देश के मिडिल क्लास को NDTV के पूर्व पत्रकार Ravish Kumar सांप्रदायिक बता रहे हैं। वे कह रहे हैं कि मिडिल क्लास के दिमाग में ज़हर भर गया है, मिडिल क्लास की सोच जंग खा चुकी है, उनकी भाषा कबाड़ हो गई है। वे आगे कहते हैं कि मिडिल क्लास का बेटा हिंदू बन रहा है।
सवाल ये है कि मिडिल क्लास को Ravish Kumar इस तरह से अपमानित क्यों कर रहे हैं? देश के मेहनती मध्यम वर्ग को इस तरह से गाली क्यों दे रहे हैं? क्यों वे मध्यम वर्ग को सांप्रदायिक बता रहे हैं? उन्हें ज़हरीला बता रहे हैं? उनकी भाषा को कबाड़ बता रहे हैं?
मध्यम वर्ग को निशाना बना रहे Ravish Kumar?
मध्यम वर्ग जो अपनी रोज़ी-रोटी कमाकर खाता है, टैक्स देता है, देश में पॉजिटिव बदलाव का वाहक है, क्यों उसे निशाना बनाया जा रहा है?
क्या सिर्फ इसलिए क्योंकि उसका राजनीतिक झुकाव एक दल की तरफ माना जाता है? या इसलिए क्योंकि वामपंथी और तथाकथित तौर पर ख़ुद को उदरवादी, माफ़ कीजिए, उदारवादी कहने वाला इकोसिस्टम उसे भाजपा का वोटर घोषित कर चुका है? क्या भाजपा को वोट देने के कारण मिडिल क्लास सांप्रदायिक हो गया?
क्या देश का संविधान, देश का लोकतंत्र, देश का कानून मिडिल क्लास के लोगों को ये अधिकार नहीं देता कि वो अपनी पसंद के राजनीतिक दल को चुन सकें?
क्या उसका भाजपा को राजनीतिक तौर पर मत करना अपराध है? आखिर किस आधार पर रवीश कुमार और उनके वैचारिक भाई बंधु मेहनतकश नौकरीपेशा टैक्सपेयर वर्ग को इस तरह अपमानित कर रहे हैं?
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वे कह रहे हैं कि मिडिल क्लास का युवा, हिंदू बन रहा है। दरअसल वह हिंदू नहीं बन रहा है बल्कि रवीश कुमार को तकलीफ़ इस बात से हो रही है कि वह हिंदू होने पर शर्मिंदा नहीं है। वह अब एजेंडा और एजेंडा चलाने वालों को पहचानने लगा है।
सवाल ये भी है कि मिडिल क्लास अगर हिंदू है और अपने हिंदू होने पर गर्व करता है तो इससे रवीश कुमार को आपत्ति क्यों है? Ravish Kumar चाहें तो वे भी हिंदू बन सकते हैं, वे भी टीका लगाएं, चोटी रख लें, भगवा पहनें या फिर व्हाट्स एप ग्रुप का नाम हिंदू रख लें, इसमें परेशानी क्या है?
ये किसी भी तरह से गैर-कानूनी तो नहीं है? सवाल ये भी उठ रहे हैं कि क्या किसी और मज़हब के लोगों पर कभी रवीश कुमार ने सवाल उठाए कि फलाँ मज़हब के युवा गर्व से मज़हबी क्यों हैं?
खैर, आगे बढ़ते हैं, रवीश कुमार मीडिल क्लास की भाषा कबाड़ बताते हैं लेकिन वे अपनी भाषा पर ध्यान नहीं देते कि कैसे खिसियाए से वे मध्यम वर्ग को गाली दे रहे हैं।
सवाल बहुत सीधा है कि ये खिसियाट, ये बौखलाहट, ये घबराहट किस बात की है? क्या इस बात की कि 2024 के लोकसभा चुनाव में पीएम मोदी की जीत में मिडिल क्लास का बड़ा योगदान रहा है? या इस बात के लिए कि अच्छे शासन और प्रशासन और सरकारी नीतियों के कारण देश में मिडिल क्लास लगातार बढ़ रहा है। या इसलिए क्योंकि मिडिल क्लास के पास सरकार, सरकारी नीति और शासन प्रशासन के मूल्यांकन के लिए आवश्यक पैमाने को समझ है?
देश से अमेरिका तक यही है इकोसिस्टम का ‘सिस्टम’?
इसको अगर थोड़ा-सा गहराई से देखें तो समझ आता है कि वास्तविक कारण यही है और ये कोई नई बात नहीं है। इससे पहले भी इसी तरह से देश के लोगों को अपमानित किया गया है।
दरअसल, वामपंथी इकोसिस्टम का एक सिस्टम ये है कि अगर उनकी पसंदीदा पार्टी को लोगों ने नहीं चुना तो फिर लोगों को ही सांप्रदायिक बता दो, नाज़ीवादी बता दो, फासीवादी बता दो, गैर-लोकतांत्रिक बता दो।
अपने देश से लेकर अमेरिका तक हमें यही दिखाई दे रहा है। अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप के जीतने के बाद आप वामपंथी इकोसिस्टम की टिप्पणियां देख लीजिए। वे सब भी यही कह रहे हैं कि लोकतंत्र के बुरे दिन आ गए। अराजकता आ रही है। एकाधिकारवाद आ रहा है। इस तरह की तमाम टिप्पणियां आपको दिख जाएंगी।
इनका लब्बोलुआब यही है कि जैसे हमारे देश में रवीश कुमार और उनका समूह मध्यम वर्ग को गालियां दे रहा है। उसी तरह से अमेरिका में ट्रंप को वोट करने वालों को बुरा कहा जा रहा है, अपमानित किया जा रहा है। उन्हें कट्टर बताया जा रहा है, रेसिस्ट बताया जा रहा है।
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अब आप समझिए, चाहे हमारा देश हो, अमेरिका हो या फिर कोई और देश हो वामपंथी इकोसिस्टम और उदारवादियों का पहले से तय है कि अगर उनकी पसंदीदा पार्टी जीतती है तो लोकतंत्र बच गया, सब बढ़िया है और अगर उस पार्टी का विरोधी जीत जाता है तो लोकतंत्र ख़त्म हो गया- उसे वोट देने वाले लोग सांप्रदायिक, रेसिस्ट, कट्टर और ज़हरीले हो गए। मजे कि बात ये है कि ये सिस्टम आज से या फिर कुछ वर्षों से नहीं चल रहा है बल्कि दशकों से चल रहा है।
हम सभी ने देखा कि जब उत्तर-प्रदेश में भाजपा लगातार जीत रही थी तो यूपी के लोगों के लिए अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल किया गया, उन्हें सांप्रदायिक कहा गया।
हमने देखा कि कैसे रणदीप सुरजेवाला भाजपा के मतदाताओं को राक्षस तक बता चुके हैं। पर जैसे ही लोकसभा चुनाव 2024 में उत्तर प्रदेश में इंडी गठबंधन को कुछ ज्यादा सीटें मिली तो पूरा इकोसिस्टम उन्हीं लोगों की, उसी यूपी के लिए आह, वाह करने लगा। इसीलिए शायद कहा जाता है कि वामपंथी इकोसिस्टम की हिप्पोक्रेसी की कोई सीमा नहीं होती।