गत 5 अक्टूबर को अमेरिकी विदेश विभाग ने विश्व के 200 से अधिक देशों के लिए यात्रा सम्बन्धी सलाह जारी की। यह एक सामान्य प्रक्रिया है जिसका इस्तेमाल अमेरिकी प्रशासन पहले अपनी विदेश नीति के उद्देश्यों के तहत करता रहा है। वैसे, इस बार जिन देशों के बारे में सलाह जारी की गई है उसमें भारत का नाम भी है।
अमेरिकी विदेश विभाग ने अपने नागरिकों को भारत में अधिक सावधान रहने की सलाह दी है। इस सलाह में अमेरिकी नागरिकों को भारत के कुछ हिस्सों, जैसे जम्मू-कश्मीर और उत्तर पूर्वी राज्यों की यात्रा न करने की सलाह दी गई है। इस सलाह में पर्यटन के लिए मशहूर स्थानों पर आतंकी हमलों को आम बात बताया गया है।
अमेरिकी विदेश विभाग द्वारा जारी इस सलाह को लेकर देश-विदेश में सोशल मीडिया पर जम कर अमेरिका की आलोचना हो रही है। लोगों का कहना है कि भारत पिछले कई वर्षों में आंतरिक सुरक्षा की दृष्टि से अधिकतर शांत रहा है, इसीलिए विदेश विभाग की ऐसी सलाह तर्कपूर्ण नहीं जान पड़ती।
क्या होती है ट्रैवल एडवाइजरी?
ट्रैवल एडवाइजरी अमेरिकी विदेश विभाग द्वारा समय-समय पर अपने नागरिकों के लिए जारी की जाती है जिसमें नागरिकों को सलाह दी जाती है कि उन्हें किस देश की यात्रा करनी चाहिए और किसकी नहीं। इसके अलावा इस एडवाइजरी में अमेरिकी नागरिकों को किन हिस्सों में यात्रा करनी चाहिए और किन हिस्सों में नहीं, इसकी जानकारी रहती है।
इसके चार स्तर होते हैं, पहले स्तर की सलाह में अपने नागरिकों को अमेरिका साधारण सावधानी बरतने, दूसरे में अधिक सतर्क रहने, तीसरे में यात्रा टालने और चौथे में यात्रा न करने जैसे कदम सुझाए जाते हैं। इनके जरिए अमेरिका अपने नागरिकों को वैश्विक यात्राओं की जानकारी देता है। भारत को जर्मनी और स्पेन के साथ इसमें दूसरे स्तर में रखा गया है।
ट्रैवल एडवाइजरी की खामियां क्या भारत की छवि धूमिल करने का प्रयास है?
अमेरिकी प्रशासन द्वारा समय-समय पर जारी ऐसी ट्रैवल एडवाइजरी अमेरिकी कूटनीति का एक हिस्सा बन चुकी हैं। इनकी सहायता से अमेरिकी प्रशासन किसी देश के प्रति न केवल अपने नागरिकों के मन में बल्कि बाकी दुनिया की धारणा भी बनाने की कोशिश करता है। यही कारण है कि इन ट्रैवल एडवाइजरी के लिए शब्दों और उनकी भाषा का चुनाव महत्वपूर्ण होता है।
जैसे भारत के बारे में जारी एडवाइजरी में भारत में सार्वजनिक स्थलों पर आतंकी हमले की संभावना व्यक्त की गई है जबकि सत्य यह है कि 2008 के मुंबई हमले के बाद भारत का सुरक्षा तंत्र पर्याप्त मजबूत हो चुका है और सार्वजनिक स्थलों पर आतंकी हमले नहीं हुए हैं।
एडवाइजरी में अपने नागरिकों को निर्देश में भारत और पाकिस्तान की अंतरराष्ट्रीय सीमा से जुड़े 10 किलोमीटर के इलाकों में न जाने की सलाह दी गई है क्योंकि इन इलाकों में आपसी संघर्ष की संभावना जाहिर की गई है। हालाँकि, 2021 के बाद से भारत और पाकिस्तान में समझौता होने के कारण सीजफायर तोड़ने की कोई बड़ी घटना सामने नहीं आई है।
