पश्चिम बंगाल में अन्य चुनावों की तरह पंचायत चुनाव भी हिंसा और राजनीतिक दलों से कदाचार से हमेशा प्रभावित रहे हैं। पंचायत चुनावों में हिंसा अन्य चुनावों के मुकाबले शायद इसलिए अधिक हो जाती है क्योंकि कुछ हद तक पंचायत स्तर पर राजनीतिक शक्ति और दलों के निर्णय लेने की क्षमता का विकेंद्रीकरण हो जाता है।
पिछले कई पंचायत चुनावों में हिंसा इस कदर बढ़ी कि हर बार राजनीतिक विवाद और हिंसा नियंत्रित करने की स्थानीय प्रशासन की अक्षमता से मामला न्यायपालिका तक पहुँचता रहा है। न्यायपालिका भी अक्सर हस्तक्षेप करके हिंसा मुक्त चुनाव करवाने की कोशिश करता रहा है पर न्यायिक प्रक्रिया की अपनी मजबूरियों के चलते सत्ताधारी दल बच कर निकलते रहे हैं।
राज्य में आगामी 9 जुलाई को होने वार पंचायत चुनाव को लेकर हुई हिंसा और हिंसा की आशंका के चलते इस बार भी विभिन्न मामले कलकत्ता हाईकोर्ट के समक्ष हैं और हाईकोर्ट मामलों के निपटारे की कोशिश भी कर रहा है।
चुनावों के लिए नामांकन 9 जून से शुरू हुआ था और नामांकन की आखिरी तारीख 15 जून तय की गई थी। लेकिन नामांकन की प्रक्रिया के दौरान ही पश्चिम बंगाल के विभिन्न हिस्सों में चुनावी हिंसा के ज़रिए चुनावी प्रक्रिया को प्रभावित करने का काम इस तरह किया गया कि विपक्षी दलों के पास न्यायालय के समक्ष जाने के अलावा और कोई रास्ता नहीं था। न्यायालय ने भी संज्ञान लिया और राज्य के कुछ ज़िलों में पंचायत चुनाव केंद्रीय सुरक्षा बलों की उपस्थिति में करवाने का आदेश दिया।
राज्य के चुनाव आयोग द्वारा न्यायालय के आदेश का पालन करने की बात कहने के बावजूद जब हिंसा की घटनायें बंद नहीं हुई तो कलकत्ता हाईकोर्ट ने आदेश दिया कि केवल कुछ ज़िलों में ही नहीं बल्कि अब राज्य के हर ज़िले में पंचायत चुनाव केंद्रीय सुरक्षा बलों की उपस्थिति में होगा। अब राज्य का चुनाव आयोग हाईकोर्ट के फ़ैसले को चुनौती देने सुप्रीम कोर्ट पहुँच गया है।
न्यायपालिका के हस्तक्षेप और उससे पैदा होने वाले सवालों को लेकर मीडिया, राजनीतिक हलकों और समाज में चाहे जैसी बहस हो पर यह सवाल अपनी जगह रह जाता है कि पंचायत चुनावों को लेकर हर बार न्यायपालिका को हस्तक्षेप करने की आवश्यकता क्यों है? इसके साथ ही यह सवाल भी उठता है कि समय से होने वाले इन चुनावों को लेकर हाईकोर्ट यदि कोई आदेश देता है तो क्या आवश्यक है कि राज्य सरकार उन आदेशों को चुनौती देने सुप्रीम कोर्ट पहुँच जाए?
2018 के पंचायत चुनाव में हिंसा, बमबारी और आगजनी के 100 से अधिक मामलों हुए थे और तब भी कलकत्ता हाईकोर्ट ने राज्य सरकार और राज्य के चुनाव आयोग पर तीखी टिप्पणियाँ की थी। सत्तारूढ़ टीएमसी पर मतदाताओं को डराने, विपक्षी उम्मीदवारों पर हमला करने और ईवीएम से छेड़छाड़ करने के आरोपों का अदालत संज्ञान लिया और कई क्षेत्रों में पुनर्मतदान का आदेश दिया पर उसका परिणाम क्या रहा? अदालत के इन आदेशों के बाद क्या 2018 के पंचायत चुनावों को स्वतंत्र और निष्पक्ष कहा जा सका?
इस वर्ष के पंचायत चुनावों को लेकर कलकत्ता हाईकोर्ट के आदेश के ख़िलाफ़ राज्य चुनाव आयोग (एसईसी) सुप्रीम कोर्ट पहुँच गया है। उधर सुप्रीम कोर्ट यदि कलकत्ता हाईकोर्ट के फ़ैसले को क़ायम भी रखता है तब भी क्या केंद्रीय सुरक्षा बलों की उपस्थिति में हुआ चुनाव के स्वतंत्र और निष्पक्ष होने की गारंटी कोई दे सकता है?
कलकत्ता हाईकोर्ट ने 15 जून को राज्य चुनाव आयोग को 48 घंटे के भीतर पंचायत चुनाव के लिए पूरे पश्चिम बंगाल में केंद्रीय बलों की मांग करने और तैनात करने का निर्देश दिया था। अदालत ने शुरू में एसईसी को 13 जून को एसईसी द्वारा संवेदनशील घोषित क्षेत्रों और जिलों में केंद्रीय बलों की मांग करने और तैनात करने का निर्देश दिया था और केंद्र सरकार को इसके लिए खर्च वहन करने का भी आदेश दिया था पर अब जब आदेशों के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में अपील हो गई तो फिर पंचायत चुनावों की प्रक्रिया का क्या होगा?
साल 2018 की बात की जाए तो चुनाव में बिना किसी कॉन्टेस्ट के जीती गई सीटों की संख्या का रिकॉर्ड बन गया था। राजनीतिक हिंसा, निर्विरोध जीत, रक्तपात और मौतें- बंगाल में चुनावी परंपरा का एक अहम भाग बन गई थी। वर्ष 2018 में चुनावी प्रक्रिया के दौरान 29 लोगों की मृत्यु हुई थी और तब भी कलकत्ता हाईकोर्ट के आदेश प्रभावशाली साबित नहीं हुए थे।
हालाँकि, 2023 में, अदालत का हस्तक्षेप पहले ही आ गए है, और टीएमसी की कथित ज्यादतियों पर अंकुश लगाते हुए एक स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के प्रयास में अपने आदेशों को अधिक कड़े किए है। इसके साथ ही न्यायालय के आदेशों में सुरक्षित और हिंसा मुक्त वातावरण सुनिश्चित करने के उद्देश्य से कई निर्देश शामिल हैं पर सवाल वही पुराने हैं और अपने स्थान पर क़ायम हैं कि; पश्चिम बंगाल में न्यायपालिका का हस्तक्षेप भी स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के लिए प्रभावशाली साबित क्यों नहीं होता?
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