अंततः भारत चल पड़ा है विश्व गुरु बनने की राह पर। परंतु, पश्चिमी देशों में कुछ विघनसंतोषी जीवों को शायद यह रास नहीं आ रहा है क्योंकि भारत, ब्रिटेन का कभी औपनिवेशिक देश रहा है और इन देशों की नजर में यह कैसे हो सकता है कि ब्रिटेन के चन्द्रमा पर पहुंचने के पूर्व ही उनका एक पूर्व औपनिवेशक देश अपना चन्द्रयान-3 सफलता पूर्वक चन्द्रमा पर उतार ले। भारत, पूरे विश्व में, पहिला देश है जिसने चन्द्रयान-3 को चन्द्रमा के दक्षिणी पोल पर सफलतापूर्वक उतार लिया है। अन्यथा, विश्व का कोई भी देश, अमेरिका, रूस एवं चीन सहित, अभी तक चन्द्रमा के दक्षिणी पोल पर अपना यान उतारने में सफल नहीं हो सका हैं। निश्चित ही भारत की यह सफलता न केवल भारत के लिए बल्कि विश्व के समस्त देशों के लिए गर्व का विश्व होना चाहिए। यदि चन्द्रयान-3 अपने उद्देश्यों में सफल हो जाता है जैसे चन्द्रमा पर पानी उपलब्ध है अथवा नहीं, चन्द्रमा पर किस प्रकार के खनिज पदार्थ (सोना, प्लेटिनम, टाइटेनियम, यूरेनियम, आदि), रासायनिक पदार्थ, प्राकृतिक तत्व, मिट्टी एवं अन्य तत्व पाए जाते हैं, आदि का पता लगने पर क्या इस जानकारी का लाभ केवल भारत को ही होने जा रहा है अथवा क्या विश्व के अन्य देश भी इस जानकारी का लाभ उठा सकने की स्थिति में नहीं होंगे। परंतु, पश्चिमी देशों में कुछ तत्व भारत की इस महान उपलब्धि को सकारात्मक दृष्टि से न देखते हुए इस संदर्भ में अपनी नकारात्मक सोच को आगे बढ़ाते हुए दिखाई दे रहे है, और सम्भव है कि भारत के प्रति उनकी यह नकारात्मक सोच इन देशों के लिए भविष्य में हानिकारक सिद्ध हो।
न्यूयॉर्क टाइम्स ने एक कार्टून छापा है जिसमें बताया गया है कि विशिष्ट वर्ग के दो नागरिक एक कक्ष (कैबिन) में बैठे हैं एवं इनमें से एक संभ्रात व्यक्ति एक अखबार में भारत के मंगल मिशन के सम्बंध में जानकारी पढ़ रहा है। इस कक्ष के बाहर भारतीय गरीब किसान के रूप में एक गाय को लेकर एक व्यक्ति दरवाजे के बाहर खड़ा है, जो दरवाजे पर दस्तक देता हुआ दिखाई दे रहा है। इस कार्टून से ऐसा महसूस कराए जाने का प्रयास किया जाना प्रतीत हो रहा है कि जैसे एक गरीब भारत देश, पश्चिमी देशों से अपने मंगल मिशन के लिए सहायता मांग रहा हो। संभवत: भारत के चन्द्रयान-3 की सफलता को पश्चिमी देशों में कुछ तत्व पचा नहीं पा रहे हैं।
एक ब्रिटिश पत्रकार पेट्रिक क्रिस्टी ने भारत को चन्द्रयान-3 को चन्द्रमा के दक्षिणी पोल पर सफलता पूर्वक उतारे जाने की बधाई देते हुए यह मांग की है कि ब्रिटेन द्वारा भारत को उपलब्ध कराई जा रही आर्थिक सहायता राशि को वापिस लिया जाना चाहिए क्योंकि उसके अनुसार चूंकि भारत की आधी आबादी गरीबी का जीवन जी रही है अतः ब्रिटेन द्वारा भारत को दी जा रही आर्थिक सहायता राशि का उपयोग भारत में गरीबी मिटाने के उद्देश्य से न किया जाकर अंतरिक्ष में अपने चन्द्रयान भेजने के लिए किया जा रहा है। इस ब्रिटिश पत्रकार का दावा है कि ब्रिटेन द्वारा भारत को वर्ष 2016 से वर्ष 2021 के बीच 230 करोड़ ब्रिटिश पाउंड की राशि आर्थिक सहायता के रूप में उपलब्ध कराई गई है। उक्त पत्रकार का यह भी कहना है कि यदि भारत अपने राकेट को अंतरिक्ष में भेज रहा है तो भारत को ब्रिटेन के पास कटोरा लेकर मदद के लिए नहीं आना चाहिए। जबकि इस संदर्भ में वास्तविकता यह है कि भारत