क्या किसी उत्तर भारतीय नगर में द्रविड़ शैली के मंदिर हैं? अगर हाँ, तो वे कौन-कौन से मंदिर हैं?
यूँ तो अनेक उदाहरण हैं, लेकिन मेरे मन में यह प्रश्न तब आया जब बिहार के एक गाँव में लोगों को एक ऐसे ही मंदिर जाते देखा। बिल्कुल वही गोपुरम, वही शिखर, वैसी ही मूर्तियाँ, जैसी दक्षिण भारत में दिखती है। यह बिहार के गणपतगंज (सुपौल) में हाइवे के किनारे स्थित है। वहाँ आस-पास कोई तमिल बस्ती नहीं, तो कौतूहल हुआ कि यह मंदिर बना कैसे?
यह दक्षिण के संत अलवार का मंदिर है। मुझे मालूम पड़ा कि उस गाँव के अमेरिका प्रवासित चिकित्सक पी के मल्लिक के परिवार ने 2007 के आस-पास बनवाया। उस हिसाब से मंदिर बहुत पुराना नहीं है, मगर जो ग्रामवासी कभी मदुरै नहीं गए, वे द्रविड़ शैली के मंदिर और मंत्रोच्चारण देख पा रहे हैं। यहाँ दक्षिण भारत के पचास पुरोहितों के आवास भी हैं, और शनिवार को लंगर की भी व्यवस्था है। यह संस्कृतियों का सुंदर साक्षात्कार लगा।
यह समावेशी व्यवहार संत अलवार की शिक्षा भी रही। मुझे वहीं यह कहानी मालूम पड़ी कि संत एक छोटे झोपड़े में रहते थे, जहाँ सिर्फ़ एक खाट लग सकती थी। बाहर बारिश हो रही थी, एक यात्री ने उनसे जगह माँगी। उन्होंने कहा- आप आ जाइए। हमारे पास बैठने लायक जगह है।
थोड़ी देर में एक और व्यक्ति आए, तो उन्होंने कहा- आप भी आ जाइए। हम खड़े रह सकते हैं।
इस तरह वह अपने छोटे से झोपड़े में सभी को सम्मिलित करते गए।
आगे बढ़ने से पहले मंदिरों के विषय में फौरी जानकारी दे देता हूँ। भारत में मुख्यतः दो शैलियों के मंदिर हैं। उत्तर भारत में नागर शैली के, दक्षिण में द्रविड़ शैली के।
नागर शैली का मुख्य तत्व है – शिखर। एक मंदिर में कई शिखर हो सकते हैं। इस शैली में आसन जमीन से ऊँचा होता है।
द्रविड़ शैली का मुख्य तत्व है – गोपुरम। इस शैली में आसन जमीन के स्तर पर होता है। द्रविड़ शैली के मंदिर पिरामिड की तरह ऊँचे होते हैं, जिनमें कई मूर्तियाँ बनी होती है।
पारंपरिक रूप से नागर शैली के देवता अंदर होते हैं, और द्रविड़ शैली में बाहर।
उत्तर भारत में वृंदावन के श्रीरंगजी मंदिर का नाम भी उल्लेखनीय है। यह श्री गोदा रंगमन्नार का मंदिर है, जो भगवान कृष्ण की भक्त थी। यह दक्षिण की मीराबाई कही जा सकती हैं, जिन्होंने कृष्ण के लिए ‘तिरुप्पुवइ’ पद लिखे। हालाँकि, वह मीरा बाई से आठ सदी पूर्व हुई, इस कारण मीरा बाई को उत्तर का गोदा कहना शायद अधिक उचित हो।
ग्वालियर दुर्ग में बना तैलंग मंदिर (तेली का मंदिर) संभवतः इस कड़ी का सबसे प्राचीन मंदिर हो, जो आठवीं-नौवीं सदी में ही बन कर तैयार हुआ। इससे यह सिद्ध होता है कि ऐसे संपर्क नए नहीं हैं।
बलिया के इब्राहिमपट्टी का अवधूतेश्वर महादेव मंदिर भी द्रविड़ शैली में बना है। जहानाबाद (बिहार) का हुलासगंज मठ भी एक द्रविड़ शैली का वैष्णव आश्रम है।
तिरुपति बालाजी और अयप्पा के तो अनेक मंदिर उत्तर भारत में मौजूद हैं, और पिछले दशकों में कई नए भी बन रहे हैं। जैसे- सुजानगढ़ का वेंकटेश्वर मंदिर, जबलपुर का बालाजी मंदिर, चक्रधरपुर (चाईबासा, झारखंड) का बालाजी मंदिर, अरवल (राजस्थान) का बालाजी मंदिर, आगरा का बालाजी मंदिर, लखनऊ का अयप्पा मंदिर, बोकारो का अयप्पा मंदिर आदि।
शंकराचार्य के मंदिरों को गिनें तो संख्या और भी बढ़ती चली जाएगी। जैसे- प्रयागराज का आदि शंकर विमान मण्डपम।
पुष्कर में स्थित रंगजी मंदिर भगवान रंगनाथ (विष्णु) का मंदिर है, जो द्रविड़ शैली में बना है। जोधपुर में बना रामानुज कोटि मंदिर भी इसी शैली का है।
दिल्ली तो खैर राजधानी ही है, इसलिए वहाँ दक्षिण भारत के कई मंदिर मिल जाएँगे। ख़ास कर आर के पुरम में स्थित मलाई मंदिर तो बहुत लोकप्रिय है।
इसके अतिरिक्त भी कई अन्य मंदिरों की जानकारी पाठक दे सकते हैं। क्या आपके शहर या गाँव में ऐसा कोई मंदिर है?
(यह लेख डॉ प्रवीण झा ने लिखा है)