“कल सियासत में भी मोहब्बत थी, आज मोहब्बत में भी सियासत है” अज्ञात शायर की ये पंक्ति आज भारतीय राजनीति पर एकदम सटीक बैठती है।
नीचे की तस्वीर को बहुत ध्यान से देखिए। तस्वीर में अटल बिहारी वाजपेयी, पीवी नरसिम्हा राव और चंद्रशेखर तीनों नेता एक साथ बैठे दिखाई दे रहे हैं। आपस में कुछ बातचीत करते हुए, हँसते हुए दिखाई दे रहे हैं।
याद रखिए, तीनों नेता अलग-अलग पार्टी के थे। तीनों की राजनीतिक विचारधारा अलग-अलग थी और तीनों नेता अलग-अलग समय में प्रधानमंत्री रहे चुके थे।
इसके बाद भी तीनों के बीच में व्यक्तिगत स्तर पर कोई खटास नहीं थी। ये नेता देश की राजनीति के अलिखित नियमों और परंपराओं के प्रति सचेत थे। जी, सोनिया गांधी के राजनीति में पदार्पण से पहले देश की राजनीति ऐसी ही थी।
ऐसे ढेर सारे किस्से हमें राजनीति में मिलते हैं। आपने सुना होगा कि कैसे अटल जी ने पंडित नेहरू की सदन में जमकर आलोचना की थी और शाम को पंडित जी ने अटल जी की पीठ थपथापते हुए कहा था कि बहुत अच्छा भाषण दिया।
आपने ये किस्सा भी ज़रूर सुना होगा कि अटल जी के कहने पर पंडित जी की तस्वीर संसद के गलियारे में दोबारा लगाई गई थी। आपने ये भी सुना होगा कि कैसे अटल जी जब संसद में बोलते थे और बीच में कोई टीका-टिप्पणी करता था तो चंद्रशेखर उठकर स्पीकर से इसकी शिकायत करते थे।
1994 का वो किस्सा कौन भूल सकता है जब प्रधानमंत्री रहते हुए पीवी नरसिम्हा राव ने विपक्ष के नेता अटल बिहारी वाजपेयी को संयुक्त राष्ट्र में देश का प्रतिनिधित्व करने के लिए भेजा था।
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सोनिया गांधी के सक्रिय राजनीति में आने से पहले के ऐसे तमाम किस्से हैं। इन किस्सों से समझ आता है कि देश के राजनीतिक दल तमाम वैचारिक मतभेदों के बाद भी आपस में मनभेद नहीं रखते थे, कटुता नहीं रखते थे, व्यक्तिगत स्तर पर टिप्पणियां नहीं करते थे। राजनीतिक विरोधियों को राजनीतिक विरोधी की तरह देखते थे, दुश्मन की तरह नहीं।
Sonia Gandhi के सक्रिय राजनीति में आने के बाद भारतीय राजनीति की यह संस्कृति 180 डिग्री बदल गई। एक बार ऊपर के फ़ोटो फिर से देखिए। पीछे अटल, राव और चंद्रशेखर हँसते हुए दिखाई दे रहे हैं और सामने सोनिया गांधी मुँह फुलाकर बैठी दिखाई दे रही हैं। कह सकते हैं कि क्रोध में बैठी हैं।
सोनिया गांधी की ये फ़ोटो उनकी राजनीति की शुरूआती दौर की है। इससे एक बात तो समझ आती है कि मोहब्बत उनकी राजनीति में कभी थी ही नहीं।
याद करिए 1997 में राजनीति में एंट्री लेने के बाद कैसे उन्होंने भाजपा को राजनीतिक तौर पर अस्पृश्य बनाने का प्रयास किया। जो भी दल या नेता भाजपा के साथ जाता था उसे सांप्रदायिक बता दिया जाता था।
इससे समझ आता है कि कैसे सोनिया गांधी ने राजनीति में आने के बाद देश की राजनीतिक परंपराओं को देश की राजनीतिक सुचिता को तहस-नहस किया। मजे की बात ये है कि उनकी इस नफरत की राजनीति का शिकार सिर्फ विरोधी दल और नेता ही नहीं बने बल्कि उन्होंने कांग्रेस के नेताओं को भी नहीं छोड़ा।
सीताराम केसरी को अध्यक्ष पद से हटाने के लिए उनके साथ क्या किया गया- ये जगजाहिर है। कैसे उनके साथ धक्का-मुक्की की गई, उनके कपड़े फाड़े गए, उन्हें बाथरूम में बंद कर दिया गया। वरिष्ठ पत्रकार बताते हैं कि ये सबकुछ सोनिया गांधी के निर्देश पर किया गया।
अकेले सीताराम केसरी ही नहीं बल्कि पीवी नरसिम्हा राव के साथ भी सोनिया गांधी की कांग्रेस ने इसी तरह का व्यवहार किया। राव के प्रति सोनिया गांधी की नफरत का आलम ये था कि उनके निधन के बाद उनकी पार्थिव शरीर को कांग्रेस मुख्यालय तक में नहीं रखने दिया गया था।
जब कांग्रेस मुख्यालय से शव-यात्रा निकली तो कांग्रेस दफ्तर का दरवाजा बंद कर दिया गया था। राव के परिवारीजनों की तमाम विनती के बाद भी उन्हें दिल्ली में अंतिम संस्कार की जगह नहीं दी गई।
