रवीश कुमार पर बनी फ़िल्म While We Watched, 2022 (व्हाइल वी वॉच्ड) यूके में 14 जुलाई को और न्यूयॉर्क में 21 जुलाई को दिखाई जा रही है। इस फ़िल्म के निर्माण और इसे फ़ायनेंस करने वाले लोग कौन हैं यह भी जानना आवश्यक है। दावा किया जा रहा है कि While We Watched में सत्ता से रवीश कुमार के कथित संघर्ष को दर्शाया गया है।
While We Watched : Raivsh Kumar
चूँकि सत्यान्वेशी पत्रकार रवीश कुमार (Ravish Kumar) न्यूयॉर्क की गलियों और सड़कों को नाप रहे हैं, इसलिए भारतवासी सवाल नहीं पूछ पा रहे। अमरीकी मध्यावधि चुनाव ख़त्म न भी हुए होते, तब भी सड़क नापते हुए किसी को रोक कर नहीं पूछ पाते कि कौन जात हो?
Ravish Kumar पर बनी Film While We Watched की Funding Ford Foundation कर रही है?
सड़क नापते हुए बस भोजपुरी में Vlogging कर दर्शकों का मनोरंजन कर रहे हैं और अपना काला कोट, काला चश्मा दिखाते हुए अपने प्रशंसकों को उतनी ही जानकारी देते हैं, जितने से उनके भीतर जल रही क्रांति की मशाल को तेल मिलता रहे।
कहते हैं पत्रकार जो बताता है उससे अधिक महत्वपूर्ण होता है, जो वह नहीं बताता। वैसे भी रवीश की गिनती बड़े पत्रकारों में होती रही है, तो ऐसा क्या है जो रवीश कुमार नहीं बता रहे?
बहुत लोगों को शायद अभी पता नहीं होगा लेकिन रवीश कुमार की जिंदगी और उनकी पत्रकारिता के करियर पर एक डॉक्युमेंट्री फ़िल्म बनी है जिसका नाम है “While We Watched” और इस फ़िल्म को बना रहे हैं विनय शुक्ला, यह क़रीब 100 मिनट लम्बी फ़िल्म होगी।
सतही तौर पर देखें तो इस फ़िल्म से सिर्फ़ रवीश कुमार का नाम जुड़ा है लेकिन जब हम इस किस्से की गहराई में जाते हैं तो हमें इससे जुड़े दिग्गजों के नाम नज़र आते हैं। इनमें पहला नाम तो विनय शुक्ला का ही है।
वही विनय शुक्ला जिन्होंने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर भी An Insignificant Man नाम की फ़िल्म बनाई थी। याद रहे कि अरविंद केजरीवाल को भी रवीश जी की तरह रेमन मैग्सेसे पुरस्कार मिल चुका है। लेकिन केजरीवाल जी और रवीश जी में सिर्फ़ यही एक बात कॉमन नहीं है।
रवीश जी पर बनने जा रही इस फ़िल्म से जुड़े और नामों को भी देख लेते हैं। विनय शुक्ला इस फ़िल्म के निर्देशक हैं और इनके साथ Producer हैं ख़ुशबू रंका और Luke Moody (ल्यूक मूडी)
रवीश कुमार की यह फ़िल्म, BRITDOC Films द्वारा Fund की जा रही है। इसी BRITDOC Films के अगर हम पार्टनर पर नज़र डालें तो इसमें हमें Ford Foundation के साथ साथ BERTHA foundation भी मिलते हैं।
BRITDOC Films का, पहला प्रोजेक्ट, Art of Impact था और इसका भी सबसे बड़ा सहयोगी BERTHA और Ford फ़ाउंडेशन ही था! जो कि इशारा करता है कि रवीश पर बनाई जा रही फ़िल्म से जुड़े लोग काफ़ी समय से फ़ोर्ड फ़ाउंडेशन के साथ काम करते रहे हैं।
लेकिन बात अगर क्रोनोलॉजी की करें तो पाएंगे कि Ford Foundation नाम की इस अमेरिकी संस्था से केजरीवाल जी का रिश्ता काफी पुराना है लेकिन शायद ये बात सभी लोग नहीं जानते हैं।
साल 2011 में अरविंद केजरीवाल ने स्वीकार किया था कि केजरीवाल और मनीष सिसोदिया की ‘कबीर’ नामक संस्था को फ़ोर्ड फ़ाउंडेशन से करीब दो लाख अमेरिकी डॉलर का फंड मिला था। ये कबीर संस्था केजरीवाल की ही परिवर्तन फ़ाउंडेशन का नाम बदलकर शुरू की गई थी।
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अब देखते हैं कि फोर्ड फाउंडेशन को ले कर दुनिया का नज़रिया क्या है-
रूस ने साल 2015 में फ़ोर्ड फ़ाउंडेशन की गतिविधियो को सन्देहास्पद बताए हुए लगभग बैन कर दिया था। उस समय फ़ोर्ड के साथ साथ रूस ने बारह ‘Undesirable’ Foreign NGOs पर प्रतिबंध लगाने का फैसला किया था। अब रूस-यूक्रेन गतिरोध के बीच फ़ोर्ड फ़ाउंडेशन ने रूस में अपनी गतिविधि पर विराम की घोषणा की है।
