गृह मंत्री अमित शाह ने संविधान पर चर्चा के दौरान राज्यसभा में कहा था कि कांग्रेस आज अंबेडकर, अंबेडकर करती है लेकिन पहले कांग्रेस ने Ambedkar के साथ कैसा व्यवहार किया है, ये बात देश जानता है।
कांग्रेस पार्टी और उनके इकोसिस्टम ने गृह मंत्री के बयान का पहला हिस्सा, कह सकते हैं आधा हिस्सा निकालकर सोशल मीडिया पर डाल दिया और यह प्रोपेगेंडा चला दिया कि गृह मंत्री ने डॉ. अंबेडकर का अपमान किया है।
वैसे ऐसे काम करना पिछले कुछ वर्षों से कांग्रेसी राजनीति की धुरी बन चुका है पर यह भी आवश्यक है कि ऐसे प्रोपगंडा का फैक्ट चेक होते रहना चाहिए!
जानते हैं कांग्रेस ने झूठी वीडियो निकालकर, फे़क न्यूज़ बनाकर, वीडियो काटकर ये प्रोपेगेंडा क्यों फैलाया? क्योंकि उनके पास और कुछ बचा नहीं था- हम सभी जानते हैं, EVM के मुद्दे पर कांग्रेस का प्रोपेगेंडा उसी पर उल्टा पड़ गया है।
इंडी गठबंधन के साथी भी कांग्रेस पार्टी के EVM प्रोपेगेंडा से दूर भाग रहे हैं। उमर अब्दुल्ला ने साफ-साफ कह दिया कि जब कांग्रेस जीतती है तब ईवीएम सही और जब हारती है तब ईवीएम ग़लत, ऐसे कैसे चलेगा।
टीएमसी के लोकसभा सांसद और ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी ने भी कांग्रेस से स्वयं को अलग कर लिया है। उन्होंने कहा कि जो कहते हैं कि ईवीएम हैक हो सकती है वे चुनाव आयोग में जाकर डैमो दे दें। इसके बाद कांग्रेस पार्टी EVM के मुद्दे पर जनता को मुँह दिखाने लायक नहीं बची थी।
और पढ़ें: 1994, 2005 और 2011…जब कांग्रेस ने मज़हब के आधार पर दिया आरक्षण
रही-सही कसर महाराष्ट्र में चुनाव आयोग ने EVM और VVPAT की गिनती करके पूरी कर दी। 1440 EVM का मिलान VVPAT की स्लिप से किया गया, एक भी मिसमैच नहीं मिला। इसके बाद जनता के मन मे यह बात बैठ गई कि EVM पर कांग्रेस सिर्फ राहुल गांधी की अयोग्यता छिपाने के लिए नौटंकी कर रही है।
कांग्रेस पार्टी भी यह बात समझ गई थी कि वे पकड़े गए हैं। यही कारण है इकोसिस्टम और कांग्रेस पार्टी बुरी तरह से बैकफुट पर थे।
EVM के साथ-साथ कांग्रेस पार्टी और उसका इकोसिस्टम अडानी के मुद्दे पर भी एक्सपोज हो गया था। समाजवादी पार्टी हो, शरद पवार की पार्टी हो या फिर ममता बनर्जी की टीएमसी हो- सभी पार्टियां अडानी के मुद्दे पर कांग्रेस से दूरी बना रही थी।