कभी भी ब्रिटेन के पास आर्थिक सहायता मांगने के लिए गया ही नहीं है। इस संदर्भ में ब्रिटेन द्वारा सरकारी तौर पर उपलब्ध कराई गई जानकारी के अनुसार ब्रिटेन ने भारत को किसी भी प्रकार की वित्तीय सहायता उपलब्ध नहीं कराई हैं परंतु ब्रिटेन ने वर्ष 2015 के बाद से भारत में व्यवसाय को बढ़ावा देने के उद्देश्य से निवेश जरूर किया है ताकि भारत के बाजार में ब्रिटेन का योगदान बढ़ सके एवं ब्रिटेन के नागरिकों के लिए रोजगार के अवसर निर्मित हो सकें।
यह भी एक वास्तविकता है कि भारत आज विश्व की 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है और इस संदर्भ में हाल ही में भारत ने ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था को पीछे छोड़ते हुए अपनी अर्थव्यवस्था को आकार में ब्रिटेन से भी बड़ी अर्थव्यवस्था बना लिया है। परंतु, कुछ ब्रिटिश राजनीतिज्ञ एवं पत्रकार इस तथ्य को स्वीकार ही नहीं कर पा रहे हैं और वे अपनी साम्राज्यवादी सोच से भी बाहर नहीं आ पा रहे हैं। ऐसे तत्व आज भी भारत को अपनी एक कालोनी (उपनिवेश) के रूप में ही देख रहे हैं और सोच रहे हैं कि भारत कैसे ब्रिटेन से पहिले चन्द्रमा पर पहुंच सकता है। जबकि आज वस्तुस्थिति यह है कि ब्रिटेन की आर्थिक हालत इतनी अधिक खराब हो गई है कि ब्रिटेन के नागरिकों को अपने बिजली के बिल का भुगतान करने के लिए भी ऋण लेना पड़ रहा है।
पश्चिमी देशों को अब यह समझना होगा कि यह 21वीं सदी है एवं वैश्विक पटल पर भारत अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए आगे बढ़ चुका है। यह पश्चिमी देशों के हित में ही होगा कि वे भारत की विकास यात्रा में भागीदार बनें एवं अपने आर्थिक हितों को भी बल प्रदान करें, इस बात को जितनी जल्दी समझें उनके लिए उतना ही अच्छा है क्योंकि अन्यथा वे स्वयं के आर्थिक हितों को नुक्सान ही पहुंचा रहे होंगे। क्या ब्रिटेन इस बात को भूल गया है कि औपनिवेशक खंडकाल में उसने भारत पर शासन के दौरान वर्ष 1765 से लेकर वर्ष 1938 तक भारत से 45 लाख करोड़ पाउंड की लूट की है (यह तथ्य एक अधय्यन प्रतिवेदन में सामने आया है), हो सकता है यह राशि और भी अधिक रही हो। परंतु, उक्त राशि भी ब्रिटेन के सकल घरेलू उत्पाद का 15 गुणा है। उक्त राशि को ब्रिटेन द्वारा भारत को लौटाए जाने पर भी विचार किया जाना चाहिए। ब्रिटेन द्वारा भारत में की गई भारी लूट के बावजूद भारत एक बार पुनः अब अपने पैरों पर खड़ा हो चुका है एवं भारत को अपने मिशन चन्द्रमा ग्रह, मिशन मंगल ग्रह एवं मिशन सूर्य ग्रह पर पश्चिमी देशों के दर्शन की आवश्यकता नहीं है। भारत को वैसे भी अब अंतरिक्ष के क्षेत्र में नित नयी सफलता की कहानियां गढ़ने की आदत पड़ चुकी है, और फिर चन्द्रमा के दक्षिणी पोल पर चन्द्रयान-3 को सफलता पूर्वक उतारना तो एक शुरुआत भर है।
