समान नागरिक संहिता, एक ऐसा विषय जिस पर आज जानकारों से लेकर आम आदमी तक हर कोई चर्चा कर रहा है। हर किसी के अलग-अलग तर्क हैं और जिनके पास तर्क नहीं हैं वे दूसरों से प्राप्त हुई जानकारी का विश्लेषण कर रहे हैं।
इन तर्कों एवं विश्लेषण से कुछेक प्रमुख बातें सामने आ रही हैं और ये भी ज्ञात हो रहा है कि कुछ बिंदुओं पर समान नागरिक संहिता का विरोध किया जा रहा है।
सबसे पहला विरोध, अगर आप या हम UCC समर्थन कर रहे हैं और एक संभावित नियमों पर चर्चा कर रहे हैं तो यह प्रश्न फेंका जा रहा है कि ड्राफ्ट तो आया नहीं आप कैसे समर्थन कर सकते हैं? उत्तर इसी में छिपा है कि ड्राफ्ट तो आया नहीं फिर कोई भी कैसे विरोध कर सकता है?
हम समर्थन या विरोध नहीं कर रहे लेकिन हर विषय से जुड़ी हुई एक संभावना जताई जा सकती है। खासकर राजनीति में, हाँ ये अवश्य है कि आप कोई भविष्यवाणी नहीं कर सकते हैं। और भविष्यवक्ता हम हैं भी नहीं। भविष्यवक्ता वो लोग दिख रहे हैं जो कह रहे हैं कि UCC आएगा तो इससे मुस्लिम खतरे में आ जाएंगे, इससे हिन्दुओं का नुकसान होगा।
सभी रिलिजन के लिए खुल सकते हैं विकल्प
ऐसे लोगों को समझना चाहिए कि UCC किसी को अपने धर्म का पालन करने से नहीं रोकेगा बल्कि UCC उनके लिए उपहार बन सकता है जो मजबूरी में अपने रिलिजन को फॉलो करते हैं। एक लाइन में कहें तो UCC आपको विकल्प दे सकता है।
उदाहरण के तौर पर यूँ समझिए कि अगर कोई मुस्लिम ट्रस्ट बनाना चाहता है लेकिन वक्फ बोर्ड के अनुसार तो मुस्लिम केवल वक्फ में शामिल हो सकता है, ट्रस्ट में नहीं।
तो अगर UCC आने के बाद ऐसा होता है कि उस मुस्लिम को ट्रस्ट बनाने की इजाजत मिल जाती है तो क्या इसका मतलब ये है कि वो फिर वक़्फ़ में शामिल नहीं हो सकता? बिलकुल हो सकता है यानी इसका मतलब है कि उसके पास विकल्प खुल सकते हैं।
ऐसा ही विकल्प विवाह से जुड़ा हुआ भी हो सकता है। अगर ये तर्क रखा जा रहा है कि नए कानून के बाद हम अपने रिलिजन के मुताबिक शादी नहीं कर पाएंगे तो शायद ये भी सिर्फ विरोध के माहौल को बनाए रखने के लिए किया जा रहा है।
क्योंकि यूसीसी लोगों को धार्मिक कानून और नागरिक कानून यानी सिविल लॉ, दोनों में से किसी के भी पालन करने की स्वतंत्रता दे सकता है। वर्तमान में भी ऐसे मुस्लिम हैं जो मुस्लिम कानून के तहत निकाह करते हैं और बाद में सिविल लॉ के तहत उसे रजिस्टर कर रहे हैं।
जानकारों का भी यही मानना है कि समान नागरिक संहिता मुसलमान को सीमित नहीं करेगा बल्कि विकल्प देगा। चाहे फिर वह वसीयत के मामले में हो। कोई मुसलमान चाहता है कि उसकी वसीयत शरिया के अनुसार लिखी जाए तो समान नागरिक संहिता इसकी इजाजत देगी। मतलब कि आप अपनी पसंद की कोई भी वसीयत लिख सकते हैं।
क्या UCC संविधान के खिलाफ है?
चूँकि समान नागरिक संहिता का विरोध कर कांग्रेस ने अपना रुख स्पष्ट कर दिया है इसलिए कांग्रेस से प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े वकील भी समान नागरिक संहिता को संविधान के मूल्यों के खिलाफ बता रहे हैं।
हाँ, यह बात सही है कि संविधान हर व्यक्ति को अपने धर्म के अनुसार जीने के अधिकार को मान्यता देता है लेकिन यह अंतरात्मा की स्वतंत्रता को भी मान्यता देता है और जाहिर सी बात है UCC भी इस अधिकार को नहीं छीनेगा। उदाहरण के तौर पर कोई एक कैथोलिक क्रिस्चियन है, उसके रीति-रिवाज़ों के अनुसार वो डिवोर्स लेने की इच्छा के बावजूद डिवोर्स नहीं ले सकता। लेकिन अगर उसकी अंतरात्मा इस चीज़ को नहीं मानती है तो वह अपने रीति रिवाज़ों से बाहर निकलेगा और डिवोर्स ले पाएगा।
समान नागरिक संहिता से जुड़ा दुःखद एक मात्र पहलू अभी तक यही है कि बिना किसी आधार के ही कुछ राजनैतिक दलों द्वारा विरोध किया जा रहा है। अब यह विरोध कितना सही है या कितना चुनावी है यह वक़्त ही बताएगा।
वैसे इन राजनैतिक दलों के आदर्श गांधीजी और अम्बेडकर समान नागरिक कानून चाहते थे क्योंकि इसमें स्वतंत्रता निहित है। इसलिए ही संविधान के अनुच्छेद 44 में UCC को रखा गया है।
UCC महिलाओं को सशक्त बनाएगा क्योंकि अक्सर कुछ धर्मों में नेता एवं मौलवियों द्वारा तय किया जाता है कि महिलाओं को क्या करना है या क्या नहीं। UCC उन महिलाओं को स्वतंत्रता देगा।
सबसे महत्वपूर्ण बात यही है कि यूसीसी किसी धर्म को फॉलो करने से नहीं रोकेगा। जो इस आधार पर विरोध कर रहे हैं, साफ़ मतलब है कि जनता को भ्रमित किया जा रहा है।
क्या UCC से हिन्दुओं को नुकसान होगा?
