पश्चिम बंगाल का पंचायत चुनाव पिछले लगभग डेढ़ महीने से चर्चा का विषय बना हुआ है। पिछले लगभग डेढ़ महीने से राज्य चुनाव आयोग, कलकत्ता उच्च न्यायालय, सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस के नेताओं, वकीलों और कार्यकर्ताओं के बीच खड़ा और गिड़गिड़ाता लोकतंत्र बार-बार निज पर ओढ़नी डालने की कोशिश कर रहा है। सिर पर ओढ़नी पड़ जाती है तो कोई बाईं ओर से खींच लेता है। लोकतंत्र बेचारा बाईं ओर से ठीक करता है तो कोई पीछे से खींच लेता है।
इन सबके बीच चुनाव हो भी गया। या कहें तो करवा दिया गया। चालीस से अधिक लोग मारे गए। इस बात का बचाव लोकतंत्र के सयाने यह कह कर सकते हैं कि 2018 में अधिक लोग मारे गए थे, इसलिए कहा जा सकता है कि परिस्थितियों में सुधार जैसा कुछ हुआ है। लोकतंत्र के सयाने ऐसे ही होते हैं। वे सब कुछ संख्या में तौलते हैं।
तृणमूल कांग्रेस ने बताया कि सबसे अधिक उसके कार्यकर्ता मारे गए लेकिन उन्होंने धैर्य का परिचय दिया और हिंसा पर उतारू नहीं हुए। यह दिलचस्प दावा है। इस मायने में कि चुनावी हिंसा में जिस राजनीतिक दल के सबसे अधिक कार्यकर्ता मारे गए, वह दल राज्य चुनाव आयोग से शिकायत तक नहीं कर रहा। शिकायत तो दूर, प्रश्न तक नहीं कर रहा। नहीं पूछ रहा कि राज्य चुनाव आयोग ने कानून व्यवस्था को सुदृढ़ क्यों नहीं किया? क्यों उसके कार्यकर्ताओं को मरने दिया गया? ऐसे प्रश्न उठाने की बजाय तृणमूल कांग्रेस के प्रवक्ता राज्य चुनाव आयोग का बचाव कर रहे हैं।
उधर राज्य चुनाव आयोग के मुख्य आयुक्त ने अभी तक कुछ भी नहीं कहा है। मतदान के दिन लगभग दोपहर को उन्होंने यह बताया था कि अभी तक केवल तीन लोगों के मारे जाने की खबर है। उसके बाद उन्होंने इन आँकड़ों को लेकर कोई वक्तव्य जारी नहीं किया।
दूसरी ओर जिन दलों के कार्यकर्ता कम मारे गए, वे दल राज्य चुनाव आयोग से प्रश्न कर रहे हैं। चुनाव आयोग से प्रश्न करने के अलावा ये दल कलकत्ता उच्च न्यायालय में याचिका लेकर भी पहुँच चुके हैं। अब इस स्थिति को किस तरह से पढ़ा जाना चाहिए, वो मैं लोकतंत्र के सयानों पर छोड़ता हूँ।
कल अर्थात 10 जुलाई को पाँच जिलों के 697 केंद्रों पर फिर से मतदान कराए गए। यह बात और है कि अभी तक किसी को पता नहीं चला है कि जिन केंद्रों पर पुन: मतदान कराए गए, उनके ऐसे चुनाव का आधार क्या था? पुन: मतदान अधिकतर शांतिपूर्ण हुआ। कुछ केंद्रों पर फिर से हिंसा हुई लेकिन अधिकतर फिर से किया गया मतदान शांतिपूर्ण रहा। पर प्रश्न फिर भी अपनी जगह है। फिर से मतदान के लिए इन केंद्रों को चुनने का आधार क्या था? मतदान के दिन हिंसा क्या केवल इन्हीं केंद्रों में हुई थी?
पूरे राज्य में लगभग 61,000 मतदान केंद्रों में से पुन: मतदान के लिए बिना कोई कारण बताए राज्य चुनाव आयोग केवल 697 मतदान केंद्रों को चुना। यह देखकर मुझे राग दरबारी का वह दृश्य याद आ गया जिसमें जुआखाना चलाने वाला दरोगा जी से यह कह कर शिकायत कर रहा होता है कि; बात साल में दो बार छापा मारने की हुई थी। आपने अभी तक एक बार भी छापा नहीं मारा। आते-जाते लोग मेरे जुए खाने को शक की निगाह से देखते हैं और सोचते हैं कि यहाँ कुछ ग़लत काम होता है। आप एक बार छापा मार दें तो मैं चैन से धंधा कर सकूँ।
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