गुजरात के गौरवशाली इतिहास को ध्यान में रखते हुए नरेंद्र मोदी ने राज्य को निवेशकों का पसंदीदा स्थान बनाने के कई प्रयास किए हैं। आज यह यह देश के पश्चिमी भाग के सबसे समृद्ध राज्यों में अपना स्थान रखता है। अहमदाबाद के पास लोथल और कच्छ के धोलावीरा में सिंधु घाटी सभ्यता के अवशेष बताते हैं कि मानव सभ्यता की शुरुआत से ही यह स्थान रणनीतिक रूप से कितना महत्वपूर्ण रहा है। एक नज़र देखते हैं कि भारत के समृद्ध इतिहास में योगदान देने के साथ गुजरात के विकास में क्या-क्या कदम उठाए गए है!
ये भी एक विरोधाभास है कि गुजरात के विकास की कहानी की शुरुआत विनाश से होती है। ऐसा कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी। जनवरी 26, 2001 की सुबह 8 बजकर 46 मिनट पर गुजरात के कच्छ जिले के भचाऊ में 7.6 तीव्रता का विनाशकारी भूकंप आया था। इसका असर इतना भयानक था कि हताहतों की संख्या 20,000 तक पहुँच गई थी, जबकि 1.5 लाख से अधिक घायल हुए थे। 3 लाख से ज्यादा इमारतें नष्ट हो गई थीं। भूकंप से गुजरने वाले लोग अभी भी उस भयानक मंजर को याद करके कांप उठते हैं।
भूकंप से हुए आर्थिक और मानसिक नुकसान ने समाज को तोड़कर रख दिया था पर यह गुजरातवासियों की दृढ़ता ही कही जा सकती है कि उन्होंने कठिन परिस्थिति से निकलकर पुनर्निर्माण कार्य प्रारंभ किया था।
इस घटना के राजनीतिक पहलू पर नजर डालें तो वर्ष 1960 में गुजरात के गठन के बाद यह पहली बार ही था जब राज्य में कोई गैर-कांग्रेसी सरकार चुनी गई। इससे पहले की भाजपा सरकार का कार्यकाल 2 वर्ष से भी कम रहा था। वहीं, तत्कालीन मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल के खिलाफ भ्रष्टाचार और सत्ता के दुरुपयोग के बड़े पैमाने पर आरोप थे। इसी बीच उनपर भूकंप के लिए मिली राहत राशि के दुरुपयोग के भी आरोप लगने शुरु हो गए थे। इन्हीं सब घटनाओं के चलते अक्टूबर 2, 2001 को खराब स्वास्थ्य के कारण उन्होंने गुजरात के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था।
अक्टूबर 7, 2001 को नरेंद्र मोदी ने राज्य के मुख्यमंत्री पद की शपथ ग्रहण ली थी। उन्हें एक ऐसे राज्य की बागडोर मिली थी जो प्राकृतिक आपदा के चलते बिखरा हुआ था। उनके सामने चुनौती थी ऐसे राज्य को पुनः खड़ा करने की, जो बैसाखियों के सहारे भी नहीं चल पा रहा था। उन्हें राज्य के पुनर्निर्माण के साथ ही वर्षों से सूखे जैसी स्थिति का सामना करने वाले राज्य में रोजगार के अवसर पैदा करने पर काम करना था। यह ऐसा समय था जब कच्छ-काठियावाड़ क्षेत्र बुनियादी पीने के पानी के लिए भी संघर्ष कर रहे थे।
मुख्यमंत्री पद के भार के साथ ही नरेंद्र मोदी को अहसास हो गया था कि राज्य में उद्योगों को लाने के लिए उन्हें सबसे पहले बुनियादी ढांचा उपलब्ध कराना होगा। इसी के बाद युद्ध स्तर पर काम करते हुए गुजरात की मोदी सरकार ने सड़क संपर्क बढ़ाने पर ध्यान दिया और बिजली क्षेत्र में सुधारों से राज्य में बेहतर गुणवत्ता और अधिक स्थिर बिजली की उपलब्धता सुनिश्चित की।
हालांकि गुजरात को अभी शायद बहुत कुछ सहना था यही कारण है कि जैसे ही बुनियादी ढांचे में सुधार की योजनाएं लागू की गईं राज्य में एक और आपदा आ गई।
यह आपदा प्राकृतिक तो नहीं थी पर गुजरात के लिए यह भयानक साबित हुई। फरवरी 27, 2002 के गुजरात दंगे। इस दिन गोधरा में दंगाई मुस्लिम भीड़ ने अयोध्या से लौट रहे तीर्थयात्रियों की ट्रेन में आग लगा दी थी। इसके बाद राज्य में व्यापक पैमाने पर सांप्रदायिक दंगे हुए थे।
