हाल ही में फॉक्स न्यूज पर टकर कार्लसन ने कहा कि ब्रिटेन ने अपने कर्त्वयों का निर्वाह किया, भारत उसकी वजह से महान बना। वह ब्रिटेन की रानी एलिजाबेथ के मरने पर भावुक होकर अपनी औपनिवेशिक और नस्ली मानसिकता को खुलकर दिखा रहे थे। आइए, बताते हैं, कार्लसन ने क्या कहा…
उन्होंने कहा, जब ब्रिटिश भारत से गए, तो वह एक पूरी सभ्यता, भाषा, कानूनी व्यवस्था, स्कूल, चर्च और सार्वजनिक इमारतें छोड़ गए। इनमें से कई अभी भी इस्तेमाल में हैं। यहां यह मुंबई का ट्रेन स्टेशन देखिए, उदाहरण के लिए। ऐसा कुछ भी अभी वाशिंगटन डीसी में नहीं है, काबुल और बगदाद की बात तो छोड़ ही दीजिए। आज भारत ब्रिटेन से अधिक ताकतवर है, लेकिन क्या उस देश ने एक ऐसी इमारत बनाई, जैसी ब्रिटिश उपनिवेश वादियों ने बनाई…नहीं..दुःखद तौर पर नहीं।‘
अब टकर कार्लसन को यह कौन समझाए कि मूर्ख होना ठीक है, लेकिन अपनी मूर्खता पर इतराना उन जैसे असभ्यों को भी शोभा नहीं देता। भारत के बारे में आप अगर नहीं जानते, तो कोई बात नहीं। अपनी नस्ली और जातिगत श्रेष्ठता के दंभ को तो हम पर न थोपिए, सिरीमान जी।
आइए, एक-एक कर आपकी नस्ली श्रेष्ठता की ग्रंथि के विष का मोचन करते हैं। सबसे पहले बात नयी इमारत की। कभी आइए, हमारे सेंट्रल विस्टा को देख लीजिए, जो अभी तुरंत हमारे यहां के वास्तुकारों ने बनाया है। यहां मैं कैलाश मंदिर, एलोरा या दक्षिण के उन सैकड़ों मंदिरों की बात तो करूंगा ही नहीं, जो तब बन गए थे, जब आपके ईश्वर-पुत्र ईसा भी धरती पर नहीं आए थे। सीएसटी सुंदर है, इसमें शक नहीं, लेकिन आप आमेर का किला देख आइए, रजवाड़ों के महल देखिए, मंदिरों की पूरी शृंखला देखिए और फिर आपको पता चलेगा कि जब आपके पुरखे अंधेरों में भारत की खोज कर रहे थे, तो भारत किस तरह जगमगा रहा था।
अंग्रेजों ने स्कूल हम पर अहसान करने के लिए नहीं बनाए थे। उन्होंने खुद को थोपने के लिए, हमारे हजारों गुरुकुल तोड़ दिए, गुरु नाम को ही गाली जैसा बना दिया और अपनी घटिया स्कूली व्यवस्था हम पर थोप गए, जिसका परिणाम आज हम ऐसे जॉम्बीज के तौर पर देख रहे हैं, जो न इधर के हैं, न उधर के।
कार्लसन बाबू कहते हैं कि ब्रिटिश ने कानून बनाए। अच्छा, लेकिन क्यों….इसलिए कि उनको भारतीयों को सताना था, उन पर अत्याचार करना था। जब ब्रिटिश भारत छोड़कर गए, तो एक शोध के मुताबिक उन्होंने 45 ट्रिलियन डॉलर भारत से लूटा था। यह कितना होगा…अमेरिकी जीडीपी यानी 23 ट्रिलियन डॉलर का लगभग दोगुना।
मेरे भाई, कार्लसन..अपनी गोरी चमड़ी की श्रेष्ठता की ग्रंथि से उबरो और जानो कि अंग्रेजों ने भारत को इतना चूसा कि ब्रिटेन तो मालामाल हो गया, भारत कंगाल हो गया। अभी मैं जालियांवाला बाग, बंगाल के अकाल और खुदीराम बोस की बेहद कम उम्र में फॉंसी की तो चर्चा कर ही नहीं रहा।
वैसे, औपनिवेशिक गति और मति केवल कार्लसन की ही नहीं। ब्रिटेन में ऋषि सुनक की हार के बाद हमारे यहां के वामपंथियों और छद्म बुद्धिजीवियों ने जैसी उल्टी ट्विटर पर की, वह बताता है कि हमारी तथाकथित शिक्षा ने किस तरह के जॉम्बीज पैदा किए हैं।
यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इनके गले की फांस हैं, क्योंकि वह भगवा पहनते हैं। इसलिए, सबने एक सुर से कहा- गौमूत्र पीना काम न आया, वह यूके है, यूपी नहीं।
इसके अलावा हमारे पास अपनी रोहिणी सिंह जी हैं न। उन्होंने गुलाम अली के राज्यसभा भेजे जाने की खबर तुरंत लपक ली और ट्विटर पर रेल दिया- अच्छा, तो गुलाम नबी आजाद जी की पूरी क्रांति राज्यसभा भेजे जाने के लिए थी।
बहन रोहिणी, गुलाम अली और नबी में फर्क तो कर लो, पहले।