उत्तरकाशी जिले के नौगांव क्षेत्र में एक 9 साल की छोटी बच्ची होली से 1 दिन पहले सामान और रंग लेने बाजार जाती है। बच्ची जब समय से घर नहीं लौटती तो परिवार वाले खोजबीन शुरू करते हैं। लम्बे समय के बाद बच्ची एक कबाड़ी की दुकान के अंदर चारपाई पर बंधी हुई मिलती है। यह कबाड़ी मोहम्मद अनस पुत्र जुल्फीकार था जिसने अपने दोस्त काला पुत्र नज़ीर के साथ मिलकर बच्ची का अपहरण किया था। घटना की सूचना मिलते ही पूरे क्षेत्र में बवाल मच जाता है।
नौगावं क्षेत्र में यह घटना वर्ष 2018 में घटित हुई थी। आज नौगाँव से 20 किलोमीटर दूरी पर स्थित पुरोला क्षेत्र में भी ऐसे ही कारणों से बवाल जारी है। पुरोला उत्तराखण्ड के उत्तरकाशी जिले में स्थित एक नगर है। यह राज्य की 70 विधानसभा क्षेत्र में से एक क्षेत्र है।

बीते 26 मई को पुरोला में बिजनौर निवासी उबैद खान एवं उसके दोस्त ने एक नाबालिग को बहला फुसला कर भगाने की कोशिश की लेकिन स्थानीय लोगों ने इन्हें पकड़ लिया और पुलिस के हवाले कर दिया था।
इस घटना के बाद पुरोला सहित पूरे उत्तरकाशी जनपद में मुस्लिम समुदाय के खिलाफ विरोध शुरू हो गया। चूँकि जिले में अधिकतर मुस्लिम व्यापारी के तौर पर कार्य करते हैं इसलिए पूरे जिले में इन व्यापारियों के खिलाफ भी आक्रोश का माहौल बन गया था।
विरोध प्रदर्शन का सिलसिला पुरोला बाजार से शुरू हुआ जहाँ दूर दराज़ के गाँवों से भारी जनसमूह सड़कों पर आ गया। इस दौरान पुरोला, नौगांव, डामटा सहित रंवाई एवं यमुना घाटी के सभी बाजार बंद रहे।
लव जिहाद के विरोध में शामिल होने आए एक प्रदर्शनकारी कहते हैं,
“टीवी पर एक न्यूज़ देखी जिसमें कि किसी शहर में चार-पांच लोगों ने एक लड़की को चारपाई से बाँधकर दुष्कर्म किया और उसके चेहरे पर तेज़ाब डाल दिया। ये कुल मिलाकर एक किस्म की ट्रेनिंग है कि किसी का क़त्ल नहीं करना है, दुष्कर्म करके उसे सता कर मारना है और यही चीज़ उत्तराखंड में भी दिख रही है।”
इसी प्रकार उत्तरकाशी, बड़कोट, भटवाड़ी सहित चिन्यालीसौड़ कस्बे में भी इन अपराधों के ख़िलाफ़ प्रदर्शन उग्र हो गए।
बीते मंगलवार (6 जून 2023) को चिन्यालीसौड़ में आयोजित आक्रोश रैली में उत्तरकाशी जिला पंचायत अध्यक्ष एवं वर्ष 2022 के विधानसभा चुनावों में यमुनोत्री सीट से कांग्रेस प्रत्याशी रहे दीपक बिजल्वाण कहते हैं,

