जोशीमठ में आपदा आई है देशभर को ज्ञात है, इसके क्या क्या कारण हो सकते हैं इसकी जानकारी भी सबको है। सरकारें अपना कार्य कर रही हैं। अपेक्षानुसार सहायता न मिलने पर या समय रहते विस्थापन संबंधी फ़ैसले ना लेने के लिए या स्थानीय लोगों की माँग के लिए सरकार का विरोध भी जरुरी है, लेकिन अचानक से ही खबरें आ रही हैं कि ‘पूरा उत्तराखंड दरक रहा है’।
क्या सच में पूरा उत्तराखंड दरक रहा है ?
पहले खबर आती है कि कर्णप्रयाग में दरारें आ रही हैं
फिर एकाएक मसूरी की तस्वीरें भी सामने आती हैं, इसके बाद बताया जाता है कि रुद्रप्रयाग में रेलवे प्रोजेक्ट के कारण अनेक घर बर्बाद हो गए। फिर टिहरी, पौड़ी, उत्तरकाशी और बागेश्वर भी दरकते मकानों को लेकर ख़बरों में आ जाते हैं।
दरअसल उत्तराखंड में एक डर का माहौल बनाया जा रहा है
यह शुरू होता है जोशीमठ से। जोशीमठ में आंदोलन कर रही है जोशीमठ संघर्ष समिति, जिसके एक पदाधिकारी हैं कॉमरेड अतुल सती।
जोशीमठ में सती लोगों के हकों के लिए लड़ने का प्रयास कर रहे हैं लेकिन उनकी भूमिका तब संदिग्ध नज़र आती है जब आंदोलन के जरिये वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ माहौल तैयार करते दिखते हैं।
रेड एफएम के साथ बातचीत में वह यह कहते सुने जा सकते हैं कि “धर्म के नाम पर आयी इस मोदी सरकार ने तीर्थस्थल बर्बाद कर दिए हैं।”
हालाँकि महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि वर्ष 2013 की केदारनाथ आपदा के बाद पुनर्निर्माण कार्यों पर केंद्र सरकार ने विशेष ध्यान दिया है।
एक्टिविज्म के नाम पर एजेंडा करने वाले लोगों ने जोशीमठ में अड्डा लगा दिया है। दरअसल, अतुल सती स्वयं को एक्टिविस्ट बताते हैं लेकिन वह भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) माले के सदस्य हैं।
वर्ष 2007 में अतुल सती इसी कम्युनिस्ट पार्टी के टिकट पर उत्तराखंड विधानसभा चुनाव भी लड़ चुके हैं जिसमें उन्हें 366 वोट हासिल हुए थे
पिछले वर्ष हुए विधानसभा चुनाव में अतुल सती कम्युनिस्ट पार्टी से टिकट की मांग कर रहे थे लेकिन उन्हें टिकट नहीं मिल पाया इसके बाद उन्होंने अन्य प्रत्याशियों के लिए काफी प्रचार प्रसार किया।
स्थानीय सूत्रों का कहना है कि सती आगामी जोशीमठ नगर पालिका चुनावों हेतु भी दावेदारी कर रहे हैं।
इस बीच उनके कुछ पुराने पोस्ट वायरल हो रहे हैं जहाँ कोरोना महामारी के बीच वह एक प्रोपगैंडिस्ट की भूमिका में नज़र आ रहे हैं।वहीं कई पोस्ट में उन्होंने वन्दे मातरम एक्सप्रेस की दुर्घटना पर मजाक भी उड़ाया है
उत्तराखंड में डर के माहौल को बनाने का ‘स्टेप-2’
जोशीमठ आपदा को जोड़ा गया आल वेदर रोड़ एवं ऋषिकेश कर्णप्रयाग रेलवे प्रोजेक्ट से। रणनीति तय की जाती है कि किसान आंदोलन की तरह उत्तराखंड में भी कैसे लोगों को उनकी बेहतरी के लिए किए जाने वाले विकास कार्यों के खिलाफ भड़काया जाए (स्क्रीनशॉट कविता उपाध्याय नामक कथित पत्रकार के सोशल मीडिया हैंडल ट्विटर से लिया गया है)
निष्कर्ष यह निकलता है कि यहाँ इकोसिस्टम के समर्थन की कमी है। अब तैयार किया जाता है पूरा गैंग जिसमें होते हैं कॉमरेड, एक्टिविस्ट, कथित पत्रकार, और कुछ देहरादून-दिल्ली के पर्यावरणविद।
फिर लेख छापे जाते हैं, इंटरव्यूज लिए जाते हैं, बस टीवी में स्क्रीन काली नहीं होती है क्योंकि अब उत्तराखंड एनडीटीवी नहीं बल्कि यूट्यूब से दरक रहा है।
रवीश कुमार के NDTV से इस्तीफे पर लोग भावुक क्यों हैं?
