राजधानी दिल्ली में जंतर मंतर पर चल रहे पहलवानों के धरना प्रदर्शन को अब लाखों ट्रैक्टर और किसान संगठनों के नेता का साथ मिल गया है। आखिरकार भारतीय किसान यूनियन, संयुक्त किसान मोर्चा और खाप पंचायत भी इस मंच का प्रयोग करने पहुँच चुके हैं। हालाँकि सुरक्षा कारणों से पुलिस द्वारा बैरिकैंडिग कर इन्हें रोका गया था पर किसान संगठन पुलिस बैरिकैड़िंग तोड़ कर ‘मोदी तेरी कब्र खुदेगी’ जैसे विवादास्पद बयानों के साथ विरोध प्रदर्शन में शामिल हो गए हैं। साथ ही उन्होंने 21 मार्च की डेडलाइन के साथ कुछ बड़ा करने की चेतावनी भी जारी की है।
दिल्ली के जंतर-मंतर पर चल रहे पहलवानों के विरोध प्रदर्शन में अबतक घटनाओं ने कोई नया नाटकीय मोड़ नहीं लिया है। ऐसा इसलिए क्योंकि घटनाएं नाटकीय तो रही पर, नई नहीं। राकेश टीकैत जो पहले किसान आंदोलन के दौरान चर्चा में आए थे इसबार पहलवानों के साथ खड़े हुए हैं। साथ ही उन्होंने कहा है कि ट्रैक्टर कब टैंक में बदलता है पता नहीं चलता। यह सब किसान आंदोलन की तरह ही है। वो ही लोग आ रहे हैं। हजारों ट्रैक्टर और लोग यही हैं, देखो क्या होता है। यह चेतावनी से भरा बयान शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन में क्यों दिया गया है इसका जवाब किसान नेता ही दे सकते हैं।
राजनीतिक बयानबाजी और मूल मुद्दे से भटकते पहलवान विरोध प्रदर्शन के बीच राकेश टिकैत ने एक बात तो सही कही है कि यह किसान आंदोलन की तरह है और वही लोग आ रहे हैं। किसान नेता की बात को प्रमाणित करने के लिए हम सिलसिलेवार घटनाओं को देखें तो न्याय की आस लगाए पहलवान न्यायालय के निर्णयों पर भरोसा करते दिखाई नहीं दे रहे। साथ ही धरना प्रदर्शन की राजनीतिक यात्राओं ने मंच का उपयोग कुश्ती संघ के अध्यक्ष ब्रजभूषण सिंह के विरोध में कम और प्रधानमंत्री मोदी के विरुद्ध अधिक किया है।
विरोध प्रदर्शन की लड़ाई से पहले मामले को समझे तो WFI के अध्यक्ष ब्रजभूषण सिंह के खिलाफ यौन शोषण के आरोप लगाए गए हैं। हालाँकि शुरुआत में इन आरोपों की चर्चा नहीं की गई थी। ब्रजभूषण और पहलवानों के बीच ओलपिंक में सीधे चयन प्रक्रिया को लेकर विवाद हुआ था। इसमें वर्ष, 2020 में विनेश अपनी ड्रेस पर इंडियन लोगो की जगह स्पोनसर लोगो को लेकर विवाद में आई थी। बाद में इसके लिए उन्हें सस्पेंड भी कर दिया गया था। वहीं 2021 में बने नियम के अनुसार नेशनल खेलने पर ही ओलपिंक में जाने की अनुमति मिलने पर पहलवानों को परेशानी हुई। यही मुद्दा तब खुल कर सामने आया जब विनेश ने जंतर मंतर से कहा कि वो नेशनल नहीं खेलेगी बल्कि सीधा अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट में जाएगी।
मामले में फिर पहलवानों ने ब्रजभूषण सिंह के खिलाफ अशिष्टता एवं काम में अनियमितता के आरोप लगाए थे जो कि जंतर मंतर तक पहुँचते ही यौन शोषण में तब्दील हो गए। इन आरोपों पर खेल मंत्रालय द्वारा एमसी मैरिकॉम के नेतृत्व में एक समिति का गठन किया गया था जिसकी रिपोर्ट सार्वजनिक तो नहीं की गई पर कई स्रोतों से सामने आया कि ब्रजभूषण के खिलाफ लगाए गए आरोपों के पक्ष में खिलाड़ी कोई तथ्य नहीं रख पाए हैं। ऐसे कई वीडियोज एवं रिपोर्ट सामने आई है जिसमें विनेश फोगाट द्वारा योन शोषण होने की बातों को नकारा गया है। विनेश फोगाट ने ब्रजभूषण पर तुर्की में टूर्नामेंट के दौरान गलत तरीके से छूने का आरोप लगाया जबकि वह तुर्की टूर्नामेंट में शामिल नहीं हुई थी। बाद में उन्होंने कहा कि ऐसा मंगोलिया में हुआ था।
फिलहाल दिल्ली पुलिस द्वारा मामले की एफआईआर दर्ज कर जांच भी की जा रही है। फिर भी पहलवान जंतर मंतर पर अपने मंहगे धरने प्रदर्शन का बिल भरते नजर आ रहे हैं। इसका एक कारण राजनीतिक मंच और इकोसिस्टम का सक्रिय होना माना जा रहा है।