“जब आपकी अस्मिता पर सवाल उठे तो आपको राजनीति से परे उस अस्मिता की रक्षा की लड़ाई लड़नी चाहिए। इन लोगों (मुस्लिम) के चक्कर में हम अपनी दुकानें नहीं बंद करेंगे, इनकी दुकानें बंद रहेंगी और हमारी दुकानें खुली रहेंगी। आज से जिला पंचायत का लाइसेंस बाहर से आने वाले फेरीवाले व्यापारियों के लिए बंद है। कोई भी व्यक्ति ऐसा दिखेगा तो आप उसका स्वागत अपने हिसाब से कीजियेगा”
जनता के द्वारा किये गए इन बड़े प्रदर्शनों के बाद मुस्लिम समुदाय के लोगों ने दुकानें खाली करना शुरू कर दिया है। पुरोला में अब तक 11 व्यापारियों ने अपनी दुकानें खाली कर दी हैं तो वहीं यह सिलसिला अब अन्य कस्बों में भी शुरू हो गया है। बड़कोट बाजार में दो भवनस्वामियों ने अपनी दुकानें खाली करवा दी हैं। भटवाड़ी में बाहरी व्यापारियों को 15 दिन के भीतर दुकानें खाली करने को कहा है।
लव जिहाद की घटनाओं से चिंतित उत्तरकाशी के स्थानीय संगठनों ने 15 जून को महापंचायत बुलाई है। इससे जुड़ा एक पोस्टर भी वायरल हो रहा है।

इस पर उत्तरकाशी पुलिस ने कहा कि मुसलमानों की दुकानों पर धमकी भरे पोस्टर चिपकाने के सिलसिले में मुकदमा दर्ज़ कर दिया गया है। एहितयात के तौर पर उत्तरकाशी पुलिस ने पीएसी की एक टुकड़ी भी इलाक़े में तैनात कर दी है।
अब प्रश्न ये है कि देवभूमि के रूप में जाने जाना वाला प्रदेश एकाएक इतना उग्र कैसे हुआ? क्या उत्तराखण्ड में लव जिहाद के मामले वास्तव में बढ़ रहे हैं?
आपको बता दें कि पिछले कुछ वर्षों में उत्तराखण्ड में लव-जिहाद के मामलों में बेहताशा वृद्धि हुई है। पिछले 9 दिनों में ही 4 लव जिहाद जैसे मामले सामने आ चुके हैं। पहले इन चार मामलों पर नज़र डालते हैं।
- पहला मामला चकराता क्षेत्र का है
जहाँ 31 मई, 2023 को दो मुस्लिम युवकों को एक 15 वर्षीय नाबालिग लड़की के साथ पकड़ा गया। दोनों युवक उत्तर प्रदेश के रहने वाले हैं एवं हर्बटपुर में नाई का कार्य करते हैं।
जिसमें शौक़ीन पुत्र दिलशाद ने मीडिया से बातचीत में बताया कि लड़की उनके सैलून पर थ्रेडिंग के लिए आती थी जहां से उनकी जान पहचान शुरू हुई और तीनों ने घूमने जाने का प्लान बनाया। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार उन्हें दोनों युवकों पर तब शक हुआ जब वे होटल में कमरा ढूंढ रहे थे। बताया गया कि युवक नाबालिग लड़की के परिजनों को बिना सूचित किये हुए निकल गए थे।
विकासनगर क्षेत्र के भाजपा विधायक मुन्ना सिंह चौहान ने कहा, “मुसलमान लड़कों द्वारा हिन्दू बच्चियों को फंसाने के बढ़ते मामलों को देखते हुए मैंने सख्ती से पुलिस को अभियान चलाने के लिए कहा है।”

