उसके दुर्भाग्य का चरम यह था कि उसे अपने अल्पायु पति की मृत्यु का दिन पूर्व से ही ज्ञात था। विद्वता भी कभी कभी बहुत पीड़ा देती है। सम्भावित वैधव्य का भय उसे नित्य मारता होगा उसने इस भय से मुक्ति का मार्ग ढूंढा, और अपना समूचा समय पति और परिवार की सेवा में लगा दिया।
परन्तु पति से वियोग का भय मन से उतरे तो कैसे? हर क्षण मन में वही बात घूमती रहती थी। वह धर्मपरायण स्त्री थी, और धर्म मनुष्य का सबसे बड़ा बल होता है। भय के चरम पर पहुँच कर कांप रही वह स्त्री सहसा अड़ गई और मन ही मन कहा, “जीवन भर अपने धर्म पर अडिग रही हूँ ईश्वर! ऐसे कैसे ले लोगे मेरे पति के प्राण? नहीं ले सकते। वह मेरी सम्पत्ति है।”
पति लकड़ियों के लिए वन को निकला, तो वह भी साथ लग गई। उसे पता था कि आज अंतिम दिन है। कैसे छोड़ देती अपनी समूची थाती को? उसे अपने प्रेम के लिए यम से लड़ना था। लकड़ी बीनते सत्यवान को अचानक मूर्छा आ गई। वह समझ गई कि समय आ गया। तीन दिवस से निर्जला व्रत लिया था उसने वटबृक्ष की छांव में बैठ उनका शीश अपनी गोद में लेकर गोहराने लगी शिव को, देव! यम मेरे पति को चुपचाप लेकर नहीं जाएं! उन्हें मेरी सम्पत्ति लेनी है तो मुझे दर्शन दें।
अपने धर्म पर अडिग लोगों की ईश्वर भी सुनता है। यम समक्ष आए। वही विकट विकराल रूप। सामान्य जन तो भय से प्राण त्याग दें! पर वह सावित्री थी न, भय को जीत चुकी थी। बोली- “नहीं ले जा सकते इन्हें! या तो इन्हें छोड़ो, या मुझे भी ले चलो” यम ने कहा, “कुछ और मांग बेटी! तेरे पति की आयु पूर्ण हुई।” सावित्री ने कुछ सोच कर कहा, “मुझे सौ पुत्रों की माता होने का वर दीजिये।” हड़बड़ाये यम ने पीछा छुड़ाने के लिए जल्दी से कहा- तथास्तु! यम वर दे कर चलने लगे तो सावित्री भी पीछे पीछे चल पड़ी।
यम ने मुड़ कर कहा, “अब क्या?” सावित्री ने कहा, “पति! बिना उनके सौ पुत्र कैसे होंगे?” यम फँस गए। खीज कर कहा,” ले जा मेरी माँ! तु महान ही है।”
सावित्री को पति तो मिले ही, वह यूँ ही सबकी माँ भी हो गई। अपना कर्तव्य स्मरण रहे, धर्म में निष्ठा रहे, ईश्वर पर विश्वास रहे तो यम भी पराजित होते हैं। पर रुकिए! पत्नी के रूप में सावित्री पाने के लिए पति को भी सत्यवान होना पड़ता है। और पति के रूप में सत्यवान पाने के लिए पत्नी को भी सावित्री बनना होता है।
सत्य को धारण कीजिए, पत्नी सावित्री हो ही जाएगी। खींच लाएगी यम के मुख से आपके प्राण! वट सावित्री व्रत है न आज! सावित्री के विजय का दिवस! संसार की हर सावित्री के पति दीर्घायु हों। उनका प्रेम अमर रहे।
यह भी पढ़ें: समय की मांग हैं बागेश्वर धाम के धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री