अब आते हैं लेख लिखने वालों पर, इसमें भी गैंग के सदस्यों को ही निमंत्रण दिया गया। कविता उपाध्याय इस कहानी का दूसरा किरदार हैं जिनका जोशीमठ आपदा पर एक लेख छपता है समाचार पोर्टल इंडिया टुडे पर।
इस लेख में भी वह उल्लेख करती हैं अपने ही गैंग के साथी कॉमरेड सती का और अपने एजेंडा का। अक्सर यही कविता उपाध्याय ट्विटर पर ‘भाजपा और भक्त’ शब्दों के इस्तेमाल कर लोगों को ट्रोल करती नज़र आती हैं।
ज्ञात हो कि कविता हल्द्वानी के अतिक्रमण में भी भाजपा की राजनीति को ही जिम्मेदार बताती हैं और जोशीमठ में भी लेकिन हल्द्वानी और जोशीमठ दोनों सीटों पर काबिज कांग्रेस विधायकों के लिए एक शब्द नहीं लिखती हैं।
हल्द्वानी अतिक्रमण: जानिए सरकारी जमीन से जुड़े तमाम सच्चे-झूठे दावों की हकीकत
खैर, इसके बाद सोशल मीडिया में तैरने लगते हैं ऐसे लेख जो पूरी चारधाम रोड़ पर ही सवालिया निशान लगा रहे हैं।
इस प्रगतिशील गैंग के पत्रकारों को खाद पानी दिया जाता है देहरादून के कथित पर्यावरणविदों द्वारा
इस मीटिंग में कविता उपाध्याय एवं अनूप नौटियाल के बीच क्या वार्तालाप हुई होगी यह कहना मुश्किल है लेकिन अब अनूप नौटियाल के ट्वीट्स में यह रणनीति कुछ हद तक स्पष्ट हो रही है।
एक ट्वीटर अकाउंट मनोज मिश्रा से बातचीत करते हुए वह उत्तराखंड में रोड़ का विरोध करते हुए देखे जा सकते हैं।
ज्ञात हो कि अनूप नौटियाल आम आदमी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ चुके हैं, मनोज मिश्रा भी स्वघोषित पर्यावरणविद हैं जो देहरादून में रहकर ऑल वेदर रोड़ का विरोध कर रहे हैं।
इन सभी लोगों के एजेंडा को अप्रत्यक्ष रूप से पोषित कर रहे हैं संत अविमुक्तेश्वरानन्द सरस्वती, जिनका मानना है कि सरकार के इस विकास से उत्तराखंड को नुकसान पहुँच रहा है।
ज्ञात हो कि यह वही संत हैं जिन्होंने वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ वाराणसी सीट पर अपना प्रत्याशी उतारा था। वर्तमान में इनका दावा बद्रिकाश्रम पीठ के शंकराचार्य पद पर है और यह मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है।
सवाल यह है कि उत्तराखंड की अस्थाई राजधानी देहरादून में बड़ी बड़ी सड़कों पर बड़े बड़े घरों में रहने वाले सभी कथित पर्यावरणविद, भू वैज्ञानिक, बारों मास स्वयं को कथित पत्रकार कहने वाले सभी लोग साथ कैसे आ गये हैं?
इन सबका साथ आना संयोग नहीं बल्कि एक प्रयोग है और इन सभी धाराओं का उद्गम स्थल एक ही है।
मोदी विरोध में मिशन 2024?
