1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध की ऐसी कई कहानियाँ और यादें हैं जो आम जनमानस के बीच अक्सर कही और सुनाई जाती है लेकिन एक ऐसी भी कहानी है जिसकी चर्चा उतनी नहीं होती जितनी होनी चाहिए।
पाकिस्तान में यह कहानी क्यों नहीं बताई जाती, यह तो आप शीर्षक से समझ गए होंगे लेकिन यह विडंबना ही है कि भारत में भी बहुत कम व्यक्ति इस शौर्यगाथा से अनभिज्ञ हैं।
पंजाब में पाकिस्तानी एसएसजी हुए पैराड्रॉप
1965 के युद्ध में पाकिस्तान के ‘ग्रैंड स्लैम’ ऑपरेशन के जवाब में 6 सितंबर की तारीख भारतीय सेना ने लाहौर सेक्टर में युद्धविराम रेखा को पार करते हुए, सैन्य ऑपरेशन शुरू किया था।
भारत के लाहौर सैन्य ऑपरेशन के जवाब में पाकिस्तान ने एक भयंकर अभियान की योजना बनाई। पाकिस्तानी एयरफोर्स ने एक योजना बनाई जिसके अनुसार पाकिस्तान के एसएसजी कमांडो को भारत के पंजाब में पैराड्रॉप किया जाना था।
ऑपरेशन का उद्देश्य भारतीय एयरफोर्स के तीन एयरबेस पर कब्जा करना था। ये एयरबेस थे पठानकोट, हलवारा और आदमपुर जो युद्ध के दौरान भारत के लिए महत्वपूर्ण थे।
6 सितंबर को, पाकिस्तानी एयरफोर्स ने तीन ठिकानों पर काफी बमबारी की और फिर देर रात 180 एसएसजी कमांडो, सी-130 हरक्यूलिस विमानों से तीन समूहों में पैराड्रॉप कर दिए गए।
एनसीसी कैडेट और गांववालों ने बनाया बंदी, 22 को मारा
पैराड्रॉप किए गए 180 एसएससी कमांडो में से 138 को बंदी बना लिया गया तो वहीं बाकी या तो मारे गए या भाग गए।
खास बात यह है कि यह कार्रवाई भारतीय सेना ने नहीं लेकिन एनसीसी कैडेट और लाठियों से सुसज्जित गांववालों ने की।
इस शर्मनाक हार के बाद पाकिस्तान में इस ऑपरेशन की बहुत निंदा हुई थी और कई एयरफोर्स के उच्च अधिकारियों ने पूरी योजना और इसके क्रियान्वन पर सवाल खड़े किए थे।
फील्ड मार्शल और पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद अयूब खान ने कहा था, “सही समय और स्थान पर एक-दो कड़े प्रहार के बाद हिंदू मनोबल नहीं टिक पाएगा।” रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि युद्ध का पहला नियम अपने दुश्मन का सही आकलन करना होता है। 1947 के युद्ध से कारगिल तक पाकिस्तान यही भूल करता आया है।