1 अक्टूबर को भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारत में 5G सेवाओं की औपचारिक रूप से शुरुआत करेंगे। प्रधानमंत्री मोदी दिल्ली के प्रगति मैदान में इंडियन मोबाईल कॉन्ग्रेस का भी उदघाटन करेंगे। प्रगति मैदान में प्रधानमंत्री रिलायंस जिओ और भारती एयरटेल की 5G सुविधाओं की शुरुआत करेंगे।
हालांकि, अभी सामान्य उपयोगकर्ताओं को 5G सुविधाओं को उपयोग करने की सुविधा नहीं मिलेगी, इसके कुछ शहरों में नवम्बर माह में और पूरे देश में 2023 के अंत तक चालू होने की संभावना है। इन सेवाओं की शुरुआत के लिए स्पेक्ट्रम की नीलामी कुछ ही महीनों पहले की गई थी।
भले ही आज भारत में बहुत तेज गति वाली मोबाइल सुविधाओं की शुरुआत हो रही है पर हमेशा से ऐसा नहीं रहा है, भारत के अंदर संचार सुविधाओं ने बहुत लंबा सफ़र तय किया है जो काफी रोचक रहा है। भारत में मोबाइल सुविधाओं की शुरुआत की कहानी भी नीतियों, घोटालों, सुधारों और विवादों से भरी रही है।
टेलीफोन: महीनों का इन्तजार
भारत में पहली बार टेलीफोन की शुरुआत 1881 में ब्रिटिश राज के दौरान हुई, बड़े शहरों जैसे कलकत्ता, मद्रास आदि में टेलीफोन के एक्सचेंज स्थापित किए गए। जिसके बाद लगातार इसमें वृद्धि होती रही। भारत की आजादी के समय 35 करोड़ की आबादी के बीच केवल 84000 टेलीफोन के कनेक्शन थे, जिनमें से अधिकतर सरकारी दफ्तरों में थे।
भारत में किसी के घर में टेलीफोन का लगा होना एक स्टेटस सिम्बल की तरह माना जाता था। टेलीफोन कनेक्शन पाने के लिए लोगों को सालों का इन्तजार करना पड़ता था। यहाँ तक कि एक टेलीफोन कनेक्शन लेने के लिए लोग सांसद और विधायकों से सिफारिश लगवाते थे। भारत में 1994 तक हर 100 लोगों पर एक फोन भी नहीं था। दुनिया में हर 100 लोगों पर 10 फोन की उपलब्धता थी।
भारत में 1980 के दशक में C-DOT की स्थापना की गई, इसका उद्देश्य भारत में आसान तरीके से लोगों तक टेलीफोन की पहुँच करवाना था। C-DOT ने 1980 के दशक में भारत में सार्वजनिक टेलीफोन प्रणाली की दिशा में काम करते हुए देश में बहुत से पीसीओ की स्थापना की। एक आँकड़े के अनुसार वर्ष 2006 तक भारत में 42 लाख सिक्के वाले पीसीओ थे।
मोबाइल की शुरुआत: पहला हलो
भारत में 1991 के आर्थिक सुधारों के बाद वर्ष 1994 में पहली बार टेलीकॉम नीति लाई गई। इस नीति को नरसिम्हा राव की सरकार में संचार मंत्री सुखराम लेकर आए थे। सुखराम हिमाचल प्रदेश से सम्बन्ध रखते थे। इस नीति के अंदर भारत में सभी को टेलीफोन एवं संचार सुविधाएँ उपलब्ध कराने की बात कही गई थी।
1994 की टेलीकॉम नीति में टेलीकॉम सेवाओं को निजी क्षेत्र के लिए खोल दिया गया, जिससे मात्र सरकार ही नहीं बल्कि इच्छुक निजी कम्पनियाँ भी टेलीकॉम सेवाओं को शुरू कर सकें। इस नीति के आने के बाद भारत के अंदर नवम्बर 1994 में निजी क्षेत्र की आठ कंपनियों को 4 बड़े शहरों दिल्ली, मुंबई, चेन्नई और कोलकाता में मोबाइल सेवाओं को शुरू करने के लाइसेंस दिए गए।
