यूक्रेन-रूस संघर्ष को 24 फरवरी, 2023 को एक वर्ष पूरा हो गया है। इस बीच पश्चिमी देश लगातार अंतरराष्ट्रीय मंचों पर रूस की घेराबंदी करने में लगे हुए हैं। हालाँकि भारत अभी अपने रुख पर अडिग है। संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) में रूस के खिलाफ लाए गए एक प्रस्ताव पर वोटिंग से भारत ने खुद को अलग कर लिया है।
भारत के अतिरिक्त चीन, किर्गिस्तान, अंगोला समेत 32 देशों ने भी खुद को वोटिंग से अलग रखा है। संयुक्त राष्ट्र महासभा में भारतीय समयानुसार रात्रि 1:30 बजे पश्चिमी देशों द्वारा रूस के खिलाफ यह प्रस्ताव लाया गया था। इसके समर्थन में 141 देशों ने वोट दिया है, वहीँ 7 देशों ने इसके विरोध में वोट दिया है।
ध्यान देने वाली वाली बात है कि दक्षिण एशिया के भी कई राष्ट्रों ने इस वोटिंग से खुद को अलग कर लिया। भारत के अतिरिक्त पाकिस्तान, श्रीलंका और बांग्लादेश ने भी इस प्रस्ताव पर वोटिंग से खुद को अलग कर लिया है। वहीं म्यांमार, भूटान और नेपाल आदि ने इसके समर्थन में वोट किया है। यह प्रस्ताव दो तिहाई बहुमत से पास भी हो गया है।
चीन ने इस बीच पश्चिमी देशों से रुस पर लगाए गए प्रतिबंध को समाप्त कर ने की अपील की है। इसके अलावा, 12 पॉइंट का एक शांति प्रस्ताव भी चीन ने जारी किया है जिसमें चीन द्वारा रूस-यूक्रेन के बीच सीजफायर की अपील की गई है।
रूस और यूक्रेन के बीच 24 फरवरी, 2022 को संघर्ष चालू हुआ था, तभी से दोनों देश लगातार इसमें उलझे हुए हैं। वर्तमान में समस्त यूरोप से ले कर ऑस्ट्रेलिया तक ‘यूक्रेन में हिंसा’ के ख़िलाफ़ प्रदर्शन हो रहे हैं। भारत शुरुआत से ही दोनों देशों के बीच शान्ति की अपील करता आया है। भारत ने लगातार कहा है कि वह बातचीत के माध्यम से दोनों देशों के मामलों के निपटारा चाहता है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले साल उज्बेकिस्तान के समरकंद में हुई SCO की मीटिंग के बाद रुस के राष्ट्रपति पुतिन से कहा था, “आज का दौर युद्ध का नहीं है।”
प्रधानमंत्री मोदी के इस बयान के जवाब में पुतिन ने कहा था, “मैं यूक्रेन से जंग पर आपकी स्थिति और चिंताओं को जानता है। मैं भी चाहता हूँ कि ये सिलसिला जल्द से जल्द रुके।”
भारत ने इससे पूर्व भी रूस के खिलाफ लाए गए प्रस्तावों की वोटिंग में हिस्सा लेने से खुद को दूर रखा है। भारत की संयुक्त राष्ट्र में स्थायी राजदूत रुचिरा कम्बोज ने वोटिंग में हिस्सा ना लेने पर भारत का पक्ष रखा है।
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कम्बोज ने कहा, “भारत, यूक्रेन-रूस गतिरोध पर चिंतित है। इस संघर्ष के कारण अनगिनत लोग मारे गए हैं और लाखों बेघर हुए हैं।”
उन्होंने आगे कहा, “इस संघर्ष को एक वर्ष होने वाला है, इस मौके पर हमें अपने आप से कुछ प्रश्न पूछने चाहिए। क्या हम ऐसे किसी समझौते के नजदीक भी है जो दोनों देशों को मान्य हो?”
कम्बोज ने संयुक्त राष्ट्र व्यवस्था की प्रासंगिकता पर भी प्रश्न उठाए। उन्होंने कहा, “क्या 1945 की स्थितियों पर आधारित संयुक्त राष्ट्र की व्यवस्था आज की समस्याओं के निपटारे में असफल नहीं रही है?”
UN में रूस के राजदूत दमित्री पोलांस्की ने इस प्रस्ताव को फालतू बताते हुए नकार दिया है। पोलांस्की ने ट्वीट कर कहा कि यह प्रस्ताव शांति नहीं लाएगा, बल्कि इससे जंग भड़काने वालों को हौसला मिलेगा।