अमेरिका के इतिहास की हम जब भी बात करते हैं तो हमें बताया जाता है कि किस प्रकार से वो मानवाधिकारों के लिए लड़े, किस तरह से उन्होंने लोकतंत्र की स्थापना की, अपनी अलग पहचान के लिए वहां पर क्रांतियां (American Revolution) हुईं आदि आदि। कहा जाता है कि संयुक्त राज्य अमेरिका का जन्म ही उपनिवेशवाद यानी कॉलोनियलिज्म (Colonialism) से मुक्ति के लिए हुआ था लेकिन सवाल यह है कि आखिर किसके उपनिवेशवाद से मुक्ति के लिए ये सब हुआ और आखिर किस बात की क्रांति?
जब हम क्रांति की बात करते हैं तो हमने सिविलाइज़ेशन स्टोरीज के पहले के एपिसोड में भी बताया था कि क्रांति के लिए हमेशा एक शोषित वर्ग का होना आवश्यक होता है, जो सताए जा रहे हों, जो पीड़ित हों और वहां आवश्यक रूप से एक साम्राज्य या शासन के खिलाफ सामूहिक विद्रोह की भावना जन्म लेती है। तो क्या अमेरिका की क्रांति में भी ये सब हुआ?
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हमने आपको बताया था कि क्रूसेडर्स ने किस तरह से पूरे यूरोप को युद्ध में झोंक दिया था। ईसाईयों ने मोहब्बत बांटने के नाम पर जगह-जगह लोगों को मारा और अपने धर्म को उन पर थोप दिया। तो जब ये लोग आपस में लड़ मरकर थक गए तो इन्होंने तय किया कि अब उपनिवेशवाद पर भी थोड़ा ध्यान दिया जाए और फिर उस उपनिवेशवाद के जरिए उन उन जगहों को चुना जहाँ पर स्थानीय जनजातियां अपना जीवन जी रहे थे। आपने कुछ ऐसी तस्वीर भी देखी होंगी जिनमें ये दिखाने का प्रयास किया जाता है कि किस तरह से ब्रिटिशर्स ने नेटिव अमेरिकन्स को प्यार और मोहब्बत बांटी लेकिन वो सब प्रॉपगेंडा था। 1492 में जिन नेटिव अमेरिकन्स की आबादी ५० लाख थी, वो महज 2. 5 लाख में सिमट गए 1900 तक आते आते।
ऐसी ही एक जगह इन्होंने यात्रा के नाम पर तलाशी अमेरिका, जिसे नाम दिया गया वेस्ट इंडीज। वो निकला था इण्डिया के लिए लेकिन पहुँच गया दूसरे ही इण्डिया। 1775 से 1783 तक चलने वाली इस कथित अमेरिकी क्रांति को अमेरिका का स्वतंत्रता संग्राम का नाम भी दिया जाता है और कहा जाता है कि यह क्रांति ब्रिटेन के 13 उत्तरी अमेरिकी उपनिवेशों और वहां के निवासियों के बीच संघर्ष बढ़ने से हुई।
जब यूरोप से ये धर्म युद्ध/क्रूसेस/अल जिहाद वाले लोग इस अमेरिकी महाद्वीप पर उतरे तो उससे पहले सैकड़ों अमेरिकी जनजातियाँ उत्तरी अमेरिका के विभिन्न इलाकों में रहते थे। इन सभी जनजाति की अपनी विशेष परंपराएँ, सामाजिक संरचनाएँ और जीवन के तरीके थे।
इंग्लैंड छोड़कर अमेरिका में कई सारे लोग वहां पर ईसाईयों के अत्याचारों से भी परेशान थे, कुछ लोग आर्थिक लाभ के लिए भी यहां पर आकर बसे। इंग्लैंड में उन दिनों केवल इंग्लिश चर्च को ही मान्यता प्राप्त थी।