इसके परिणाम से वर्ष 1995 में भारत में पहली बार मोबाइल के द्वारा कॉल की गई। भारत के तब के संचार मंत्री सुखराम और बंगाल के मुख्यमंत्री ज्योति बासु के बीच यह कॉल हुई। हालांकि, इसके बाद भी भारत में उस गति से सेवाएं नहीं चालू हो सकीं जिसकी उम्मीद सरकार को थी। इसके पीछे नीतिगत दोषों को बताया गया। नीति के अंदर राजस्व और लाइसेंस की शुल्क आदि को इसके पीछे का कारण माना गया।
इस नीति को लाने वाले मंत्री सुखराम बाद में घोटाले में भी फंसे और उन्हें 5 साल की सजा हुई। एक निजी कंपनी हरियाणा टेलीकॉम लिमिटेड को 30 करोड़ का ठेका 3.5 लाख की रिश्वत के बदले देने का आरोप उन पर लगा।
नई टेलीकॉम नीति1999: नए भारत का उदय
पुरानी नीति की खामियों की दूर करने के लिए और भारत के अंदर तेजी से मोबाइल सेवाओं की बढ़ोत्तरी के लिए अटल बिहारी बाजपेयी की अगुवाई वाली भाजपा सरकार 1994 की नीति में सुधार करके 1999 की नीति लाई। इस नीति का उद्देश्य भारत के अंदर ज्यादा पारदर्शी तरीके से पहाड़ी, जनजातीय एवं सभी इलाकों में मोबाइल सेवाओं को उपलब्ध कराना था।
नीति में मोबाइल सेवा प्रदाता कम्पनियों को उनके राजस्व का एक हिस्सा सरकार को फीस के रूप में देना होगा यह तय किया गया। इसी के साथ भारत में मोबाइल प्रदाता सेवाओं के नियम भी बदल कर और उदार कर दिए गए। कम्पनियों को काफी छूट दी गई। इसी के साथ इंटरनेट की भारत में उपलब्धता हो इस पर भी जोर दिया गया। इस नीति ने यह भी तय किया कि लोगों को टेलीफोन के लिए इंतजार ना करना पड़े।
अटल बिहारी बाजपेयी के प्रयासों का ही असर था कि जब उनकी सरकार 2004 में गई, तब तक भारत में कुल मोबाइल कनेक्शन की संख्या लैंडलाइन फोन की संख्या को पीछे छोड़ चुकी थी। भारत में संचार क्रान्ति का प्रारम्भ हो चुका था।
2018 में एक कार्यक्रम में एयरटेल के चेयरमैन सुनील भारती मित्तल ने अटल बिहारी बाजपेयी को ‘भारत में टेलीकॉम’ का पिता कहा, उन्होंने कहा कि अटल बिहारी बाजपेयी ने ही टेलीकॉम क्षेत्र की समस्याओं को समझा और दूर किया।
कुछ अन्य नीतियों के बाद भारत में लगातार तेजी से यह क्षेत्र बढ़ता रहा, 2008 तक भारत में 30 करोड़ से ज्यादा मोबाइल फोन के कनेक्शन हो चुके थे। भारत विश्व के अंदर चीन के बाद सबसे बड़ा दूरसंचार का बाजार बन कर उभरा। देश में इस समय तक 2G सेवाएं उपलब्ध थीं।
2G घोटाला
भारत के अंदर 2G यानी दूसरी पीढ़ी के मोबाइल कनेक्शन की संख्या लगातार बढ़ रही थी। इसके कारण नई कम्पनियां भी लगातार इस क्षेत्र में उतर रहीं थी। उस समय की कॉन्ग्रेस सरकार ने वर्ष 2008 में नए स्पेक्ट्रम नीलाम किए।
