तिब्बत के निवासियों की धार्मिक स्वतंत्रता पर चीन की बेरुखी से दुनिया वाकिफ रही है। इसके बीच तिब्बती बौद्ध धर्म के खिलाफ चीन के बौद्धिक कपट और हिंसक हमलों को शी जिनपिंग की बड़ी योजना के रूप में देखा जाना चाहिए। तिब्बती बौद्ध धर्म एक अमूल्य सांस्कृतिक विरासत है जो आज भी दुनिया भर के लोगों को प्रेरित कर रही है। तिब्बत के निर्वासित नेता दलाई लामा के लाखों अनुयायी उन्हें शांति, अहिंसा और वैश्विक उत्तरदायित्व वाले दार्शनिक के रूप में देखते हैं।
पर, चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (CCP) तिब्बत पर अपने दावे को वैध बनाने के लिए और पठार पर अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए तिब्बती बौद्ध धर्म के तत्व को नष्ट करके इसे चीनी बनाने के मिशन पर चल रही है। तिब्बत न केवल चीन के लिए बल्कि पूरे एशिया के लिए रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है। तिब्बत राइट्स कलेक्टिव की रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन तिब्बत पर अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए तिब्बती बौद्ध धर्म की भ्रामक व्याख्याएं कर रहा है।
लामा पद पर चीनी प्यादे द्वारा घात
यह नीति चीन द्वारा नियुक्त बौद्ध लामा ग्यालत्सेन नोरबू के भाषणों से प्रतिध्वनित होती है। मार्च 2021 में, अपने एक साक्षात्कार में, उन्होंने कहा कि “तिब्बती बौद्ध धर्म चीनी विशेषताओं वाले समाजवादी समाज की स्थितियों के अनुकूल होगा और सैनिकीकरण की ओर बढ़ेगा”। चीनी बौद्ध संघ के उपाध्यक्ष और तिब्बत शाखा के अध्यक्ष के रूप में, नोरबू ने हाल ही में तिब्बती गांवों का दौरा किया और मठों में तिब्बतियों से मुलाकात की है जहां उन्होंने “तिब्बती बौद्ध सिद्धांत” पर व्याख्यान दिए हैं।
लामा पद के चीनी उम्मीदवार नोरबू को बुद्ध का पुनर्जन्म घोषित करने की कोशिश
चीनी मीडिया नोरबू को “तिब्बती बौद्ध धर्म में सबसे प्रभावशाली जीवित बुद्धों में से एक” के रूप में पेश करती है। चीन द्वारा नोरबू को चीन के बौद्धसंघ जैसे संस्थानों में पद देकर, तिब्बती बौद्ध समुदाय में पैठ बनाने के लिए एक उपकरण के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है। यहां तक कि उन्हें अवलोकितेश्वर बुद्ध का पुनर्जन्म घोषित किया जा रहा है ताकि अगले लामा पद का उम्मीदवार बनाया जा सके। हर कोई चूंकि दलाई लामा को अवलोकितेश्वर का पुनर्जन्म माना जाता है और उनमें सभी बुद्धों की करुणा होती है। विडंबना यह है कि चीन स्वयं एक नास्तिक राष्ट्र है।
दलाई लामा द्वारा घोषित उत्तराधिकारी का चीन ने किया था अपहरण
1995 में, वर्तमान दलाई लामा ने 6 वर्षीय गेधुन चोएक्यी न्यिमा को 11वें पंचेन लामा के रूप में मान्यता दी थी। हालांकि, उसके तीन दिन बाद ही चीनी सरकार ने उनका अपहरण कर लिया और उसके बाद आज तक उनका कोई पता नहीं चला है। वह दुनिया के सबसे कम उम्र के ज्ञात राजनीतिक कैदी हैं।
