इस्लामिक स्कॉलर, केरल के गवर्नर और तत्कालीन राजीव गांधी सरकार में मंत्री रहे आरिफ मोहम्मद खान ने कई दफा यह कहा है कि कॉन्ग्रेस के कई नेता ये कहते थे कि मुसलमान अगर गड्ढे में पड़ा रहना चाहता है तो उसे पड़ा रहने दो।
समान नागरिक संहिता (UCC) पर कॉन्ग्रेस नेता शशि थरूर का बयान देख यह समझ में आता है कि आरिफ मोहम्मद खान जो बात कई वर्षों से कह रहे हैं, उसकी जड़ें कॉन्ग्रेस पार्टी में कितनी गहरी जमी हुई हैं।
शशि थरूर कह रहे हैं कि लोग अब उन कानूनों के आदी हो चुके हैं। इस हिसाब से तो भारत का मुस्लिम समाज तीन तलाक का आदी था तो क्या मुस्लिम महिलाओं को राजीव गांधी द्वारा खींची गई लकीर का फ़क़ीर हो जाना चाहिए था? उनका उत्पीड़न होने देना चाहिए था?
थरूर हिन्दू और मुस्लिम समाज के बीच तलाक की तुलना करते हुए UCC का विरोध कर रहे हैं। उन्हें समझना चाहिए कि यहाँ बात मात्र तलाक की नहीं है, तीन तलाक की है। तलाक हो, लेकिन संवैधानिक नियमों के अन्तर्गत हो, न कि शरिया कानून के तहत। वे यह भी कह रहे हैं कि यदि कोई हिन्दू अपनी पत्नी को तलाक देता है बिना किसी सपोर्ट के, तो वह सिविल ऑफेंस होता है जबकि मुस्लिम समाज का व्यक्ति अपराध के दायरे में आ जाता है।
थरूर साहब ने जब यह बात कही तब उन्हें प्रूफ भी देना चाहिए था कि जिस आधार पर वे यह आरोप हिन्दू समाज और न्यायपालिका पर लगा रहे हैं तब उन्हें उस हिन्दू व्यक्ति का नाम, पता और तारीख भी बतानी चाहिए, जब, जिसने बिना हर्जाना भुगते किए तलाक दिया हो।
शशि थरूर का कहना है कि प्रधानमंत्री नेहरू ने कहा था कि UCC होना चाहिए लेकिन हमें सभी को साथ लेकर चलना होगा।
संविधान के भाग 4 के अनुच्छेद 44 में UCC का उल्लेख किया गया है। तब संविधान निर्माताओं ने यह कल्पना की थी कि देश में विवाह, तलाक, विरासत, गोद लेना जैसे सभी मुद्दों को लेकर एक समान कानून होगा लेकिन देश का दुर्भाग्य था कि भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू यह इच्छाशक्ति नहीं दिखा पाए कि वे UCC लागू कर पाएं।
इसे कॉन्ग्रेस के अब तक के सबसे बड़ी विफलताओं में से एक माना जाए चाहिए न कि उस पर गर्व करना चाहिए कि नेहरू जी ने तब यह कहा था, तब नेहरू जी ने वह कहा था।
जवाहर लाल नेहरू ने 1954 में संसद में UCC के बजाय हिंदू कोड बिल पेश किया। इस दौरान उन्होंने बचाव करते हुए कहा था कि UCC को आगे बढ़ाने की कोशिश करने का यह सही समय नहीं है। तो क्या नेहरू और उनके बाद के कॉन्ग्रेसी प्रधानमंत्री इस बात का इन्तजार कर रहे थे कि 2014 में जब भारतीय जनता पार्टी की सरकार पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में लौटेगी तब वही UCC लागू करेंगे? या फिर इस बात का इन्तजार कर रहे थे कि इस पर कोर्ट पहले टिप्पणी कर ले?