ये है Sonia Gandhi की राजनीति। यही राजनीति है जिसके कारण गुजरात में मुख्यमंत्री रहते हुए नरेंद्र मोदी को नफरत की पराकाष्ठा पार करते हुए निशाना बनाया गया। स्वयं सोनिया गांधी ने उन्हें मौत का सौदागर तक कहा।
याद रखिए, सोनिया गांधी के आने से पहले कांग्रेस का ऐसा कल्चर नहीं था। ऊपर पंडित नेहरू के उदाहरणों से समझ आता है कि कांग्रेस भी भारतीय राजनीतिक पंरराओं के अनुसार सभी दलों और सभी नेताओं से मिल-जुलकर चलने वाली पार्टी थी लेकिन सोनिया गांधी के कांग्रेस की कमान संभालने के बाद कांग्रेस बदलती चली गई।
आज Sonia Gandhi के बेटे राहुल गांधी नफरत की राजनीति में मोहब्बत की दुकान खोलने की बात करते हैं। सवाल है कि राजनीति में ये नफरत फैलाई किसने? राजनीतिक इतिहास को देखें तो समझ आता है कि सोनिया गांधी के पदार्पण के बाद कांग्रेस ने नफरत की राजनीति की शुरुआत की।
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भाजपा तो उस समय भी वैसी ही थी। भारतीय परंपराओं औ संस्काराओं में घुली-मिली और आज भी वैसी ही है। 2014 में जब मोदी जी पीएम बने तब प्रणब मुखर्जी राष्ट्रपति थे। पीएम मोदी ने उनके साथ बेहतरीन संबंध बनाए। उन्हें सम्मान दिया।
कांग्रेस का नेता होने के बाद भी पीएम मोदी ने उन्हें भारत रत्न तक दिया। उन्होंने कांग्रेस के ही दूसरे दिग्गज नेता पीवी नरसिम्हा राव को भी मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया। यही तो देश की राजनीतिक परंपराएं थी, लेकिन Sonia Gandhi के कमान संभालने के बाद कांग्रेस इन परंपराओं को तिलांजलि देती दिखाई दी।
भाजपा में आज भी आपको ऐसे कई नेता मिल जाएंगे जो भी विपक्षी दलों के नेताओं का सम्मान करते हैं, उनके साथ मिलते-जुलते हैं। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह इसका बड़ा उदाहरण हैं।
वे कभी भी कांग्रेस या फिर इंडी गठबंधन के नेताओं पर व्यक्तिगत हमले नहीं करते। केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी के भी विपक्षी नेताओं से अच्छे संबंध हैं।
दूसरी तरफ आप देखेंगे कि कांग्रेस के लगभग सभी बड़े नेता व्यक्तिगत हमले करते हुए दिखाई दे जाएंगे। चाहे वे जयराम रमेश हो, मल्लिकार्जुन खड़गे हो या फिर राहुल गांधी हो।
ऐसे में सबसे ज्यादा मोहब्बत की ज़रूरत सोनिया गांधी को है, कांग्रेस पार्टी को है, स्वयं राहुल गांधी को है लेकिन समस्या ये है कि उन्होंने मोहब्बत को भी सियासी बना दिया है। इसलिए ये उम्मीद भी नहीं है कि अब कांग्रेस में जो नफरती संस्कृति सोनिया गांधी लेकर आईं हैं वो ख़त्म हो पाएगी।
एक बात और समझिए, सोनिया गांधी से पहले की कांग्रेस और कांग्रेस नेता भारतीय जनता पार्टी के साथ-साथ आरएसएस तक का सम्मान करते थे। नेहरू जी ने आरएसएस को 26 जनवरी की परेड में शामिल किया था।
हाल ही में आई वरिष्ठ पत्रकार नीरजा चौधरी की किताब “हाउ प्राइम मिनिस्टर्स डिसाइड” में बताया गया है कि संघ के नेताओं से इंदिरा गांधी के संबंध भी अच्छे थे। किताब में ये भी बताया गया है कि राजीव गांधी भी संघ नेताओं से मिलते रहते थे।
इस आधार पर एक बात कही जा सकती है कि सोनिया गांधी के कांग्रेस की कमान लेने के बाद ही देश में कटुता का कल्चर बना। इसके पीछे एक बड़ा कारण उनका भारत में पैदा न होना हो सकता है।
दरअसल, Sonia Gandhi का जन्म इटली में हुआ था और सक्रिय राजनीति में आने से पहले वे बहुत कम समय तक देश में रही थी। ऐसे में बहुत संभव है कि उन्होंने देश की राजनीतिक संस्कृति को, देश की राजनीतिक परंपराओं को समझा ही नहीं और सत्ता की लालसा में उन्हें जो सही लगा वो करती गईं और इसी का परिणाम है कि देश की जनता ने उन्हें सिरे से नकार दिया। उनकी राजनीति को नकार दिया। नफरत को नकार दिया।