मुन्ना सिंह चौहान ने अपने विधानसभा क्षेत्र के हालिया आंकड़े पेश किये जिनमें उन्होंने ऐसे 6 मामलों का उल्लेख किया। जो नाबालिग बच्ची को फंसाने के आरोप में गिरफ्तार किये गए
- तौफीक पुत्र मोहमद शकील –
- साहबान – (फरार)
- अली पुत्र रिज़वान
- फरहान पुत्र जमील
- नईम पुत्र इरफ़ान
- फैज़ल पुत्र इरफ़ान (विगत 9 दिनों में आये जिन चार मामलों की हम जानकरी दे रहे हैं उस सूची में दूसरे नंबर पर यही मामला है)
- विकासनगर (देहरादून) की डाक पत्थर चौकी में फैजल के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया है। आरोप है कि विकासनगर निवासी फैजल ने धर्म छिपाकर राजस्थान की लड़की को सोशल मीडिया पर फंसाया और इंस्टाग्राम पर लड़की की अश्लील वीडियो भी बनाई। फैजल ने खुद को गोवा में एक होटल का मालिक बताया।मामले का खुलासा तब हुआ जब लड़की राजस्थान से अपने पिताजी के साथ विकासनगर लड़के के घर पर पहुंची।
- तीसरा मामला – गौचर (चमोली)
जहाँ 6 जून को दो मुस्लिम युवक असलम एवं गुलज़ार एक स्थानीय नाबालिग लड़की को लेकर होटल में कमरा लेने पहुंचे। युवकों ने किशोरी को अपनी मौसी की बेटी बताया। वहां मौजूद लोगों की शिकायत पर पुलिस ने दोनों को गिरफ्तार किया।
पुलिस के अनुसार गुलज़ार की 8 माह पूर्व ही शादी हो चुकी है और वह रुद्रप्रयाग में जेसीबी ऑपरेटर है। गुलज़ार ने ही किशोरी को घूमने के लिए गौचर बुलाया था।
नाबालिग लड़की को गौचर बुलाने वाले मुख्य अभियुक्त गुलजार ने फेसबुक एवं इंस्टाग्राम पर नितिन महाकाल के नाम से आईडी बना रखी थी।जहाँ से ये नाबालिग लड़कियों को निशाना बनाता था।

हिंदूवादी संगठन बजरंग दल के स्थानीय कार्यकर्ता संजय बहुगुणा बताते हैं, “आरोपी 26 वर्षीय गुलज़ार की नाबालिग लड़की पर विगत ३-४ वर्षों से नज़र बनी हुई थी। उसने नितिन बनकर लड़की को छोटी बहन पुकारकर जान पहचान शुरू की थी। “
हिंदूवादी संगठनों ने इसे लव-जिहाद का मामला बताते हुए रेलवे कंपनियों में काम कर रहे बाहरी मजदूरों, फड़, फेरी, सब्जी और कबाड़ वालों का सत्यापन करने व बाहरी लोगों से संबंधित व्यापारिक प्रतिष्ठानों में असली नाम पता दर्ज किए जाने की मांग की है।
- चौथा मामला– उत्तरकाशी के आराकोट का है
यह मामला बृहस्पतिवार 8 जून का है। आराकोट के मोलड़ी गाँव में मुस्लिम युवक ने दो नाबालिग लड़कियों को भगाने का प्रयास किया।
मोरी थाना क्षेत्र के आराकोट चौकी में नेपाली मूल के लोगों ने तहरीर दी है कि नवाब खान निवासी मुजफ्फरनगर ने गुड्डू नाम से उनकी दो नाबलिग बेटियों के साथ पब्जी और ऑनलाइन गेम के माध्यम से दोस्ती की। वह मोल्डी गांव में उनसे मिलने भी पंहुचा था। उन्हें बहला फुसलाकार बताया कि हम तीनों मुंबई भाग जाएंगे और वहीं शादी करेंगे।
सुबह जैसे ही वह गाड़ी बुक करने बाजार में पंहुचा स्थानीय लोगों ने उसे धर लिया। मोरी थाना एसएचओ मोहन सिंह कठैत ने बताया कि आराकोट चौकी में तहरीर दी गयी है। जांच के बाद ही कुछ कहा जा सकता है।
सिर्फ 9 दिन के भीतर इन चार मामलों से आपको उत्तराखंड में लव जिहाद की भयावहता का एक अंदाज़ा हो गया होगा। लेकिन पूरी तस्वीर इससे भी अधिक चौंकाने वाली है।
उत्तराखण्ड में तेजी से गायब होती लड़कियां
उत्तराखंड एक छोटा राज्य है लेकिन पिछले कुछ वर्षों में उत्तराखण्ड से महिलाएं एवं नाबालिग लड़कियों के गायब होने में वृद्धि हुई है।
समाचार पत्र अमर उजाला से संबधित हल्द्वानी के पत्रकार नरेंद्र देव सिंह बताते हैं, वर्ष 2020 में कुमाऊं मंडल में कुल 91 महिलाएं और लड़कियों का अपहरण हुआ। वर्ष 2021 में यह आंकड़ा बढ़कर 122 हो गया। वर्ष 2022 के अगस्त माह तक के डेटा के अनुसार कुल 75 महिलाएं एवं लड़कियों का अपहरण हुआ था।
पिछले 32 महीने में कुल 288 महिलाओं और लड़कियों का अपहरण हो चुका है। यानी हर महीने औसतन 9 महिलाओं लड़कियों का अपहरण हुआ है। इनमें से 241 महिलाएं एवं लड़कियां पुलिस ने बरामद कर दी हैं।
कुमाऊं मंडल में नाबालिग लड़कियां अधिक गायब हो रही हैं। सिर्फ अल्मोड़ा जिले में ही दो साल के अंदर कुल 64 लड़कियों की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज हुई है।
वर्ष 2016 में सल्ट ब्लाक के भखराकोट नामक गांव में अजीबो-गरीब मामला सामने आया था। हिंदुस्तान टाइम्स की विशेष रिपोर्ट के अनुसार लड़कियां 18 वर्ष पूर्ण होते ही गायब हो रही थी। इस गांव में सिर्फ 7 माह के दौरान ही 11 लड़कियां लापता हो गयी थी।