मोदी सरकार ने भी फोर्ड फाउंडेशन की आर्थिक गतिविधियों पर संदेह जताते हुए वर्ष 2015 में इसे निगरानी वाली सूची में डाल दिया था। हालाँकि, एक वर्ष बाद गृह मंत्रालय ने रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया को एक चिट्ठी लिख कर इसे निगरानी वाली सूची मे से हटाने को कहा था।
अब भारत में फ़ोर्ड की बात करें तो अरविंद केजरीवाल जब सरकारी सेवा में थे, तब से ही फोर्ड फाउंडेशन ने अपना आर्थिक समर्थन देना शुरू कर दिया था।
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फ़ोर्ड फ़ाउंडेशन से जुड़े कुछ लोग हैं जो हमें अभी याद आ रहे हैं, इस ईकोसिस्टम को आप यहाँ देख सकते हैं –
इसमें रेमन मैग्सेसे पुरस्कार भी है, केजरीवाल भी, केजरीवाल की पुरानी सहयोगी मेधा पाटकर भी है, और रवीश कुमार भी
अब केजरीवाल के NGO कबीर और परिवर्तन को देखिए, इन्हें फ़ोर्ड फ़ाउंडेशन द्वारा ही फ़ंडिंग दी गई थी।
केजरीवाल को रेमन मैग्सेसे पुरस्कार भी मिला है। इसी आम आदमी पार्टी ने मेधा पाटकर को चुनाव लड़ने के लिए टिकट भी दिया था।आपको बता दे कि मेधा पाटकर को भी रेमन मैग्सेसे पुरस्कार मिल चुका है।
इन सब में एक और नाम भी सामने आता है। ये हैं एडमिरल रामदास, इन्हें भी रेमन मैग्सेसे पुरस्कार मिला है। रामदास AAP के संस्थापकों में से एक थे और बाद में AAP इन्हें ही अपनी पार्टी का इंटर्नल लोकपाल भी बनाती है।
एडमिरल रामदास की बेटी कविता रामदास, फोर्ड फाउंडेशन के अध्यक्ष की सीनियर सलाहकार रही हैं और इससे पहले कविता रामदास भारत में फोर्ड फाउंडेशन की प्रतिनिधि के रूप में कई वर्षों तक काम करती रही।
कविता ने जॉर्ज सोरोस के ओपन सोसाइटी फाउंडेशन के साथ भी काम किया है!
अब रवीश कुमार पर फ़िल्म बन रही है, इसके Producer भी वही लोग हैं जो अरविन्द केजरीवाल की फ़िल्म को फंड कर रहे हैं। फ़ोर्ड वहाँ भी था और यहाँ भी है ।
2022 में ‘राइटिंग विद फायर’ नाम की डॉक्युमेंट्री को ऑस्कर के लिए नामांकित किया गया था। इस डॉक्यूमेंट्री में हिंदू विरोधी अजेंडा को रखा गया है और केंद्र में मौजूद भाजपा सरकार को विलेन के रूप में दिखाया गया है। यह फ़िल्म भी एक दलित महिला पत्रकार के जीवन पर आधारित है।
अब सबसे दिलचस्प हिस्सा देखिए, इस डॉक्युमेंट्री की वेबसाइट के अनुसार इस फ़िल्म की Executive Director इग्ज़ेक्युटिव निर्देशक अनुरिमा भार्गव है। यही अनुरिमा भार्गव USCIRF ‘यूएस कमीशन ऑन इंटरनेशनल रिलीजियस फ्रीडम’ की कमिश्नर थीं।
ऐसे कई सारे प्रमाण मिले हैं जिनमें यह पता चला कि इनकी संस्था USCIRF पाकिस्तान से आर्थिक मदद ले कर Anti India yani भारत विरोधी अजेंडा चलाने का काम करती रही है।
रवीश कुमार को अमेरिका से जो समर्थन मिल रहा है, इस पर ध्यान देने की आवश्यकता है। आगे बढ़ाने, स्थापित करने आदि के वाकए में एक ही क़िस्म के लोग और संस्थाएँ शामिल हैं तो सवाल यह है कि क्या अब अमेरिकी संस्थाएँ रवीश कुमार को भी भारत की राजनीति में स्थापित करने का प्रयास कर रही हैं? बेहतर है कि रवीश कुमार खुद आ कर स्पष्ट करें कि यह सब फ़ोर्ड फ़ाउंडेशन द्वारा ही प्रायोजित है ।
सिर्फ़ रवीश कुमार ही इस वक्त अमेरिका में नहीं हैं, राणा अय्यूब जिनका नाम कोरोना महामारी के दौरान PM केयर्स फंड में घपलेबाजी करने में भी सामने आया, वो भी इस वक्त अमेरिका में हैं। ये कोई इत्तेफ़ाक ही होगा कि वो जिसके साथ दिवाली की फोटो खिंचाती है वो उस अनुरिमा भार्गव की मां हैं और यही अनुरिमा रवीश कुमार की फ़िल्म को फंड करने वाली Doc सोसायटी के बोर्ड में शामिल है।
यानी अब ये पूरा Ecosystem रवीश को प्रोमोट करने में लगा हुआ है, ये तो वक्त ही बताएगा की आख़िर ये सारी गणित जा कर कहाँ बैठ रही है।
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