आज उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अयोध्या के दक्षिण भारतीय शैली में बने प्रसिद्ध अम्माजी के मंदिर में महान हिन्दू संत श्री रामानुजाचार्य की प्रतिमा का लोकार्पण किया, जिसकी घोषणा उन्होंने लता मंगेशकर चौक के उद्घाटन के दौरान की थी।
श्री रामानुजाचार्य ने विष्णु भक्ति मार्ग को बनाया था लोकप्रिय
श्री रामानुजाचार्य का जन्म श्रीपेरुम्बुदूर में हुआ था। उन्होंने महर्षि वेदव्यास के ग्रन्थ ब्रह्मसूत्र की विशिष्टाद्वैत सिद्धांत के अनुसार व्याख्या की और इस तरह विष्णु भक्ति को समर्पित महान श्रीवैष्णव सम्प्रदाय की नींव रखी। उन्होंने वेदों के सार रूप में 9 ग्रन्थों की रचना की, जिसमें से वेदार्थ संग्रह मुख्य है।
भगवान विष्णु के अनन्य भक्त श्री रामानुजाचार्य ने शासक वर्ग, विद्वान, धनिकों से लेकर निम्न समझे जाने वाले और गरीब वर्ग के जन-जन में समानता के सिद्धांत का संचार कर उन्हें विष्णु भक्ति से सराबोर कर दिया था। उनके द्वारा स्थापित श्रीसंप्रदाय दक्षिण भारत ही नहीं बल्कि उत्तर भारत में भी रामभक्ति के रामानंद सम्प्रदाय के रूप में प्रसिद्ध हुआ।
इस तरह अयोध्या और भगवान श्रीराम से श्री रामानुजाचार्य का गहरा नाता रहा है। उन्हें शेषनाग का अवतार और भगवान राम के छोटे भाई यानि राम के अनुज रामानुज लक्ष्मण का अवतार माना जाता है। अयोध्या में श्री रामानुजाचार्य की प्रतिमा का अनावरण इसी ऐतिहासिक और धार्मिक महत्त्व को उजागर करता है।
यह वर्ष श्री रामानुजाचार्य के 1000वें जयंती वर्ष के रूप में देशभर में मनाया जा रहा है। इसके तहत इस साल पीएम मोदी ने हैदराबाद में स्टेचू ऑफ इक्वलिटी का लोकार्पण किया था। श्री चिन्नाजीयर स्वामी द्वारा बनाए गए आश्रम में विश्व की सबसे बड़ी रामानुज प्रतिमा स्थापित की गई थी। 216 फीट ऊँची श्री रामानुजाचार्य की यह पंचधातु की मूर्ति विश्व को समानता और समादर का संदेश देती है।
संघ के आदि-विचारक गुरु गोलवलकर ने अपनी पुस्तक ‘द बंच ऑफ थॉट्स’ में इस तथ्य को रेखांकित करते हुए कहा था, “जब ईसाई धर्म प्रचारक हमारे पश्चिमी समुद्र तट पर लोगों को अपने संप्रदाय में सम्मिलित करने के लिए निज के दयामय ईश्वर के नाम पर लोगों की अनुनय कर रहे थे, उस समय इस विदेशी विष को विफल करने के लिए हमारे धर्म की भक्ति के एक स्वरूप को लेकर भी माधवाचार्य का उदय हुआ। रामानुजाचार्य एवं बसवेश्वर के प्रयत्न भी समाज में प्रवेश कर रहे ऊंच-नीच के भेद को मिटाकर ईश्वर भक्ति के सामान्य बंधन में सभी लोगों को बांधने के लक्ष्य से प्रेरित थे।”
स्वामी विवेकानंद कहते हैं, “आप रामानुजाचार्य के बाद एक विशेषता चिह्नित कर सकते हैं, वो है, सभी के लिए आध्यात्मिकता का द्वार खोलना। रामानुजाचार्य के बाद आने वाले सभी महात्माओं का यही उपदेश रहा है। रामानुज का हृदय बड़ा था। उन्होंने वंचितों के लिए सोचा, उनके साथ सहानुभूति व्यक्त की।
उन्होंने उन लोगों के लिए नए उत्सवों की सर्जना की, समारोह आयोजित किए, जिन्हें इसकी बहुत आवश्यकता थी, और इसने उन आयोजनों में भाग लेने वालों को यथासंभव शुद्ध बना दिया। उसी समय उन्होंने आध्यात्मिक उपासना का उच्चतम द्वार ब्राह्मण से परिया तक सबके लिए खोल दिया। यह रामानुज का काम था।” (मूल अंग्रेजी कथनों का हिन्दी अनुवाद)
शंकराचार्य की तरह रामानुजाचार्य की भी परंपरा
आदि शंकराचार्य से शुरू हुए शांकर संप्रदाय के चार शंकराचार्यों वाली परंपरा से हम परिचित हैं, इसी तरह रामानुजाचार्य से शुरू हुए श्रीवैष्णव संप्रदाय की भी आचार्य परंपरा आज भी देश में है, जिसमें विशिष्ट संत रामानुजाचार्य पदवी धारण करते हैं। आइए हम जानते हैं, वर्तमान समय के प्रमुख रामानुजाचार्य संतों के नाम:-