इंडी गठबंधन में EVM के साथ-साथ अडानी के मुद्दे पर भी कांग्रेस अकेली दिखाई दे रही थी। मजे की बात ये है कि सिर्फ इंडी गठबंधन की पार्टियां ही नहीं बल्कि कांग्रेस के भी सांसद पार्टी के ऊपर अडानी मुद्दे को लेकर सवाल उठा रहे थे।
पीएम मोदी जिन्हें शहजादा कहते हैं वे राहुल गांधी कभी मास्क लगाकर, कभी अडानी की टी-शर्ट पहनकर कभी किसी और तरीके से स्वयं को ख़बरों को बनाए रखने के लिए संघर्ष कर रहे थे।
कांग्रेस पार्टी बुरी तरह से स्ट्रगल कर रही थी। उसके पास कोई मुद्दा नहीं था। संसद का सत्र चल रहा है और पार्टी खाली हाथ थी।
ऐसी स्थिति में गठबंधन में राहुल गांधी के नेतृत्व पर गंभीर सवाल उठने लगे। इंडी गठबंधन की पार्टियां कांग्रेस पार्टी से इंडी गठबंधन का नेतृत्व छीनने का दवाब बनाने लगी।
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि मैं इंडी गठबंधन को नेतृत्व देने को तैयार हूँ। अखिलेश यादव ममता बनर्जी के लिए लॉबिंग करते दिखाई दिए। समाजवादी पार्टी के सांसद रामगोपाल ने तो कह दिया कि हम राहुल गांधी को नेता ही नहीं मानते।
शरद पवार ने भी ममता बनर्जी के पक्ष में बयान दिया। हर तरफ से कांग्रेस पार्टी पर उसी के सहयोगी दल गठबंधन का नेतृत्व छोड़ने का दवाब बनाने लगे।
ऐसे में पार्टी चौतरफा घिर गई। ऊपर से भाजपा कांग्रेस और सोरोस समूह के मामले को लेकर भी आक्रामक दिखाई दे रही थी। भाजपा सांसदों ने संसद में सोनिया गांधी और सोरोस के कनेक्शन का मुद्दा उठाया।
कांग्रेस पर यह आरोप लगे कि वह देश विरोधी सोरोस के इशारों पर चल रही है। यह आरोप भी लगे कि संसद शुरु होने से पहले हर बार विदेश से उन्हें निर्देश मिलते हैं और उसी अनुसार कांग्रेस देश में व्यवहार करती है।
सोरोस के मुद्दे पर बुरी तरह घिरी कांग्रेस को बस एक उम्मीद थी कि प्रियंका गांधी वाड्रा संसद में बोलेंगी तब कुछ होगा।
इकोसिस्टम को लगता था कि प्रियंका गांधी वाड्रा की नाक इंदिरा जैसी है उनके भाषण से पार्टी के पक्ष में माहौल बनेगा लेकिन यहाँ भी उन्हें निराशा मिली- प्रियंका गांधी वाड्रा का भाषण बुरी तरह से फ्लॉप हुआ।
जनता ने उनके भाषण को राहुल गांधी के भाषण जैसा बताया और राहुल गांधी ने जो भाषण दिया उसमें उन्होंने तपस्या का मतलब है गर्मी पैदा करना बोलकर और ज्यादा गुड़-गोबर कर दिया।
ऐसी स्थिति में कांग्रेस पार्टी सरेंडर के मोड में थी- हथियार डाल दिए थे- जब कहीं से कुछ नहीं दिखाई दिया तब इकोसिस्टम ने फ़ेक न्यूज़ वाला रास्ता चुना।
और पढ़ें: राजीव गाँधी फाउंडेशन का भारत विरोधी डीप स्टेट से कनेक्शन?
