कहते हैं; इतिहास खुद को दोहराता है। कहने को तो ये कहावत है, परन्तु इसमें सच्चाई भी है। जैसे वर्तमान में बाढ़ के कारण दिल्ली का हश्र या कह सकते हैं, बदहाल बाढ़ पीड़ित दिल्ली।
यमुना का पानी न सिर्फ दिल्ली की सड़कों पर धमक आया है बल्कि दिल्ली की सड़कों से होते हुए मोहल्लों तक, यमुना के इस सफर ने केजरीवाल सरकार की नींद भले न छीनी हो परन्तु नागरिकों की नींद जरूर छीन ली है। राजघाट से लेकर आम लोगों के सामान्य जीवन तक, सब कुछ यमुना ने प्रभावित किया है।
कारण सभी जानते हैं। दिल्ली की वर्तमान सरकार जो है तो लोकतांत्रिक व्यवस्था का हिस्सा लेकिन हक़ से दिल्ली को सल्तनत और स्वयं को बादशाह मानती है। इस सरकार के मुखिया केजरीवाल खुद को दिल्ली का मालिक बताते हैं लेकिन यमुना की सफाई की जिम्मेदारी से पल्ला भी झाड़ते हैं। शायद उनकी यही राजनीति पहले के मुख्यमंत्रियों से उन्हें अलग दिखाती है।
ब्लेम गेम
दिल्ली में फिलहाल अभी ब्लेम गेम चल रहा है। हाल ही में दिल्ली की सत्ताधारी पार्टी के राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने देश की राजधानी में बढ़ रहे जलभराव की स्थति को लेकर प्रेस कांफ्रेंस में दावा किया कि यह बाढ़ स्वाभाविक नहीं बल्कि साजिश है। उनका कहना है कि यमुना के बहाव को नियंत्रित करने वाली हथिनी कुंड बैराज से दिल्ली की तरफ जानबूझकर पानी छोड़ा गया है, जबकि उत्तर प्रदेश की तरफ की नहर सूखी पड़ी है।
संजय सिंह ने कुछ वीडियो दिखा कर ये दावा किया कि हरियाणा और उत्तर प्रदेश की सीमा पर यमुना नदी के प्रवाह को प्रबंधित करने के लिए बने हथिनी कुंड बैराज से उत्तर प्रदेश की तरफ जाने वाली नहर में पानी नहीं छोड़ा गया जबकि यमुना नदी जो दिल्ली की तरफ बहती है, उसे बहने दिया गया।
हालाँकि, संजय सिंह के इस दावे की पोल लोगों ने ही खोल दी। उनके दावे में कई गलतियां और कुतर्क थे। संजय सिंह और आम आदमी पार्टी ने जो वीडियो शेयर किया है उसमें नदी के मुख्य बहाव की तुलना उससे कहीं छोटी नहर से की गई है। गौरतलब है कि हथिनीकुंड बैराज से सीधे पानी नदी के रास्ते जाता है और इसमें पूर्वी और पश्चिमी दो नहरें बनाई गईं हैं।
वहीं, ‘दिल्ली के मालिक’ अरविन्द केजरीवाल का कहना है की एनडीआरएफ की टीम के वक़्त पर नहीं आ पाने का खामियाजा दिल्ली को भुगतना पड़ रहा है। वही बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता ने कहा कि दिल्ली में संकट की इस घड़ी में भी दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल सीएम उपराज्यपाल, केंद्र सरकार और यहाँ तक की एनडीआरएफ की टीम पर आरोप लगाने में व्यस्त हैं।
वर्त्तमान दिल्ली की स्थति
शनिवार, 15 जुलाई को दिल्ली के कई इलाको में भारी बारिश हुई, जिससे शहर में जलभराव और यातायात की स्थिति प्रभावित हुई। शहर के कुछ हिस्से पिछले कुछ दिनों से बाढ़ से जूझ रहे हैं। पिछले कुछ दिनों में यमुना के जलस्तर में तेज़ी से बढ़ोतरी दर्ज की गयी और यह रविवार सुबह 11 बजे 203.14 मीटर से बढ़कर सोमवार शाम 5 बजे 205.4 मीटर हो गया, जो उम्मीद से 18 घंटे पहले खतरे के निशान 205.33 मीटर को पार कर गया।