यह जानकारी सभी को है कि प्रधानमंत्री मोदी ने उत्तराखंड में विशेष रूचि दिखाते हुए यहां के विकास पर विशेष ध्यान केंद्रित किया और चारधाम परियोजना के तहत दो बड़ी योजनाएं उत्तराखंड के हिस्से में आयी।
पहली योजना, वर्षों से लंबित ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेलवे प्रोजेक्ट:
वर्ष 1996 में सतपाल महाराज गढ़वाल संसदीय सीट से पहली बार सांसद चुने गए थे। तब महाराज को रेल राज्यमंत्री का दायित्व मिला था। उस समय महाराज ने पर्वतीय क्षेत्र के लोगों को ऋषिकेश से कर्णप्रयाग तक रेल पहुंचाने का सपना दिखाया था।
इसके लिए बकायदा ऋषिकेश में शिलान्यास भी किया गया। लेकिन दो साल बाद सरकार गिरने के कारण यह मामला ठंडे बस्ते में चला गया।
2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस से महाराज ने फिर ऋषिकेश से कर्णप्रयाग रेलवे मार्ग बनाने का मुद्दा भुनाकर जीत हासिल की।
नौ नवंबर 2011 में गौचर खेल मैदान में रेलवे लाइन शिलान्यास का भव्य कार्यक्रम आयोजित किया गया और इसके बाद प्रस्तावित ट्रैक पर विभिन्न कंपनियों की तरफ से सर्वेक्षण कार्य भी किया गया।
इतने वर्षों से सिर्फ चुनावी मुद्दे के तौर पर भुनाए जा रहे मामले को धरातल पर उतारा गया केंद्र की मोदी सरकार द्वारा
क्या यह संम्भव है कि जिस पहाड़ी क्षेत्र के लोग इस मुद्दे पर वोट देकर प्रत्याशी को जिता रहे थे वह इसका विरोध करेंगे? और विरोध करना ही था तो यह विरोध 20 साल पहले इस प्रोजेक्ट की शुरुआत के साथ से ही शुरू हो जाता।
ठीक ऐसा ही देखा गया उत्तराखंड को मिले दूसरे प्रोजेक्ट ऑल वेदर रोड़ के मामले में
सर्वे हुआ, विस्थापन हुआ और प्रभावित लोगों को मुआवजा भी मिला।
अब क्षेत्र के लोग इस रोड़ से खुश भी हैं। वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में भारी मात्रा में मिले वोट इस बात का समर्थन करते हैं।
इस रोड़ के सहारे ही 1 पूरे दिन का समय लेने वाली यात्रा अब 5 घंटों में तय हो रही है। जिस रफ़्तार से दिल्ली से पत्रकार जोशीमठ पहुंच रहे हैं यह ऑल वेदर रोड़ की वजह से ही सम्भव हुआ है। तो फिर अचानक इस विकास का विरोध कहाँ से उत्पन्न हुआ?
