रा अपने छात्र जीवन की शुरुआत से ही बहुत प्रतिभाशाली, मेहनती और सक्रिय थे। वह अपने दोस्तों, छात्रों और शिक्षकों के बीच बहुत लोकप्रिय थे, वे हमेशा मुस्कुराते रहते थे और सभी का सम्मान करते थे।
विक्रम बत्रा पढ़ाई के साथ खेल-कूद और अन्य गतिविधयों में भी बेहतरीन थे। कहते हैं कि उनके स्कूल में जब कोई प्रतियोगिता के बाद अवार्ड वितरण होता तो 75% अवार्ड विक्रम बत्रा को अकेले मिलते थे। उत्तर क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हुए उन्होंने ‘राष्ट्रीय स्तर’ टेबल टेनिस में भाग लिया। टेनिस के साथ वह कराटे में ग्रीन बेल्ट धारक भी थे।
एनसीसी में हुए शामिल
सेंट्रल स्कूल से 12वीं करने के बाद उन्होंने चंडीगढ़ के डीएवी कॉलेज में दाखिला लिया।
कॉलेज के अपने पहले साल में वह एनसीसी (नेशनल कैडेट कॉर्प्स) के एयर विंग में शामिल हो गए. अंतर-राज्यीय एनसीसी शिविर के दौरान, उन्हें उत्तरी क्षेत्र में पंजाब निदेशालय का सर्वश्रेष्ठ एनसीसी एयर विंग कैडेट की उपाधि से सम्मानित किया गया।
चंडीगढ़ से लगभग 35 किलोमीटर दूर पिंजौर एयरफील्ड और फ्लाइंग क्लब में उनकी एनसीसी एयर विंग यूनिट के साथ उनका पैराट्रूपिंग प्रशिक्षण के लिए चयन हुआ था। एनसीसी के साथ वह अपने कॉलेज में युथ सर्विस क्लब के अध्यक्ष भी रहे।
बाद में उन्होंने एनसीसी में ‘सी’ प्रमाणपत्र मिला और अपनी एनसीसी इकाई में सीनियर अंडर अफसर का पद प्राप्त किया।
आर्मी तक का सफर
विक्रम बत्रा रिपब्लिक डे परेड में बतौर एनसीसी कैडेट, भाग ले चुके थे। 1994 की रिपब्लिक डे परेड में भाग लेने के बाद जब वह घर आए तो उनके अंदर आर्मी में शामिल होने का ख्वाब जाग चूका था।
ग्रेजुएट होने के बाद उन्होंने पंजाब यूनिवर्सिटी में इंग्लिश से पोस्ट-ग्रेजुएट में दाखिला लिया। ऐसा उन्होंने संयुक्त रक्षा सेवा (सीडीएस) परीक्षा की तैयारी के लिए किया था। इस बीच एक ट्रैवेलिंग एजेंसी में बतौर ब्रांच मैनेजर भी उन्होंने काम किया।
साल 1996 में उन्होंने सीडीएस परीक्षा उत्तीर्ण कर अलाहबाद में एसएसबी इंटरव्यू भी निकाल लिया। वह ऑर्डर ऑफ मेरिट में शीर्ष 35 उम्मीदवारों में शामिल थे। अंग्रेजी में एमए की डिग्री के लिए एक वर्ष (सत्र 1995-96) पूरा करने के बाद, उन्होंने आईएमए में शामिल होने के लिए विश्वविद्यालय छोड़ दिया।
जून 1996 में विक्रम बत्रा ने आईएमए में दाखिला लिया और मानेकशॉ बटालियन में शामिल हुए। अपना 19 महीने का प्रशिक्षण पाठ्यक्रम पूरा करने के बाद, उन्होंने 6 दिसंबर 1997 को आईएमए से स्नातक की उपाधि प्राप्त की और जम्मू-कश्मीर राइफल्स की 13वीं बटालियन में लेफ्टिनेंट के रूप में वे तैनात हुए।
विक्रम बत्रा की प्रेम-कहानी
विक्रम बत्रा के जीवन और बलिदान से हमारी युवा पीढ़ी बहुत सीख सकती है लेकिन इसके साथ ही उनकी प्रेम-कहानी भी आज की पीढ़ी के लिए प्रेरणास्त्रोत है।
पंजाब यूनिवर्सिटी में पढ़ते हुए उनकी मुलाकात डिंपल चीमा से हुई। रिश्ते की शुरुआत दोस्ती से हुई जो धीरे-धीरे प्रेम में परिवर्तित हो गई।
वह दोनों हरिद्वार के मनसा देवी मंदिर में अक्सर जाते थे। एक बार, परिक्रमा के दौरान, विक्रम बत्रा डिंपल के दुपट्टे को पकड़े हुए पीछे चलते रहे। परिक्रमा के बाद उन्होंने डिंपल को मुस्कुराते हुए बोला, “बधाई हो श्रीमती बत्रा।”
आज भी डिंपल चीमा याद करते हुए बताती हैं कि विक्रम बत्रा उनसे कितना प्रेम करते थे।
कारगिल युद्ध
1999 के कारगिल युद्ध में उन्होंने अदम्य शौर्य का परिचय दिया। पॉइंट 5140 को पाकिस्तानी सेना से वापस जीतने की जिम्मेदारी 13 जम्मू-कश्मीर राइफल्स को मिली।
लेफ्टिनेंट जनरल योगेश कुमार जोशी के नेतृत्व में 13 जम्मू-कश्मीर राइफल्स ने पॉइंट 5140 पर फतह हासिल की, जिसमे लेफ्टिनेंट विक्रम बत्रा ने महत्वपूर्ण योगदान दिया। इस ऑपरेशन को पूरा करने के दौरान ही विक्रम बत्रा ने रेडियो पर अपने साथियों को ‘ये दिल मांगे मोर’ बोला था।
इस ऑपरेशन के बाद उन्हें कैप्टन की उपाधि मिली। इसके बाद उनकी बटालियन को पॉइंट 4875 को जीतने का जिम्मा मिला।
7 जुलाई की रात जैसे-जैसे विक्रम बत्रा अपने साथियों से आगे बढ़े तो उन्होंने एक मशीन गन की पोजीशन देखी। पत्थरों के पीछे छुपते हुए वह मशीन गन तक पहुंचे जिसके बाद ग्रेनेड फेंक कर उन्होंने दुश्मन को नेस्तनाबूत कर दिया।
सुबह उन्होंने पाकिस्तानी बंकरो पर एक बार फिर धावा बोला और 5 दुश्मन सैनिकों को मार गिराया। इसी दौरान एक अन्य अधिकारी को बचाते हुए विक्रम बत्रा गंभीर रूप से घायल हो गए।
कैप्टन विक्रम बत्रा के जीवन पर हाल ही में बनी ‘शेरशाह’ बॉक्स ऑफिस पर बहुत अच्छी चली लेकिन उनके जीवन से हमारी युवा पीढ़ी बहुत कुछ सीख सकती है।