प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार समिति की सदस्य शमिका रवि ने हाल ही में एक रिसर्च पेपर जारी किया है। इस रिसर्च पेपर में आंकड़ों के साथ कई महत्वपूर्ण जानकारियां दी गई हैं। पेपर में देश के आर्थिक विकास के सम्बंध में तथ्यों पर आधारित सारगर्भित बातें बताई गई हैं। इसके साथ ही एक महत्वपूर्ण जानकारी यह भी दी गई है कि अब ग्रामीण इलाके भी देश की अर्थव्यवस्था में अपना योगदान बढ़ा रहे हैं। कई राज्यों की आर्थिक स्थिति में सुधार होता दिखाई दे रहा है।
रिसर्च में यह भी बताया गया है कि कैसे भारत में तेज गति से हो रहे आर्थिक विकास का लाभ देश के युवाओं को रोजगार के अधिक अवसरों के रूप में मिल रहा है। आज भारत में केवल मुंबई, दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई, बैंगलोर, हैदराबाद, पुणे जैसे महानगर ही देश के विकास में भागीदारी नहीं कर रहे हैं बल्कि ग्रामीण इलाकों में भी पर्याप्त विकास हो रहा है। इससे रोजगार के अवसर भी इन इलाकों में निर्मित हो रहे हैं।
सबसे अधिक विकास आज अविकसित क्षेत्रों में हो रहा है। गुजरात, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, कर्नाटक जैसे राज्यों के साथ-साथ उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, उत्तराखंड और नॉर्थ ईस्ट के इलाके भी तेजी से विकास कर रहे हैं। विकास के कई नए क्षेत्रों का निर्माण हुआ है। आर्थिक तौर पर पिछड़े इन राज्यों में निरंतर गति पकड़ रहा विकास देश के सकल घरेलू उत्पाद में तेजी से वृद्धि दर्ज करने में सहायक सिद्ध होगा।
ग्रामीण इलाकों में मूलभूत सुविधाओं का अतुलनीय विस्तार हुआ है। यही कारण है कि अब सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र में कार्य करने वाली कम्पनियां भी अपने संस्थानों को ग्रामीण क्षेत्रों में स्थापित कर रही हैं या फिर इस पर चर्चा हो रही है। देश के दक्षिणी हिस्से में कुछ कंपनियों ने इस सम्बंध में अच्छी पहल की है।
प्राचीन भारत में ग्रामीण क्षेत्र ही आर्थिक विकास के मजबूत केंद्र रहे हैं। इससे इन क्षेत्रों के नागरिकों को रोजगार के अवसर भी इनके आसपास के इलाकों में मिल जाते हैं। आसपास रोजगार मिलने से लोगों को शहरी क्षेत्रों की ओर पलायन करने की आवश्यकता नहीं पड़ती। दूसरे, सामान्यतः देश के विभिन्न राज्यों की वित्तीय स्थिति में भी मजबूती आई है। कुछ राज्यों के बजटीय घाटे में अतुलनीय सुधार दृष्टिगोचर हुआ है।
इसके साथ ही पंजाब, केरल, पश्चिम बंगाल, हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों में बजटीय घाटे की स्थिति लगातार दयनीय हो रही है। इन राज्यों की बजटीय स्थिति को संभालने की आवश्यकता है क्योंकि एक तो इन राज्यों में विकास दर कम होती जा रही है दूसरे ये राज्य बजट को ध्यान में रखे बिना धड़ल्ले से मुफ्त योजनाएं चला रहे हैं। इस प्रकार के बढ़े हुए खर्चे इन राज्यों के बजट पर अंततः दबाव बढ़ाते हैं।
