प्रभास, सैफ अली खान और कृति सेनन अभिनीत फिल्म ‘आदिपुरुष’ को लेकर चल रहे विवाद के बीच अखिल भारतीय संत समिति ने हाल ही में सेंसर बोर्ड को भंग करने और ‘सनातन सेंसर बोर्ड’ के गठन की मांग करते हुए आरोप लगाया था कि बॉलीवुड हिन्दू धर्म का अपमान करता रहता है। बॉलीवुड पर ऐसे आरोप नए नहीं हैं, बल्कि देश का बहुसंख्यक समाज कई दशकों से सिनेमाई प्रताड़ना का शिकार रहा है।
पिछले सप्ताहांत में दिल्ली के जीएनडीसी कन्वेंशन हॉल में हुई बैठक में अखिल भारतीय संत समिति, अखाड़ा परिषद और देश भर के संतों ने सनातन सेंसर बोर्ड के गठन का प्रस्ताव रखा था। द पैम्फलेट से बात करते हुए अखिल भारतीय विद्वत् परिषद, काशी के महासचिव और शिक्षाविद् डॉ. कामेश्वर उपाध्याय ने अ.भा.संत समिति और महामण्डलेश्वर स्वामी चिदम्बरानंद सरस्वती की ‘सनातन सेंसर बोर्ड’ के गठन की मांग का समर्थन करते हुए कहा कि, “धर्म अविरुद्ध सेंसर बोर्ड की स्थापना होनी चाहिए, ये देश की आवश्यकता है।”

हालिया चर्चित आदिपुरुष फिल्म में, भगवान राम, हनुमान, रावण को पारंपरिक और सांस्कृतिक रूप से हटकर दिखाया गया है, बहुत से लोगों ने रावण के वेश की तुलना अलाउद्दीन खिलजी से की है, प्रश्न यह है कि क्या संवेदनशील धार्मिक विषयों में अभिव्यक्ति की ऐसी स्वतंत्रता ली जा सकती है?
‘आदिपुरुष’ – कैसा था रावण का लुक? वाल्मीकीय रामायण और आधुनिकता के बीच कहाँ ?
बॉलीवुड पर पाकिस्तान, गल्फ देशों और पश्चिम से फंडिंग के आरोप लगते रहे हैं, ऐसे में देश के बहुसंख्यक समाज के खिलाफ इरादतन साजिश से इंकार नहीं किया जा सकता। फिल्मों में हिन्दू धर्म को गलत प्रकाश में दिखाया जाता रहा है, इसके पीछे एक सूक्ष्म प्रॉपैगैंडा काम करता है।

भारतीय फिल्म सेंसर बोर्ड का इतिहास
भारत सरकार के अधीन, सिनेमैटोग्राफ एक्ट 1952 के तहत स्थापित केन्द्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड या भारतीय सेंसर बोर्ड ही देश में फिल्मों, टीवी सीरियलों, विज्ञापनों और अन्य विजुअल सामग्री की समीक्षा कर प्रमाण पत्र जारी करता है, जिसके बिना किसी भी फिल्म का सार्वजनिक प्रदर्शन नहीं किया जा सकता।
बोर्ड में अध्यक्ष के अतिरिक्त 25 अन्य गैर सरकारी सदस्य होते हैं। बोर्ड सामान्य सार्वजनिक फिल्मों के लिए U, वयस्क फिल्मों के लिए A, अभिभावकों की उपस्थिति में किशोरों व सबके देखने योग्य फिल्म के लिए U/A, तथा विशेष फिल्मों के लिए S प्रमाण पत्र जारी करता है।

इतना सब कुछ होते हुए भी फिल्म सेंसर बोर्ड फिल्मों में ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, शैक्षिक जानकारियों के साथ खिलवाड़ और अश्लीलता रोकने में अब तक नाकाम साबित रहा है। इसका कारण है कि केवल बॉलीवुड से जुड़े फिल्म अभिनेताओं, प्रोड्यूसर्स को ही इसका अध्यक्ष बनाया जाता रहा है, जिनके पास देश से जुड़े मुद्दों, और विषयों की न तो जानकारी होती है, न ही इतना समय होता है कि पटकथा पढ़कर सही गलत का आकलन कर सकें।
2004 से लेकर 2011 तक लंबे समय तक सैफ अली खान के पिता मंसूर अली खान की पत्नी शर्मिला टैगोर (असली नाम बेगम आयेशा सुल्ताना खान) फिल्म सेंसर बोर्ड की अध्यक्ष रहीं। क्या हम आशा कर सकते हैं, कि उनकी अध्यक्षता में फिल्मी पटकथाओं की उपर्युक्त सभी मुद्दों को लेकर गंभीर जांच हुई होंगी और उसके बाद उन्हें हरी झंडी दिखाई गई होगी? इसी दौरान हिन्दुओं का तगड़ा विरोध झेलने वाली दीपा मेहता की विवादित फिल्म ‘वाटर’ से लेकर विवादित और इतिहास का गलत चित्रण करने वाली जोधा-अकबर तक रिलीज होती रहीं।

