लोकसभा चुनाव से पूर्व प्रधानमंत्री मोदी ने यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) पर बयान देकर केंद्र सरकार का रुख स्पष्ट कर दिया है। प्रधानमंत्री ने भोपाल में कार्यकर्ताओं को सम्बोधित करते हुए स्पष्ट तौर पर कहा कि देश को दो कानून से नहीं चलाया जा सकता है। UCC पर प्रधानमंत्री ने कहा कि विपक्ष भ्रम फैला रहा है। इसके बाद से ही विपक्षी दलों की प्रतिक्रिया सामने आने लग गयी लेकिन सभी विपक्षी दलों की राय एक जैसी नहीं है। देखते हैं कि तमाम राजनीतिक दलों का इस पर क्या मानना है।
आम आदमी पार्टी
अनुच्छेद 370 पर अन्य विपक्षी दलों से अलग राय रखने वाली आम आदमी पार्टी की राय इस मुद्दे पर भी अलग है। आम आदमी पार्टी का कहना है कि वह सैद्धांतिक तौर पर यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) के समर्थन में है।
पार्टी के संगठन महासचिव संदीप पाठक ने एक टीवी न्यूज चैनल से बातचीत में कहा कि संविधान का अनुच्छेद 44 भी कहता है कि UCC होना चाहिए। पाठक ने कहा कि उनकी पार्टी का यह मानना है कि UCC के मसले पर सभी धर्मों और राजनीतिक दलों से बात होनी चाहिए। सबकी सहमति के बाद ही यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू किया जाना चाहिए। वहीं कांग्रेस पार्टी इस मुद्दे पर पूर्ण रूप से विरोध में आ गयी है।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
कांग्रेस नेता पी चिदंबरम ने कहा कि समान नागरिक संहिता को लोगों पर थोपा नहीं जा सकता। पूर्व केंद्रीय मंत्री ने एक ट्वीट में कहा, “प्रधानमंत्री ऐसा दिखाने की कोशिश कर रहे हैं कि यूसीसी साधारण प्रक्रिया है। उन्हें पिछले विधि आयोग की रिपोर्ट पढ़नी चाहिए जिसमें कहा गया है कि यह इस वक्त सुसंगत नहीं है। भाजपा की कथनी और करनी के कारण देश आज बंटा हुआ है। ऐसे में लोगों पर थोपा गया यूसीसी विभाजन को और बढ़ाएगा। एजेंडा आधारित बहुसंख्यक सरकार इसे लोगों पर थोप नहीं सकती।”
डीएमके
यूपीए गठबंधन में कांग्रेस की सहयोगी पार्टी डीएमके ने भी समान नागरिक संहिता पर यही रुख अपनाया है। डीएमके ने कहा कि पहले इसे हिंदुओं पर लागू किए जाना चाहिए। डीएमके नेता टीकेएस एलंगोवन ने कहा कि हिंदुओं की सभी जाति के लोगों को मंदिर में जाने और पूजा-अर्चना करने की अनुमति दी जाए। देश में अभी भी दलित और आदिवासी समुदाय के लोगों को कई मंदिरों में जाने और प्रार्थना करने की इजाजत नहीं है। यूसीसी का विरोध करते हुए डीएमके ने कहा कि संविधान ने हर धर्म को सुरक्षा दी है, जिसके चलते यूसीसी हमें नहीं चाहिए।
शिरोमणि अकाली दल
भाजपा के पूर्व सहयोगी रहे अकाली दल ने भी अपना विरोध शुरू कर दिया है। वरिष्ठ अकाली नेता दलजीत सिंह चीमा ने बयान जारी कर कहा कि अकाली दल ने हमेशा पूरे देश के लिए समान नागरिक संहिता का विरोध किया है और वह इस मुद्दे पर 22वें विधि आयोग के साथ-साथ संसद में भी अपनी आपत्ति दर्ज कराएंगे। उन्होंने कहा कि देश में नागरिक कानून आस्था, विश्वास, जाति और रीति-रिवाजों से प्रभावित हैं जो विभिन्न धर्मों के लिए अलग-अलग हैं। इसलिए सामाजिक ताने-बाने की रक्षा के लिए इस विविधता को बनाए रखना आवश्यक है।
उद्धव ठाकरे गुट
इस बीच विपक्षी खेमे से उद्धव ठाकरे गुट ने भी आम आदमी पार्टी के समान स्थिति अपनाई। संजय राउत ने तर्क दिया कि सेना ने ऐतिहासिक रूप से हमेशा इसका समर्थन किया है।
उन्होंने कहा, “हम समान नागरिक संहिता के विचार का समर्थन करते हैं। हालाँकि, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी का ये अभियान अगले आम चुनावों के लिए एक राजनीतिक स्टंट है, न कि यूसीसी लाने के लिए एक ईमानदार प्रयास। राउत ने ‘द हिन्दू’ से बातचीत में बताया कि उनकी टिप्पणियों के मद्देनजर, हमें इस मुद्दे पर बैठकर विचार-विमर्श करना होगा।”
झारखंड मुक्ति मोर्चा
अन्य विपक्षी नेताओं में से झारखंड के मुख्यमंत्री और जेएमएम नेता हेमंत सोरेन ने मुद्दे से पल्ला झाड़ लिया और कांग्रेस जैसा ही रुख अपनाते हुए इसे वास्तविक मुद्दों से ध्यान भटकाने वाला कदम बताया। यूसीसी पर सोरेन ने कहा, “उनसे पूछें कि वह पहले रोजगार कैसे देंगे, मुद्रास्फीति कैसे कम करेंगे।”
ज्ञात हो कि समान नागरिक संहिता को लेकर मुस्लिम राजनीतिक दल और संगठन खुलकर विरोध कर रहे हैं। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने साफ कर दिया है कि यूसीसी का विरोध करेंगे। असदुद्दीन ओवैसी ने पीएम मोदी पर निशाना साधते हुए कहा कि “प्रधानमंत्री भारत की विविधता को समस्या मानते हैं। इसीलिए इस तरह की वो बातें कर रहे हैं। यूसीसी के नाम पर देश की विविधता को छीन लेंगे।”
जेडीयू
पूरे मामले पर विपक्षी दलों को एकजुट करने वाली जेडीयू का रुख सबसे चौंकाने वाला रहा।
जेडीयू के राष्ट्रीय प्रवक्ता केसी त्यागी ने कहा कि उनकी पार्टी और नीतीश कुमार समान नागरिक संहिता का विरोध नहीं कर रहे हैं, बल्कि चाहते हैं कि सबको साथ मिलाकर और सलाह-मशविरा करके यूसीसी पर आगे बढ़ना चाहिए।
विपक्षी दलों की बंटी हुई प्रतिक्रिया से तय है कि प्रधानमंत्री ने समान नागरिक संहिता के मुद्दे को लाकर विपक्ष को सोचने पर मजबूर कर दिया है। ऐसे में देखना ये होगा कि केंद्र सरकार समान नागरिक संहिता के विधेयक को कब तक संसद में पटल पर ला पाती है।
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