देखा जाये तो आज देश में कुछ राज्यों में ब्याज के भुगतान, प्रशासन सम्बंधी खर्चों एवं सेवानिवृत्त कर्मचारियों को पेंशन का भुगतान करने में ही बजट की राशि समाप्त हो जाती है। प्रदेश में विकास कार्य करने के लिए कोई राशि नहीं बचती बल्कि कुछ राज्यों को तो इन मदों पर भुगतान करने हेतु भी ऋण लेना होता है जो बजट पर और अधिक दबाव को बढ़ाता है।
पूंजीगत खर्चे इन राज्यों में कम हो पा रहे हैं, जिससे इन राज्यों में प्रति व्यक्ति आय भी कम है और ये राज्य विकास की दर को हासिल नहीं कर पा रहे हैं। दिल्ली इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। दिल्ली में 10 वर्ष पूर्व तक पूंजीगत मदों पर बजट का एक बहुत बड़ा भाग खर्च होता था परंतु पिछले 10 वर्षों में पूंजीगत व्यय में भारी कमी दृष्टिगोचर हुई है। पंजाब की स्थिति भी बदतर होती दिखाई दे रही है। 20 वर्ष पूर्व तक पंजाब देश में सबसे अमीर राज्यों की श्रेणी में शामिल था परंतु आज इसके आसपास के हिमाचल और हरियाणा जैसे राज्य इससे आगे निकल गए हैं।
इन राज्यों में उद्योगों को स्थापित करने की आज सबसे अधिक आवश्यकता है। पंजाब से उद्योग निकलकर हिमाचल प्रदेश एवं हरियाणा में चला गया है। मध्य प्रदेश एवं बिहार कृषि के क्षेत्र में भारी वृद्धि दर्ज कर रहे हैं परंतु उद्योग के कम मात्रा में होने के चलते इन राज्यों में प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि दर तुलनात्मक रूप से कम है।
किसी भी देश के लिए श्रम की भागीदारी एवं बेरोजगारी दो अलग-अलग मुद्दे हैं। श्रम की भागीदारी में 18 वर्ष से 59 वर्ष के बीच के वे लोग शामिल रहते हैं जो अर्थ के अर्जन हेतु या तो कुछ कार्य कर रहे हैं अथवा कोई आर्थिक कार्य करने को उत्सुक हैं एवं इस हेतु रोजगार तलाश रहे हैं। पिछले 40 वर्षों के दौरान चीन में श्रम की औसत भागीदारी 75 प्रतिशत से ऊपर रही है। अर्थात प्रत्येक 4 में से 3 लोग या तो रोजगार में रहे हैं अथवा रोजगार तलाशते रहे हैं।
वियतनाम में श्रम की भागीदारी 72 से 73 प्रतिशत की बीच रही है। बांग्लादेश में यह 60 प्रतिशत से अधिक रही है, परंतु भारत में श्रम की भागीदारी 5 वर्ष पूर्व तक केवल 50 प्रतिशत के आसपास थी जो आज बढ़कर 57 प्रतिशत हो गई है। इसका अर्थ ये हुआ कि देश की कुल कार्य करने योग्य जनसंख्या में से आधे से कुछ कम आबादी रोजगार में नहीं है और रोजगार तलाश भी नहीं रही है। यह स्थिति भारत जैसे देश के लिए ठीक नहीं है।
दूसरे, बेरोजगारी से आशय ऐसे नागरिकों से है जो रोजगार तलाश रहे हैं लेकिन उन्हें रोजगार मिल नहीं रहा है। भारत में ऐसे नागरिकों की संख्या मात्र 3 प्रतिशत ही है। समय के साथ बेरोजगारी की दर में थोड़ा बहुत परिवर्तन होता रहता है, परंतु जब इस स्थिति को विभिन्न प्रदेशों के बीच तुलना करते हुए देखते हैं तो बेरोजगारी की दर में भारी अंतर दिखाई देता है। गुजरात, छत्तीसगढ़, कर्नाटक जैसे राज्यों में बेरोजगारी की दर 0.9 से 1.5 प्रतिशत के बीच है, जबकि केरल में 12.5 प्रतिशत है।