इसके बजाय, 1995 में चीनी सरकार ने ग्यालत्सेन नोरबू को 11वें ‘आधिकारिक’ पंचेन लामा के रूप में मान्यता दी थी। पंचेन लामा की परम्परा को हथियाने के इस प्रयास में हाल ही में ग्यालत्सेन नोरबू ने तिब्बत के क्षेत्रों का दौरा किया और इस दौरान तिब्बती बौद्ध धर्म की विकृत व्याख्याएं पेश कीं। चीनी सरकार इस तरह उन्हें तिब्बती बौद्ध धर्म के चेहरे के रूप में पेश करना चाहती है ताकि तिब्बत में चीनी शासन को वैधता बनाया जा सके।
चीन की कम्युनिस्ट पार्टी 14वें दलाई लामा के पुनर्जन्म की प्रक्रिया और उसके आसपास की कथाओं को नियंत्रित करने पर भी आक्रामक रूप से ध्यान केंद्रित कर रही है। चीनी सरकार ने वर्तमान दलाई लामा को अलगाववादी घोषित कर रखा है इसलिए तिब्बतियों को दलाई लामा की तस्वीर रखने, फोन में तस्वीर रखने, उनका जन्मदिन मनाने, और यहां तक कि सोशल मीडिया पर भी उनके बारे में बात करने पर गिरफ्तार कर लेते हैं।
बौद्ध धर्म के चीनी संस्करण की रूपरेखा बना रहा चीन
पूर्वी तुर्किस्तान के शिनजियांग क्षेत्र की अपनी एक यात्रा में, चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने उल्लेख किया कि चीन में इस्लाम “अभिविन्यास में चीनी” होना चाहिए। यह वही क्षेत्र है जहां सीसीपी पर उइगरों के लिए नसबंदी शिविर चलाने और मानवाधिकारों के उल्लंघन का आरोप है। यहाँ जिनपिंग ने कहा था कि, “चीन में इस्लाम के स्वरुप को चीनी बनाने के लिए उन्नत प्रयास किए जाने चाहिए, और धर्मों को एक समाजवादी समाज के अनुकूल बनाना चाहिए।”
अब यही नीति सीसीपी तिब्बती बौद्ध धर्म के प्रति अपना रही है। इसका उद्देश्य तिब्बती बौद्ध धर्म को चीनी समाजवादी चरित्र के लिए “अनुकूल” बनाना है।
दिसंबर 2021 में धार्मिक मामलों के राष्ट्रीय सम्मेलन को संबोधित करते हुए, शी जिनपिंग ने “चीनी संदर्भ में धर्मों का विकास” के सिद्धांत के महत्व पर जोर दिया था। पिछले साल जुलाई में सीसीपी की 100वीं वर्षगांठ के अवसर पर शी की ल्हासा की बहुचर्चित यात्रा ने तिब्बत को चीनी विशेषताओं वाली समाजवादी इकाई के रूप में विकसित करने पर जोर दिया था।
बुद्ध प्रतिमाओं और मठों को किया जा रहा है ध्वस्त
तिब्बत राइट्स कलेक्टिव के लिए तेनज़िन त्सेटेन और लक्ष्मी पी लेखन ने कहा कि चीनी अधिकारी तिब्बती बौद्धों के पारम्परिक प्रतीकों के विनाश में भी शामिल रहे हैं।
दिसंबर 2021 में, चीन ने तीन तिब्बती बौद्ध मूर्तियों को नष्ट कर दिया था। ड्रैगो के एक बौद्ध मठ में तीन मंजिला विशाल बुद्ध प्रतिमा को जनवरी 2022 की शुरुआत में नष्ट कर दिया गया था, इसके कुछ ही दिन पहले इस मठ से केवल 900 मीटर दूर स्थित बुद्ध की 99 फुट की प्रतिमा को चीनी सरकार ने गिरा दिया था।
तिब्बती बौद्ध धर्म के संस्थापक गुरु पद्मसंभव की प्रतिमा ध्वस्त की
