पश्चिम बंगाल में आगामी 9 जुलाई को पंचायत चुनाव होने हैं। इन चुनावों हेतु नामांकन 9 जून से शुरू हुआ था और इसके लिए आखिरी दिन 15 जून तय किया गया था। नामांकन दाखिल करने की शुरुआत से ही राज्य के विभिन्न हिस्सों में नामांकन दाखिल करने की प्रक्रिया को बाधित करने की घटनाएं सामने आ रही हैं।
चुनावी हिंसा और घपलेबाज़ी तो अब पश्चिम बंगाल के पंचायत चुनावों में आम शब्द हो चुके हैं। चुनावी हिंसा में अब तक पांच लोगों की मौत और 90 लोग घायल हो चुके हैं। बीजेपी, कांग्रेस और सीपीआई (एम) सभी प्रमुख विपक्षी दलों ने टीएमसी पर बाहुबल का उपयोग करने का आरोप लगाया है।
इन सब आरोपों के बीच सबसे बड़ा आरोप नेता प्रतिपक्ष शुभेंदु अधिकारी की तरफ से आया है। उन्होंने कहा, “20,000 सीट में निर्विरोध चुनाव जीतने की साजिश चल रही है और इसमें राज्य चुनाव आयुक्त राजीव सिन्हा और बंगाल की पुलिस ममता बनर्जी के साथ मिली हुई है”
कौन हैं राज्य चुनाव आयुक्त राजीव सिन्हा?
राजीव सिन्हा वर्ष 1985 बैच के आईएएस अधिकारी हैं। राजीव सिन्हा सितंबर 2019 से सितंबर 2020 तक पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव थे।
मुख्य सचिव के पद से रिटायर होने के बाद ही बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने उन्हें एक नए पद पर बिठा दिया था। ममता बनर्जी ने उन्हें तीन वर्ष के कार्यकाल के लिए पश्चिम बंगाल औद्योगिक विकास निगम (WBIDC) का चेयरमैन नियुक्त किया था।
एक रिटायर्ड आईएएस अधिकारी का मानना है कि ममता के “विश्वसनीय अधिकारी सेवानिवृत्त नहीं होते हैं”। दरअसल, राजीव सिन्हा के अलावा ममता बनर्जी ने राज्य सरकार में राज्य सुरक्षा सलाहकार और मुख्यमंत्री प्रधान सचिव भी सेवानिवृत्त अधिकारियों को बनाया था।
जबकि सीएम के सचिव का पद एक कैडर पद है यह केवल आईएएस अधिकारियों के लिए है।शायद इसलिए ही पूर्व अधिकारी ने कहा कि ममता बनर्जी के भरोसेमंद अधिकारी रिटायर नहीं होते हैं। राजीव सिन्हा भी कोविड -19 महामारी के दौरान पश्चिम बंगाल सरकार के मुख्य सचिव थे और फिर रिटायर्मेंट के बाद औद्योगिक विकास निगम (WBIDC) का चेयरमैन बनाये गए थे। और अब ठीक पंचायत चुनाव से पहले उन्हें राज्य चुनाव आयुक्त के पद पर बिठाया गया है।
पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा राजीव सिन्हा की नियुक्ति पर गवर्नर सीवी आनंद बोस ने सरकार से सवाल भी पूछा था कि एक सेवानिवृत्त नौकरशाह के नाम पर इस पद के लिए विचार क्यों किया गया। वो भी तब जब सिन्हा रिटायरमेंट के बाद अन्य राजनैतिक पद पर रह चुके हैं।
इसके साथ ही राज्यपाल ने सरकार का यह प्रस्ताव वापस भेज दिया था। लेकिन लम्बी तनातनी के बाद राज्यपाल ने सिन्हा के नाम पर मुहर लगा दी थी। लेकिन अब पंचायत चुनावों में सिन्हा विवादों में घिर गए हैं। आरोप है कि सिन्हा ने सेंट्रल फोर्स के लिए मना कर दिया और कहा कि बंगाल में कोई संवेदनशील बूथ नहीं है।
जबकि हाईकोर्ट ने इसी गुरुवार को आदेश दिया कि पंचायत चुनाव के लिए अब सिर्फ सात जिलों के संवेदनशील इलाकों में नहीं, बल्कि पूरे बंगाल में केंद्रीय बलों की तैनाती की जाएगी। मुख्य न्यायाधीश टीएस शिवगणनम व न्यायाधीश हिरणमय भट्टाचार्य की खंडपीठ ने राज्य सरकार को अगले 48 घंटों के अंदर केंद्रीय बलों के लिए केंद्र के पास आवेदन करने को कहा है।
इससे पहले अदालत ने बीते मंगलवार को दिए गए आदेश में बंगाल के सिर्फ सात जिलों में केंद्रीय बलों की तैनाती करने को कहा था।
गुरुवार को पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश ने आयोग के अधिवक्ता से पूछा कि क्या उनके पिछले आदेश का अनुपालन किया गया है? इसपर उन्हें सूचित किया गया कि संवेदनशील इलाकों को चिन्हित किया जा रहा है। यह सुनकर मुख्य न्यायाधीश ने कड़े शब्दों में कहा-’मैं यहां आयोग को उपदेश देने के लिए नहीं बैठा हूं।”
बताया जा रहा है कि हाईकोर्ट के इस फैसले को लेकर ममता बनर्जी सुप्रीम कोर्ट पहुंच चुकी हैं।महत्वपूर्ण बात यह है कि अभी चुनाव होने में 20 दिन का समय बाकी है और राज्य चुनाव आयोग की विश्वसनीयता कटघरे में है। क्या ममता बनर्जी के करीबी राजीव सिन्हा से पारदर्शिता की उम्मीद की जा सकती है?