एक वेबसाइट कार्नेज इंडिया के अनुसार भारत और पाकिस्तान के बीच वर्ष 2021 में सीजफायर उल्लंघन के केवल 664 मामले सामने आए हैं जिनमें जान माल की क्षति पहले जैसी नहीं देखी गई। यह उल्लंघन भी ऐसे इलाकों में हुए हैं जहाँ आम नागरिकों को जाने की सामान्य अनुमति नहीं है।
टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार भारत के गृह राज्य मंत्री ने जुलाई 2022 में राज्यसभा को बताया कि पिछले कुछ वर्षों में आतंकवाद की घटनाओं में कमी आई है। उन्होंने बताया कि वर्ष 2018 में जहाँ 417 हमले हुए, वहीं वर्ष 2021 में हमलों की संख्या घटकर 229 हो गई। इस तरह से देखा जाए तो जम्मू और कश्मीर में आतंकी हमलों की संख्या आधी हो गई है। ऐसे में अमेरिका का अपनी एडवाइजरी में ऐसे शब्दों का प्रयोग भारत के विरुद्ध और पक्षपात पूर्ण लगता है।
दुनिया को सलाह देने वाले अमेरिका में हर दिन गोलीबारी की घटनाएं
अमेरिका भले ही पूरे विश्व को लोकतंत्र और हिंसा पर सलाह देता आया है पर आंतरिक सुरक्षा की दृष्टि से हिंसा का उसका स्वयं का रिकार्ड खराब है। अमेरिका में गोलीबारी की घटनाओं की जानकारी रहने वाली एक संस्था दी गन वाइलेंस आर्काइव के आँकड़ें चौंकाने वाले हैं।
इस संस्था के आँकड़ों के अनुसार अमेरिका में केवल वर्ष 2022 के शुरूआती 9 महीनों में 15 हजार से ज्यादा मौतें सार्वजनिक स्थानों पर मास शूटिंग के कारण हुई। इस दौरान मास शूटिंग की 500 से अधिक घटनाएं हुई और इनमें 800 से अधिक बच्चों की मौत हुई है।
इसी संस्था के आँकड़ों के अनुसार वर्ष 2014 से लेकर अब तक अमेरिका में गोलीबारी की 3,900 से अधिक बड़ी घटनाएं हुईं हैं। यह आँकड़े डराने वाले हैं तथा अमेरिकी समाज में बन्दूक की संस्कृति और उसके फैलाव की सूचना देते हैं।
भारतीय मूल के लोगों के विरुद्ध हाल में घटी घटनाएं
समय-समय पर अपनी आवश्यकता के अनुसार अमेरिका भारत में अपराध की घटनाओं को बढ़ा-चढ़ा कर बताता रहा है, यह और बात है कि ऐसे बहुत कम मौके आये हैं जब भारत में किसी अमेरिकी की हत्या हुई हो या उसके विरुद्ध अपराध हुआ हो। इसके विपरीत अमेरिका में भारतीयों पर हमले आम बात हैं।
हाल ही में हुए एक घटना में भारतीय मूल के एक परिवार के चार लोगों का अपहरण कर उनकी हत्या कर दी गई। यह अकेला ऐसा मामला नहीं है जब भारतीय मूल के लोगों के विरुद्ध हिंसा हुई हो।
इकोनॉमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2020 में अमेरिका में एशियाई मूल के 339 लोग घृणा सम्बंधित हिंसा का शिकार हुए। इनमें से 89 घटनाएँ सिखों के खिलाफ हुईं।
क्या फिर एक बार पाकिस्तान को ढाल बना रहा अमेरिका?