तब स्थानीय लोगों की ओर से एक आंशका यह भी जताई जा रही थी कि इन लड़कियों को विदेश भेजने की साजिश से तस्करी तो नहीं की जा रही है।
पहाड़ी जिलों में साल दर साल बढ़ते जा रहे हैं मानव तस्करी के मामले
ADG STF उत्तराखण्ड, वी मुरुगेशन के अनुसार, पिछले 3 सालों में 35 मुकदमे सघन जांच-पड़ताल के बाद मानव तस्करी के दर्ज हुए हैं। इस दौरान 21 नाबालिग किशोरियों को रेस्क्यू किया गया है।
इस मामले में वरिष्ठ पत्रकार भगीरथ शर्मा बताते हैं कि तस्करी की जाने वाली लड़कियों में नाबालिग बच्चियां अधिक हैं। जो दुर्गम पहाड़ी क्षेत्रों से हैं और गरीब परिवारों से संबध रखती हैं। इसे सिर्फ पुलिस द्वारा नहीं रोका जा सकता बल्कि सभी को सचेत रहकर ऐसी घटनाओं की सूचना पुलिस प्रशासन को देनी होगी।
इन सभी घटनाओं के पीछे कई कारण हो सकते हैं लेकिन इसके पीछे उत्तराखण्ड में हो रहे जनसांख्यिकी बदलाव को नकारा नहीं जा सकता है।
उत्तराखण्ड में जनसांख्यिकीय बदलाव
उत्तराखंड की डेमोग्राफी में एक बड़ा बदलाव आया है। वर्ष 2000 में राज्य बनने से लेकर अभी तक पिछले 22 वर्षों में मुस्लिम जनसंख्या में वृद्धि देखी गयी है।
वर्ष 2001 में हुई जनगणना के अनुसार इस्लाम को मानने वालों की जनसख्यां 12% थी। वहीं हिन्दुओं की जनसँख्या 85% थी।
वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार उत्तराखण्ड में मुस्लिम की जनसँख्या 11.92% से बढ़कर लगभग 14% हो गयी थी।
वर्ष 2001 एवं 2011 की जनगणना की जिलेवार समीक्षा आप यहाँ देख सकते हैं। ध्यान देने योग्य बात यह है कि यह 13 वर्ष पहले के आधिकारिक आंकड़े हैं।
मैदानी स्वरूप वाले चार जिलों में जनसांख्यिकीय बदलाव अधिक है। हरिद्वार, ऊधमसिंह नगर, देहरादून व नैनीताल जिलों मैदानी क्षेत्रों के जनसंख्या के आंकड़ों को देखें तो वहां मुस्लिम आबादी तेजी से बढ़ी है।
बहुप्रतीक्षित ‘जनगणना वर्ष 2021’ अभी शुरू होनी बाकी है। अब आप अंदाज़ा लगाइये कि हरिद्वार जिले में वर्ष 2011 की जनगणना में मुस्लिम आबादी 33% थी तो आज 13 वर्ष बाद क्या यह बहुसंख्यक बनने की ओर अग्रसर नहीं है?
इस परिवर्तन पर उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने वर्ष 2021 में सरकार का स्टैंड बताया।
राज्य के कुछ क्षेत्रों में जनसंख्या में अभूतपूर्व वृद्धि के कारण उन क्षेत्रों की जनसांख्यिकी प्रमुख रूप से प्रभावित हुई है। और इस जनसांख्यिकीय परिवर्तन के कारण एक समुदाय के सदस्यों को उन क्षेत्रों से पलायन करने के लिए मजबूर होना पड़ता है। साथ ही इस बात की भी संभावना है कि उन इलाकों में सांप्रदायिक सौहार्द बिगड़ सकता है।
ऐसे सभी लोगों की सूची बनाई जाए, जिनकी आपराधिक पृष्ठभूमि हो और वे उत्तराखंड में रह रहे हों। उनके रिकॉर्ड बनाने के लिए सत्यापन किया जाना चाहिए। जिलाधिकारियों को भी अपने जिलों में अवैध भूमि सौदों की निगरानी करनी चाहिए और यह जांच करनी चाहिए कि कोई डर या दबाव में अपनी जमीन बेच रहा है या नहीं। अगर ऐसा पाया जाता है तो उन्हें इसे रोकना चाहिए और इसके लिए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए।
पुष्कर सिंह धामी, मुख्यमंत्री उत्तराखण्ड
आपको बता दें उत्तराखण्ड में मुस्लिमों की बढ़ती जनसँख्या का एक कारण है और वो है उत्तर प्रदेश में मुस्लिम बहुल जिलों से उत्तराखंड की ओर होने वाला पलायन!
सीमा से सटे उत्तर प्रदेश के जिलों सहारनपुर, बरेली, बिजनौर, मुरादाबाद से अधिक संख्या में मुस्लिमों का उत्तराखण्ड की ओर पलायन हुआ है। खासकर हरिद्वार, उधमसिंह नगर एवं देहरादून में!
यह घुसपैठ उत्तराखंड के सीमान्त इलाकों तक हुई है
वर्ष 2021 की एक रिपोर्ट के अनुसार नेपाल से लगे हुए कुमाऊं के ऊधमसिंह नगर, चम्पावत व पिथौरागढ़ में तेजी से जनसांख्यिकी बदलाव हो रहा है। इस दौरान नेपाल में तेजी से आंतरिक हालात भी बदले। इस सब के बीच जनवरी, 2021 में सुरक्षा एजेंसियों की रिपोर्ट में कुमाऊं के तीनों जिलों को संवेदनशील बताते हुए गृह मंत्रालय को रिपोर्ट भेजी गई।
नैनीताल की भी डेमोग्राफी (जनसांख्यिकी बदलाव) में बड़ा बदलाव देखा जा रहा है। नैनीताल, कुमाऊँ मंडल का मुख्यालय भी है। स्थानीय लोग भी डेमोग्राफी में हो रहे बदलाव से चिंतित हैं।

