अब भारत में (विशेषकर हिंदी में) वन्य जीवों पर भी नहीं लिखा जाता। किसी जमाने में पंचतंत्र की कहानियां पूरी तरह जीव जंतुओं पर ही आधारित हुआ करती थीं। जैसे आज काम की तलाश में लोग एक जगह वे दूसरी जगह आते-जाते और बसते हैं, कुछ उसी तर्ज पर पंचतंत्र भी सफर करती रही है। ये सबसे ज्यादा समय से अनुवाद की जाती किताबों में से एक भी होगी। विदेशों में भी जो बच्चों के पढ़ने की कहानियां होती हैं, उनका एक बड़ा हिस्सा इसी से आया। सभी कहानियों का अनुवाद शायद इसलिए नहीं किया गया होगा क्योंकि कई कहानियां प्रौढ़ शिक्षा की हैं। शायद अनुवाद करने वालों को लगा होगा कि ये कहानियां बच्चों को पढ़ाई नहीं जानी चाहिए।
पंचतंत्र का नाम “पञ्च” यानी पांच अलग अलग (राजनीती के) तरीके सिखाने की वजह से है। इसका सबसे पहला और सबसे बड़ा हिस्सा “मित्रभेद” कहलाता है। ये पिंगलक नाम के एक शेर और संजीवक नाम के एक बैल की कहानी है। मोटे तौर पर इस हिस्से में संजीवक को कमजोर और वृद्ध हो जाने पर उसका मालिक जंगल में भगा देता है। वहां खुली हवा में आजादी से रहने, काम ना होने और आहार के प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होने के कारण संजीवक मोटा-तगड़ा हो जाता है। एक दिन उसकी आवाज सुनकर जंगल का राजा पिंगलक (शेर) भी घबराकर छुप जाता है। उसे एक पालतू पशु को जंगल में देखने की आदत नहीं रही होगी। उसकी समस्या के निदान के लिए दमनक और कर्कट नाम के उसके दो सियार मंत्री आते हैं।
“मित्रभेद” नाम के इस हिस्से की कहानी करीब करीब पूरी ही दोनों सियारों की बातचीत पर आधारित है। एक कहानी के अंदर दूसरी कहानी होने के कारण यहाँ करीब तीस कहानियां एक दूसरे में गुंथी हुई हैं। सियारों की मदद से जब पिंगलक और संजीवक की दोस्ती हो जाती है तो पिंगलक को संजीवक का कोई डर नहीं रहता। थोड़ा समय बीतते-बीतते पिंगलक राज-काज पर काम ध्यान देने लगता है। अब दोनों सियार मिलकर पिंगलक को संजीवक से लड़वा देते हैं जिसमें बैल मारा जाता है और जंगल का काम फिर से सुचारु रूप से चलने लगता है। करीब करीब आधी पंचतंत्र की मोटाई इतने हिस्से में ही ख़त्म हो जाती हैं। बाकी का पंचतंत्र चार हिस्से और तीन सौ कहानियों से ऊपर होने के बाद भी छोटी कहानियों का है।
जिस दौर में शेर की कहानी वाला ये हिस्सा लिखा गया होगा, उस समय शायद शेर भारतीय वनों का सबसे शक्तिशाली शिकारी होगा। बाद के काल में बाघ भी आये तो शेरों से बेहतर शिकारी होने के कारण उन्होंने पूर्व के जंगलों से शेरों को पश्चिम की ओर धकेल दिया। जिम कॉर्बेट ने बाघ-तेंदुओं और शेर के शिकार की कहानियां लिखी हैं, मगर उनमें भी शेर की कहानियां बहुत कम हैं। वो ज्यादातर आदमखोर हो गए बाघों और तेंदुओं की कहानियां लिख गए हैं। वैसे उनकी लिखी कहानियां भी करीब सत्तर वर्ष पुरानी ही होतीं क्योंकि उनकी मृत्यु 1955 में हुई थी। मोगली वाली जानी पहचानी कहानी “द जंगल बुक” में खलनायक का नाम तो शेरखान होता है, लेकिन असल में वो बाघ होता है।
शेरों के साथ जुड़ी एक प्रसिद्ध उक्ति विदेशों से आती है। उसमें ईसाइयों का स्थानीय निवासियों से संघर्ष दर्शाया जाता है और कहा गया था कि जबतक शिकार की कहानियां शेर के बदले शिकारी लिखते रहेंगे, तबतक तो महिमामंडन शिकारी का ही होगा, शेर का नहीं! किसी दौर में अंग्रेजों ने शेरों-बाघों और अन्य वन्य जीवों का भारत में जमकर शिकार किया। इस क्रम में जंगलों पर से स्थानीय निवासियों के अधिकार छीन लिए गया। पर्यावरण पर ऐसी हरकतों का नतीजा भी नजर आने लगा। हाल के दौर में सरकार बहादुर ने फिर से शेर-बाघ जैसे जीवों को बचाने और उनके प्रति लोगों को जागरूक करने का काम शुरू किया है। इसका कितना फायदा हुआ, ये सीधे-सीधे तो नहीं कहा जा सकता, लेकिन संख्या बढ़ी है, ये जरूर कहा जा सकता है।
बाकी आज वर्ल्ड लायन डे है और दुनियां भर में बहुत कम जगह पाए जाने वाले इन जीवों का घर भी भारत है। उम्मीद है इन मूलनिवासियों पर भी ध्यान दिया जाएगा!
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