इसके बाद 2011 से 2015 तक वामपंथी और चर्च समर्थित-समर्थक कलाकार लीला सैमसन फिल्म सेंसर बोर्ड की अध्यक्ष रहीं, जिनपर भ्रष्टाचार और आपराधिक साजिश के मामले में सीबीआई जांच चल चुकी है। इस दौरान कलाक्षेत्र फाउंडेशन से सभी हिन्दू चिह्न मिटा दिए गए, भरतनाट्यम तक का नटराज मूर्ति हटाकर ईसाईकरण किया गया। वह प्रियंका गाँधी वाड्रा की निजी डांस ट्रेनर भी रहीं।
इस दौरान हिन्दू धर्म को गलत छवि में पेश करने वाली ‘ओह माय गॉड’, ‘हैदर’ और ‘पी.के’ जैसी तमाम मूवीज बेधड़क रिलीज होती रहीं। आखिर भारत की सांस्कृतिक पहचान से द्वेष करने वाले लीला सैमसन जैसे लोग फिल्म प्रमाणन करने वाले संवेदनशील पद को कैसे सम्भाल सकते हैं, जो करोड़ों लोगों की भावनाओं से खिलवाड़ करने की ताकत रखता है। क्या योग्यता है लीला सैमसन जैसे लोगों की? किस विषय की क्या जानकारी है इन्हें?
क्या-क्या हो सकता है सनातन सेंसर बोर्ड में

कई दशकों से फिल्मों के माध्यम से लगातार चल रहे हिन्दू विरोध को देखते हुए, फिल्म सेंसर बोर्ड के मौजूदा स्वरूप में परिवर्तन बहुत जरूरी है। इसके अलावा धार्मिक व एतिहासिक विषयों को लेकर एक अलग सनातन सेंसर बोर्ड का संतों का सुझाव भी सकारात्मक है। इस विषय को लेकर द पैम्फलेट की डॉ. कामेश्वर उपाध्याय से हुई बातचीत में ये सुझाव सामने आए, जिन्हें फिल्म सेंसर बोर्ड में अमल में लाकर फिल्मों को लेकर आए दिन होने वाले धार्मिक, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक विवाद पर लगाम लगाई जा सकती है :-
- फिल्म निर्माण में सभी धर्मों और पंथों के साथ समानता का व्यवहार किया जाए। यदि इस्लाम और ईसाइयत को लेकर आप “कुछ भी” नहीं दिखा सकते, तो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर हिन्दू धर्म की गलत छवि पेश करने पर भी पाबंदी होनी चाहिए। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता केवल हिन्दू विरोध में क्यों?
- फिल्म सेंसर बोर्ड में जिम्मेदार व्यक्तियों की नियुक्ति होनी चाहिए, न कि उन फिल्मी कलाकारों की जिन्हें खुद की फिल्मों और व्यवसाय से ही फुर्सत न हो। अगर शाहरुख खान को सेंसर बोर्ड अध्यक्ष बना दिया जाए, तो क्या वह फिल्मों की स्क्रिप्ट्स पढ़ेंगे?
- स्क्रिप्ट रायटर्स या फिल्म समालोचक इसके लिए बेहतर विकल्प हो सकते हैं। फिल्म समालोचकों और पटकथा लेखकों को बोर्ड में तवज्जो मिलनी चाहिए जिनके पास समय और प्रतिभा दोनों हैं। अब तक सेंसर बोर्ड में उन लोगों को स्थान दिया जाता रहा है जिनके नाम बड़े हैं, पर संस्था के प्रति डिवोशन नहीं है।
- धार्मिक, शैक्षिक, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक जैसे संवेदनशील विषयों की फिल्मों के लिए हर विषय के कम से कम एक जानकार व प्रबुद्ध व्यक्ति की नियुक्ति बोर्ड में होनी चाहिए। इन संवेदनशील विषयों की फिल्मों को निष्पक्ष स्क्रूटिनी के बाद ही सर्टिफिकेट जारी होना चाहिए।
- हिन्दू धर्म व अन्य पंथों के धार्मिक प्रतीकों जैसे रामायण, महाभारत, पुराणों के प्रमुख पात्रों के नाम, रासलीला, नवरात्रि जैसे शब्द, मूर्तियों, त्रिशूल, तिलक, वेशभूषा जैसे प्रतीकों को फिल्मों में गलत रूप में प्रस्तुत करने पर प्रतिबन्ध होना चाहिए। जैसे बॉलीवुड सीता-गीता जैसे नामों को गलत ढंग से पेश कर चुका है। राधा जी को लेकर फूहड़ गाने बना चुका है, नवरात्रि को बिगाड़कर लवरात्रि करना, हिन्दू प्रतीकों को खलनायकों पर जबरन कास्ट करना जैसे तमाम मुद्दों में हिन्दू प्रतीकों के साथ खिलवाड़ किया जाता रहा है।
- यदि धार्मिक ग्रन्थ या ऐतिहासिक विषय पर फिल्म बनाई जाती है, तो फिल्म निर्माताओं के लिए हर सीन, और प्लॉट का पूर्व से उपलब्ध ऐतिहासिक और धार्मिक विवरणों से सन्दर्भ उपलब्ध कराना अनिवार्य होना चाहिए, जिसकी सेंसर बोर्ड के योग्य पदाधिकारी जांच कर सकें और संभावित विवादों को न्यूनतम कर सामग्री की प्रमाणिकता भी सुनिश्चित हो।
केन्द्र सरकार को लंबे समय से चलते आ रहे इस मुद्दे पर ध्यान देकर विषय विशेषज्ञों की बहाली सेंसर बोर्ड में करनी चाहिए, और इसे एक पारदर्शी, और उत्तरदायी संस्था बनाना चाहिए।
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