समाचार पत्र दैनिक जागरण से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार किशोर जोशी हमें बताते हैं, “खुफिया एजेंसियों के सूत्रों के अनुसार नैनीताल शहर के विभिन्न क्षेत्रों में समुदाय विशेष का दखल बढ़ रहा है। स्थानीय खुफिया एजेंसियां अलर्ट हो चुकी हैं। एजेंसियों ने माना है कि नैनीताल में घोड़ा, टैक्सी, नौका संचालन, टूरिस्ट गाइडिंग, होटलों को लीज में लेने में समुदाय विशेष खासकर रामपुर, दडिय़ाल, स्वार, मुरादाबाद, बिजनौर, सहारनपुर के लोगों का दखल बढ़ा है।”
आर्थिक संसाधनों पर बढ़ते कब्जे का उदहारण सिर्फ नैनीताल नहीं बल्कि पूरा उत्तराखंड है।
आर्थिक संसाधनों में बढ़ती हिस्सेदारी
पूरे उत्तराखण्ड में मुसलमान समुदाय के व्यापारियों की संख्या अच्छी-खासी है। शहरी क्षेत्रों में ये फर्नीचर/कारपेंटर, सैलून (नाई), कॉस्मेटिक शॉप, मीट शॉप (बूचड़खाना), मैकेनिक को मुख्य व्यवसाय बना चुके हैं। वहीं चूँकि पर्वतीय जिलों में फल एवं सब्जी की आपूर्ति उत्तर प्रदेश के मुस्लिम बहुल जिलों से की जाती है इसलिए यह समुदाय पर्वतीय जिलों में मुख्य रूप से सब्जी एवं फल विक्रेता के तौर पर भी स्थापित हो चुके हैं।
इस बिंदु पर पड़ताल करने के लिए एक उदाहरण के तौर पर हमने रुद्रप्रयाग जिले को चुना।

वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार रुद्रप्रयाग की जनसँख्या मात्र 2 लाख 42 हज़ार है और यह उत्तराखंड का सबसे कम आबादी वाला जिला है। चूँकि उत्तराखंड की चारधाम यात्रा में बद्रीनाथ एवं केदारनाथ तक पहुंचने के लिए रुद्रप्रयाग एक अहम पड़ाव है। इसलिए यहाँ की आर्थिकी जानने के लिए बाजार को खंगालना आवश्यक हो जाता है।
इसके लिए हमने बात की रुद्रप्रयाग के व्यापार मंडल अध्यक्ष अंकुर खन्ना से।

अंकुर खन्ना बताते हैं, “इस समुदाय की आबादी का एक बड़ा हिस्सा बाजार में अचल संख्या के रूप में है इसलिए ये एक विशेष क्षेत्र की कुल जनसँख्या का हिस्सा नहीं बन पाते हैं। “
हमें रुद्रप्रयाग व्यापार मंडल के आधिकारिक आंकड़े भी प्राप्त हुए हैं जिसके अनुसार मुस्लिम समुदाय की दुकानों की संख्या इस प्रकार है ।
- रुद्रप्रयाग नगर क्षेत्र: 50 दुकानें
- तिलवाड़ा: 18 दुकानें
- अगस्त्यमुनि: 60 दुकानें
- गुप्तकाशी: 10 दुकानें
- उखीमठ: 10 दुकानें
- सोनप्रयाग: 4 दुकानें परमानेंट एवं 12 दुकानें चारधाम यात्रा के दौरान
- गौरीकुंड: 28 दुकानें परमानेंट एवं 50 दुकानें चारधाम यात्रा के दौरान (गौरीकुंड केदारनाथ यात्रा का सड़क पर अंतिम पड़ाव है)
- मयाली: 10 दुकानें
- भीरी: 14 दुकानें
- जखोली: 1 दुकान (बूचड़खाना)
जानकारी के अनुसार केदारनाथ यात्रा के दौरान यात्रा हेतु इस्तेमाल किये जाने वाले घोड़ों के मालिक अधिकतर मुस्लिम ही हैं। इसका कारण पहाड़ी क्षेत्रों में घोड़े की नस्ल की अनुपलब्धता बताया गया एवं यह डिमांड सहारनपुर से पूरी की जाती है।
इसके अलावा इस समुदाय का पहाड़ी जिलों में फेरी के रूप में कपड़े बर्तन इत्यादि बेचकर भी आजीविका का साधन बनाया है। हालाँकि इसका दूसरा पक्ष भी सामने आया है।
“बाहरी लोगों का प्रवेश वर्जित”
पर्वतीय जिलों में कई ऐसे मामले सामने आ चुके हैं जब अपराधों में इन फेरीवालों की संदिग्ध भूमिका सामने आयी है। कई बार नाबालिग बच्चियों को बहला फुसला कर भगाने के आरोप इन पर लगे हैं।
परिणामस्वरूप क्षेत्रवासियों ने अपने गावों में इनके प्रवेश पर रोक लगा दी है। ऐसे ही पोस्टर या बोर्ड लगे कई गाँवों की तस्वीर सामने आ चुकी है।