भारत का मिशन चन्द्रयान-3 तुलनात्मक रूप से बहुत किफायती रहा है। इस पूरे मिशन पर केवल लगभग 615 करोड़ रुपए की लागत आई है, जबकि अन्य देशों यथा अमेरिका, रूस एवं चीन की इस तरह के मिशनों पर हजारों करोड़ रुपए की लागत आती रही है। साथ ही, चन्द्रयान-3 ने 14 जुलाई 2023 को आन्ध्रप्रदेश के श्रीहरीकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से अपनी यात्रा प्रारम्भ की थी और केवल 41 दिनों के बाद, 23 अगस्त 2023 को चन्द्रयान-3 ने चन्द्रमा के दक्षिणी पोल पर सफलता पूर्वक अपनी लैंडिंग सम्पन्न कर एक नया विश्व कीर्तिमान स्थापित किया है। इसरो ने चंद्रयान-3 की लैंडिंग के लिए चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव को इसलिए चुना क्योंकि सूर्य द्वारा कम प्रकाशित होने के संबंध में दक्षिणी ध्रुव को एक विशिष्ट लाभ प्राप्त है। इसरो के अध्यक्ष इस सम्बंध में कहते हैं कि चंद्रमा मिशन पर कार्य कर रहे वैज्ञानिकों ने दक्षिणी ध्रुव में बहुत रुचि दिखाई क्योंकि अंततः मनुष्य वहां जाकर उपनिवेश बनाना चाहते हैं और फिर उससे आगे की यात्रा करना चाहते हैं। इसलिए इसरो चन्द्रमा पर सबसे अच्छी जगह की तलाश कर रहा हैं और चन्द्रमा के दक्षिणी ध्रुव में वह क्षमता है। चन्द्रयान-3 के प्रज्ञान रोवर के पास दो उपकरण हैं, दोनों चंद्रमा पर मौलिक संरचना के निष्कर्षों के साथ-साथ रासायनिक संरचनाओं से संबंधित हैं। अतः यह चन्द्रमा की सतह पर चक्कर लगाकर उक्त विषयों पर जानकारी भारत को उपलब्ध कराएगा।
वैसे भी देखा जाय तो अमेरिका के अंतरिक्ष केंद्र नासा में बड़ी संख्या में भारतीय मूल के इंजीनियर्स कार्यरत हैं जबकि भारत के अंतरिक्ष केंद्र इसरो में सम्भवत: एक भी अमेरिकी इंजीनियर कार्यरत नहीं है। अर्थात, पश्चिमी देशों के अंतरिक्ष से जुड़े विभिन्न मिशनों में भारतीयों का सीधा सीधा योगदान रहता आया है। भारत के इसरो प्रमुख का तो यहां तक कहना है कि आधुनिक विज्ञान की उत्पत्ति वेदों से हुई है, परंतु पश्चिमी देशों ने इसे अपनी खोज की तरह प्रस्तुत किया है। अतः इस संदर्भ में कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि अंतरिक्ष से जुड़े पश्चिमी देशों के विभिन्न मिशन अपरोक्ष रूप से भारत के सहयोग से ही चल रहे हैं जबकि इस क्षेत्र में भारत के विभिन्न मिशन अपने बलबूते पर चल रहे हैं। अब पश्चिमी देशों को इस वस्तुस्थिति से अवगत होना बहुत जरूरी है।
वैसे भी अंतरिक्ष के क्षेत्र में हाल ही के समय में भारत का एक तरह से वर्चस्व स्थापित होता दिखाई दे रहा है। आज पूरी दुनिया ही अंतरिक्ष के क्षेत्र में भारत का लोहा मानने लगी है। भारत ने इस क्षेत्र में अमेरिका, रूस एवं चीन जैसे देशों के एकाधिकार को तोड़ा है। भारत आज समूचे विश्व में सैटेलाइट के माध्यम से टेलीविजन प्रसारण, मौसम के सम्बंध में भविष्यवाणी और दूरसंचार जैसे क्षेत्रों में बहुत तेजी से आगे बढ़ रहा है और चूंकि ये सभी सुविधाएं उपग्रहों के माध्यम से ही संचालित होती हैं, अतः संचार उपग्रहों को अंतरिक्ष में स्थापित करने की मांग आज समस्त देशों के बीच बढ़ रही है। चूंकि भारतीय तकनीक तुलनात्मक रूप से बहुत सस्ती है अतः कई देश अब इस सम्बंध में भारत की ओर आकर्षित हो रहे हैं। इन परिस्थितियों के बीच चंद्रयान-3 की कम लागत में सफल लैंडिंग के बाद व्यवसायिक तौर पर भारत के लिए संभावनाएं पहले से अधिक बढ़ गयी है। आज भारतीय इसरो की, कम लागत और सफलता की गारंटी, सबसे बड़ी ताकत बन गयी है। अंतरिक्ष बाजार में भारत की धमक का यह स्पष्ट संकेत दिखाई दे रहा है और इस क्षेत्र में भारत एक धूमकेतु की तरह बनकर उभरा है। भारतीय इसरो अपने 100 से ज्यादा अंतरिक्ष अभियान, चन्द्रमा मिशन, मंगल मिशन, स्वदेशी अंतरिक्ष शटल, एवं चन्द्रयान-3 सहित, सफलतापूर्वक सम्पन्न कर चुका है।