सांप्रदायिक दंगों का इस्तेमाल राजनीतिक स्वार्थ के लिए करते हुए मीडिया और विपक्षी राजनेताओं ने मुख्यमंत्री मोदी को पक्षपाती करने वाले व्यक्ति के रूप में चित्रित कर दिया था। कहीं न कहीं कांग्रेस यह समझ चुकी थी कि उनकी सत्ता में वापसी के लिए नरेंद्र मोदी को हराना जरूरी है। अगर आम जनता ने उन्हें स्वीकार कर लिया तो नरेंद्र मोदी फिर कभी कोई हरा नहीं पाएगा।
नरेंद्र मोदी को रोकने के लिए कांग्रेस द्वारा समर्थित मुख्यधारा के पत्रकार, तथाकथित बुद्धिजीवी, एक्टिविस्ट साथ आए और उन्होंने गुजरात और गुजरातवासियों की देश के सामने एक बेहद घृणित तस्वीर पेश करनी शुरू कर दी। यह सांप्रदायिकता की कोई पहली घटना नहीं थी। इससे पहले भी गुजरात में कांग्रेस के माधवसिंह सोलंकी के कार्यकाल में इससे बदतर सांप्रदायिक हिंसा देखी गई थी। माधव सिंह जो वोट बैंक की राजनीति के लिए ‘KHAM सिद्धांत’ लेकर आए थे। सोलंकी ने तय किया था कि KHAM यानि ‘क्षत्रिय, हरिजन, आदिवासी और मुस्लिम’ कांग्रेस के मुख्य मतदाता हैं। वक्त शायद जख्म भर देता है पर यह याद रखना चाहिए कि अंतरजातीय मुद्दे को लेकर मंडल आंदोलन के दौरान शुरु हुए दंगे किस प्रकार जल्द ही सांप्रदायिक दंगों में तब्दील हो गए थे। पर इस घटना को जल्द ही भुला दिया गया था।
खैर, गोधरा दंगों की बात पर वापस आते हैं। राज्य ने साम्प्रदायिक दंगों को काबू करने के लिए प्रभावशाली ढंग से काम किया और हिंसा पर जल्द ही काबू पा लिया गया। हालांकि यहां लंबे समय तक कर्फ्यू लगा रहा था। सेना के बुलाने से कुछ ही हफ्तों में चीजें सामान्य हो गई थीं। आम गुजरात निवासी भयानक यादों को पीछे छोड़ते हुए फिर से अपनी रोजी-रोटी कमाने में व्यस्त हो गया था।
हालांकि इस घटना ने जो अवसर एक्टिविस्टों और विपक्षी पार्टियों को दिया था वो इसे कहां छोड़ने वाले थे। मीडिया ने इस घटना के नरैटिव को वैश्विक स्तर पर ले जाने का काम किया। अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने भी नरेंद्र मोदी और गुजरात को बदनाम करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। राजनीतिक दलों से जुड़कर चुपके से एजेंडा चला रहे एक्टिविस्टों, बुद्धिजीवियों ने गुजरात को एक अस्थिर राज्य का तमगा दे दिया था। उनके द्वारा बनाया नैरेटिव इस प्रकार फैलाया गया था कि अगर नरेंद्र मोदी राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में विफल हो जाते तो यह शायद उनकी राजनीतिक यात्रा का ही अंत कर देता। यह भी संभव था कि विफल रहने पर वह कभी अपनी राष्ट्रीय भूमिका की कल्पना नहीं कर पाते।
हालांकि आपदा को अवसर के रूप में देखने वाले नरेंद्र मोदी के लिए यह सफर की शुरुआत थी न की अंत। उन्होंने जो जिम्मेदारी अपने हाथ में ली थी वो उसे निभाने के लिए प्रतिबद्ध रहे।
आप मां दुर्गा की पूजा के त्योहार नवरात्रि के बारे में तो जानते ही होंगे। गुजरात में इसे बड़े प्रेम और उत्साह के साथ मनाया जाता है। यह नवरात्रि आश्विन माह की नवरात्रि है जिसका समापन विजयादशमी/दशहरा के साथ होता है। इन नौ दिनों में गुजरात सिर्फ उत्साह औऱ उमंग की भावनाओं के साथ जीता है। कुछ लोग उपवास करते हैं तो कुछ लोग देवी की पूजा करने के लिए नृत्य करते हैं। युवतियां और महिलाएं नए कपड़े और गहनों में सजे कर बाहर घूमती है और नृत्य का आनंद लेती है।
आपदा से खड़े हुए राज्य के लिए निवेश के अवसरों को बढ़ाने के लिए इन नौ रातों से बेहतर समय और कौन सा हो सकता है? यही कारण है कि गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए नरेंद्र मोदी ने ‘वाइब्रेंट गुजरात इन्वेस्टमेंट समिट’ की संकल्पना की और इसका पहला संस्करण वर्ष, 2003 की नवरात्रि के दौरान आयोजित किया गया।