बागेश्वर जिले में स्थित गरुड़ के तल्लीहाट के ग्रामीणों ने आपस में बैठक की और सर्वसम्मति से गांव के प्रवेश द्वार पर बोर्ड लगाकर बाहरी व्यक्तियों के आने पर पाबंदी लगा दी।

गांव में अधिकतर लोग खेती किसानी करते हैं और उनका अधिकतर समय खेत में गुजरता है। घरों में बहू-बेटियां अकेले रहती हैं। हर समय उनकी सुरक्षा को लेकर भय बना रहता है। इसी कारण पूरे गांव ने निर्णय लिया कि अनावश्यक रूप से बाहरी व्यक्तियों का गांव में आना वर्जित कर दिया जाए।
पुष्पा देवी, ग्राम प्रधान
भूमि पर अतिक्रमण- ‘लैंड जिहाद’
आर्थिक संसाधनों पर अतिक्रमण के साथ साथ इस समुदाय द्वारा भू-संसाधनों पर भी कब्ज़ा किया जा रहा है। इसमें रेलवे की भूमि पर अतिक्रमण , नदियों के किनारे बस्तियां बनाना एवं उत्तराखंड में वन भूमि पर अवैध अतिक्रमण के मामले शामिल हैं।


यही कारण है कि मज़ार-मीनारों के रूप में अतिक्रमण का चौंकाने वाला ब्योरा सरकार की ख़ुफ़िया एजेंसियों के समक्ष आया तो उत्तराखंड सरकार ने विशेष रूप से ‘अतिक्रमण हटाओ अभियान’ शुरू किया।
उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी कहते हैं कि लैंड जिहाद के नाम पर अतिक्रमण स्वीकार नहीं किया जाएगा।
धामी ने कहा, “यह इसलिए जरुरी है क्योंकि उत्तराखंड दो देशों (चीन और नेपाल) के साथ अपनी सीमाओं को साझा करता है और एक विशेष समुदाय ने अवैध रूप से सीमावर्ती क्षेत्रों में भूमि पर अतिक्रमण कर दिया था। “
इस सन्दर्भ में उत्तराखंड के वरिष्ठ आईएफएस अधिकारी और मुख्य वन संरक्षक (वन पंचायत एवं सामुदायिक वानिकी) डॉ पराग मधुकर धकाते ने हमसे बातचीत की। उत्तराखंड सरकार ने वन विभाग की भूमि से अतिक्रमण खाली कराने के लिए डॉ पराग मधुकर को नोडल अधिकारी नामित किया है।
डॉ मधुकर से प्राप्त जानकारी के अनुसार उत्तराखंड की नदियों के किनारे वन भूमि/सरकारी भूमि पर अतिक्रमण हटाओ अभियान के तहत 23 नदियाँ चिह्नित की गई हैं, जहाँ खनन कार्य किया जा रहा है। इस अभियान के अन्तर्गत नदी के किनारे पर वन भूमि पर अवैध रूप से अतिक्रमण किये गये दुकान, मकान, अन्य अवैध निर्माण को हटाया जा रहा है।
विगत 52 दिनों में उत्तराखंड में कुल 2115 एकड़ वन भूमि को अवैध अतिक्रमण से मुक्त किया गया है । अभी तक वन भूमि पर अवैध अतिक्रमण कर निर्माण की गई 450 से ज़्यादा मज़ारों को हटाया गया है ।
इसके अलावा डॉ मधुकर ने उत्तराखंड में वन भूमि पर अवैध अतिक्रमण का विवरण भी दिया।
1. पूरे उत्तराखंड में 11861 हैक्टयर
2. गढ़वाल मण्डल: 2295 हैक्टयर
3. कुमाऊँ मण्डल: 9491 हैक्टयर
4. वन्यजीव मण्डल: 76 हैक्टर (कॉर्बेट पार्क में 9 हैक्टयर, राजाजी पार्क में 3.5 हैक्टयर)
वहीं, हिमाचल की ही भांति उत्तराखंड में भी जल-जंगल-जमीन बचाने के लिए लम्बे समय से सख्त भूमि कानून की मांग की जा रही है।