पर्वतीय राज्यों के विकास पर मोदी सरकार का ध्यान देना कोई नई बात नहीं है। पिछले कुछ वर्षों में पूर्वोत्तर के राज्यों में भी मोदी सरकार ने विकास के नए आयाम छुए हैं यह किसी से छुपा नहीं है।
राहुल गाँधी की भारत जोड़ो यात्रा पर्वतीय राज्यों से हो कर नहीं गुजरी है। इन पर्वतीय राज्यों में लोकसभा की कुल 40 सीटें हैं। ऐसे में यह ‘डर का माहौल’ विपक्षी दलों के काम ज़रूर आ सकता है। लाखों करोड़ रूपये के प्रोजेक्ट वहां भी निर्माणाधीन हैं।
ऐसे में इस बात की पूरी संभावना है कि उत्तराखंड में विकास को विनाश का नाम देकर इसके तार अन्य पर्वतीय राज्यों से जोड़े जाएंगे
जानकारी हो कि इसी वर्ष 2023 में त्रिपुरा, मेघालय, नागालैंड और मिजोरम में विधानसभा चुनाव प्रस्तावित हैं। इस मुद्दे को भुनाने की तैयारी इन चुनावों भी की जाएगी।
लेकिन चुनावी फायदे से इतर उत्तराखण्ड में यह डर का माहौल उत्तराखंड के लिए ही नुकसानदायक साबित होगा।
इस माहौल से उत्तराखण्ड को कैसे होगा नुकसान
उत्तराखंड एक पर्यटन प्रमुख राज्य है जिसकी आर्थिक स्थिति कुछ खास अच्छी नहीं है और राज्य में राजस्व के स्रोत भी सीमित हैं जिसमें पर्यटन एक मुख्य भूमिका निभाता है
‘द हिन्दू’ की एक रिपोर्ट बताती है कि उत्तराखंड में चारधाम यात्रा से हर साल 7,500 करोड़ की कमाई होती है। साल 2022 की चारधाम यात्रा में घोड़े और खच्चर वालों ने ही 100 करोड़ से ज्यादा कमाई कर ली।
राज्य में वर्ष 2022 में 40 लाख से अधिक लोगों ने चारधाम यात्रा में भाग लिया है।
फाइनेंसियल एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट कहती है कि महिला स्वयं सहायता समूहों ने केदारनाथ में 43 लाख से ज्यादा की कमाई प्रसाद के माध्यम से की
वहीं सरकार को भी इससे बड़े स्तर पर राजस्व मिलता है, उत्तराखंड में गढ़वाल मंडल विकास निगम ने इस यात्रा के दौरान 40 करोड़ से ज्यादा की कमाई की।
जिन जिलों में यह चारधाम पड़ते हैं, यानी रुद्रप्रयाग और उत्तरकाशी और चमोली, यह जिले उत्तराखंड के सभी जिलों में काफी कम प्रति व्यक्ति कमाई वाले जिले हैं, क्योंकि यह इलाके दूरदराज के हैं और टूरिज्म के अलावा और कोई कमाई नहीं है।
उत्तराखंड में पलायन का अध्ययन करने के लिए बनाई गई समिति की 2018 की रिपोर्ट में कहा गया है कि उत्तरकाशी की प्रति व्यक्ति औसत कमाई मात्र 89,190 रुपए है और रूद्रप्रयाग में प्रति व्यक्ति कमाई 83,521 रुपए है ऐसे में कोई नए विकास के प्रोजेक्ट ना होने से इन इलाकों में रहने वाले लोग अपने आप ही पलायन को मजबूर होंगें।
एक ओर ध्यान देने वाली बात यह है कि जब से इन क्षेत्रों में सड़कों और आधारभूत इन्फ्रा का विकास हुआ है तभी से इन जिलों में आय का स्तर यहाँ तक भी पंहुचा है, वरना साल 2012 में उत्तरकाशी की प्रति व्यक्ति औसत कमाई मात्र 42,079 रुपए सालाना थी, इसी तरह रूद्रप्रयाग की भी 47459 रुपए थी।
वहीं देहरादून में लेख, वीडियो इंटरव्यू के माध्यम से एक्टिविज्म की ढपली बजाने वालों की औसत प्रति व्यक्ति कमाई 2.15 लाख रुपए से भी अधिक है।
वर्तमान में मुद्दा सिर्फ उचित विस्थापन होना चाहिए, जोशीमठ के जरिये उत्तराखंड को असुरक्षित घोषित करने वालों को सोचना चाहिए कि उनके इस एजेंडा से उन लोगों की आवाज़ दब जाती है जिन्हें असल में सुना जाना चाहिए।
पहाड़ के लोगों की भावनाओं की दलाली करने वालों लोगों को यह संदेश आवश्यक है कि ‘सतत विकास’ पर बात करें, लेकिन उत्तराखंड की लाइफलाइन को काटकर नहीं। पहले ही राज्य में पलायन के चलते इतने गांव खाली हो चुके हैं क्या आप इस डर के माहौल से और गाँवों की आर्थिकी ख़राब करना चाहते हैं ?
एक उत्तराखण्ड के नागरिक की ही यह विनती है कि उत्तराखंड को असुरक्षित दिखाने का माहौल ना बनाएं।