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प्रमुख खबर

आदरणीय यशवन्त सिन्हा जी का भावुक सन्देश ‘सरल’ शब्दों में

Jayesh MatiyalBy Jayesh MatiyalJuly 22, 2022No Comments5 Mins Read
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यशवन्त सिन्हा
यशवन्त सिन्हा (फोटो साभार: ट्विटर)
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भारत में राष्ट्रपति चुनाव सम्पन्न हो गए हैं, परिणाम भी आ गया है। आखिरी बार आप कुछ पढ़ पा रहे हैं, क्योंकि द्रौपदी मुर्मु भारत की प्रथम नागरिक यानी राष्ट्रपति बन चुकी हैं।

आखिरी बार इसलिए पढ़ पा रहें हैं, क्योंकि कॉन्ग्रेस के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार आदरणीय यशवन्त सिन्हा जी ने कहा था “अगर मेरे प्रतिद्वंदी जीतती हैं तो लोकतंत्र नहीं बचेगा।”

चूंकि, अब लोकतंत्र ही समाप्त हो रहा है। हम और आप साल 1975 यानी आपातकाल में पुन: प्रवेश कर रहे हैं, तो आपकी और हमारी यह अन्तिम भेंट है।

मेरे पढ़ने वाले पढ़ाकू मित्रो, संविधान के जानकारो, सभी मेरा आग्रह स्वीकार करो और आखिरी बार भारतीय लोकतंत्र के इस पवित्र ग्रन्थ ‘संविधान’ को पढ़ डालो, इसे रट डालो, हो सके तो ताम्रपत्रों-भोजपत्रों पर लिख डालो, चाहो तो फोटोकॉपी करवा लो।

तहखानों में ही छुपा लो, शिलालेख तो बनवा ही लो, कुछ नहीं तो अपने शरीर में ही गुदवा लो, जैसा जिसका सामर्थ्य, वैसा करो पर संविधान बचा लो। संविधान बचा लो, क्योंकि, द्रौपदी मुर्मु जी राष्ट्रपति बन चुकी हैं।

अब भाजपा को संविधान बदलने से कोई नहीं रोक सकता। स्वयंभू यशवन्त सिन्हा जी भी नहीं। भविष्यवक्ता सिन्हा जी का ऐसा मानना है। यह बात अलग है कि…

“तुम चूतिया हो”

ये हम नहीं लिख रहे, ऐसा तो यशवन्त जी ने लिखा है।

भाजपा अब भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की तर्ज पर असंवैधानिक तरीके से लोकसभा-राज्यसभा में चर्चा किए बगैर, राष्ट्रपति के आदेश से, संविधान के मूल भाग से छुपाकर, परिशिष्ट में ‘अनुच्छेद 35 ए’ की तरह कोई नया अनुच्छेद जोड़ देगी, जो जम्मू-कश्मीर जैसे किसी राज्य को नागरिकों के विशेषाधिकार को मनमाफिक परिभाषित करने की शक्ति भी प्रदान कर देगी।

हे ‘सेक्युलर’ साथियों, उठो, जागो और देखो सेकुलरिज्म अपनी अन्तिम यात्रा पर निकल रहा है। ओ कॉमरेड़ चश्मा उतार, और आंखें खोल के देख ‘सेक्युलरिज्म’ द्रौपदी मुर्मु जी के कन्धों पर राजघाट की ओर बढ़ रहा है।

“मैं सेक्युलरिज्म’ की रक्षा के लिए खड़ा हूं। मेरे प्रतिद्वंदी इस स्तम्भ को नष्ट करने वाले हैं।” ये शब्द आदरणीय यशवन्त सिन्हा जी के मुखारबिन्द से निकले हैं।

‘सेक्युलरिज्म’ की विडंबना तो देखिए, अब भाजपा कॉन्ग्रेस की तर्ज पर ‘सांप्रदायिक हिंसा विधेयक’ लाने की तैयारी करेगी, जो किसी भी राज्य में रह रहे अल्पसंख्यकों को दंगों के समय बचाने का काम करेगा और बहुसंख्यकों को तस्सली से रगड़ा जा सकेगा। कॉन्ग्रेस के इसी ‘सेक्युलरिज्म’ को अब भाजपा भी अपनाएगी।