पिछले कुछ दिनों में अमेरिकी सरकार के कई कदम इस दिशा में जाते हुए लग रहे हैं कि वह पाकिस्तान को किसी बहाने आर्थिक या सामरिक मदद कर भारत को नियंत्रित करने की कोशिश कर रहा है। इसका ताजा उदहारण अमेरिका द्वारा पाकिस्तान को उसके F-16 लड़ाकू विमानों के लिए एक पैकेज देना है।
भारत ने इस पर चिंता जताई है। विदेश मंत्री डॉ एस जयशंकर ने अमेरिका में एक कार्यक्रम के दौरान कहा कि; सभी यह जानते हैं कि इन विमानों का उपयोग कहाँ होता है। ऐसे में यह तर्क देकर कि इन विमानों के रखरखाव का पैकेज आतंकी गतिविधियों से लड़ने के लिए दिया गया है, आप किसी को मूर्ख नहीं बना रहे।
इसके अतिरिक्त अमेरिका द्वारा पाकिस्तान को इस साल कुल 65 मिलियन डॉलर की मदद का वादा किया गया है। शुरुआत में यह 55 मिलियन डॉलर थी, बाद में पाकिस्तान में आई भयावह बाढ़ के बाद जब पाकिस्तान के विदेश मंत्री अमेरिका से अतिरिक्त मदद की मांग की तब अमेरिका ने खाद्य सामग्री के लिए 10 मिलियन डॉलर की अतिरिक्त मदद का आश्वासन दिया है।
पाकिस्तान में अमेरिका के राजदूत डोनाल्ड ब्लोम भी इस दौरान पाकिस्तान द्वारा अवैध रूप से कब्जा किये गए जम्मू-कश्मीर के हिस्से की यात्रा कर रहे हैं। उन्होंने अपने एक ट्वीट में इसे आजाद जम्मू कश्मीर बताया जिस पर भारत ने अपना विरोध दर्ज कराया है।
भारत का यूक्रेन-रूस संघर्ष पर स्टैंड हो सकती है वजह
भारत के रूस के साथ संबंध पुराने रहे हैं। भारत ने इसी वर्ष फरवरी माह से चले आ रहे यूक्रेन-रूस संघर्ष में निष्पक्ष रवैया अपनाया और दोनों पक्षों से शान्ति की अपील करता आया है। सितम्बर माह में उज्बेकिस्तान में शंघाई सहयोग समिति की बैठक में भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रूस के राष्ट्रपति पुतिन से मसले का हल शांति से करने की सलाह दी।
इस दौरान भारत अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए रूस से तेल खरीदता रहा है जो अमेरिका और यूरोपीय देशों को रास नहीं आया है। यही कारण है कि पश्चिमी देश और अमेरिका लगातार भारत पर दबाव बनाते रहे हैं कि भारत रूस से किसी भी तरह का व्यापार न करे।
विदेश मंत्री जयशंकर ने भी साफ़ कहा है कि जहाँ से सस्ते दामों में ऊर्जा मिलेगी हम वहां से खरीदेंगें। उन्होंने कहा कि मेरे देश में अभी भी बड़ी आबादी 2000 डॉलर से नीचे अपनी गुजर बसर करती है, उनके हित में ऊर्जा की अच्छी डील करना हमारी नैतिक जिम्मेदारी है।
ऐसे में यह कयास लगाया जान स्वाभाविक है कि अमेरिका द्वारा लगातार पाकिस्तान के समर्थन में कदम उठाना भारत द्वारा रूस के विरुद्ध सार्वजनिक तौर कोई पर कड़ा विरोध न करने का परिणाम है। यह बात अलग है कि अमेरिका ने अपने पिछले बयानों में इस बात से इनकार किया है कि उसकी पाकिस्तान को मदद भारत के रूस के ऊपर कड़ा कदम ना उठाने के विरोध में एक सन्देश है।
अमेरिका द्वारा जारी यह ट्रैवल एडवाइजरी भारत-अमेरिकी संबंधों को नए दृष्टिकोण से देखने के लिए विवश करता है और हाल में घटी वैश्विक घटनाओं पर भी नए दृष्टिकोण को आमंत्रित करता है। इसके परिणामस्वरूप पैदा होने वाली वैश्विक आर्थिक मंदी भविष्य की विश्व व्यवस्था को किस दिशा में ले जाती है, यह देखना दिलचस्प होगा।