एक युवा पत्रकार के रूप में मैंने वर्ष 2015 के वाइब्रेंट गुजरात शिखर सम्मेलन में भाग लिया जब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने ही थे। इस दौरान वरिष्ठ पत्रकारों के साथ हुई उनकी बात में मुझे जानकारी मिली थी कि मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए नरेंद्र मोदी ने शिखर सम्मेलन से पूर्व मीडियाकर्मियों से बात की थी। उन सभी को बुलाकर एक पावर पॉइंट प्रेजेंटेशन दिखाई गई थी जिसमें शिखर सम्मेलन के उद्देश्यों को दर्शाया गया था। मुख्यमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी को उम्मीद थी कि भूकंप और सांप्रदायिक दंगों से हुए लगातार 2 वर्ष लंबे नकारात्मक प्रचार के बाद अनुकूल मीडिया कवरेज से गुजरात के लोगों को मदद मिलेगी। आखिर एक लीडर यही तो चाहता है कि उसके राज्य और देश की समृद्धि बढ़ती ही जाए।
मुझे यह भी बताया गया कि प्रेजेंटेशन के दौरान एक प्रमुख गुजराती अखबार के संपादक, जिन्होंने पूरी सिद्धत से 2002 के दंगों को ‘मौत के मंजर’ के रूप में दिखाने का काम किया था, बैठक के बीच में से उठकर चले गए थे। दरअसल, यह उस अपराध के प्रति मौन सहमति थी जिसमें तय किया गया था कि मोदी सरकार के खिलाफ कुछ भी अच्छा न लिखा जाए। साथ ही, उनके ‘अपने’ सत्ताधारियों को नाराज न करने का भय भी उनसे यह करवा रहा था।
असल में यह वो समय था जब कुछ प्रमुख मीडिया के ठेकेदारों ने शिखर सम्मेलन को असफल घोषित करके खारिज कर दिया था। हालांकि मुख्यमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी यह तय कर चुके थे कि वह मीडिया पर निर्भर न रहकर अपने विज़न और काम पर निर्भर रहेंगे और उनका काम ही उनका परिचय देगा।
पहले शिखर सम्मेलन के बाद वर्ष, 2005 में अगले सम्मेलन का आयोजन हुआ। पर्यटकों और निवेशकों के लिए सम्मेलन की यात्रा आसान बनाने के लिए इसका आयोजन हमेशा सर्दियों के महीनों में किया गया। इस मौसम में गुजरात में त्योहारों का भी उल्लास होता है। उत्तरायण के समय मकर संक्रांति को पतंग उत्सव के साथ आसमान रंग-बिरंगी पतंगों से ढक जाता है तो नवरात्रि में शहर देवी मां के स्वागत के लिए सजकर तैयार होता है।
गुजरात को निवेश स्थल के रूप में प्रचारित करने के लिए बेशक आने वाले पर्यटकों के लिए मौसम सुखद होना ही चाहिए। इसलिए वाइब्रेंट गुजरात शिखर सम्मेलन का आयोजन उत्तरायण के सप्ताह के दौरान किए जाने लगा है।
सम्मेलन की सफलता की बात करें तो पिछले 20 वर्षों में इस के दौरान करोड़ों रूपए के समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए हैं। कई नए सौदों का आदान-प्रदान हुआ है। रणनीतिक और तकनीकी साझेदारी वार्ता आयोजित की गई। साथ ही गुजरात वैश्विक मानचित्र पर एक ऐसे राज्य के रूप में उभरकर सामने आया जिसमें हर कोई निवेश करना चाहता है। सिंगल विंडो क्लीयरेंस (Single window clearance), विभिन्न कर विनिर्माण क्षेत्र को प्रोत्साहन देने के लिए दी गई छूट और यहां तक कि राज्य को नवीकरणीय ऊर्जा में अग्रणी ताकत बनाने के लिए अनुकूल नीतियों के कारण गुजरात ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
गुजरात आज पुननिर्माण से खड़ा हुआ वो राज्य है जो जीवंत है, विकसित है और जिसमें अनंत संभावनाएं हैं।
नोट- यह निरवा मेहता द्वारा लिखे गए मूल आर्टिकल (Vibrant Gujarat: Two Decades’ Journey of Viksit Gujarat) का प्रतिभा शर्मा द्वारा किया गया हिंदी अनुवाद है।
उत्तर प्रदेश एवं गुजरात बने भारत में शीर्ष निवेश स्थल: आरबीआई रिपोर्ट