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Home » दरगाहों का सच : यहाँ हिन्दू माथा टेकते हैं या अस्तित्व का सरेंडर करते हैं ?
झरोखा

दरगाहों का सच : यहाँ हिन्दू माथा टेकते हैं या अस्तित्व का सरेंडर करते हैं ?

Mudit AgrawalBy Mudit AgrawalSeptember 18, 2022No Comments5 Mins Read
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हिन्दू दरगाह
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अभी भारत की आबादी में लगभग 100 करोड़ लोग हिन्दू हैं, और मान्यता है कि हिन्दू धर्म में 33 कोटि देवी देवता हैं, यदि हिन्दू आबादी और देवताओं की संख्या का अनुपात लिया जाए तो लगभग हर तीन से चार हिन्दुओं को अपने एक निजी देवता मिल सकते हैं।

आश्चर्य तब होता है जब बहुत से हिन्दू दूसरे मजहबों के धार्मिक स्थल पीर मजार चर्च दरगाहों में पाए जाते हैं। इनमें से बहुत सी दरगाहें जिन लोगों के लिए बनाई गई होती हैं, उनका इतिहास भी हिन्दू हितों के विपरीत आक्रामक इतिहास होता है। आइए जानते हैं ऐसी ही कुछ दरगाहों के बारे में जहाँ हिन्दू अपना माथा टेक रहे हैं या अस्तित्व का सरेंडर कर रहे हैं, इस बात में आसानी से भ्रम हो जाता है।

बख्तियार खिलजी की कब्र, बंगाल

बख्तियार खिलजी
तुर्क अफगानी लुटेरा मुहम्मद बख्तियार खिलजी

बख्तियार खिलजी बिहार पर सबसे पहले विजय पाने वाला मुस्लिम शासक था। 12वीं सदी में बख्तियार खिलजी ने ही आक्रमण करके नालन्दा विश्‍वविद्यालय को नष्ट किया था। बख्तियार खिलजी के चाचा का वाराणसी पार के कुछ क्षेत्रों पर कब्जा था, बख्तियार ने इस बात का फायदा उठाकर बिहार पर कई आक्रमण किए क्योंकि बिहार में कोई प्रभावशाली हिन्दू शासक नहीं था।

इसी दौरान उसने नालन्दा और विक्रमशिला विश्वविद्यालयों में विध्वंस किया, हिन्दू और बौद्ध शिक्षकों को जिन्दा जला दिया गया और वहाँ के पुस्तकालयों में आग लगा दी जिससे हिन्दुओं की विशाल ज्ञानराशि स्वाहा हो गई। इसके बाद 1204 ई. के आस पास उसने बंगाल के सेन राजाओं की राजधानी ‘नदिया’ पर हमला करके वहाँ अधिकार कर लिया और राजा की पत्नी और बच्चों को भी गुलाम बना लिया।

यहाँ हिन्दुओं पर भयंकर अत्याचार के बाद उसने 10 हजार घुड़सवारों की सेना लेकर असम पर आक्रमण किया पर असम के माघ शासकों ने बड़ी चतुराई से उसे पराजित कर दिया, इसके बाद वह बंगाल में सीमित हो गया, और उसके ही नाराज साथियों ने उसकी धोखे से हत्या कर दी।

वर्तमान पश्चिम बंगाल के दिनाजपुर जिले के गंगारामपुर ब्लॉक के पीरपाल गांव में बख्तियार खिलजी की कब्र है, जहाँ मरने के बाद उसे पीर बनाकर पूजा जाने लगा और आश्चर्य की बात है कि इस गांव के बहुत से हिन्दू उसके प्रति सम्मान दिखाने के लिए आज भी जमीन पर सोते हैं।

सालार मसूद की दरगाह, बहराइच

सलार मसूद दरगाह
सालार मसूद की दरगाह

सभी लोग जानते हैं कि श्री सोमनाथ ज्योतिर्लिंग पर महमूद गजनवी ने आक्रमण किया था, पर इसके पीछे का मास्टरमाइंड कौन था? मास्टरमाइंड था गजनवी का भांजा सालार मसूद! इन लोगों ने मिलकर सोमनाथ समेत अनेक हिन्दू मंदिर तोड़े थे और हिन्दुओं पर अगणित अत्याचार किए थे। सालार मसूद ने जब बहराइच पर आक्रमण किया तब वहाँ राजा सुहेलदेव का शासन था। राजा सुहेलदेव ने सालार मसूद और उसकी सेना को जोरदार मजा चखाकर जहन्नुम के चूल्हे का ईंधन बनाया था।