वैसे तो पहलवानों ने जंतर मंतर पर बैठने के साथ ही घोषणा की कि वो किसी राजनीतिक पार्टी से नहीं जुड़े हैं और इसे राजनीतिक मंच न बनाया जाए पर वास्तविक तस्वीर इससे पूरी उलट दिखाई दी जिसमें कॉन्ग्रेस नेता प्रियंका गांधी, राहुल गांधी, आप पार्टी के अध्यक्ष अरविंद केजरीवाल इनसे मिलते भी हैं और समर्थन भी देते हैं। राजनीतिक व्यक्तियों को पता है कि राजस्थान एवं हरियाणा में प्रस्तावित चुनाव से पहले जाट और राजपूत को लेकर राजनीति माहौल बनाने का काम तो कर ही सकती है।
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कॉन्ग्रेस नेता प्रियंका गांधी वाड्रा जंतर मंतर पहुँच कर पहलवानों से मिलती है और इसके बाद घटनाओं को बेटी बचाओ अभियान से तुलनात्मक रूप से जोड़ दिया जाता है जो कि केंद्र सरकार की योजना है। यही याद दिला दें कि महिला सुरक्षा पर गंभीर प्रियंका गांधी अपनी ही पार्टी की महिला नेत्री से नहीं मिली है जिन्होंने कॉन्ग्रेस नेता श्रीनिवास पर यौन शोषण का आरोप लगाए हैं। इससे पहले राजस्थान सरकार ने पुलवामा शहीदों की वीरांगनाओं के साथ जब ज्यादती की थी उसके बाद भी प्रियंका द्वारा मुलाकात कोई संकेत नहीं दिया गया था।
किसी भी मामले में विवाद होने पर समस्या के सामाधान के उपाय खोजे जाते हैं पर खिलाड़ियों की ओर से कोई पहल नजर नहीं आई है। केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने जांच का आश्वासन उसपर भी कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है। वहीं, महान धावक पीटी उषा जो पहलवानों से मिलने धरनास्थल पर पहुँची उनके साथ दुर्व्यवहार निंदनीय घटना रही। महिला सुरक्षा के लड़ रहे पहलवान पीटी उषा के प्रति असुरक्षित क्यों रहे?
भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरे अरविंद केजरीवाल भी धरनास्थल पर पहुँचे। अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत के लिए जंतर-मंतर को देश के धरना स्थल की तरह इस्तेमाल करने वाले केजरीवाल ने कहा कि 2011 में इस जगह ने देश की राजनीति बदली थी और अब यह खेल की राजनीति बदलेगी। सभी यहां दिल्ली पहुँचों और बच्चों का साथ दो।
वर्ष, 2011 के समय एक्टिविस्ट रहे अरविंद केजरीवाल आज दिल्ली के मुख्यमंत्री हैं और मात्र दो राज्य में उनकी पार्टी की सरकार है। राजधानी में उनके मंत्रीगण भ्रष्टाचार के मामले में जेल में है और पंजाब की कानून व्यवस्था का हाल किसी से छुपा नहीं है। ऐसे में देश की राजनीति पर प्रभाव डालने की बात करना हास्यपद है।
अरविंद केजरीवाल हो या जंतर मंतर भ्रमण पर गए अन्य नेता या एक्टिविस्ट, इन सभी में एक समानता दिखाई दी है जो किसान आंदोलन से मिलती है। पहलवानों के पक्ष में खड़े होकर जांच और न्याय की मांग कम और दिल्ली को घेरने और भीड़ बढ़ाने, मोदी को घेरने की बातें धरना प्रदर्शन के विषय पर संदेह उत्पन्न करती हैं।
महिला अधिकारों और राजनीतिक रोटियां सेंकने तक तो ठीक था पर पहलवानों के विरोध का मंच आजादी की लड़ाई तक क्यों पहुँचा इसका जवाब प्रदर्शनकारियों को देना चाहिए। आरएसएस से आजादी, हिंदूत्व से आजादी, मोदी से आजादी जैसे नारों के साथ पहुँची टुकड़े टुकड़े गैंग को पहलवानों ने अपना मंच क्यों इस्तेमाल करने दिया जबकि वे दावा करते हैं कि वे किसी विचारधारा से नहीं जुड़े और सिर्फ न्याय चाहते हैं। राजधानी में खेल से जुड़े विषय पर अलगाववादी ताकतों ने आंदोलन को कमजोर तो किया ही है साथ ही देश की छवि को भी नुकसान पहुँचाया है।
