उत्तर-प्रदेश में 20 नवंबर को 9 सीटों पर विधानसभा उपचुनाव के लिए मतदान होना है। इन 9 सीटों में से एक सीट Karhal की है। करहल को समाजवादी पार्टी का राजनीतिक गढ़ माना जाता है, लेकिन इस बार अखिलेश यादव अपने ही गढ़ में घिरे दिखाई दे रहे हैं।
राजनीतिक पंडितों का मानना है कि अगर चुनावी समीकरण के अनुसार वोटिंग हो गई तो समाजवादी पार्टी करहल का उपचुनाव हार भी सकती है और अगर ऐसा हुआ तो ये अखिलेश यादव के लिए बड़ा झटका होगा। आइए, समझते हैं कि करहल में भाजपा कैसे समाजवादी पार्टी को कड़ी टक्कर देती दिखाई दे रही है।
Karhal विधानसभा क्षेत्र मैनपुरी संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत पड़ता है। मैनपुरी समाजवादी पार्टी का राजनीतिक गढ़ कहा जाता है और करहल को तो अभेद किला माना जाता है।
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2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव करहल से विधायक चुने गए थे, लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव में वे कन्नौज से संसदीय चुनाव लड़े और जीते, ऐसे में करहल विधानसभा सीट खाली हो गई। इसलिए अब वहां उपचुनाव हो रहा है।
उपचुनाव के लिए अखिलेश ने अपने भतीजे तेजप्रताप यादव को यहाँ से टिकट दिया है। तेजप्रताप के काउंटर में भाजपा ने अनुजेश यादव को मैदान में उतारा है।
अनुजेश यादव के आने से मुकाबला टक्कर हो गया। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि अनुजेश यादव भी अखिलेश यादव के परिवार के ही हैं। दरअसल, अनुजेश मुलायम सिंह यादव के छोटे भाई अभयराम यादव के दामाद हैं। ऐसे में दोनों प्रत्याशी मुलायम के परिवार के हैं। इसलिए यादव बाहुल्य इस सीट पर वोटों का बंटना तय है।
Karhal सीट पर कड़ी टक्कर के पीछे एक फैक्टर ये भी है कि चुनाव जाति से आगे निकलकर उपजाति के आस-पास सिमटता दिखाई दे रहा है।
दरअसल, करहल सीट यादव बाहुल्य सीट है। यही कारण है कि यहाँ लंबे समय से मुलायम परिवार चुनाव जीतता आ रहा है लेकिन इस बार दोनों प्रत्याशी यादव हैं और दोनों मुलायम परिवार के हैं।
ऐसे में मतदाताओं के बीच जाति के बजाय उपजाति फैक्टर बनता दिखाई दे रहा है। मजे कि बात ये है कि उपजाति का फैक्टर अनुजेश यादव के पक्ष में जाता है।
इसके पीछे कारण ये है कि अनुजेश यादव घोषी यादव हैं जबकि तेजप्रताप यादव कमरिया यादव हैं। आंकड़ों को अगर देखें तो करहल विधानसभा सीट पर लगभग सवा लाख यादव मतदाताओं में से 65 प्रतिशत घोषी यादव हैं और लगभग 35 प्रतिशत कमरिया यादव हैं। ऐसे में अगर घोषी यादवों ने उपचुनाव के अनुसार वोटिंग की तो अनुजेश यादव के पक्ष में पलड़ा झुक सकता है।
सिर्फ इतना ही नहीं एक और बड़ा फैक्टर है जिसके कारण अखिलेश यादव को उनके गढ़ में ही या फिर कह सकते हैं कि उनके घर में ही चुनावी हार का डर सता रहा है।
दरअसल, करहल विधानसभा सीट पर यादव के बाद सबसे बड़ी संख्या शाक्य मतदाताओं की है। क्षेत्र के शाक्य मतदाताओं को पारंपरिक तौर पर समाजवादी पार्टी का मतदाता माना जाता है, लेकिन इस बार बहन मायावती ने भी अपना एक उम्मीदवार करहल में उतारा है। बीएसपी ने अवनीश शाक्य को करहल से टिकट दिया है। इसका अर्थ ये है कि सपा के शाक्य मतदाताओं का बंटना भी तय है।
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इन सभी समीकरणों के आधार पर राजनीतिक पंडित कहते हैं कि पहली बार करहल को लेकर अखिलेश यादव चिंतित दिखाई दे रहे हैं। पहली बार करहल में समाजवादी पार्टी को दिन-रात चुनावी प्रचार करना पड़ा है। शिवपाल यादव और डिंपल यादव ने पहली बार करहल में इतने लंबे समय तक और इतना आक्रामक चुनाव प्रचार किया है।
इस आधार पर एक बात कही जा सकती है कि Karhal में भाजपा जीतेगी या नहीं ये तो नतीजों के दिन पता चलेगा लेकिन भाजपा ने करहल में इस बार समाजवादी पार्टी को कड़ी टक्कर दी है इसमें कोई संशय नहीं है।
अखिलेश जिसे अपना घर कहते हैं, जिसे अपना गढ़ कहते हैं, वहाँ उपचुनाव में ऐसी टक्कर मिल सकती है, इसकी उन्होंने शायद कल्पना भी नहीं की होगी।