यूरोपीय उपनिवेशीकरण के साथ अमेरिका की जो मूल जनजातियां थीं, उनकी जमीन छीन ली गई, उनके साथ हिंसा की गई, मूल अमेरिकी जनजातियों को सरकारी नीतियों के माध्यम से उनकी पैतृक भूमि से जबरन हटा दिया गया था। इनका एक उदाहरण The Indian Removal Act of 1830 भी था जिसके कारण अमेरिका में हजारों मूल अमेरिकियों को उनकी भूमि से जबरन हटाया गया।
ये संघर्ष अमेरिकन कुछ अमेरिकन राष्ट्रवादियों, जो फ़्रांस की ओर से थे और कुछ ब्रिटिश लॉयलिस्ट के बीच का था। जो नेटिव अमेरिकन्स थे, जिन्हें कि रेड इंडियंस नाम दिया गया वो जनजातियां थीं, जो शिकार करते थे और अपना मस्त रहते।
1492 में कोलम्बस ने इन जगहों को वेस्ट इंडीज नाम दिया था। 16 से 17वीं सेंचुरी में यूरोप के लड़ाकों ने अमेरिका में इन मूलनिवासियों की जमीन पर कब्ज़ा कर लिया।
1607 से 1732 तक ब्रिटिश उपनिवेश ने यहाँ 13 कॉलोनियां बसाई जिनके जरिए वो अपना कारोबार करते थे। इनका कहना था कि वो इस जगह को व्यापार के माध्यम से चकाचक कर देंगे, ‘व्हाइट मैंस बर्डन’ और लोगों को जीना सिखाने के दावे। ऐसा कहकर ब्रिटिशर्स वहां से कच्चा माल का दोहन करने लगे।
इस समय तक दुनिया में फिलोसोफी का भी बोलबाला बढ़ने लगा था। कई दार्शनिक हुए जो एक लिबरल समाज की बात करते, जिनमें रूसो,, जॉन लॉक, मॉन्टेस्क्यू, बेंजामिन फ्रेंकिलन, थॉमस पेन आदि प्रसिद्ध थे।
इन दार्शनिकों के विचारों ने अमेरिकन्स को बहुत प्रभावित किया। हालाँकि इनमें से अधिकांश दार्शनिक यूरोपियन ही थे। जॉन लॉक का नाम आपने सुना होगा जिन्होंने नेचुरल राइट्स, प्राकृतिक अधिकारों और संप्रभुता के विचार को रखा था। जॉन एडम्स भी इनमें एक था, जिसने कानून के शासन की अवधारणाओं का समर्थन किया। थॉमस पेन के “कॉमन सेंस” जैसे पैम्फलेट ने स्वतंत्रता की वकालत की।
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जॉर्ज वॉशिंगटन
9 अप्रैल 1775 वो दिन था जब अमेरिकी क्रांति में पहली गोली चलाई गयी थी। इसके लीडर बनकर उभरे थे जॉर्ज वॉशिंगटन जिनके बारे में कहा जाता है कि वो अमेरिका की क्रांति के जनक थे। लेकिन जो उन्होंने अमेरिका के मूलनिवासियों के साथ किया, वो उन्होंने उनके मानवाधिकारों के लिए तो ये लड़ाई बिलकुल भी नहीं लड़ी थी। ये युद्ध तो कालोनियों और ब्रिटेन के बीच था और नाम दिया गया इसे स्वंत्रता संग्राम। आप खुद सोचिये कि फ्रांसीसी, जर्मन और स्पेनिश सैनिक मिलकर अमेरिका के लिए युद्ध लड़ रहे थे? या फिर ब्रिटिशर्स की गुलामी से खुद को आजाद करने के लिए या नेटिव अमेरिकन्स की जमीन पर एकछत्र राज स्थापित करने के लिए ही सभी ने आपस में युद्ध लड़ा था?
