हाल ही में सामने आई एक दुःखद घटना में अमेरिका में भारतीय मूल के एक सिख परिवार के चार सदस्यों की अपहरण के बाद हत्या कर दी गई। एक दूसरे मामले में एक भारतीय छात्र को ऑस्ट्रेलिया में 11 बार चाकू मारकर गंभीर रूप से घायल कर दिया गया। एक और मामले में भारतीय मूल के कुछ लोगों को अमेरिका में नस्लवादी हिंसा का सामना करना पड़ा।
ऐसी कई और घटनाएं हुईं जिनका शिकार भारतीय मूल के लोग हुए। विगत कुछ समय से ‘विकसित’ देशों में रह रहे भारतीय मूल के लोगों पर हमले की कई घटनाएं हुई। हमले की ये घटनाएं ऐसे समय में हुई जब अमेरिका ने अपनी ट्रैवल एडवाइजरी में भारत में हिंसा को सामान्य बताते हुए अपने नागरिकों को भारत की यात्रा के दौरान अधिक सतर्क रहने की सलाह दी।
ये घटनाएँ केवल कुछ उदाहरण हैं, जब भारतीय मूल के लोगों को विभिन्न प्रकार की सलाह देने वाले पश्चिमी देशों में नस्लवादी या अन्य हिंसा का शिकार बनाया गया। आए दिन भारतीय मूल के लोगों के विरुद्ध न केवल हिंसा बल्कि धर्म, नस्ल एवं रंग को लेकर टिप्पणियों का सामना करना पड़ता हैं।
देखा जाए तो इसके ठीक विपरीत भारत में पिछले कुछ वर्षों में विदेश से आए लोगों के विरुद्ध हिंसा या अन्य अपराध के मामलों में तेज़ी से और स्थाई गिरावट दिखाई दी है। प्रश्न उठता है कि लोकतंत्र में गिरावट की रपट छापने से निपटने से लेकर नस्लवाद तक से निपटने की नसीहत देने वाले विकसित देशों में भारतीय मूल के लोगों के ख़िलाफ़ बढ़ते अपराध के कारण क्या हैं?
हिंदुत्व, भारत और भारतीयों के विरुद्ध सुनियोजित दुष्प्रचार
पिछले कुछ वर्षों में यह देखा गया है कि कनाडा, अमेरिका, ब्रिटेन और अन्य कई देशों में न केवल हिंदुत्व के विरुद्ध बल्कि भारत और भारतीयों के विरुद्ध सुनियोजित ढंग से दुष्प्रचार किया जा रहा है। हिंदुत्व को नाजियों से जोड़ना,अमेरिका के कॉर्पोरेट सेक्टर में दलित मूवमेंट चलाना, 2014 के बाद भारत में लोकतंत्र की कमी को लेकर रपट निकलना और कुछ अन्य सम्प्रदायों के विरुद्ध भारत में तथाकथित हिंसा इसी दुष्प्रचार का हिस्सा रहे हैं।
इस पूरे प्रयास में अमेरिकी और यूरोपीय मीडिया ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हाल में जारी कुछ आँकड़े और रिपोर्ट यह साबित करते हैं कि इस तरह के दुषप्रचार में पाकिस्तानी खुफ़िआ एजेंसी ISI, अमेरिकी अखबार, कुछ व्यक्ति और भारत के ही कुछ पत्रकार शामिल हैं। यह दुष्प्रचार विदेशों में भारतीयों, विशेषकर हिन्दुओं के विरुद्ध स्थानीय लोगों द्वारा हिंसा का कारण बनता है।
लगातार भारत की छवि बिगाड़ने का प्रयास
कुछ देशों द्वारा लगातार भारत की छवि बिगाड़ने के प्रयास जारी हैं। भारत को एक पिछड़ा, गरीब तथा हिंसाग्रस्त देश दिखाया जाता रहा है। ये देश अपने नागरिकों के लिए जारी की जाने वाली ट्रेवल एडवायजरी या यात्रा सलाहों के जरिए भारत को एक हिंसाग्रस्त देश बताते रहे हैं।
उदाहरण के तौर पर अमेरिका ने अपनी ट्रैवल एडवाइजरी में भारत में आतंकी हमलों को कहीं भी कभी भी घटित होने वाली घटना के तौर पर बताया और साथ ही उत्तर-पूर्व के राज्यों-जिनमें अब ज्यादातर शान्ति है- में यात्रा न करने की सलाह दी।
