बिहारियों का छठ महापर्व देश से लेकर विदेश तक में अपना रंग बिखेर रहा है। वास्तव में यह कहना पड़ेगा कि बिहार के लोग देश और विदेश में जहाँ-जहाँ पहुँचे, वहाँ-वहाँ छठ भी पहुँच गया।
छठ भारत की संस्कृति का अभिन्न हिस्सा तो है ही लेकिन साथ ही यह भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए भी बूस्टर का काम करता है।
कनफ़ेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (CAIT) ने अपनी एक रिपोर्ट में उम्मीद जताई है कि इस वर्ष छठ महापर्व से लगभग 12 हजार करोड़ रुपये से भी ज्यादा का व्यापार होगा। रिपोर्ट का कहना है कि छठ पूजा में इस्तेमाल होने वाली सामग्री जैसे बांस के सूप, केले के पत्ते, गन्ना, मिठाई, फल, फूल, मिट्टी के चूल्हे, और सब्जियों में विशेष रूप से नारियल, सेब, केला और हरी सब्जियां खरीदी जा रही हैं।
इसके अलावा, महिलाओं के पारंपरिक परिधानों, जैसे साड़ी, लहंगे और पुरुषों के कुर्ता-पायजामा, धोती आदि की बड़ी खरीदारी हुई है, जिसका स्थानीय व्यापारियों को भरपूर लाभ मिला है।
कैट के महासचिव और सांसद प्रवीण खंडेलवाल ने अर्थव्यवस्था के लिहाज से कहा है कि यह महापर्व स्थानीय उत्पादकों को सीधे लाभ पहुंचाता है, जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘वोकल फॉर लोकल’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ के दृष्टिकोण को भी मजबूत करता है। उन्होंने बताया कि छठ पूजा के दौरान उपयोग किए जाने वाले अधिकांश उत्पाद स्थानीय कारीगरों और शिल्पकारों द्वारा तैयार किए जाते हैं, जिससे रोजगार के नए अवसर पैदा होते हैं और कुटीर उद्योगों को समर्थन मिलता है।
ये तो हुई छठ और अर्थव्यवस्था की बात। अब बात करते हैं इसके सांस्कृतिक महत्व और पूजा पद्धति की।
छठ पूजा भारत की लोक संस्कृति का एक बड़ा त्योहार है। बिहार, दिल्ली और झारखंड के अलावा देश के अन्य राज्यों में बसे पूर्वांचल के लोग बेहद उत्साह और उमंग के साथ छठ पूजा कर रहे हैं। एक अनुमान के मुताबिक सम्पूर्ण भारत में इस समय लगभग 15 करोड़ से अधिक लोग छठ पूजा में शामिल होंगे जिनमें स्त्री, पुरुष, युवा और बच्चे सभी शामिल हैं।
पूजा की बात करें तो सूर्य देव को समर्पित छठ महापर्व में छत्तीस घंटों तक महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं और अपने घर एवं प्रियजनों के सुख, समृद्धि और लम्बी उम्र की कामना करती है। इस शुभ अवसर पर सूर्य देव और उनकी पत्नी उषा, प्रत्युषा की विधि पूर्वक उपासना करने का विधान है। मान्यता है कि पूजा करने से जातक को छठी मइया की कृपा प्राप्त होती है।
चार दिनों तक चलने वाले छठ महापर्व में पहला दिन नहाय खाय के साथ शुरू होता है जहाँ महिलाएं पवित्र नदी में स्नान करती हैं और दिन में एक बार भोजन करती हैं। दूसरे दिन को खरना कहा जाता है। इस दिन महिलाएं सूर्योदय से सूर्यास्त तक निर्जला व्रत रखती हैं यानी पानी का एक घूंट भी नहीं पीना है। तीसरे दिन भी निर्जला व्रत रखा जाता है और सूर्यास्त को अर्घ्य दिया जाता है। त्योहार के अंतिम दिन, महिलाएं सुबह सूर्य भगवान को उषा अर्घ्य देती हैं और फिर शुभ मुहूर्त में अपना व्रत खोलती हैं। मान्यता है कि इस व्रत को निभाने वालों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
इसी के साथ आप सभी को छठ की शुभकामनाएं। छठी मइया की कृपा आप पर भी बनी रहे। जय हो छठी मैया।
यह भी पढ़े : छोलिया नृत्य: उत्तराखंड के कुमाऊँ का पौराणिक सांस्कृतिक नृत्य