श्रीकोशलेश सदन, अयोध्या – रामानुजाचार्य विद्याभास्कर स्वामी श्री वासुदेवाचार्य जी महाराज
जीव रामानुज आश्रम, हैदराबाद – रामानुजाचार्य श्री त्रिदंडी श्रीमन्नारायण चिन्ना जीयर स्वामी
वानमामलै मठ, तिरुनेल्वेलि – श्री वानमामलै मधुरकवि श्रीरामानुज जीयर स्वामी
श्रीत्रिदंडी देव जीयर स्वामी मठ, बक्सर – रामानुजाचार्य श्री लक्ष्मीप्रपन्न जीयर स्वामी जी
श्रीयदुगिरि यतिराज मठ, मेलुकोटे – रामानुजाचार्यश्रीयदुगिरि यतिराज नारायण जीयर स्वामी
श्रीरंगनारायण श्रीवैष्णव जीर मठ, श्रीरंगम – श्रीरंगनारायण मुनि अय्यंगर जीयर (२०१८ में वैकुण्ठवास)
अहोबिलम्, तिरुपति – श्रीशतकोप श्रीरंगनाथ यतीन्द्र महादेसिकान
अशर्फी भवन, अयोध्या – रामानुजाचार्य स्वामी श्री श्रीधराचार्य जी महाराज
यह पीठें श्रीसम्प्रदाय की कुछ प्रमुख पीठें हैं, परन्तु इसके अलावा भी दक्षिण भारत में तिंगलै और वडगलै आदि उपशाखाओं के साथ श्रीसम्प्रदाय की मठ परंपरा बहुत विस्तृत है। प्रसिद्ध तिरुपति बालाजी मंदिर भी श्रीवैष्णव सम्प्रदाय का मंदिर है।
देश के सांस्कृतिक उद्भव का प्रतीक बनीं प्रतिमाएं
महाकाल लोक के उद्घाटन के समय पीएम मोदी ने उज्जैन में कहा था कि, “सफलता के शिखर तक पहुंचने के लिए ये जरूरी है कि राष्ट्र अपने सांस्कृतिक उत्कर्ष को छुए, अपनी पहचान के साथ गौरव से सर उठाकर खड़ा हो।”
भारत में सांस्कृतिक प्रतिमानों को प्रतिमाओं में देखने और जीने की परंपरा रही है, हम प्रतिमाओं में पूरा इतिहास पढ़ लेते हैं। इसी विचार को लेते हुए पीएम मोदी रामानुजाचार्य के साथ साथ केदारनाथ में आदि शंकराचार्य की प्रतिमा का लोकार्पण भी कर चुके हैं।
पीएम मोदी ने इससे पहले जब गुजरात के नर्मदा बाँध पर स्टेचू ऑफ यूनिटी के रूप में सरदार पटेल की मूर्ति का अनावरण किया था, तो उसके पीछे राष्ट्र की राजनीतिक एकता का संदेश था। जब केदारनाथ में उन्होंने आदि शंकराचार्य की प्रतिमा का अनावरण किया तो उसके पीछे राष्ट्र की विराट आध्यात्मिक विरासत की रक्षा का संदेश था। जब हैदराबाद में उन्होंने स्टेचू और इक्वलिटी के रूप में श्री रामानुजाचार्य की प्रतिमा का लोकार्पण किया तो उसके पीछे सामाजिक एकता और समानता का संदेश था।
इससे पहले सितंबर 2022 में जब दिल्ली में कर्तव्य पथ पर नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की प्रतिमा का अनावरण किया गया तो उसमें देश की रक्षा के लिए सर्वोच्च बलिदान का संदेश था, और इसी साल मार्च 2022 में जब पुणे में 1850 किलो वजनी धातु की छत्रपति शिवाजी की प्रतिमा का अनावरण किया गया तो उसमें हमारे नीति, शौर्य और संकल्प से भरे ऐतिहासिक बोध का संदेश था।
ऐसे ही अयोध्या में भगवान श्री राम की 251 फीट ऊंची एक विराट प्रतिमा का कार्य भी चल रहा है, जो अयोध्या पर भगवान श्री राम के अखण्ड शासन का प्रतीक होगी। प्रतिमाओं के अतिरिक्त भारत के सांस्कृतिक स्वरूप को उभारने के लिए वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर को भव्य स्वरूप दिया जा चुका है। केदारनाथ और रामेश्वरम ज्योतिर्लिंगों का सम्पूर्ण कायाकल्प भी किया जा चुका है, इसी श्रृंखला में उज्जैन में महाकाल लोक का उद्घाटन किया गया है। विन्ध्याचल में भी माँ विन्ध्यवासिनी कॉरिडोर का काम चल रहा है।
भगवान और विभिन्न क्षेत्रों के महापुरुषों की मूर्तियों की स्थापना द्वारा देश की सांस्कृतिक और राष्ट्रीय चेतना को उभारा जा रहा है वहीं इतिहास के भूले-बिसरे पन्नों को भी खोला जा रहा है।
महाकाल-विश्वनाथ कॉरिडोर महज गलियारे नहीं, एक सांस्कृतिक पुनरुत्थान का संकेत हैं