याद कीजिए कैसे लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस पार्टी ने गृह मंत्री अमित शाह का ही आरक्षण पर दिए एक बयान को एडिट करके वायरल किया था। उस वीडियो को लेकर दिल्ली पुलिस ने कांग्रेस इकोसिस्टम के कई लोगों पर केस दर्ज भी किया है।
वही आजमाया हुआ तरीका कांग्रेस इकोसिस्टम ने एक बार फिर अपनाया और गृह मंत्री अमित शाह की कुछ सेकंड की क्लिप निकालकर वायरल कर दी जिससे हर तरफ से घिरी पार्टी को कुछ ऑक्सीजन मिल सके।
अब आप एक सवाल उठा सकते हैं। आप कहेंगे कि हम ये बात किसी आधार पर कह रहे हैं। समझिए, राजनीति में क्रोनोलॉजी सबसे महत्वपूर्ण होती है और इस केस की क्रोनोलॉजी साफ-साफ बता रही है कि कांग्रेस पार्टी ने हताशा में आकर गृह मंत्री अमित शाह की ये क्लिप काटकर फैलाई है।
एडिटेड वीडियो फैलाने के बाद जो कांग्रेस ने किया, वो भी इसको सिद्ध करता है कि पार्टी कुछ न कुछ ऐसा करने के लिए तैयार बैठी थी।
17 दिसंबर की रात में उन्होंने गृह मंत्री का फ़ेक वीडियो फैलाया और 18 दिसंबर को देश के कई राज्यों में पार्टी ने मुद्दे को लेकर प्रदर्शन किया।
सोशल मीडिया पर पूरा इकोसिस्टम आक्रामक तरीके से सक्रिय दिखाई दिया- यह अपने आप नहीं हुआ है, राजनीति में कुछ भी अपने आप नहीं होता बल्कि यह सब सुनियोजित तरीके से किया गया प्रतीत होता है।
शायद यह इसलिए किया गया है जिससे कि EVM और अडानी मुद्दे पर जो कांग्रेस बैकफुट पर है। इंडी गठबंधन में नेतृत्व को लेकर जो फाइट चल रही है। सोरोस के मुद्दे पर जो सोनिया गांधी, राजीव गांधी फाउंडेशन और कांग्रेस पार्टी पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं, उसको इस शोर से दबाया जा सके और यह दिखाया जा सके कि पार्टी अभी भी जिंदा है।
अब एक सवाल और उठता है कि जो कांग्रेस पार्टी Dr. Ambedkar पर इतना शोर मचा रही है, वो कांग्रेस पार्टी और नेहरू-गांधी परिवार क्या उनका उतना सम्मान भी करता है?
समझिए, कांग्रेस पार्टी आज राजनीतिक लाभ के लिए डॉ. अंबेडकर का इस्तेमाल तो कर रही है। उनके नाम पर कसमें खा रही है। उनके नाम के पोस्टर लिए घूम रही है- लेकिन कांग्रेस का इतिहास बताता है कि इस पार्टी ने कभी भी, जी हाँ कभी भी डॉ. अंबेडकर को वो सम्मान नहीं दिया जिसके वो हक़दार थे। सम्मान तो छोड़िए कांग्रेस पार्टी ने तो कई मौकों पर उनका अपमान किया है।
स्वतंत्रता से शुरुआत करते हैं। Dr. Ambedkar बड़े विद्धान थे, दुनियाभर में उनका नाम थे, देश में भी वो लगातार काम कर रह थे, दलितों के उत्थान के लिए बोल रहे थे, लेकिन आप यह जानकर हैरान रह जाएंगे कि इसके बाद भी नेहरू ने जब पहली सरकार बनाई तब उन्हें कैबिनेट में नहीं लिया जा रहा था।
जी हाँ, यह सच है कि नेहरू उन्हें कैबिनेट में शामिल नहीं कर रहे थे। वो तो बाद में गांधी जी ने नेहरू के ऊपर दबाव डाला तब बाबा साहब को कानून मंत्री बनाया गया।
