“कु नी चांदू की वे थैं खाण मा, प्येण मा,
सुबेरी-सुबेरी माँ की हात्यों की कोदा की रोटी, वे दगड़ी भटवणी,
दिन मा लोखर की कड़ै मा आलू की थेच्यावाणी दगड़ी रैतु
अर ब्यखन बगत घोत की बणी दाल मिलण छ
कैन सोची ह्वाल कि अपणा घर गौं का खाणा की रस्याण आज देश-विदेश मा ह्वली”
देवभूमि की बोली में हमने जिस अन्न का वर्णन किया वह गढ़वाली थाली में परोसा जाता है। इसमें कोदे, मंडुवे की रोटी के साथ कई प्रकार के पौष्टिक आहार शामिल हैं।
उत्तराखंड के अनाज, मूल रूप से उत्तराखंड के मिलेटस, उत्तराखंड के मिलेटस के बारे में बात करना दो कारणों से ज़रूरी है। पहला कारण यह है कि हमारी केंद्र सरकार के मिलेटस को प्रमोट करने के प्रयासों के कारण हम अंतरराष्ट्रीय मिलेट्स ईयर मना रहे हैं और दूसरा कारण यह है कि भारतीय मिलेट्स की कोई भी बात उत्तराखण्ड के मिलेट्स के बिना पूरी हो ही नहीं सकती।
खाद्य सुरक्षा ऐसा विषय है जिसे लेकर विश्व समुदाय हमेशा से चिंतित रहा है पर यह चिंता पिछले कुछ वर्षों में बढ़ गई है। कारण है; वैश्विक संसाधनों का असीमित और निरंतर दोहन और बढ़ती जनसंख्या।
जब किसी भी समुदाय, राष्ट्र या व्यक्ति के सामने ऐसी समस्या खड़ी हो जाती हैं तब वह अक्सर उसके हल के लिए अपनी संस्कृति की ओर देखता है और मिलेट्स की हमारी संस्कृति हमेशा से समृद्ध रही है। जहाँ तक उत्तराखंड के मिलेटस की बात है तो उत्तराखंड के खाद्य संस्कृति में बाजरे का महत्वपूर्ण स्थान रहा है। ज़ाहिर है कि ऐसे में बाजरे को फिर से सामाजिक खाद्य संस्कृति में वापस लाने का प्रयास किया जाएगा।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहली बार साल 2018 में प्रत्येक देशवासी की थाली में मिलेट्स शामिल किए जाने की बात अंतरराष्ट्रीय मंचों पर कही थी और उनकी इस बात को तब बहत्तर देशों का समर्थन मिला था। बाद में संयुक्त राष्ट्र ने साल 2023 को इंटरनेशनल मिलेट्स ईयर घोषित किया।
मिलेट्स यानी मोटा अनाज जिसे श्रीअन्न का नाम भी दिया गया है। भारत में मिलेट्स पारंपरिक रूप से हमेशा से भोजन का हिस्सा हुआ करते थे लेकिन 1960 के दशक में हरित क्रांति के जरिये खाद्य सुरक्षा पर दिए गए जोर से मिलेट्स कम खाए जाने लगे और कालांतर में लगभग भुला दिए गए। लेकिन उत्तराखंड में आज भी ये अनाज लगभग हर रोज बड़े ही चाव से खाया जा रहा है।और अब तो गाँव तक सीमित रहने वाले देवभूमि के ये पौष्टिक अनाज को वैश्विक बाज़ार तक पहुँचाने के लिए निरंतर काम किया जा रहा है।
श्रीअन्न: ताकि ‘गरीब के अनाज’ से भरे हर भारतीय का पेट

उत्तराखंड के मिलेट्स की बात करे तो यहाँ कई प्रकार के अनाज पाए जाते है। पौष्टिकता से भरपूर पहाड़ का मंडुआ, जिसे हम रागी भी बोलते हैं। मंडुवे का इस्तेमाल रोटी, सूप, जूस, उपमा, डोसा, केक, बिस्कुट्स, नूडल्स, पास्ता और आयुर्वेदिक दवा के रूप में किया जाता है।
उत्तराखंड के हर घर में मंडुवे के आटे को गेहूं के आटे में मिलाकर खाया जाता है। इसमें प्रोटीन, कैल्शियम, विटामिन और मैग्नीशियम जैसे तत्व ना सिर्फ हड्डियों और दांतों को मजबूत करते हैं बल्कि डायबिटीज़ के रोगियों के लिए बेहद ही फायदेमंद हैं। यह ब्लड प्रेशर बढ़ने पर उसे नियंत्रण करने का काम करता है। ज़ुखाम या सर्दी से होने वाले गले दर्द, गले में खराश को ठीक करने में सहायक है। यही नहीं, मंडुवा का फेस पैक, फेस मास्क भी बनता है और त्वचा से दाग धब्बे मिटाने में खास सहायक है।