आर्थिक विकास में वृद्धि के साथ-साथ रोजगार के अवसर भी अधिक निर्मित होते हैं। इसलिए आज देश में रोजगार के नए अवसर निर्मित करने के लिए व्यवसाय को बढ़ाना होगा, विकास को बढ़ाना होगा। केवल केंद्र सरकार एवं राज्य सरकारें समस्त नागरिकों को रोजगार उपलब्ध नहीं करा सकती है।
केंद्र सरकार एवं राज्य सरकार के संस्थानों के रोजगार के अवसर निर्मित करने की कुछ सीमाएं हैं। इसलिए निजी क्षेत्र को आगे आना ही होगा। आज भारत में 30 वर्ष के अंदर की उम्र के नागरिकों में बेरोजगारी की दर 12 प्रतिशत है, जबकि देश में कुल बेरोजगारी की दर 3.1 प्रतिशत है। अतः देश के युवाओं में बेरोजगारी की दर अधिक दिखाई देती है।
देश के युवाओं में कौशल का अभाव है। इसलिए केंद्र सरकार विशेष कार्यक्रम लागू कर युवाओं में कौशल विकसित का प्रयास कर रही है। भारत में युवाओं के लिए कहा जा रहा है कि वे 30 वर्ष की उम्र तक काम करना ही नहीं चाहते हैं, क्योंकि इस उम्र तक वे रोजगार के अच्छे अवसर ही तलाशते रहते हैं।
30 वर्ष की उम्र के बाद वे दबाव में आने लगते हैं एवं फिर उन्हें जो भी रोजगार का अवसर प्राप्त होता है उसे वे स्वीकार कर लेते हैं। इसलिए 30 वर्ष से अधिक की उम्र के नागरिकों के बीच बेरोजगारी की दर बहुत कम है। यह स्थिति हाल ही के समय में विश्व के अन्य देशों में भी देखी जा रही है। युवाओं की अपनी नजर में सही रोजगार के अवसर के लिए वे इंतजार करते रहते हैं, अथवा वे अपनी पढ़ाई जारी रखते हैं।
आज विशेष रूप से भारत में रोजगार के अवसरों की कमी नहीं है। युवाओं में कौशल एवं मानसिकता का अभाव एवं केवल सरकारी नौकरी को ही रोजगार के अवसर के लिए चुनना ही भारत में श्रम की भागीदारी में कमी के लिए जिम्मेदार तत्व हैं। अधिक डिग्रीयां प्राप्त करने वाले युवा रोजगार के अच्छे अवसर तलाश करने में ही लम्बा समय व्यतीत कर देते हैं। कम डिग्री प्राप्त एवं कम पढ़े लिखे नागरिक छोटी उम्र से ही रोजगार प्राप्त कर लेते हैं।
यह भी कटु सत्य है कि डिग्री प्राप्त करने एवं वास्तविक धरातल पर कौशल विकसित करने में बहुत अंतर है। आज भी भारत में कई कम्पनियों की शिकायत है कि देश में इंजीनीयर्स तो बहुत मिलते हैं परंतु उच्च कौशल प्राप्त इंजीनीयर्स की भारी कमी हैं।
तमिलनाडु में किए गए एक अध्ययन में यह तथ्य उभर का सामने आया है कि किसी भी देश के नागरिक जब अधिक उम्र में रोजगार प्राप्त करते हैं तो उनकी कुल उम्र भर की कुल वास्तविक औसत आय बहुत कम हो जाती है। इसके विपरीत जो नागरिक अपनी उम्र के शुरूआती पड़ाव में ही रोजगार प्राप्त कर लेते हैं उनकी कुल उम्र भर की वास्तविक औसत आय तुलनात्मक रूप से बहुत बढ़ जाती है।
भारत में स्टार्ट-अप्स को जिस तरह से सरकार बढ़ावा दे रही है उसे जारी रखना चाहिए। इसके साथ ही युवाओं को सरकारी नौकरी की चाहत छोड़कर निजी क्षेत्र में रोजगार प्राप्त करने के प्रयास करने चाहिए। इसके साथ ही युवाओं को अपने स्वयं का व्यवसाय प्रारम्भ करना का प्रयास भी करना चाहिए।