इसके कुछ ही दिनों बाद तिब्बती स्वायत्त क्षेत्र कर्दज़े के ड्रैगो काउंटी में छह साल पहले निर्मित चानांग बौद्ध मठ में स्थित तिब्बती बौद्ध धर्म के सबसे मुख्य गुरु पद्मसंभव की प्रतिमा को ध्वस्त कर दिया। गौरतलब है कि तिब्बत में बौद्ध धर्म की स्थापना गुरु पद्मसंभव ने ही की थी। भारत के नालंदा विश्वविद्यालय के प्रसिद्ध सत्रह असाधारण विद्वानों में से एक 8वीं शताब्दी के महान भारतीय तांत्रिक गुरु, ‘गुरु पद्मसंभव’ बौद्ध धर्म में एक बहुत बड़े महापुरुष माने जाते हैं।
तिब्बत पर चीनी आक्रमण और सांस्कृतिक क्रांति के बाद से, कई बौद्ध मठों को नष्ट कर दिया गया और वहां से बौद्ध भिक्षुओं को बेदखल कर दिया गया; ‘आकाश में स्थित तिब्बती शहर’ कहलाने वाला ‘लारुंग गार’ उनमें से एक है।
चीन को रोकने में विश्व समुदाय नाकाम
तिब्बतियों के धर्म और विश्वास के आधार पर उनके साथ असहिष्णुता और भेदभाव की ऐसी हिंसक घटनाओं के खिलाफ विश्व संगठनों को अधिक सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए। हालांकि, संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयुक्त मिशेल बाचेलेट इस साल की शुरुआत में जब चीन की यात्रा पर गयीं, तो उन्होंने तिब्बत का दौरा करने से इंकार कर दिया। इसके बाद चीन में उइगर लोगों पर हो रही ज्यादतियों के लिए यूएन की रिपोर्ट तो आई, लेकिन उनके कार्यकाल के अंतिम दिन। बहुत लोगों ने उन्हें उस क्षेत्र का दौरा करने के लिए कहा था जहां बौद्ध बच्चों को औपनिवेशिक शैली के बोर्डिंग स्कूलों में जबरदस्ती दाखिल किया जाता है, और वहाँ उन्हें धार्मिक शिक्षा से वंचित किया जाता है।
तिब्बत राइट्स कलेक्टिव रिपोर्ट में कहा गया है कि खानाबदोशों को उनकी पारंपरिक भूमि से हटाकर सरकारी बस्तियों में ले जाया जाता है और वहाँ उन्हें जबरदस्ती ‘प्रोपेगेंडा’ शिक्षा दी जाती है। तिब्बतियों की भाषा और धार्मिक अधिकारों के लिए बोलने वाले बौद्ध भिक्षुओं को तुरंत हिरासत में ले लिया जाता है और चीनी जेलों में प्रताड़ित किया जाता है।
तिब्बत एशिया का जल स्तम्भ है जो लगभग 1.4 बिलियन लोगों की आबादी को जल देता है। ग्लोबल वार्मिंग, जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न जलसंकट से जूझ रही दुनिया में, तिब्बत बहुत महत्वपूर्ण है। यह आज की दुनिया पर एक नीला बिंदु है और दुनिया के भविष्य की कुंजी है। तिब्बत को भारतीय ग्रन्थों में त्रिविष्टप कहा गया है और कई विद्वानों द्वारा इसे मानवों की उत्पत्ति का मूल स्थान बताया गया है।
संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 22 अगस्त को धर्म या विश्वास के आधार पर हिंसा के पीड़ितों की याद के अंतरराष्ट्रीय दिवस के रूप में नामित किया था। संयुक्त राष्ट्र ने धर्म और विश्वास के आधार पर लोगों और अल्पसंख्यकों से मानवाधिकार उल्लंघन करने वालों की निंदा भी की थी।
1981 में संयुक्त राष्ट्र ने घोषणा की थी कि यह सुनिश्चित किया जाएगा कि ” कोई भी व्यक्ति किसी भी राज्य, संस्था, व्यक्तियों के समूह द्वारा धर्म के आधार पर भेदभाव का शिकार न बने।” पर, दुनिया की छत कहे जाने वाले तिब्बत पर चीन ने आक्रमण करके इसके ऊपर अवैध रूप से कब्जा कर रखा है और तिब्बतियों की धार्मिक स्वतंत्रता का खुला उल्लंघन कर रहा है।