छत्तीसगढ़ में चुनावों से पहले कॉन्ग्रेस का शीर्ष नेतृत्व डैमेज कंट्रोल में लग गया है। इसी कवायद में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री पद की दावेदारी रखने वाले वरिष्ठ नेता टीएस सिंहदेव (TS Singh deo) को भूपेश बघेल सरकार में उपमुख्यमंत्री बनाया गया है। छतीसगढ़ में उपमुख्यमंत्री बनाने का यह फैसला बुधवार देर रात कॉन्ग्रेस हाईकमान की एक बैठक में लिया गया।
टीएस सिंहदेव का पूरा नाम त्रिभुवनेश्वर शरण सिंहदेव है। वे छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ कॉन्ग्रेस नेता हैं और अम्बिकापुर विधानसभा सीट से लगातार तीन बार के विधायक रह चुके हैं। सिंहदेव 2018 से पहले 2008 और 2013 में विधायक रह चुके हैं। उन्हें डॉ रमन सिंह की सरकार के दौरान कॉन्ग्रेस के विधायक दल का नेता चुना गया था। टीएस सिंहदेव सरगुजा राजघराने से सम्बन्ध रखते हैं। उनका इस क्षेत्र में काफी प्रभाव माना जाता है
छत्तीसगढ़ में सत्ता को लेकर वर्ष 2018 में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद से लगातार खींचतान चल रही थी। इस खींचतान में भूपेश बघेल को हाईकमान ने आशीर्वाद दिया था और उन्हें मुख्यमंत्री बनाए रखा गया है। इस बीच कई बार ऐसी संभावनाएं भी जताई गईं थी कि बघेल और सिंहदेव के बीच ढाई-ढाई साल के मुख्यमंत्री पद की बात हुई है। इसको लेकर बघेल सरकार के ढाई साल पूरे होने पर राजनीतिक सरगर्मी काफी तेज हो गई थी।
इस बीच कई बार टीएस सिंहदेव के नाराज होने और कई मुद्दों पर उनके सरकार से अलग स्टैंड लेने की खबरें भी सामने आती रही हैं। ऐसा ही एक मामला तब सामने आया था जब छतीसगढ़ सरकार द्वारा राजस्थान की बिजली कम्पनी को आवंटित कोयला खदानों पर विवाद हुआ था और सिंहदेव ने इस दौरान गांववालों का साथ देकर इन खदानों में खनन नहीं होने दिया था। छतीसगढ़ सरकार इस दौरान खनन के पक्ष में थी।
बीते दिनों राजस्थान में सचिन पायलट के गहलोत सरकार के विरोध में धरना प्रदर्शन करने पर भी सिंहदेव सचिन के समर्थन में नजर आए थे, उन्होंने इसे सही ठहराया था। उनके और भूपेश बघेल सरकार के बीच मतभेदों का सबसे बड़ा उदाहरण पिछले वर्ष जुलाई में देखने को मिला था जब उन्होंने अपने पंचायती विभाग के मंत्रिपद से इस्तीफ़ा दे दिया था और इसी के साथ एक पत्र जारी करके छतीसगढ़ सरकार की विफलताएं उजागर कर दी थी।
हालाँकि, इन सब खींचतान के बीच बघेल ही असली विजेता बने और लगातार मुख्यमंत्री बने रहे हैं। उनसे हाईकमान ने देश भर के कई चुनावों में काफी काम लिया। हिमाचल चुनाव में बघेल मुख्य रणनीतिकार के तौर पर देखे गए थे। हिमाचल में बघेल चुनाव प्रभारी भी बनाए गए थे और पार्टी की जीत के बाद उनका कद और बढ़ गया था।
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हिमाचल में कॉन्ग्रेस की आंतरिक सर फुटव्वल के बाद कैबिनेट निर्धारण और सुखविंदर सिंह सुक्कू को मुख्यमंत्री के साथ ही मुकेश अग्निहोत्री को डिप्टी सीएम बनाने के फैसले के पीछे भी उनका हाथ माना जाता रहा है। कर्नाटक चुनाव में भी बघेल ने काफी जोर शोर से पार्टी के लिए प्रचार प्रसार किया था और संसाधन भी उपलब्ध कराए थे। इन सब के बाद बघेल का कद छतीसगढ़ और राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस में काफी बढ़ गया था।