पहलवान अपना पक्ष रख सकते थे और समर्थन की मांग भी कर सकते थे वो भी बिना राजनीतिक मंच बनाए। जनवरी में प्रदर्शन के दौरान पहलवानों ने मुक्केबाज विजेंद्र सिंह को स्टेज पर आने की अनुमति नहीं दी थी। इसके साथ ही कम्यूनिस्ट नेता वृंदा करात को भी वापस भेज दिया गया था, यह कहकर कि मामले को राजनीतिक रंग ना दें। हालांकि अब पहलवान भार बढ़ाने के लिए भीड़ का समर्थन करते नजर आ रहे हैं। अब वे स्वयं आगे आकर आह्वान कर रहे हैं कि दिल्ली में लोग जमावड़ा लगाएं। प्रदर्शनकारियों का पोस्टर बने बजरंग पुनिया ने ट्रैक्टरों का आह्वान किया था कि वो दिल्ली पहुँचे। इसी सिलसिले में खाप, बीकेयू एवं अन्य किसान संगठन ट्रैक्टर लेकर दिल्ली पहुँच चुके हैं और विवादास्पद नारे भी लगा रहे हैं। किसान नेताओं द्वारा जिस प्रकार बैरिकैंडिग तोड़कर नारे लगाए गए हैं वो सुरक्षा और धरने की भावना पर प्रश्नचिह्न लगा रहे हैं।
विजेंद्र सिंह ने भी अपना समर्थन पहलवानों को दिया है और उनके लिए सीबीआई जांच की मांग भी की है। इसी बीच उन्होंने कहा है कि जब मेडल लाते हैं तो वो हिंदुस्तानी होते हैं, पर जब धरने पर बैठे हैं तो उन्हें जाट कहा जा रहा है। हालाँकि मुक्केबाज ने यह बात पहलवानों के समर्थन में कही है पर यह उस इकोसिस्टम पर चोट है जो इस पूरे मामले में सामने आया है। आगामी चुनावों के लिए जाट-राजपूत वोट बैंक के लिए धरना स्थल का भ्रमण और ब्रजभूषण नहीं पीएम मोदी के खिलाफ नारेबाजी ने इसी इकोसिस्टम को उजागर कर दिया है।
मामले का दूसरा पक्ष देखें तो ब्रजभूषण सिंह के खिलाफ आरोपों को साबित करने में प्रदर्शनकारी नाकाम रहे हैं। विनेश फोगाट का तो कहना है कि चुंकि वे मेडल लेकर आए हैं और प्रसिद्ध लोग हैं तो उन्हें लगा था कि लोग उनपर विश्वास कर लेंगे और सबूत नहीं मांगेगे। साथ ही न्यायालय के मुकाबले खाप को तरजीह देने की बात ने बेशक न्यायिक संस्थाओं और संवैधानिक नियमों पर भी सवाल किया है।
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इस पूरे प्रकरण ने राजनीतिक, सामाजिक एवं न्यायिक स्तर पर कई प्रश्न छोड़े हैं। आरोपों की जांच पुलिस द्वारा की जा रही है और बेशक सही निकलने पर उचित कार्रवाई भी की जानी चाहिए पर ब्रजभूषण सिंह के खिलाफ हजारों महिलाओं के दावे में से किसी का सामने न आना संदेह पैदा करता है। राजस्थान एवं हरियाणा में चुनाव प्रस्तावित है जहां पर राजपूत एवं जाट महत्वपूर्ण वोट बैंक है। ऐसे मे किसान आंदोलन की तरह चुनाव पूर्व जंतर मंतर को धरनास्थल में बदलना एक ही तरह की रणनीति की ओर इशारा कर रहा है। न्याय की लड़ाई में पहलवान राजनीतिक खेल को रोक सकते थे पर ऐसा नहीं किया गया है।
फिलहाल दिल्ली में चिंता बढ़ गई है। ट्रैक्टर आ रहे हैं, किसान नेता वहीं है, सामाजिक कार्यकर्ता जमावड़ा लगा कर ब्रजभूषण सिंह का पुतला फूंकने और उनपर कार्रवाई की मांग कर रहे हैं। प्रतीत होता है कि ब्रजभूषण के खिलाफ बजरंग पुनिया, साक्षी मलिक और विनेश फोगाट के चेहरों से शुरू हआ आंदोलन अब उनकी समस्याओं से ऊपर उठ चुका है। राजनीतिक दलदल में पहलवान इस तरह फंसे हैं कि अपने विचारों को भी व्यक्त करने में असमर्थ नजर आ रहे हैं। बजरंग पुनिया द्वारा बजरंग दल के समर्थन की पोस्ट सोशल मीडिया से हटाना उसी इकोसिस्टम का दबाव है जिनको पहलवानों ने अपना मंच दिया है। किसान नेता और पहलवानों का कहना है कि ब्रजभूषण पर कार्रवाई नहीं होने तक वो धरना प्रदर्शन जारी रखेंगे। सीधी सी बात है कि उन्हें जांच का इंतजार नहीं है, वे ओलपिंक में सीधे चयन की तरह ही ब्रजभूषण पर भी सीधा कार्रवाई चाहते हैं। सामाजिक दबाव बनाकर जिस न्याय की आस पहलवानों ने लगाई है उसे वे किस अंजाम तक लेकर जा रहे हैं, शायद इसका अंदाजा लगाया जा सकता है।