कनाडा द्वारा जारी एडवाइजरी में भी भारत के उत्तर-पूर्वी एवं कश्मीर जैसे भू भागों में यात्रा करने से बचने को कहा गया जब कि यह सर्वविदित है कि इन हिस्सों में अब आतंकी हमलों में पर्याप्त कमी आ चुकी है। ब्रिटेन ने भी कुछ ऐसी ही बातें अपनी ट्रैवल एडवाइजरी में लिखी हैं।
आँकड़े पूर्णतया विपरीत
देश के अंदर अपराधों का आँकड़े रखने वाली संस्था के द्वारा अगस्त माह में जारी की गई ‘क्राइम इन इंडिया 2021’ के अनुसार देश के अंदर वर्ष 2021 में विदेशी नागरिकों के खिलाफ 150 अपराध हुए। इनमें सभी प्रकार के अपराध शामिल हैं। यह आँकड़ा पूरे विश्व से भारत आए विदेशी नागरिकों का है।
इन अपराधों में से अमेरिका के नागरिकों के साथ 6 अपराध, कनाडा के नागरिकों के साथ 2 और इंग्लैंड के नागरिकों के साथ 4 अपराध हुए। इसके अतिरिक्त ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के नागरिकों के खिलाफ 2-2 अपराध हुए।
वहीं अगर भारत में इस दौरान आने वाले अमेरिकी नागरिकों की संख्या को देखें तो यह वर्ष 2021 में एक वेबसाइट स्टैटिस्टा के अनुसार 4.3 लाख रही। ऐसे में इतनी बड़ी संख्या में आने वाले नागरिकों के खिलाफ अपराध इकाई आँकड़े में हुए, ऐसे में पश्चिमी देशों का भारत का सुरक्षित ना होने किस तर्क पर आधारित है यह स्पष्ट नहीं होता।
पश्चिमी देशों में सैकड़ों की संख्या में होते रहे हैं भारतवंशियों पर हमले
भारत के विषय में पश्चिमी देश लगातार असुरक्षा और हिंसा जैसी बातें करते रहे है लेकिन उनके खुद के आँकड़े चिंताजनक प्रतीत होते हैं। अमेरिका और इंग्लैण्ड जैसे देशों के द्वारा जारी किए गए अपराध के आँकड़ो को देखा जाए तो यह सैकड़ों में हैं। देश की लोकसभा में एक प्रश्न के उत्तर में विदेश राज्य मंत्री ने बताया कि वर्ष 2014 से 2016 के बीच कम से कम 17 हमले भारतीयों पर हुए।
अमेरिका में अपराध की जांच करने वाली प्रमुख एजेंसी FBI के आंकड़ों के अनुसार, अमेरिका में वर्ष 2010 से 2020 के बीच 217 सिख-विरोधी अपराध हुए। वहीं इस दौरान होने वाले हिन्दू-विरोधी अपराधों की संख्या 54 रही। अमेरिका में वर्ष इस 2010 से 2020 के दशक में 66 हजार से अधिक घृणा वाले अपराध हुए।
वहीं, ब्रिटेन के अपराध के आँकड़ों का परीक्षण करें तो यह और भी चिंताजनक हैं। वर्ष 2017 से 2022 के बीच ब्रिटेन में 920 सिखों-विरोधी अपराध हुए। इसी दौरान हिन्दू-विरोधी हमलों का आँकड़ा 603 रहा। हाल ही में ब्रिटेन में हिन्दुओं के मंदिरों एवं मोहल्ले पर भी हमले हुए।
इस तरह यदि देखा जाए तो यही बात दिखती है कि विकसित देश अपनी दशकों पुरानी औपनिवेशिक सोच और भारत को संपेरे और मदारियों का देश मानने वाली मानसिकता से अभी तक उबर नहीं पाए हैं। साथ की ये देश अपने मानदंडों पर पूरी दुनियाँ का मूल्यांकन करने की सैकड़ों वर्ष पुरानी सोच भी नहीं त्याग पाए हैं।
दुनिया के अन्य देशों में कानून-व्यवस्था, राजनीतिक विचारधारा, सामाजिक न्याय या लोकतंत्र के मूल्यांकन के लिए अपने मानदंडों को आगे करना ऐसी सोच है जो भविष्य में वैश्विक स्तर पर इन देशों के खिलाफ माहौल बना सकता है। यह इन देशों पर निर्भर करता है कि वे उच्चता की अपनी इस भावना को कब त्यागते हैं।