प्रदेश में जमीन की खरीद-फरोख्त पर नियंत्रण की पैरवी भू-कानून समिति भी कर चुकी है। जमीन खरीद-फरोख्त बड़े पैमाने पर होने से प्रदेश की कानून व्यवस्था और शांति के लिए चुनौतीपूर्ण स्थितियां बन रही हैं।
संस्कृति का विनाश
इन सभी कारकों ने उत्तराखंड की संस्कृति को प्रभावित किया है। उत्तराखंड को देवभूमि कहा जाता है।


स्थानीय लोग मानते हैं कि यहाँ के कण-कण में देवी-देवताओं का वास है। स्थानीय लोगों की आस्था की परिधि में यहाँ के पेड़-पत्थर, वन-नदियाँ, जीव जंतु सभी आते हैं इसलिए यहाँ भगवान की पूजा भी अलग-अलग रूप में की जाती हैं। ग्राम्य देव, स्थान देव, क्षेत्रपाल देवों की उपस्थिति में अगर यहाँ की भूमि पर अवैध मजार या मस्जिद जैसे निर्माण किये जाएंगे तो निश्चित ही मूल निवासियों की आस्था पर कुठाराघात होगा।
उत्तराखंड में ‘मेला-थौला’ (स्थानीय भाषा में पर्व त्योहारों पर किये जाने वाले आयोजन) का रीति रिवाज़ अधिक देखा जाता है लेकिन अब जिस प्रकार तेजी से मुस्लिम जनसँख्या बढ़ रही है। यह आयोजन अब सीमित हो गए हैं। इन आयोजनों के लिए भी पुलिस-प्रशासन से अनुमति लेनी पड़ती है और प्रशासन की ओर से भी बदलती डेमोग्राफी को देखकर ही अनुमति पर विचार किया जाता है।

सभी को विदित है कि उत्तराखण्ड में चार-धामों सहित यहाँ कई प्राचीन मंदिर एवं तपस्थली हैं। रोजगार एवं पर्यटन के लिए कई मुस्लिम चारधामों में पहुंच रहे हैं। हम किसी के खान-पान को सीमित नहीं कर सकते लेकिन प्रशासन की ओर से गो-हत्या पर रोक लगाने के बावजूद देश में कई बार बीफ खाने के मामले आपने देखे हैं। ऐसे में चारधाम यात्रा के पड़ावों में मुस्लिम समुदाय की उपस्थिति से यहाँ की पवित्रता नष्ट हो रही है।
उत्तराखंड की अपनी क्षेत्रीय पहचान, भाषाई संस्कृति और अपने परिधान, इन सभी के अस्तित्व पर अब खतरा मंडरा रहा है। ऐसे में अब वक़्त आ गया है कि उत्तराखण्ड को पुरोला की तर्ज़ पर ही एकजुट होकर इन सभी समस्याओं के समाधान की ओर देखना चाहिए।
लेकिन फिर एक प्रश्न सामने आता है उत्तर-पूर्व के राज्यों की तरह उत्तराखंड भी पहाड़ी राज्य है। उत्तर-पूर्व के स्थानीय लोगों की ओर से ऐसी घटनाओं पर जब बंद या हिंसा के रूप में प्रतिक्रिया दी जाती है तो देश का बुद्धिजीवी वर्ग उसे स्थानीय लोगों का अधिकार मानता है। पर उत्तराखंड में जब ऐसी ही प्रतिक्रिया व्यक्त की जाती है तब उत्तराखण्ड के लोगों का विरोध किया जाता है।
ऐसा क्यों? क्या इसलिए कि उत्तर पूर्व के राज्यों में ईसाई धर्म के मानने वाले रहते हैं और उत्तराखण्ड में हिंदू धर्म के मानने वाले?