केरल के पश्चिमी समुद्री तट पर तिरुवनंतपुरम से तकरीबन 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित निर्माणाधीन विझिंजम अन्तराष्ट्रीय समुद्री पोर्ट के खिलाफ हो रहे प्रदर्शन को सरकार द्वारा प्रदर्शनकारियों की कुछ माँगों को मानने के बाद समाप्त करने का निर्णय लिया गया है।
बता दें कि यह प्रदर्शन बीते चार महीनों से चला आ रहा था।
इस परियोजना को रोके जाने के प्रयास के बाद याचिका दायर कर पोर्ट और कंस्ट्रक्शन वर्कर्स की सुरक्षा के लिए केंद्रीय बल तैनात करने की माँग की गई थी। केरल हाईकोर्ट ने तल्ख़ टिप्पणी करते हुए कहा, यदि केरल सरकार कंस्ट्रक्शन साइट्स को सुरक्षा नहीं दे सकती तो वह केन्द्र को इसकी जिम्मेदारी लेने को कहेंगे, जिस पर केरल सरकार ने भी अपनी सहमति जताई थी।
क्या है समझौता?
वर्ष 2015 में केरल के तत्कालीन मुख्यमंत्री ओमन चांडी द्वारा Adani Ports and Special Economic Zone (APSEZ) के साथ विझिंजम पोर्ट के निर्माण हेतु समझौता किया गया था। 7,525 करोड़ रुपए की लागत से बनने वाला यह पोर्ट का निर्माण कार्य वर्ष 2019 तक पूरा कर लेने का लक्ष्य तय किया गया था लेकिन वर्ष 2016 में एलडीएफ की सरकार आने से प्रोजेक्ट का काम धीमा पड़ गया। इसके अलावा इसमें भ्रष्टाचार के भी आरोप लगते आए हैं।
विझिंजम अन्तरराष्ट्रीय पोर्ट का महत्व
इस पोर्ट की लोकेशन सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है। यहाँ भारत के पूर्वी-पश्चिमी तटों पर होने वाले समुद्री व्यापार और अन्तरराष्ट्रीय व्यापारिक जलमार्ग के निकट होने के कारण भी इसकी महत्ता बढ़ जाती है। अच्छी गहराई होने के कारण इसमें बड़े-बड़े मालवाहक जहाजों को भी रोका जा सकता है।
इसका परिचालन शुरू हो जाने के बाद इस पोर्ट को अन्तरराष्ट्रीय व्यापारिक जलमार्ग के पास स्थित अन्य समुद्र पोर्ट का प्रतिद्वंदी भी माना जा रहा है, जिसमें कोलम्बो, सिंगापुर और दुबई स्थित पोर्ट शामिल हैं।
दक्षिण भारत में पश्चिमी तट पर अन्तरराष्ट्रीय स्तर के पोर्ट नहीं होने के कारण भारत में सामान के आयत-निर्यात के लिए विदेशी पोर्ट पर निर्भरता कम कर माल धुलाई लागत (ट्रान्सपोर्टेशनल कॉस्ट) में भी कमी लाई जा सकती है।
इसके अलावा स्थानीय स्तर पर पर्यटन, रोज़गार, सरकार के लिए राजस्व और वस्तुओं के आयत-निर्यात के भी अवसर बढ़ेंगे।
विझिंजम पोर्ट निर्माण का विरोध क्यों?