कानून मंत्री तो बना दिया लेकिन जो वादे उनसे किए थे, वे नेहरू ने पूरे नहीं किए और यही कारण है कि उन्होंने नेहरू कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया था।
अपने इस्तीफे में बाबा साहब ने लिखा है कि उनसे वादा किया गया था कि उन्हें योजना आयोग दिया जाएगा लेकिन वो वादा कभी पूरा नहीं किया गया। मजे कि बात ये है कि बाबा साहब अर्थशास्त्री थे, उन्होंने ही देश की रिज़र्व बैंक का खाका तैयार किया था।
उन्होंने रिज़र्व बैंक की स्थापना का आधार तैयार करने वाले RBI अधिनियम 1934 को बनाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी फिर भी उन्हें योजना आयोग नहीं दिया गया जबकि पंडित नेहरू को शायद अर्थशास्त्र की उतनी समझ नहीं थी फिर भी वे स्वयं योजना आयोग के अध्यक्ष बन गए थे। यहाँ से डॉ. अंबडेकर के तिरस्कार का, अनादर का, अपमान का जो सिलसिला कांग्रेस ने शुरू किया वो लंबे समय तक चला।
इसके बाद अब बस गिनते जाइए। 1952 में स्वतंत्रता के बाद देश का पहला आम चुनाव हुआ। Dr. Ambedkar भी मुंबई सिटी नॉर्थ से चुनाव लड़े लेकिन कांग्रेस ने उन्हें हराने के लिए साम, दाम, दंड और भेद समेत सब उपाय लगा दिए।
उन्हें हराने के लिए कांग्रेस ने उन्हीं के सहयोगी नारायण काजरोलकर को उनके सामने खड़ा कर दिया। नेहरू ने इस चुनाव को अपनी प्रतिष्ठा का चुनाव बना लिया और स्वयं अंबेडकर के विरुद्ध चुनाव प्रचार किया।
नतीजा ये हुआ कि Ambedkar चुनाव हार गए। इसके बाद वे 1954 का उपचुनाव लड़े। कांग्रेस ने उन्हें वहाँ भी हरा दिया।
ऐसा प्रतीत होता है मानो नेहरू जी ने ठान लिया हो कि अंबेडकर को लोकसभा में नहीं आने देना है। ख़ैर, अंबेडकर लोकसभा नहीं जा पाए, वे राज्यसभा पहुँचे और देश के लिए काम करने लगे लेकिन कांग्रेस ने उनके ज़ख्मों पर मरहम लगाते हुए उन्हें हराने वाले नारायण काजरोलकर को 1970 में पद्मभूषण दे दिया। याद रखिए, तब तक बाबा साहेब को कोई पुरस्कार नहीं दिया गया था।
अब और आगे बढ़ते हैं। डॉ. अंबेडकर के प्रति कांग्रेस का क्या भाव था वो इससे समझ आता है कि 1990 तक संसद के सेंट्रल हॉल में डॉ. अंबेडकर की तस्वीर नहीं लगी थी।
अब आप समझिए, जिन अंबेडकर का नाम लेते हुए आज कांग्रेसी नेता घूम रहे है, उनकी एक तस्वीर तक कांग्रेस की सरकारों ने सेंट्रल हॉल में नहीं लगने दी थी।
1990 में गैर-कांग्रेसी सरकार ने उनकी तस्वीर लगाई थी, जिसे भाजपा भी समर्थन दे रही थी। मजे कि बात ये है कि राहुल गांधी जिन अंबेडकर की फ़ोटो लिए घूम रहे हैं, उन अंबेडकर को उनकी पार्टी ने भारत रत्न भी नहीं दिया था।
1990 में आकर गैर-कांग्रेसी सरकार ने मरणोपरांत उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया, याद रखिए नेहरू ने 1955 में ही स्वयं को भारत रत्न दे दिया था।
नेहरू की तरह ही इंदिरा गांधी ने भी स्वयं को 1971 में भारत रत्न दे लिया था लेकिन किसी भी कांग्रेसी सरकार ने बाबा साहब को भारत रत्न नहीं दिया। ये दिखाता है कि वे कितना सम्मान Dr. Ambedkar का करते हैं।