ब्रिटेन की जितनी भी कॉलोनियां यहाँ पर थीं, उन प्रत्येक उपनिवेश में एक अंग्रेज गवर्नर होता था और एक विधानसभा होती थी, ये लोग मिलकर के वहां के लोगों के लिए कानून बनाती थी और जनता पर टैक्स लगाते थे। सारे व्यापारी मिलकर रॉ मटेरियल का दोहन करते और उन्हें अफ्रीका जैसे महाद्वीप पर बेचते। इस सब का टैक्स जाता था क्राउन को।
लेकिन तब तक जैसा कि मैंने कहा लोग लिबरल होने लगे थे, उनके अंदर विचार पैदा होने लगा कि बिजनेस से सिर्फ बिजनेस करने वाले को ही फायदा होना चाहिए ना कि राजा को।
इन व्यापारियों पर इंग्लैंड की सरकार जो भी नियम लागू करती थी उनमें इंग्लैंड का हित छिपा हुआ होता था। यहाँ पर टकराव होता था उन कॉलोनियों द्वारा चुनी गई सरकार और अंग्रेज गवर्नर का, जो रिपोर्ट करता था क्राउन को। इनके भीतर ये भी कीड़ा था कि जो ऊँचे पद होते थे उन पर नेटिव अमेरिकन्स को या कॉलोनियों के निवासियों को कहीं जगह नहीं दी जाती थी, वहां सिर्फ अंग्रेज बैठा करते।
इस सबसे वो लोग नाराज रहते और इसी सब से हुई अमेरिका की क्रांति। अब जब ये फ्रांसीसी विद्रोह करने लगे तो इंग्लैंड ने इनका दमन करने के लिए पालिसी और कठोर कर दीं। जो व्यापारी जहाज होते, उन पर ब्रिटेन का नियंत्रण जरुरी कर दिया। कहा गया कि हर जहाज पहले ब्रिटेन जाएगा और वहां टैक्स देने के बाद ही वो व्यापार किसी और देश में कर पाते। चीनी, तम्बाकू के लिए कहा कि वो सिर्फ इंग्लैंड को ही एक्सपोर्ट होंगे। जबकि उस समय सारे महाद्वीप चाय के शौक़ीन हो चुके थे। इसका नतीजा ये हुआ कि व्यापार में स्मगलिंग बढ़ने लगी। 1763 के बाद से कानून और कठोर कर दिया गए। और फिर आया स्टाम्प एक्ट। अख़बारों ने इसे डेथ स्टाम्प नाम दिया। इस बीच विद्रोह भड़कने लगा और बोस्टन में 5 लोगों की हत्या हो गई।
इस नरसंहार से लोग जाग गए। वो जान गए कि अब उन पर नियंत्रण उनकी क्षमता से बहार हो चुका है। ये ब्रिटिश सरकार के खिलाफ चला गया। बोस्टन टी पार्टी प्रकरण यहीं से जुड़ा है जब चाय की सारी सप्लाई समुद्र में फेंक कर विद्रोह किया गया। अमेरिकी राष्ट्रवादियों ने बोस्टन बंदरगाह पर खड़े तीन ब्रिटिश जहाजों पर हमला बोलते हुए उन पर लदे चाय के 342 बक्से समुद्र में डुबो दिए थे। यहाँ पर स्वदेश जैसे आंदोलन भी चलाए गए और कहा गया कि अंग्रेज अगर टैक्स नहीं हटाते हैं तो वो उनका बहिष्कार करेंगे।
ब्रिटेन यहाँ सेना रखने लगा और उस सेना का खर्च भी वहीं के लोगों पर टैक्स लगाकर वसूला जाने लगा। इस सभी शोषण से उपनिवेशों के निवासी भड़क उठे और अमेरिका की कथित आजादी का संग्राम छेड़ दिया। किंग जॉर्ज तृतीय ने इस विद्रोह को निजी दुश्मनी में बदल दिया और वो ज्यादतियां भी बढ़ाता रहा। ये सब सिलसिला करीब सात साल चला और अमेरिका के निवासियों ने 1775 में जॉर्ज वाशिंगटन के नेतृत्व में फ्रांस तथा स्पेन की सहायता से अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध छेड़ दिया।
इस पूरे गतिरोध में कभी फ़्रांस की हार हुई तो कभी जीत। कुछ ने इसे गृहयुद्ध भी नाम दिया लेकिन आख़िरकार 1781 में वर्जीनिया के यॉर्कटाउन में ब्रिटिश लोगों को आत्मसमर्पण करने पर मजबूर कर दिया। यहाँ से 13 अमेरिकी उपनिवेशों को स्वतंत्रता प्राप्त हुई जिसे कि इतिहासकार अमेरिकियों की आजादी का नाम देते हैं।
इस संघर्ष में 8500 से अधिक लोगों की मौत ब्रिटिश जेलों में हुई , क्रांति के दौरान बहुत से दास जेलों से भाग निकले और खुद को उन्होंने गुलामी से मुक्ति दिलाई। जो अमेरिका आज सारी दुनिया को लोकतंत्र की रैंकिंग बांटता है, जो कहता है कि मणिपुर में वो भारत की मदद कर सकता है, वो अमेरिका नेटिव अमेरिकन्स की लाश पर खड़ा किया गया था, उनके मानवाधिकारों , उनकी पपरम्पराओं को कुचलकर। अब पूरी दुनिया को लोकतंत्र और मानवाधिकार के सर्टिफिकेट बांटने वाले अमेरिका खुद लोकतान्त्रिक है या नहीं ये हम तभी मानेंगे जिस दिन अमेरिका की सत्ता पर रेड इंडियंस यानि नेटिव अमेरिकन्स का राज होगा, वरना ये सब ब्रिटिश प्रॉपगेंडा से अधिक और कुछ नहीं है।
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