पश्चिम बंगाल का एक जिला है जलपाईगुड़ी, जो कि पर्यटन के लिए काफ़ी प्रसिद्ध है। इसी जलपाईगुड़ी के मालबाजार में एक दुकान पर भारी भीड़ जुटी हुई है। एक महिला चाय की दुकान पर चाय बना रही हैं और इन महिला के चारों ओर भारी सुरक्षाबल तैनात है। ये नज़ारा किसी फिल्म का नहीं बल्कि पश्चिम बंगाल के पंचायत चुनाव प्रचार का है। और चाय बनाने वाली महिला पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी हैं।
ममता बनर्जी आजकल पंचायत चुनाव में धुआँधार प्रचार कर रही हैं। कल हेलीकॉप्टर की इमरजेंसी लैंडिंग के दौरान वे चोटिल भी हो गयीं जिसके कारण उनकी अगली लैंडिंग अस्पताल में हुई। बताया जा रहा है कि वे अब घर पर ही इलाज करवाएंगी। पिछली बार विधानसभा चुनाव से पहले जब वह व्हीलचेयर पर आ गयी थीं तो पार्टी को प्रचंड जीत मिली। लेकिन इस बार वे चलकर ही घर लौटी हैं तो इसके मायने क्या हो सकते हैं?
वैसे पंचायत चुनाव के दौरान अब तक 11 लोगों की मौत हो चुकी है, कम से कम से 11 लोग घायल हो चुके हैं। तो क्या अब चुनाव प्रचार में चोटिल हुए लोगों की सूची में ममता दीदी का नाम जोड़ा जा सकता है?
चुनाव प्रचार में सक्रियता के पीछे क्या कारण हैं?
दीदी का प्रचार में उतरना किसी ऐतिहासिक पल से कम नहीं है क्योकि ऐसा 12 वर्षों बाद हो रहा है, इससे पूर्व आखिरी बार दीदी ने वर्ष 2008 के पंचायत चुनावों में प्रचार किया था। तब वे मुख्यमंत्री भी नहीं थीं लेकिन अब लगभग 12 वर्ष मुख्यमंत्री रहने के बाद वे पंचायत स्तर पर जा कर प्रत्याशियों के लिए वोट मांग रही हैं।
इसका क्या कारण हो सकता है? क्या स्वयं को प्रधानमंत्री पद के लिए दावेदार मानने वाली ममता बनर्जी की मतदाताओं पर इतनी भी पकड़ नहीं है?
तृणमूल कांग्रेस कह रही है कि वह पार्टी की कर्मठ सदस्य हैं इसलिए प्रचार कर रही हैं। लेकिन सच्चाई यही है कि धीरे धीरे ममता बनर्जी की राजनीतिक जमीन खिसकती जा रही है।
एक ओर उनके भ्रष्टाचार एवं घोटाले के अधिकतर साथी अब जेल पहुंच चुके हैं (खासकर पंचायत चुनावों में ‘खेला’ करने के लिए प्रसिद्ध वाले अनुब्रत मोंडल), दूसरी ओर तृणमूल कांग्रेस के संगठन में भी भ्रष्टाचार इतना व्याप्त हो चुका है कि अब जनता भी इससे प्रभावित होने लगी है।
इसकी पुष्टि इसी वर्ष हुए सागरदीघी उपचुनाव में टीएमसी की हार से हो चुकी है। ऐसे में ममता दीदी का चुनाव प्रचार में उतरना जरुरी हो गया है।
आगामी लोकसभा चुनाव से पहले बंगाल में अंतिम चुनाव यही हैं जिसके परिणाम कहीं न कहीं भविष्य के लिए महत्वपूर्ण होंगे। महत्वपूर्ण यह ममता बनर्जी के कद के लिए भी है क्योंकि पंचायत चुनाव परिणाम 11 जुलाई को आएंगे और विपक्षी दलों की अगली बैठक 12 जुलाई को संभावित है। जहाँ सीट बंटवारे को लेकर रार होनी तय है वहां ममता दीदी भी चाहती हैं कि वे इस बैठक में कांग्रेस और लेफ्ट को हराकर ही पहुंचे।
केंद्रीय सुरक्षाबलों पर बरसे फूल
इस जीत के लिए ममता बनर्जी झूठ बोलने में भी मेहनत करते हुए दिख रही हैं। एक रैली को संबोधित करते हुए बनर्जी ने कहा, “मुझे जानकारी मिली है कि बीएसएफ के कुछ अधिकारी सीमावर्ती क्षेत्रों का दौरा कर रहे हैं, वोटरों को धमका रहे हैं और उन्हें वोट न देने के लिए कह रहे हैं मैं लोगों से कहूंगी कि वे डरें नहीं और निडर होकर चुनाव में हिस्सा लें”