कांग्रेस ने बाबा साहब का कैसे-कैसे अपमान किया, इसकी कहानी बहुत लंबी है हम अगर लिखते जाएं तो लंबा समय जाएगा लेकिन फिर भी एक और किस्सा हम आपको ज़रूर बतााएंगे।
नीचे दिखाई दे रहे कार्टून को देखिए, हम ये कार्टून दिखाना भी नहीं चाहते लेकिन आज जब कांग्रेस बाबा साहब की हितैषी बन रही है तो मजबूरी में हमें दिखाना पड़ रहा है।
2006 में जब केंद्र में यूपीए की सरकार थी। कपिल सिब्बल शिक्षा मंत्री थे, तब यह कार्टून NCERT की किताबों में छापा गया था।
2012 तक यह किताबों में बना रहा और फिर जब विवाद हुआ तब इसे हटाया। कार्टून में दिखाया गया है कि अंबेडकर संविधान पर बैठे हैं और पीछे एक कोड़े से नेहरू उन्हें हांक रहे हैं।
कांग्रेस सरकारें इस कार्टून से यह संदेश देना चाहती थी कि संविधान को बनाने में नेहरू का बड़ा योगदान है। यह बात राहुल गांधी के गुरु और इंडियन ओवरसीज कांग्रेस के अध्यक्ष सैम पित्रोदा भी कहते रहते हैं।
मजे की बात ये है कि इस कार्टून को NCERT में छापने की अनुमति कांग्रेस इकोसिस्टम के सिपाही और आंदोलनजीवी योगेंद्र यादव ने दी थी, जोकि तब NCERT की Textbook कमेटी के एडवाइजर थे। इससे स्पष्ट होता है कि कांग्रेस पार्टी और उनका इकोसिस्टम डॉ. अंबेडकर को लेकर क्या सोचता है।
इसके बाद आज यह लोग ये दावा करते घूम रहे हैं कि अरे हम अंबेडकर के महान भक्त हैं। हम अंबेडकर के अनुयायी हैं। हम अंबेडकरवादी हैं।
राहुल गांधी को समझना चाहिए कि देश के लोग या फिर बाबा साहब के फॉलोवर बेवकूफ नहीं हैं वे जानते हैं कि जबतक कांग्रेस पार्टी सत्ता में रही तक तक उन्होंने Ambedkar के साथ क्या किया।
इसके साथ ही वे यह भी जानते हैं कि कैसे 2014 में सरकार में आने के बाद पीएम मोदी ने डॉ. अंबेडकर की विरासत को संभालने का काम किया है। डॉ. अंबेडकर के विज़न के अनुसार समाज की पिछड़े-वंचित-पीड़ित-दलित लोगों के लिए काम किया है।
2014 में सरकार बनाने के बाद भाजपा सरकार ने लगभग 25 करोड़ लोगों को गरीबी से बाहर निकाला है। SC और ST कानून को मजबूत बनाया है।
और पढ़ें: अनुसूचित जातियों को संविधान से मिले आरक्षण पर मुस्लिम-ईसाइयों की नजर क्यों?
स्वच्छ भारत, पीएम आवास योजना, जल जीवन मिशन और उज्जवला योजना जैसी तमाम योजनाओं का सबसे ज्यादा लाभ समाज के पिछड़े और दलित वर्ग को पहुँचा है। सिर्फ इतना ही नहीं मोदी सरकार ने डॉ. अंबेडकर से जुड़े पाँच स्थानों को पंच तीर्थ के तौर पर विकसित किया है।
इसके सिवाय सरकार ने डॉ. अंबेडकर को आम लोगों तक पहुँचाने के लिए कई भाषाओं में वेबसाइट लॉन्च करने समेत कई कार्य किए हैं।
इससे एक बात स्पष्ट होती है कि आज कांग्रेस गृह मंत्री अमित शाह के भाषण का एक हिस्सा काटकर, एजेंडा फैलाकर मलाई खाने का प्रयास कर रही है क्योंकि उसके पास आज राजनीतिक तौर पर जीवित दिखाने का कोई और मुद्दा नहीं बचा है।