लगातार पिछले 9 महीनों से जारी यूक्रेन-रूस युद्ध फिर से तेज हो गया है। अपने नागरिकों को सुरक्षित रखने के लिए भारतीय विदेश मंत्रालय लगातार यूक्रेन छोड़ने की सलाह जारी कर रहे हैं। ऐसी ही एक सलाह इसी सप्ताह 25 अक्टूबर को भारत के यूक्रेन स्थित दूतावास ने पुनः जारी की। 10 दिनों के भीतर जारी की जाने वाली यह तीसरी ऐसी सलाह है जिसमें यथाशीघ्र यूक्रेन छोड़ने का अनुरोध किया गया है।
भारत पहले ही अपने अधिकतर नागरिकों को युद्ध के शुरुआती दिनों में ही यूक्रेन से वन्दे भारत मिशन के तहत वापस ला चुका था, लेकिन उसके बाद कुछ नागरिक वापस यूक्रेन जा पहुँचे।
विदेश मंत्रालय के सामने समस्या यूक्रेन में मेडिकल की पढ़ाई करने वाले छात्रों के जिद पर अड़ने से हुई है जो किसी भी स्थिति में यूक्रेन छोड़ने को राजी नहीं है। ऐसी खबरें भी हैं कि कुछ छात्र तो भारत वापस आने के बाद वापस संकटग्रस्त यूक्रेन में दूसरे रास्तों से जा पहुँचे हैं।
कितने छात्र आए, कितने बाकी?
युद्ध के शुरूआती दिनों में वन्दे भारत अभियान के दौरान लोकसभा में विदेश मंत्रालय द्वारा दिए गए एक प्रश्न के उत्तर में बताया गया था कि लड़ाई छिड़ने के बाद से लगभग 22,500 भारतीय नागरिकों को वापस देश लाया गया था। एक अन्य उत्तर के अनुसार, इनमें से 20,000 से अधिक छात्र हैं जो मेडिकल की पढ़ाई कर रह थे।
वहीं, अंग्रेज़ी समाचार पत्र ‘इन्डियन एक्सप्रेस’ की एक रिपोर्ट के अनुसार, इन छात्रों में से कई छात्र ऐसे हैं जो वैकल्पिक रास्तों से यूक्रेन में वापस जा चुके हैं या उन्होंने यूक्रेन छोड़ा ही नहीं था। रिपोर्ट के अनुसार, इनकी संख्या 1,000 के आसपास है।
समाचार पत्र इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट के अनुसार, इन छात्रों की संख्या 1,500 तक है, जिनमें से 300 एक ही कॉलेज में अभी तक आए हैं। इन छात्रों ने यूक्रेन वापस जाने के लिए संभवतः पड़ोसी देशों जैसे कि पोलैंड एवं हंगरी आदि का सहारा लिया होगा।
सितम्बर माह के बाद से इन छात्रों की यूक्रेन वापसी में तेजी आई है। 1,000 से अधिक छात्रों का यूक्रेन जैसे संकटग्रस्त देश में बिना अपनी जान की परवाह किए मौजूद होना सरकार के लिए चिंता का विषय है क्योंकि लड़ाई के और तेज होने की संभावना है और ऐसी स्थिति में इन छात्रों के परिजन पुनः सरकार से यह माँग करेंगें कि उन्हें वापस लाया जाए।
क्यों वापस यूक्रेन जा रहे छात्र?