ऐसा ही एक भ्रम HUF को लेकर फैलाया जा रहा है। HUF यानी हिन्दू अनडिवाइडेड फैमिली मतलब कि हिन्दुओं का संयुक्त परिवार।
दरअसल, HUF, एक ही परिवार के कुछ सदस्यों को मिलाकर बनाई गई एक सामूहिक यूनिट होती है। इसे टैक्स और वित्तीय मामलों में एक अलग व्यक्ति की तरह गिना और माना जाता है और इनकम टैक्स रिटर्न भी एक यूनिट या व्यक्ति के तौर पर ही किया जाता है।
तर्क ये दिया जा रहा है कि UCC के बाद हिन्दुओं को HUF से मिलने वाला फायदा खत्म हो जाएगा। लेकिन यहाँ पर प्रश्न ये है कि टैक्स के अलावा क्या HUF अभी भी हिन्दुओं के लिए प्रासंगिक है?
इसे यूँ समझिये, अब HUF यानी हिन्दू अनडिवाइडेड फैमिली है तो प्रॉपर्टी बंटवारे से जुड़े नियम कानून भी हैं ये नियम क़ानून क्या हैं इनको विस्तार से किसी और वीडियो में समझायेंगे अभी बस आप ये समझिये कि एक हिन्दू अनडिवाइडेड फैमिली में जुड़े सदस्यों में प्रॉपर्टी का बंटवारा इन नियम कानूनों से ही होता है।
लेकिन पहले वर्ष 1956 में और फिर वर्ष 2005 में इसमें बड़ा बदलाव किया गया, जिसने इसकी प्रासंगिकता ही खत्म कर दी।
ये बदलाव क्या थे आइये जानते हैं।
दरसअल, पहले लड़की की शादी होने के बाद वे अपने माता-पिता वाले HUF की मेंबर नहीं रह जाती थीं। लेकिन वर्ष 2005 में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम में संशोधन के बाद लड़कियों को भी अपने माता-पिता की संपत्ति में बराबर अधिकार दे दिया गया है। यहां तक कि शादी हो जाने के बाद भी वे अपने माता-पिता की संपत्ति में हिस्सा लेने का अधिकार रहता है।
यानी कि वे अब एक साथ दो HUF में मौजूद रह सकती हैं। वे अपने पति के HUF में सदस्य बन जाने के बावजूद अपने माता-पिता के HUF में भी जुड़ी रह सकती हैं।
HUF में एक बड़ा बदलाव ये हुआ कि अब संयुक्त परिवार से जुड़े व्यक्ति के मरने के बाद उसकी संपत्ति संयुक्त परिवार के अन्य लोगों को नहीं मिलती बल्कि मृतक के कानूनी उत्तराधिकारियों को विरासत में मिलती है।
इन बदलावों ने लगभग HUF को खत्म कर दिया है और ये बस अब एक टैक्स सीमा में छूट के लिए उपयोग किया जा सकता है। लेकिन असल में हिन्दू अधिकारों की दुहाई देने वालो की असल चिंता ये नहीं है।
उन्हें बस UCC को रोकना है क्योंकि UCC कुछ कट्टर रीति रिवाज़ों में सुधार लाएगा और ये इसी बदलाव के खिलाफ हैं।
क्या UCC एंटी माइनॉरिटी है?
लेकिन याद कीजिए, खिलाफ तो कुछ लोग तब भी हुए थे, जब सती प्रथा को खत्म किया गया था लेकिन उस रिवाज़ में सुधार हुआ क्योंकि अधिकतर हिन्दू तब भी विश्वास करते थे कि आधुनिक समाज में इस चीज़ के लिए कोई जगह नहीं है।
ऐसे ही अन्य नेता, जो अल्पसंख्यकों के स्वघोषित मसीहा हैं, उन्हें भी समझना चाहिए UCC अल्पसंख्यक विरोधी यानि एंटी माइनॉरिटी नहीं है। बल्कि यह उन्हें अपने धार्मिक अधिकारों को फॉलो करने की ही स्वतंत्रता देगा। चाहे वे फिर विवाह से जुड़े धार्मिक अधिकार हों या उत्तराधिकार से जुड़े धार्मिक अधिकार। बस तय यह करना है कि क्या सच में कोई धार्मिक अधिकार ऐसा है कि जिसमें बहुविवाह किए जा सकते हैं?
इसमें अब कोई ये भी प्रश्न कर सकता है कि भारत विविधताओं का देश है और UCC इसे खत्म कर देगा।
लेकिन देश की कुछ विविधताओं को देखते हुए यह भी प्रतीत होता कि विविधता सदैव सुन्दर नहीं होती है। खासकर मजबूरी में फॉलो की जा रही विविधता, यह समाप्त की जानी चाहिए। विविधता नागरिकों के दिल में भी बसी होनी चाहिए। और यही नागरिक इस देश को मजबूत करते हैं। सदियों से साथ रह रहे हैं और आगे भी रहते रहेंगे।