यह विरोध वर्ष 2015 में एमओयू पर हस्ताक्षर के साथ ही शुरू हो गया था। तटवर्ती क्षेत्र होने के कारण मछली पकड़ना यहाँ जीवन-यापन का मुख्य स्त्रोत है। ऐसे में पोर्ट निर्माण से हो रहे मृदा अपरदन से यहाँ निवास करने वाली जनसँख्या का पुनर्वास उनके रोज़गार को भी प्रभावित करेगा। साथ ही, कृत्रिम भित्ति के निर्माण से होने वाले इकोलॉजिकल इम्बैलेंस का भी हवाला दिया गया।
प्रदर्शनकारियों द्वारा निर्माण कार्य को बाधित किया जाने लगा, कंस्ट्रक्शन व्हीकल्स को साइट्स पर जाने से रोका गया। प्रदर्शनकारियों को रोकने के लिए पुलिस को बैरिकेडिंग करनी पड़ी। पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच झड़पें भी हुई, जिसमें सैकड़ों घायल भी हुए।
सरकार द्वारा किए जा रहे प्रयास
सरकार, प्रभावित लोगों के पुनर्वास के लिए भूमि अधिग्रहण कर रही है और रोज़गार के लिए भी जरुरी आश्वासन दिए गए हैं। जब तक नए फ्लैट्स न बन जाएँ तब तक अडानी समूह द्वारा कॉर्पोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी के तहत किराये के तौर पर 5,500 रूपए का मासिक भुगतान भी किया जा रहा था, जिसे इसी वर्ष बढ़ाकर 8,000 रुपए कर दिया गया।
इन प्रदर्शनों के बीच केरल सरकार ने कहा, तटवर्ती क्षेत्रों में हुए मृदा अपरदन प्राकृतिक कारणों से हुए हैं। अडानी ने भी कोर्ट में अपनी बात रखते हुए कहा है कि उनके द्वारा सभी नियमों का पालन किया गया है।
विरोध प्रदर्शन के पीछे कौन है?
इस स्थान पर निवास कर रहे लोग मुख्यत: मछुआरे हैं, जो ईसाई धर्म के अनुयायी हैं। शुरू से ही विरोध के केंद्र में कैथोलिक पादरी यूजिन पेरेइरा और केरल के कैथोलिक चर्च संगठन हैं, जो इस परियोजना को पूरी तरह से बन्द करने की माँग करते आए हैं। सरकार द्वारा कई बार इनको भरोसे में लेने का प्रयास भी किया गया लेकिन यह अपनी माँग को लेकर अड़े रहे। जो परियोजना 2019 में ही पूरी हो जानी थी अब उसके लिए 2023 तक का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
विकास कार्यों को बाधित करने की प्रवृत्ति
भारत में जब भी किसी प्रकार के विकास परियोजनाओं पर काम शुरू होता है तो किसी ना किसी प्रकार से इसे रोकने अथवा देरी करने के प्रयास शुरू हो जाते हैं, जिससे निर्माण लागत बढ़ जाए, साथ ही परियोजना को ज्यादा से ज्यादा समय तक लटकाया जा सके।
यह एक प्रकार की प्रवृति बन गई है। इसमें अपने निजी स्वार्थ के लिए कोई व्यक्ति या संगठन अलग-अलग बहाने से, इसमें टांग अड़ाकर क्षेत्र और देश के विकास को बाधित करते हैं।
कभी गलत तरीके से भूमि-अधिग्रहण के नाम पर, कभी पर्यावरण और वन्यजीव संरक्षण के नाम पर। इसके अलावा, इन परियोजनाओं के दूरगामी लाभ को नज़रअंदाज़ कर जबरदस्ती एक्टिविज्म करना और स्थानीय लोगों को बरगलाने कर काम किया जाता रहा है। इसके कई उदहारण हैं, जैसे नर्मदा नदी परियोजना, कुडनकुलम परमाणु संयंत्र, आरे कारशेड, अहमदबाद-मुंबई बुलेट ट्रेन परियोजना, दक्षिण-पश्चिम रेल और सड़क परियोजना आदि।
ऐसे में स्थानीय लोगों को समझना होगा इन आंदोलनों और प्रदर्शनों के पीछे कौन लोग हैं? इस तरह के विरोध प्रदर्शन देश का नुकसान तो कर ही रहे हैं साथ ही, प्रत्यक्ष रूप से सम्बन्धित क्षेत्र के लोगों को भी हानि पहुँचा रहे हैं।