भारतीय मूल के अमेरिका निवासी इतिहासकार मान जी ने अपने प्राथमिक स्रोतों पर आधारित ऐतिहासिक शोध में पाया कि सालार मसूद ने बहराइच में एक तालाब के पास स्थित जिस प्राचीन सूर्य मंदिर के पास अपना डेरा जमाया था, यही उसकी मौजूदा दरगाह है, जहाँ उसके मरने के बाद उसे उसे दफना दिया गया था और बाद में उसे दरगाह का रूप दे दिया गया था।

आश्चर्य है कि सालार को यहाँ के हिन्दू बारे पीर या हठीले पीर कहकर पूजती है और उर्स में आटे के घोड़े प्रसाद रूप में बाँटे जाते हैं। मसूद के साथी लाल पीर और मसूद के पिता बिरधा बाबा दोनों के कन्नौज आदि में उर्स होते हैं और ये पूजे जाते हैं। हिन्दू आखिर अपने पूर्वजों को मारने वाले सालार मसूद को कैसे और क्यों पूज लेते हैं, इस बात पर बहुत से अंग्रेज भी आश्चर्य करते थे। पर शायद हिन्दुओं को खुद ही आश्चर्य नहीं होता।

फतहशाह तुगलक की दरगाह, दिल्ली

कदम शरीफ दरगाह
कदम शरीफ दरगाह, पहाड़गंज, दिल्ली

दिल्ली में फिरोजशाह तुगलक के बेटे फतहशाह तुगलक की कब्र है, जिसे दरगाह कदम शरीफ कहा जाता है। फिरोजशाह तुगलक वही है जिसने उड़ीसा के जाजनगर पर 1360 ई. में आक्रमण करके भानुदेव तृतीय को परास्त कर पुरी के श्रीजगन्नाथ मंदिर का विध्वंस किया था। एक साल बाद फिरोजशाह ने ही नगरकोट पर आक्रमण किया था।

फिरोजशाह इतना धर्मांध सुन्नी मुस्लिम था कि उसने मुसलमान अपराधियों को मृत्यु दण्ड देना बन्द कर दिया गया। उसने हिन्दू जनता को ‘जिम्मी’ घोषित कर दिया था और जजिया लगाकर भयंकर अत्याचार किया था। इतिहासकार आर.सी. मजूमदार कहते हैं कि, ‘फिरोज इस युग का सबसे धर्मान्ध एवं इस क्षेत्र में सिंकदर लोदी एवं औरंगज़ेब का अग्रगामी था।’

इसके बेटे की कब्र दरगाह कदम शरीफ पर आज भी अच्छे पढ़े लिखे हिन्दू सजदा करने और नाक रगड़ने जाते हैं, क्या उन्हें जगन्नाथ मन्दिर को तोड़े जाने का बिल्कुल भी दुःख नहीं होता?

पावागढ़ की दरगाह से मिली मुक्ति, बड़ौदा

पावागढ़
पावागढ़ शक्तिपीठ, पहले और अब

गुजरात के शहर बड़ौदा से 30 किमी दूर पावागढ की पहाड़ी पर एक माँ कालिका का प्राचीन शक्तिपीठ है। 15वीं शताब्दी में मुस्लिम शासक मुहम्मद बेगड़ा ने इस शक्तिपीठ के शिखर को तोड़कर हिन्दुओं को अपमानित करने के लिए वहाँ पर एक सदान शाह पीर की दरगाह बना दी थी, जिसके कारण 500 साल तक मंदिर शिखरहीन होने से मंदिर पर ध्वजा नहीं फहराई जा सकी।

नीचे माँ काली का मंदिर और उसके ठीक उपर शिखर पर तीन फ़ीट की दरगाह! और नादान हिन्दू उस हरी दरगाह पर भी इतने साल पैसे और फूल चढाते रहे। पर 500 साल बाद मंदिर के शिखर से मजार हटाकर नया शिखर बनाया गया और पूरे मंदिर क्षेत्र को विकसित किया गया, इसके बाद इसी साल जून माह में प्रधानमंत्री ने स्वयं शिखर पर प्रथम बार ध्वजा चढ़ाई और इस क्रूर इतिहास का अंत हुआ।

आज भी न जाने कितने ही मंदिर ऐसे ही प्रयास का इंतजार कर रहे हैं, कि कब उन्हें भी औपनिवेशिकता से आजादी मिलेगी।

दारा शिकोह को अपनाने से हटेगा औरंगजेब का अलगाववाद

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