रिंग रोड जलमग्न हो गया है, लाल किला, सलीमगढ़ किला, कश्मीरी गेट, सिविल लाइन्स, आईटीओ जल प्रवाहित देखा गया है और बापू का राजघाट भी डूब चूका है। दिल्ली सरकार के अधिकारियो ने कहा है कि इंद्रप्रस्थ मेट्रो स्टेशन पर रेगुलेटर उफनती नदी के दवाब में रास्ता छोड़ दिया है जिससे ये मुख्य सड़क पर आ गया है।
इतिहास गवाह है
दिल्ली शहर के लिए बाढ़ की ये समस्या पहली बार दिखाई नहीं दी है। मुगलकाल में इसी तरह का परिदृश्य देखा जा चुका है। पिछले पचास वर्षों में देखें तो 1978 में आई बाढ़ के दौरान रिंग रोड और कुछ आवासीय क्षेत्रो में इसी प्रकार बाढ़ का पानी भर गया था। पर उस वक्त वहां अक्षरधाम मंदिर परिसर, राष्ट्रमंडल खेल गाँव, खिलाडी भवन, इत्यादि नहीं थे।
दिस डे में छपे एक आर्टिकल के अनुसार, दिल्ली की बाढ़ इतिहास को दोहराती है क्यूंकि मुग़लकाल में यह बाढ़ आम बात थी। औरंगजेब के शासनकाल में शहर में एक बड़ी बाढ़ आई थी, जहाँ पानी लाल किले से आगे दरियागंज तक आ गया था। माना जाता है कि तब शेख कलीमुल्लाह जहानाबादी की प्रार्थनाओं ने बाढ़ को नियंत्रित कर लिया था। इस सूफी संत की कब्र आज जामा मस्जिद के पास है।
‘दिस डे’ में छपे आर्टिकल के लेखक आदित्य वोराह आगे लिखते हैं; यमुना नदी में बाढ़ स्थति का चरम अंत है। दूसरी समस्या जिसका मुग़ल स्मारक आज भी सामना कर रहे हैं, वह है गर्मियों के महीने में यमुना नदी का सूखना। ताजमहल भी यमुना के तट पर बना है, इसकी नींव आबनूस की लकड़ी से बनी है, जिसे ना तो सिकुड़ने और न ही फैलने के लिए निरंतर नमी की आवश्यकता होती है। ताज के पास यमुना अक्सर सूख रही है और जल स्तर कम होने की नींव के लिए एक गंभीर खतरा पैदा करता है।
यमुना और लाल किला
इंडियन एक्सप्रेस में छपा हुआ एक आर्टिकल के अनुसार; यमुना सदैव लाल किले की रक्षा और जरूरतों को पूरा करती थी। लेखक और विरासत प्रेमी सोहेल हाशमी का कहना है कि जब राज की राजधानी को दिल्ली स्थानांतरित करने का निर्णय लिया गया, तो मूल रूप से सुझाया गया था।
हाशमी आगे कहते है, लेकिन 1911 के मानसून में, कोरोनेशन पार्क-किंग्सवे कैम्प क्षेत्र, सिविल लाइन्स और मोडल टाउन के कई हिस्सों में बाढ़ आ गयी थी। ये क्षेत्र बाढ़ के मैदानो का हिस्सा थे। इसलिए राजधानी को रायसीना हिल में स्थापित करने का निर्णय लिया गया था।
परन्तु मुग़ल अपने प्रजा को इतने सपने नहीं दिखाते थे जितना केजरीवाल दिल्लीवासियों को सदियों से दिखाते आ रहे है।
केजरीवाल का सपना
आप को बता दें इस बाढ़ में यमुना का सिर्फ 3 लाख क्यूसेक पानी आया है जबकि वर्ष 2013 और 2019 में पानी की यह मात्रा लगभग 8 लाख क्यूसेक थी। ऐसे में निष्कर्ष यही निकलता है कि न तो बैराजों को मेन्टेन किया गया और न ही यमुना की सफाई की गई।
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने वादा किया था कि अगर नगर निकाय चुनाव में उनकी आम आदमी पार्टी जीतती है तो वो एक साल में दिल्ली को लन्दन जैसा बना देंगे। केजरीवाल सरकार ने दिल्लीवासियों को न सिर्फ सपने दिखाए, बल्कि सरकार के नाम पर सिर्फ जनता को उल्लू बनाया है। आठ साल से केजरीवाल, जो दिल्ली को पेरिस और लंदन बनाने का सपना दिखा रहे थे वह सपने भी इसी बाढ़ के साथ ही बह गए।
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