हिंदू विरोध में नफरती भाषणों में तेजी आई है और साम्प्रदायिकता में बढ़ोतरी साफ दिखाई दे रही है। इन बयानों की आड़ में विपक्षी दल ब्राह्मणों के संपूर्ण नाश के आह्वान से आज हिंदू धर्म के संपूर्ण नाश की मांग तक पहुँच गए हैं। समस्या है इस आने वाली प्रतिक्रियाओं को लेकर। राजनीतिक दलों के समर्थकों और नेताओं द्वारा ऐसे वक्तव्यों को नफरती नहीं कहा जाता। न ही इसे साम्प्रदायिक माना जाता है क्योंकि हिंदू धर्म के संबंध में अपमान और हेट स्पीच की परिभाषा बदल दी जाती है। नफरती भाषण पर रोक लगाने के एक मामले में डीएमके नेताओं द्वारा ब्राह्मणों को मारने की अपील की चर्चा पर कोर्ट में न्यायमूर्ति जोसेफ का मुस्कुराना अगर आपको याद है तो इस मुस्कुराहट का सामाजिक न्याय पर असर भी आपको समझना आसान हो जाएगा।
राज्य सरकारों को हेट स्पीच पर कार्रवाई करने के लिए कहने वाले जस्टिस जोसेफ उदयनिधि स्टालिन के बयान पर किस प्रकार कार्रवाई करेंगे यह उनकी मुस्कुराहट में छिपा है। ब्राह्मणों के नरसंहार के आह्वान पर जस्टिस जोसेफ का मुस्कुराना और उदयानिधि स्टालिन द्वारा संपूर्ण हिंदू वर्ग को बीमारी बताकर खत्म करने की अपील करना इस बात का प्रमाण है कि हिंदू धर्म को मानने वालों के लिए संवैधानिक पद पर बैठा व्यक्ति भी खतरनाक है इसलिए जिससे न्याय की उम्मीद की जा सकती है, उससे भी निराशा ही मिलेगी।
उदयानिधि स्टालिन के बयान को मात्र हिंदू विरोधी बता देना इसका सामान्यीकरण करना है। हिंदू धर्म की समाप्ति को जाति व्यवस्था और समानता के सिद्धांत से जोड़ने का काम वो ही नेता कर सकते हैं जो हिंदू को राजनीतिक उद्देश्यों के लिए आतंकवाद, नफरत और धोखे के साथ जोड़ते हैं। डीएमके नेता द्वारा अपने नफरती भाषण में हिंदू धर्म के खात्मे की बात की व्याख्या दो ही तरीके से हो सकती है। पहला, वो हर हिंदू धर्म के मानने वालों का खात्मा चाहते हैं जो कि नरसंहार का आह्वान करने के समान है। दूसरा, यह सामूहिक धर्मांतरण का आह्वान है। जाहिर है कि ख़ुद को प्राउड क्रिश्चियन कहने वाले उदयनिधि के लिए धर्मांतरण राजनीतिक लक्ष्य को साधने जैसा ही है।
डीएमके नेता के भाषण को जाति व्यवस्था से जोड़ कर उनको सही ठहराने के लिए I.N.D.I गठबंधन के नेता कतार में लग गए हैं। मनोज झा को तो कबीर की पंक्तियां याद आने लगी है जिन्हें एक समय नुपूर शर्मा का बयान अशोभनीय लग रहा था। इसी गठबंधन से जुड़ी समाजवादी पार्टी के नेता स्वामी प्रसाद मौर्या श्रीरामचरितमानस को जला चुके हैं और बार-बार हिंदू धर्म के खात्मे का आह्वान करते रहते हैं। कांग्रेस के वर्तमान अध्यक्ष तो अपने मतदाताओं को करीब-करीब धमकी ही दे चुके हैं कि अगर उन्हें नहीं चुना तो इस देश में हिंदुओं की हुकूमत होगी।
जिस हिंदू धर्म से मल्लिकार्जुन खड़गे और उनके बेटे लोगों को डरा रहे हैं वह इस देश में जन्मा है और केवल इस देश के धर्म का ही नहीं बल्कि संस्कृति का भी आधार रहा है। इसी संस्कृति ने हजारों वर्षों से भारतीय मूल्यों की रक्षा या कहें कि निर्माण किया है। इसी संस्कृति का खात्मा करने की बात करना सिर्फ तमिल संस्कृति ही नहीं भारतीयता को समाप्त करने के समान है। यह भी सच है कि जिन नेताओं को भारतीयता के इस मर्म का अहसास ही नहीं वे इसके मारने और इसे समाप्त करने की बात करते हैं।
दरअसल, I.N.D.I गठबंधन की समस्या हिंदू धर्म से अधिक इस बात को लेकर है कि हिंदू धर्म से जुड़े लोग अब सेक्यूलर मांगों पर खुश न होकर अपने सम्मान और अपने स्थान की मांग करने लगे हैं। स्टालिन के बयान का समर्थन करना गठबंधन दलों के लिए आवश्यक है क्योंकि वे भी उसी विचारधारा का हिस्सा है जिसे डीएमके नेता फैला रहे हैं।
हालांकि हिंदू विरोधी मानसिकता से दक्षिण में ईसाई और मुस्लिम वोट बंटोरने वाले दल अपने इस रवैए के लिए अन्य राज्यों में किस प्रकार सफाई पेश करेंगे यह देखने वाली बात होगी। हाल ही में हिंदू मध्यम वर्ग को साम्प्रदायिक घोषित करने से शुरू हुआ सफर जाति व्यवस्था से होता हुआ स्टालिन के जरिए अपनी मंजिल पर पहुंच गया है, जो है हिंदू धर्म की समाप्ति। हालांकि हिंदू धर्म के खात्मे से भी जरूरी सत्तामोह है और इसी मोह के लिए ब्राह्मणवाद और जाति व्यवस्था के नाम पर हिंदू धर्म पर काले पर्चे फाड़ने वाले यही दल वोट पाने के लिए कल जनेऊ भी पहनेंगे और तिलक भी लगाएंगे।
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