भारत के प्रथम सीडीएस विपिन रावत ने देश के भीतर के जिस 0.5 फ्रंट की बात की थी। यह फ्रंट लम्बे समय से ह्यबेरनेशन स्टेट में हैं, लेकिन, यह हमारे लिए एक भ्रम की स्थिति है। हमें रोज़ उसे सतह पर आते देख रहे हैं।
यह फ्रंट देश में धर्म, जाति, भाषा, क्षेत्र, नस्ल समेत कई फाल्टलाइन्स को भुनाते हैं। जोकि, राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज़ से बहुत ही संवेदनशील है। कानूनन इसे प्रभावी तरीके से काउंटर करने के लिए सरकार के पास महत्वपूर्ण हथियार है ‘अनलॉफुल एक्टिविटी (प्रिवेंशन) एक्ट (UAPA)।
पिछले कुछ वर्षों में आतंकी गतिविधियों को देखते हुए सरकार ने आवश्यक संशोधन कर इसे और प्रभावी एवं कठोर बनाया है। आए दिन खबरें आती हैं कि अमुक व्यक्ति या संगठन पर यूएपीए के तहत मुकदमा दर्ज़ किया गया है।
गैर-कानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम, 1967
यह अधिनियम वर्ष 1967 में सरकार द्वारा पारित किया गया। जबकि, वर्ष 2004, 2008, 2012 और 2019 में संशोधित कर इसमें नए प्रावधान जोड़े गए।
इसे अपने समय में बेहद ही प्रचलित आतंकवादी एवं विध्वंशकारी गतिविधियाँ कानून- टाडा, 1987 और आतंकवाद निरोधी अधिनियम- पोटा, 2002 के प्रावधानों को मिलाकर विकसित किया गया है।
प्रारम्भ में इस अधिनियम के अंतर्गत गैर-कानून तरीके से भारत के किसी ‘क्षेत्र’ या ‘भू-भाग’ को अलग करने के प्रयासों से जुड़े गतिविधियों को चिन्हित किया गया था। बाद में वर्ष 2004 में इस अधिनियम में ‘आतंकवादी गतिविधियों’ को भी सम्मिलित कर लिया गया।
इसके बाद, वर्ष 2019 के संशोधन के बाद किसी व्यक्ति या संगठन द्वारा न सिर्फ सीधे-सीधे आतंकवादी गतिविधियों में शामिल होना बल्कि उसके लिए पृष्ठभूमि तैयार करना या उसे प्रोत्साहित करना भी इसके दायरे में आ गया है। यह आतंकवाद को भी परिभाषित करता है।
UAPA के प्रमुख कानूनी प्रावधान
यह अधिनियम केन्द्र सरकार को गैर-कानूनी गतिविधियों में लिप्त व्यक्ति या संगठन के ऊपर UAPA के तहत मुक़दमा दर्ज़ करने शक्ति प्रदान करती है।
UAPA के तहत दर्ज़ मुक़दमो में यह मान कर चला जाता है कि यह आतंकवाद से जुड़े मामले हैं, इसलिए, इनकी जाँच में जाँच एजेंसियों को अधिकतम 180 दिनों तक की रिमांड मिल सकती है। आवश्यकता पड़ने पर न्यायालय के आदेश से रिमांड और भी बढ़ाई जा सकती है।
हालाँकि, सामान्यत: यह रिमांड अधिकतम 90 दिनों के लिए निर्धारित है। जिसके बाद जांच एजेंसी को न्यायालय में आरोपी के खिलाफ चार्जशीट दायर करनी पड़ती है।
इस कानून के तहत भारतीय व विदेशी दोनों तरह के आरोपियों के ऊपर समान रूप से मुक़दमा दर्ज़ किया जाता है और दण्डित करने के प्रावधान हैं।
यूएपीए के सेक्शन 10 के अंतर्गत किसी व्यक्ति के आतंकवाद में लिप्तता के लिए 2 वर्ष का कारावास और कुछ विशेष परिस्थितियों में अधिकतम आजीवन कारावास या मृत्युदंड का प्रावधान भी निर्धारित है।
सेक्शन 43 D (5) के तहत आरोपी को बिना पब्लिक प्रोसिक्यूटर को सुने न्यायालय से जमानत नहीं मिल सकती। क्योंकि इसके तहत दर्ज़ मुक़दमे में आरोपी को प्रथमदृष्टया दोषी ही माना जाता है।
सेक्शन 51 A के अंतर्गत केन्द्र सरकार को आतंकवाद में संलिप्त लोगों या संगठनों की सम्पत्तियों को जब्त करने का अधिकार प्राप्त है।
UAPA कानून की आवश्यकता
भारत जैसे सांस्कृतिक, भाषाई, सामाजिक और धार्मिक विविधता वाले देश में कुछ फाल्टलाइन्स होना स्वाभाविक बात है।
ऐसे में यह महत्वपूर्ण है कि इन विविधताओं के बावजूद भारत की एकता और अखंडता को बनाए रखा जाए और यह तभी संभव है, जब यूएपीए जैसे कानूनों को प्रभावी बनाकर राष्ट्रविरोधी गतिविधियों को रोका जाए।
आतंकवाद के खिलाफ तो यह बहुत ही कारगर हथियार है। जिसके जरिए आतंकवादियों से सहानुभूति रखने वाले और उनको संरक्षित करने लोगों की जिम्मेदारी तय कर, उनको दण्डित भी करने का भी प्रावधान है।
हाल ही में पॉपुलर फ्रंट ऑफ़ इंडिया को यूएपीए के तहत प्रतिबंधित कर, उसकी सम्पत्तियों को ज़ब्त कर दिया गया था।
इस संगठन ने बीते कुछ वर्षों में आक्रामक तरीके से देश और समाजविरोधी विचारधारा का प्रचार-प्रसार किया और कई बार सांप्रदायिक हिंसा में इसकी सक्रिय भूमिका रही।
इसके अतिरिक्त भीमा-कोरेगांव हिंसा, दिल्ली दंगे और असम हिंसा जैसे अन्य कई हिंसात्मक घटनाओं में शामिल लोगों के खिलाफ यूएपीए का प्रयोग किया जा चुका है।