लेकिन उनके इस दावे के उलट पश्चिम बंगाल की जनता केंद्रीय सुरक्षा बलों पर फूल बरसाते हुए दिखी। कुछ गाँवों में केंद्रीय सुरक्षा बलों का शंख बजकर स्वागत किया गया।
सुरक्षाबल के नाम पर तो वहां पश्चिम बंगाल की पुलिस भी है तो फिर ऐसा स्वागत क्यों? ये हिंसा के बीच एक उम्मीद है, मतदाताओं को शांतिपूर्ण चुनाव की एक किरण नज़र आ रही है।ऐसा स्वागत आपने फिल्मों में तो देखा होगा जब हीरो पीड़ित, लाचार लोगों को बचाने के लिए आता है।
ममता सरकार और चुनाव आयोग के गठबंधन पर हाईकोर्ट का प्रश्न
एक संभावना यह है कि इन तैयारियों के बावजूद क्या कलकत्ता हाईकोर्ट चुनावों को रद्द कर सकता है? ऐसा शायद पहली बार है कि कोई हाईकोर्ट राज्य सरकार एवं राज्य निर्वाचन आयोग पर इस प्रकार की टिप्पणी कर रहा है।
कलकत्ता हाईकोर्ट ने कहा है कि बंगाल में इतना खून-खराबा हो रहा है तो चुनाव क्यों कराए जाएं? इससे पहले भी पंचायत चुनाव को लेकर कलकत्ता हाई कोर्ट बंगाल सरकार को चेतावनी दे चुकी है।
दरअसल, बंगाल में पंचायत चुनाव केंद्रीय बलों की निगरानी में कराए जाने को लेकर हाईकोर्ट ने आदेश दिया था, जिसके बाद समय रहते ममता सरकार और राज्य चुनाव आयोग ने इसकी सुध नहीं ली थी।
इसके बाद मुख्य न्यायाधीश टीएस शिवगणनम ने चुनाव आयुक्त सिन्हा को सलाह दी थी कि अगर वह अपने पद का दबाव नहीं झेल पा रहे हैं तो वह कुर्सी छोड़ दें।
वहीं अब सिन्हा की कुर्सी भी खतरे में नज़र आ रही है। राज्य चुनाव आयुक्त के पद पर राजीव सिन्हा की नियुक्ति की वैधता को चुनौती देते हुए कलकत्ता हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई है।
यह याचिका नबेंदु बनर्जी नामक अधिवक्ता ने दायर की है, जिसे हाईकोर्ट ने स्वीकार कर लिया है और इस पर अगले शुक्रवार को मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ में सुनवाई की संभावना है। याचिका में दावा किया गया है कि यह नियुक्ति अवैध है क्योंकि राजभवन ने नियुक्ति से संबंधित फाइल राज्य सचिवालय वापस भेज दी है।
राजभवन के सूत्रों के मुताबिक, राज्यपाल ने बंगाल में पंचायत चुनाव से पहले हुई हिंसा को लेकर चर्चा समन भेजा था। इस समन को राजीव सिन्हा की तरफ से यह कहकर इनकार कर दिया, कि इस वक्त मेरे पास समय नहीं। इसके बाद राज्यपाल बोस ने सिन्हा का नियुक्ति पत्र स्वीकार करने से इनकार कर दिया था। उन्होंने पत्र को वापस राज्य सचिवालय भेज दिया।
दूसरी ओर कई प्रत्याशियों का कहना है कि आयोग की वेबसाइट से प्रत्याशियों की सूची से आश्चर्यजनक तरीके से उनके नामों को हटा दिया गया है। इस मामले में न्यायमूर्ति भारती सिन्हा ने कड़े शब्दों में कहा-‘एक चुनाव को लेकर इतने सारे आरोप लग रहे हैं। यह राज्य सरकार के लिए लज्जाजनक है। सरकार को चाहिए कि अदालत के निर्देश के मुताबिक कानून-व्यवस्था को ठीक तरीके से नियंत्रित करे।
इस पूरी स्थिति को देखकर तो यही लग रहा है कि इस बार के पंचायत चुनाव में कहीं तृणमूल कांग्रेस और ममता बनर्जी के साथ असली ‘खेला’ न हो जाए।
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