भारत में महँगी मेडिकल की पढ़ाई ना कर पाने के कारण यूक्रेन और रूस जैसे देशों में मेडिकल की पढ़ाई करके अपना करियर संवारने की सोच रखने वाले यह छात्र लड़ाई छिड़ने के बाद भारत वापस आ गए थे। करियर को लेकर चिंता, भविष्य का डर और अभी तक पढ़ाई में लगे पैसे तथा मेहनत का दबाव इन्हें वापस जाने को मजबूर कर रहा है।
इसके पीछे एक और वजह यह है कि केंद्र सरकार ने इन छात्रों को देश के अंदर मेडिकल कालेजों में दाखिला देने में असमर्थता जताई है, सितम्बर माह में सुप्रीम कोर्ट में दाखिल एक जवाब में केंद्र सरकार ने बताया कि वह इन छात्रों को भारत के मेडिकल कॉलेजों में दाखिल नहीं दे सकते।
इसके पीछे सरकार ने नेशनल मेडिकल कमिशन एक्ट नाम के कानून का हवाला दिया और कहा कि इसमें ऐसा कोई प्रावधान नहीं है। साथ ही, केंद्र सरकार ने यह भी कहा कि इनमें से अधिकतर छात्र भारत छोड़कर यूक्रेन में पढ़ाई करने इसलिए गए थे क्योंकि देश में मेडिकल कालेजों में दाखिले के लिए आयोजित होने वाली परीक्षा ‘नीट’ में उनके कम अंक थे और साथ ही वह विदेश जाकर पढ़ाई कर सकने में सक्षम थे।
कई बार जारी हो चुकी सलाह, छात्र जिद पर अड़े
भारत का विदेश मंत्रालय छात्रों और नागरिकों की सुरक्षा के मामले में कोई भी कोताही नहीं बरतना चाहता। यही कारण है कि मंत्रालय की ओर से लड़ाई छिड़ने के पहले से ही अपने नागरिकों को यूक्रेन छोड़ने की सलाह देना आरंभ कर दिया था। साथ ही, आने जाने में कोई परेशानी न हो, इसके लिए बड़े स्तर पर राहत अभियान चलाकर इन छात्रों को वापस लाया गया था।
ज्ञात हो कि फरवरी माह में रूस यूक्रेन के मध्य हालत बिगड़ने के बाद से ही सबसे पहली सलाह यूक्रेन स्थित भारतीय दूतावास ने 15 फरवरी, 2022 को जारी की थी। इसमें कहा गया था कि यथा संभव और यथा शीघ्र भारतीय नागरिक जिनका यूक्रेन में रहना जरुरी नहीं है, यूक्रेन छोड़ दें।
इसके पश्चात 20 फरवरी को भी एक ऐसी ही सलाह जारी की गई थी और विशेष उड़ानों का इन्तजाम किया गया था। 24 फरवरी को यूक्रेन के सुरक्षित हिस्से में जाने की सलाह भी दूतावास ने दी थी। इस प्रकार देखा जाए तो यूक्रेन की राजधानी कीव स्थित भारतीय दूतावास फरवरी माह से अब तक लगभग 13 ऐसी ही सलाहें जारी कर चुका है।
यूक्रेन में भारतीय दूतावस ने 10 अक्टूबर, 19 अक्टूबर और 25 अक्टूबर को यूक्रेन छोड़ने और दूतावास से सम्पर्क में रहने के साथ ही अपनी स्थिति अवगत कराने की सलाह दे चुका है। दूतावास के लगातार कहने के बाद भी कई छात्र या तो यूक्रेन में रुके हुए हैं या फिर पड़ोसी देशों में अस्थाई वीजा लेकर ऑनलाइन पढ़ाई कर रहे हैं।
एक रिपोर्ट के अनुसार, कुछ छात्रों ने कहा कि वह किसी भी तरह अपनी डिग्री पूरी करना चाहते हैं। रिपोर्ट में बताया गया है कि छात्र पड़ोसी देश हंगरी का 30 दिवसीय वीजा लेकर वहाँ ऑनलाइन पढ़ाई कर रहे हैं और किसी भी तरह वापस यूक्रेन जाने के चक्कर में हैं।
फरवरी महीने में युद्ध के शुरुआती दिनों में विदेश मंत्रालय द्वारा जारी विज्ञप्तियों को छात्रों द्वारा अनसुना करने का परिणाम यह हुआ कि सरकार को वन्दे भारत जैसा अभियान चलाना पड़ा और कई देशों की मदद लेकर छात्रों और अन्य भारतीयों को निकलना पड़ा।
इसका एक परिणाम यह भी हुआ कि विपक्ष द्वारा सरकार पर यह आरोप लगाया गया कि सरकार ने छात्रों के लिए सलाह समय पर जारी नहीं की और इसी परिणामस्वरूप छात्रों को यूक्रेन में बहुत कष्ट का सामना करना पड़ा। लगभग वैसी ही स्थिति का निर्माण फिर से हो गया है और समस्या के राजनीतिकरण का भी।