दिल्ली हाई कोर्ट ने राहुल, सोनिया और प्रियंका गांधी द्वारा आयकर विभाग के खिलाफ दाखिल याचिकाओं को खारिज कर दिया। गांधी परिवार के सदस्य यह चाह रहे थे कि उनके और हथियारों के सौदेबाज संजय भंडारी के बीच के सम्बन्ध को लेकर की जा रही जांच को सेंट्रल सर्कल में ना हस्तांतरित किया जाए।
किसी भी जांच को सामान्य जांच से सेंट्रल सर्कल में गहरी जांच के उद्देश्य से हस्तांतरित किया जाता है और इसके द्वारा केस को लेने के बाद पूर्व में जुटाए गए सभी सबूतों पर सेंट्रल सर्कल जांच करता है जिसके पश्चात मामले को विधिक प्रक्रिया से गुजारा जाता है। ऐसे मामलों में अगर गड़बड़ी पाई जाती है तो आगे कार्रवाई भी हो सकती है।
इन सभी बातों का विरोध करते हुए गांधी परिवार के तीनों सदस्यों ने जांच को सेंट्रल सर्कल में हस्तांतरित करने का विरोध किया। हालाँकि, कोर्ट ने उनकी दलील नहीं मानी और याचिकाएं खारिज कर दीं। किसी भी जांच को जहाँहस्तांतरित किया जाए यह एक प्रशासनिक फैसला है और गांधी परिवार का इसको लेकर याचिका डालना दिखाता है कि वह अपने आप को सामान्य कानूनों से ऊपर रखना चाहते हैं।
इसके कुछ पूर्व उदाहरण राहुल गांधी के बंगले को खाली करने के समय ड्रामा, कोर्ट के फैसले के ऊपर की गई टिप्पणियाँ हैं। कई मौकों पर यह सामने आया है कि कॉन्ग्रेस समर्थक मात्र इस आधार पर गांधी परिवार को किसी भी कानून से ऊपर रखने की मांग करते आए हैं क्योंकि वह गांधी परिवार है।

आयकर विभाग हर साल सैकड़ों ऐसे मामलों में जांच करते हुए उन्हें आगे की जांच करने के लिए सेट्रल सर्कल में हस्तांतरित करता है। आयकर विभाग ऐसी समय में किसी भी फाइल पर नाम नहीं देखता बल्कि केस के गुण दोष देखता है कि उसमें किस प्रकार की जांच की आवश्यकता है।
गांधी परिवार से ही जुड़ा एक और मसला कल दिल्ली के एक कोर्ट में था जब राहुल गांधी ने अपने पासपोर्ट को लेकर एक याचिका दाखिल कर रखी थी। दशकों तक प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से देश के ऊपर शासन करने के कारण गांधी परिवार को यह लगने लगा है कि वह सामान्य कानूनों से ऊपर हैं और शासन प्रशासन के नियमों को जब चाहें मान सकते हैं या मानने से बचने के लिए कोर्ट का सहारा ले सकते हैं।
बीते दिनों की अखबारों की सुर्ख़ियों पर नजर डालें तो पता चलता है कि हर दूसरे हफ्ते किसी ना किसी मामले को लेकर गांधी परिवार का कोई सदस्य कोर्ट के सामने खड़ा होता है। कभी यह मामला उनके ऊपर हो रही जांचों को लेकर होता है तो कभी किसी मामले में राहत के लिए।
हालिया दिनों में राहुल गांधी की सदस्यता को लेकर गुजरात के कोर्ट के चक्कर काटे गए। उससे पहले नेशनल हेराल्ड मामले में ऐसा ही नजारा सामने आया था। इसके पहले भी कभी जमीन के मामले तो कभी किसी ना किसी ट्रस्ट के मामले को लेकर गांधी परिवार कोर्ट में नजर आता है।
आयकर विभाग के ऐसे कई फैसले होते हैं जो वह अपनी प्रशासनिक सुविधा और अधिक पारदर्शी जांच के लिए करता है, इसके पीछे का कारण देश में कर व्यवस्था को सुद्रढ़ बनाकर गड़बड़ी को पकड़ना होता है।
समस्या यह है कि सभी गांधी परिवार सामान्य प्रशासनिक आदेशों को भी ऐसे देखता है कि वह तत्कालीन सरकार में सबसे उच्च स्तर से आए हुए हैं। जबकि सच्चाई यह होती है कि ऐसे आदेश मात्र गांधी परिवार के सदस्यों को ही नहीं बल्कि अन्य लोगों को भी प्रभावित करते हैं।
ऐसे ही एक मामले में पिछले दिनों सुरक्षा नियमों के बदले जाने पर एक वकील ने कोर्ट में याचिका दाखिल कर दी कि गांधी परिवार को सबसे तगड़ी सुरक्षा दी जाए, जबकि यह सामान्य प्रावधान है कि सुरक्षा खतरे का आकलन करके दी जाती है।
हर मामले में स्पेशल ट्रीटमेंट की इच्छा रखने के कारण ही कभी कोर्ट तो कभी सरकारी एजेंसियों के दफ्तरों के बाहर कॉंग्रेसी प्रदर्शन भी करते हैं कि हमारे बॉस को आखिर यहाँ क्यों बुलाया?
गांधी परिवार और उनके आसपास के लोग अभी भी यह सोचते हैं कि देश में सत्ता का एक सिरा उनके हाथ में है, जबकि असल बात यह है कि वह अब अन्य किसी भी राजनीतिक परिवार की तरह हैं। इससे भी आगे सरकार और उसके विभागों के नजरिए में वह एक सामान्य नागरिक ही हैं। सरकार यह सुनिश्चित करती है कि अगर कोई नियम सभी व्यक्तियों पर लागू होता है तो दिल्ली की सड़कों पर रिक्शा चलाने वाले पर भी उसका वही असर पड़े जो बड़ी कोठी में रहने वाले किसी सेठ पर पड़ेगा।
गांधी परिवार का अपनी वकीलों की फ़ौज के के जरिए लगातार सरकार और उसके फैसलों को कोर्ट में खींचना यह दर्शाता है कि वह अपने लिए सदैव ही स्पेशल ट्रीटमेंट चाहते हैं।
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