यह भी पढ़ें: एक घर में दो कानून कैसे संभव? UCC पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी
UCC न्यायपालिका की माँग है
यहां एक बेहद महत्वपूर्ण बात है जिसे समझने की जरूरत है। UCC कोई राजनीतिक मुद्दा नहीं है बल्कि यह मांग न्यायपालिका कई वर्षों से कर रही है। एक राजनीतिक दल के रूप में भारतीय जनता पार्टी UCC को लेकर प्रतिबद्ध रही है लेकिन देश का सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय UCC को अमलीजामा पहनाने को लेकर कई बार दिशा-निर्देश जारी कर चुके हैं।
UCC पर सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
UCC पर सुप्रीम कोर्ट की पहली टिप्पणी शाहबानो मामले में आई थी, जब राजीव गांधी सरकार ने कोर्ट का फैसला पलट दिया था। देश के सर्वोच्च न्यायालय ने तब कहा था कि यह अफसोस की बात है कि संविधान का अनुच्छेद-44 ‘मृत पत्र’ बना हुआ है।
इसी तरह साल 1995 के सरला मुद्गल मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फिर से समान नागरिक संहिता की आवश्यकता बताई थी। तब कोर्ट ने तत्कालीन प्रधानमंत्री से अनुच्छेद-44 पर नए सिरे से विचार करने और भारत में नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता के लिए प्रयास करने को कहा था
हालांकि सुप्रीम कोर्ट के इन दिशा-निर्देशों पर जब अमल नहीं किया गया तो साल 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने बड़े उदास मन से यह कहा कि संविधान निर्माताओं ने उम्मीद जताई थी कि अनुच्छेद-44 के मद्देनजर पूरे देश में समान नागरिक संहिता सुनिश्चित करेगा, लेकिन अब तक इस सम्बन्ध में कोई प्रयास नहीं किया गया।
UCC पर हाईकोर्ट ने क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट के अलावा देश के होईकोर्ट्स ने भी UCC की आवश्यकता को लेकर टिप्पणियां की हैं।
साल 2021 में दिल्ली हाईकोर्ट ने एक फैसले में कहा था कि आज की युवा पीढ़ी को अंतरधार्मिक, अतंरजातीय विवाह और तलाक से न जूझना पड़े इसलिए देश में समान नागरिक संहिता लागू होना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि आर्टिकल 44 में UCC की जो उम्मीद जताई गई थी, अब उसे केवल उम्मीद नहीं रहना चाहिए बल्कि उसे हकीकत में बदल देना चाहिए।
इसी तरह इलाहाबाद हाईकोर्ट ने केन्द्र को UCC की गाइडलाइन्स जारी करने का निर्देश दिया था और कहा था कि समान नागरिक संहिता लागू करना हमारा लक्ष्य होगा।
इसी के इर्द-गिर्द केरल उच्च न्यायालय ने केन्द्र सरकार को सुझाव दिया था कि वह सभी समुदायों के लिए समान विवाह संहिता बनाने पर गंभीरता से विचार करे।
हाल ही में सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली एक पीठ ने UCC की मांग की कई याचिकाओं को यह कहते हुए बंद कर दिया कि इस तरह के मुद्दे संसद के निर्णय के अधीन हैं।
ऐसे में कोर्ट की टिप्पणी के बाद गेंद पूरी तरह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार के पाले में आ गई है और सरकार इसकी तैयारी में जुटी हुई है।
कॉन्ग्रेस पार्टी जिसने सत्तर वर्षों में UCC को मुख्यधारा की बहस का विषय तक नहीं बनने दिया, उसके पास यह मौक़ा है कि वह UCC के मुद्दे पर मुसलमान समुदाय को बरगलाने की बजाय वर्तमान सरकार का साथ दे। यह कहना कि प्रधानमंत्री या उनकी सरकार UCC की बात कर समाज में फूट डालना चाहती है, संविधान, देश और उसके समाज और न्यायपालिका का अपमान है।
यह भी पढ़ें: विपक्ष के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक सामान्य कार्यकर्ता के तौर पर अधिक चुनौती पेश करते हैं