हालांकि, अब सिंहदेव को उपमुख्यमंत्री बनाए जाने के बाद कहा जा रहा है कि बघेल का कद कम कर दिया गया है। छतीसगढ़ में डैमेज कंट्रोल की नीति के पीछे राजस्थान और मध्य प्रदेश का असर भी माना जा रहा है। राजस्थान में सचिन पायलट जहाँ पूरी तरह से बागी मोड में हैं तो वहीँ मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया पार्टी छोड़कर भाजपा में जा चुके हैं।
छत्तीसगढ़ में चुनाव से पहले नया उपमुख्यमंत्री लाने के बाद अन्य कई चर्चाएँ भी चालू हो गई हैं। एक खेमे का यह कहना है कि हालिया दिनों में छतीसगढ़ में सामने आए शराब घोटाले के बाद विपक्ष के मुख्यमंत्री पर लगे आरोपों से ध्यान भटकाने और चुनावों में एक विकल्प तैयार करने के लिए सिंहदेव को लाया गया है।
हिमाचल और कर्नाटक के बाद छतीसगढ़ तीसरा ऐसा राज्य है जहाँ पर उपमुख्यमंत्री बनाकर दो खेमों में तालमेल बैठाने का प्रयास किया गया है। हालाँकि, राजस्थान और मध्य प्रदेश में किए गए यही प्रयोग पार्टी की आंतरिक कलह को शांत करने में नाकाम रहे हैं। ऐसे में यह फैसला कितना डैमेज कंट्रोल करता है, इसका असर आगामी समय में दिखेगा।
राजनीतिक विश्लेषकों की राय यह भी है कि इस फैसले के पीछे कॉन्ग्रेस में प्रियंका गांधी का कद घटाने की भी कोशिश की गई है। इसके पीछे का आधार यह है कि भूपेश बघेल को प्रियंका का करीबी माना जाता है और उनका महत्व छत्तीसगढ़ में कम करके प्रियंका का कद घटाया गया है। मल्लिकार्जुन खड़गे ने भी अपनी मजबूत स्थिति दिखाने का प्रयास इस फैसले के जरिए किया है।
कुछ राजनीतिक विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि आने वाले चुनावों में सिंहदेव को मुख्यमंत्री के तौर पर प्रोजेक्ट किया जा सकता है और साथ ही चुनाव से पहले पार्टी मजबूत रहे और दरार ना पड़े इसके लिए सिंहदेव का कद वापस से बढ़ाया जा रहा है। हालाँकि, स्पष्ट तौर पर तो दोनों नेताओं ने साथ काम करने और पार्टी को जिताने की बात की है लेकिन अंदरखाने खींचतान जारी ही है।
भूपेश बघेल का कद घटाए जाने के पीछे कुछ राजनीतिक पंडितों का यह भी मानना है कि पार्टी संचालन के जरूरी संसाधनों के लिए कर्नाटक में जीतने से पहले बड़े स्तर पार्टी छतीसगढ़ पर निर्भर थी। कर्नाटक एक अमीर राज्य है और सत्ताधारी दलों को यहाँ से बड़ी मात्रा में संसाधन मिलते हैं, ऐसे में छत्तीसगढ़ पर निर्भरता भी कम हो गई है और अब हाईकमान राज्य में डैमेज कंट्रोल के प्रयासों पर जोर दे रहा है।
सिंहदेव को उपमुख्यमंत्री बनाए जाने के फैसले के बाद भी अब यह यह प्रश्न उठ रहे हैं कि इससे छत्तीसगढ़ में पार्टी कितनी मजबूत होगी और सिंहदेव स्वयं इससे कितने संतुष्ट हैं। सिंहदेव हमेशा से ही मुख्यमंत्री बनने की बात करते आए हैं और ऐसे में बघेल को डिप्टी बनाकर उन्हें पार्टी कितना प्रसन्न कर पाती है यह देखने वाली बात होगी।
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