अरे ओ रासबादी। निद्रा से जागो और देखो कैसे लोकतांत्रिक भारत, कम्युनिस्ट चीन बनने के पथ पर अग्रसर है। ऐसी आशंका यशवन्त सिन्हा जी ने जताई है, उन्होंने स्पष्ट शब्दों में बताया और चेताया है कि “मैं एक राष्ट्र के लिए खड़ा हूं और भाजपा कम्युनिस्ट चीन की भांति खड़ी है।”

भाजपा अब कॉन्ग्रेस की राह पर चलकर ‘नवयुवक राहुल गांधी’ के राष्ट्र को परिभाषित करेगी। अपने वैचारिक साथी और दुश्मन देश कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चीन के साथ एक सहमति पत्र पर भी हस्ताक्षर करेगी और जाहिर सी बात है कि उस पत्र को सार्वजनिक नहीं करेगी।

जनता के प्रिय माननीय विधायकों और सांसदों। धर्म और अधर्म के इस युद्ध में अपने विवेक के घोड़े खोलो और लोकतंत्र के इस परम पावन पर्व में धर्म के पक्ष में खड़े हो जाओ। ‘आज हिमालय की ललकार, सांसद-विधायक हो तैयार’ के भाव आदरणीय यशवन्त सिन्हा जी के शब्दों में झलकते देखे जा सकते हैं।

भावुकतावश यशवन्त जी यह भी कह जाते हैं कि “पहले मैं भी भजपइया ही था।” कतिपय, उन्हें यह भान था कि विभीषण तो अपनी पार्टी से ही निकलेंगे और धर्म के पक्ष में खड़े हो जाएंगे।

बहरहाल, उन्होंने मीडिया को लगातार बताया कि “मैंने बार-बार प्रतिज्ञा की है कि यदि निर्वाचित हो जाता हूं, तो बिना किसी भय या पक्षपात के संविधान के संरक्षक के रूप में कार्य करूंगा।” इस पर ऑल्ट वाले ‘प्रतीक सिन्हा’ ने फैक्ट चेक कर चुपके से ट्ववीट कर बताया, यशवन्त सिन्हा राष्ट्रपति पद की शपथ लेने का अभ्यास कर रहे थे।

यशवन्त सिन्हा जी लगातार चुनौती देकर कह रहे थे “मेरे प्रतिद्वंदी उम्मीदवार ने राष्ट्र, लोकतंत्र, संविधान, संघीय ढांचे को बचाने के लिए कोई प्रतिज्ञा नहीं की है।”

यशवन्त सिन्हा जी के यह शब्द देशभक्ति से ओतप्रोत तो थे ही साथ ही क्रान्तिकारी भी थे। वे प्रतिद्वंदी उम्मीदवार को बार-बार उकसा रहे थे। आखिरकार इतने उकसावे के बाद द्रौपदी मुर्मु जी के धैर्य का बांध टूट ही गया। उन्होंने अन्तत: राष्ट्रपति पद की प्रतिज्ञा लेने की चुनौती स्वीकार कर ली। इस प्रकार वे भारत की 15वीं और पहली वनवासी महिला राष्ट्रपति बनीं।

यद्यपि भारत राम जैसे आज्ञाकारी पुत्रों का देश है। श्रवण का देश है, तथापि एक पुत्र के तौर पर आज यह समाज शर्मिन्दा है। हम शर्मिन्दा हैं और आपको भी शर्मिन्दा होना चाहिए, क्योंकि अपने तात् की मनोस्थिति के प्रश्न के उत्तर में ‘ओम शान्ति ओम’ फिल्म के गाने के बोल को आज भी प्रासंगिक बताकर उनके पुत्र कहते हैं कि ‘छन से जो टूटे कोई सपना, जग सूना-सूना लागे, जग सूना-सूना लागे, कोई रहे न जब अपना’।

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    Jayesh Matiyal

    जयेश मटियाल पहाड़ से हैं, युवा हैं। व्यंग्य और खोजी पत्रकारिता में रूचि रखते हैं।

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