स्पेक्ट्रम एक प्रकार का लाइसेंस होता है जो सरकार किसी भी कम्पनी को मोबाइल सेवाएं प्रदान करने के लिए देती है। वर्ष 2010 में भारत में सरकारी आय व्यय का हिसाब रखने वाले विभाग CAG ने ने यह खुलासा किया कि उस समय के दूरसंचार मंत्री ने कंपनियों को यह लाइसेंस 2001 के निश्चित किए हुए दामों पर दिए। जिससे सरकार को करीब 1.76 लाख करोड़ का घाटा हुआ। अन्य्ब अनियमितताओं की भी शिकायत इस स्पेक्ट्रम की बिक्री में की गई।
इन सब आरोपों के चलते तब के दूरसंचार मंत्री ए राजा को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा, इसके अतिरिक्त इस मामले में ए राजा की गिरफ्तारी भी हुई और उन्होंने 15 महीने में जेल में काटे। सीबीआई ने राजा के अलावा तमिलनाडु के मुख्यमंत्री रहे करुणानिधि की बेटी कनिमोझी को भी आरोपी बनाया। हालांकि बाद में आए फैसले में आरोपियों को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया गया।
3G और 4G: तेज गति वाले इंटरनेट का दौर
भारत के अंदर 3G यानी तीसरी पीढ़ी की मोबाइल फोन सेवाओं की शुरुआत वर्ष 2008 और 2009 में हुई, सबसे पहले BSNL ने इन सेवाओं की शुरुआत की। जहाँ अब तक लोग 2G से धीमे इंटरनेट और कॉल तथा मेसेज का उपयोग करते थे। 3G से वीडियो कॉल, तेज गति के इंटरनेट जैसी चीजें भी संभव हो गईं।
हालांकि महंगे होने और धीमी गति से पूरे देश में चालू होने के कारण 3G सेवाओं की उपलब्धता उतनी नहीं हो पाई जितनी 2G सेवाओं की थी। भारत में नई इंटरनेट क्रान्ति का सूत्रपात 4G के आने के बाद से हुआ।
भारत के अंदर 4G के स्पेक्ट्रम की नीलामी वर्ष 2014 में बड़े पैमाने पर हुई और रिलायंस जिओ ने पहले से स्थापित तीन कम्पनियों एयरटेल, वोडाफोन और आइडिया के अतिरिक्त इनकी खरीददारी की। हालांकि एयरटेल ने वर्ष 2012 में कुछ शहरों में 4G सेवाओं की शुरुआत की थी।
बड़े पैमाने पर भारत में 4G सेवाओं की शुरुआत वर्ष 2016 में हुई जब मुकेश अम्बानी की स्वामित्व वाली रिलायंस जिओ ने सितम्बर माह में पूरे देश में 4G सेवाएं चालू की। जिओ ने पूरे देश में मुफ्त इंटरनेट की सेवा अगले कई माह तक जारी रखी।
भारत में सस्ती दरों पर 4G सेवाओं की उपलब्धता जिओ के बाद से होने लगी और इस क्षेत्र ने लगातार रफ़्तार पकड़ी, क्रिसिल की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में वर्ष 2022 के अंत तक 82 करोड़ 4G सेवाओं के ग्राहक होंगे।
भारत में नई सरकार के आने के बाद से टेलीकॉम क्षेत्र में काफी बदलाव आए हैं, एयरटेल के चेयरमैन सुनील मित्तल ने एक ट्वीट में बताया कि वर्तमान सरकार में बिना किसी झंझट के सभी काम पूरे हो रहे हैं। वह स्पेक्ट्रम की नीलामी के विषय में बात कर रहे थे।
लगातार बदलती तकनीक के साथ ही अब भारत ने भी कदम मिलाने का फैसला कर लिया है, भारत 5G सेवाओं के लांच के साथ ही विश्व के उन चुनिन्दा देशों में शामिल हो जाएगा जहाँ यह तकनीक उपलब्ध है।