इसके अलावा पहाड़ का झंगोरा यानी ‘Barnyard millet, एक ऐसा पौष्टिक आहार है जो आज भी पहाड़ में रोज़ के भोजन का हिस्सा है और बड़े ही चाव के साथ अलग अलग व्यंजनों के साथ खाया जाता है। जैसे झंगोरे की खीर, भात, छंछिया आदि का शुमार पहाड़ के पारंपरिक लोकप्रिय व्यंजनों में से एक है। झंगोरे को पहले गरीबों का खाना कहा जाता था, मगर धीरे धीरे इसकी उपयोगिता और स्वास्थ्य लाभों को देखते हुए इसे खूब उगाया जाता है। पहाड़ का झंगोरा प्रोटीन, विटामिन्स से भरपूर हृदय रोगियों और शुगर पेशेंट्स के लिए रामबाण है। साथ ही पाचन शक्ति और वज़न घटाने में भी सहायक है।
पहाड़ की चौलाई या मरसा जैसे मोटे अनाज भी आपको फिट रखने में मददगार साबित होते हैं। जो कोलेस्ट्रॉल कम करने में मदद करता हैं। आंखों को स्वस्थ रखता है, बालों के लिए लाभदायक है, दांत दर्द में उपयोग किया जाता है।
यहीं नहीं पहाड़ के लाल चावल, पहाड़ के भट्ट, सोयाबीन, गहत, तोर की दाल, राजमा आदि दालें पोषण से भरपूर हैं। हमारा बुरांश, तिमला, चुरा, कंडाली स्वास्थ्य को बेहतर रखने में मददगार हैं।
देखा जाए तो पहाड़ का हर एक अनाज सुपर फ़ूड की तरह काम करता है जो केवल स्वादिष्ट ही नहीं बल्कि स्वास्थ के लिए भी फायदेमंद है। जो पहाड़ में रहने वालों को पहाड़ के मौसम में ठीक से रहने के लिए भी तैयार करता है और इसके साथ ही एनर्जी भी प्रदान करता है। यानी कई प्रकार के अनाज कई प्रकार के फायदे, लेकिन आज भी इन पौष्टिक अनाज की इतनी पहचान नहीं है।

उत्तराखंड 22 सालों में विकास के क्षेत्र में धीमा ज़रूर रहा और लगातार पलायन की समस्या से जूझ रहा था लेकिन मिलेट्स एक ऐसी परियोजना बन कर सामने आया जो उत्तराखंड को कई समस्याओं से निजात दे सकता है।
उत्तराखंड भरपूर मात्रा में मोटा अनाज उगाता है जो स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद तो हैं लेकिन अधिकतर लोगों को इसकी जानकारी नहीं। विश्वभर में कोरोना महामारी के बाद लोगों ने पौष्टिक खाने के महत्व को समझा है। ये पोषक तत्वों से भरपूर होने के कारण आज के बदलते परिवेश में हम सबके लिए भी आवश्यक हैं। इस तरह के आयोजनों से न केवल मिलेट्स के प्रचार प्रसार में सहायता मिलेगी बल्कि इनसे उत्तराखंड में मोटे अनाज की खेती को भी बढ़ावा मिलेगा।
As per the Union Ministry of Commerce and Industry, Government of india– under millet mission, Uttarakhand Government has approved “Millet Mission’ scheme to promote the state’s traditional grain Manduwa, Jhangora. The state-owned Mandi Parishad will purchase the five types of millets and grains from local farmers i.e.Chaulai (Amaranth), Manduwa (Ragi), Jhangora (Barnyard millet), Kuttu (Buckwheat) and Koni (Foxtail millet). This initiative will directly benefit the farmers’ with an increase of income and motivate them to produce millets.
For women empowerment, women folks in rural areas of Dehradun have been given opportunities to make packaged and branded Millet-based cookies, rusks, snacks, and breakfast cereals and sell them to rural, urban, and regional markets in neighbouring areas. thus benefiting the fortunes of millet producing farmers and reviving millet cultivation in the region.

आज मिलेटस को लेकर देश में कई स्टार्टअप भी प्रारंभ हुए हैं, जो न केवल किसानों को फायदा पहुंचा रहे हैं बल्कि लोगों को रोजगार भी दिला रहे हैं। इसलिए प्रधानमंत्री ने इसे श्रीअन्न की संज्ञा दी है। श्रीअन्न केवल खेती या खाने तक सीमित नहीं है, जो लोग भारत की परंपराओं से परिचित हैं वे जानते हैं कि हमारे यहां किसी के आगे ‘श्री’’ ऐसे ही नहीं जुड़ता है। जहां ‘श्री’’ होता है वहां समृद्धि भी होती है, समग्रता भी होती है और विजय भी होती है। और यह कहना गलत नहीं होगा की आज श्रीअन्न भारत के लिए विकास का माध्यम बन रहा है।
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इसी विषय पर चर्चा के लिए हाल ही में उत्तराखंड के मसूरी में मिलेट्स-2023 के अंतर्गत आयोजित ‘क्षमता और अवसर’ यानी ‘Potential and opportunities’ राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया गया जिसमें मिलेट्स परियोजना और उत्तराखंड के अनाज को लेकर बात की गई।
विभिन्न सम्मेलनों और सेमिनारों का आयोजन कर मिलेट्स का प्रचार-प्रसार एवं कृषकों को इसके लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। सरकार ने मिलेट्स के तहत मंडुवे का न्यूनतम समर्थन मूल्य 45.78 रुपये तय किया है और सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से राशन कार्ड धारकों को भी वितरित किया जा रहा है।

आपको बता दे, उत्तराखंड में मिलेट्स का पहला फेयर देहरादून में 13 और 14 मई को होने जा रहा है वहीं दूसरा फेयर हल्द्वानी में 29 और 30 मई को होगा।
प्रधानमंत्री मोदी द्वारा शुरू की गई इस परियोजना का महत्व श्रीअन्न में बखूबी नज़र आता है। श्रीअन्न, देश के छोटे किसानों की समृद्धि का द्वार, कम पानी में ज्यादा फसल की पैदावार, कैमिकल मुक्त खेती का बड़ा आधार, करोड़ों लोगों के पोषण का कर्णधार!
मिलेट्स तो ग्लोबल है ही, लेकिन अब पहाड़ का श्रीअन्न भी ग्लोबल बनने जा रहा है। ठीक इसी तरह भारत के अलग अलग क्षेत्रों में भी इसकी झलक देखने को मिलती है। जो अपने श्रीअन्न को विश्व स्तर तक पहचान दिला रहा है।