सोमवार (अक्टूबर 31, 2022) के दिन दिल्ली पुलिस की अपराध शाखा ने कथित समाचार वेबसाइट ‘द वायर’ के संस्थापकों सिद्धार्थ वरदराजन और एमके वेणु के आवासों पर छापेमारी की। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के आईटी सेल प्रमुख अमित मालवीय की शिकायत पर दिल्ली पुलिस ने द वायर, उसके संस्थापकों और प्रमुख संपादकों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया था।
मालवीय ने आरोप लगाया था कि प्रॉपगैंडा न्यूज़ पोर्टल ‘द वायर’ ने उनकी छवि खराब करने के उद्देश्य से कई संस्थानों और व्यक्तियों से सम्बंधित दस्तावेजों के साथ छेड़छाड़ की थी। दिल्ली पुलिस ने इस कार्यवाही में अग्रिम जांच हेतु आरोपियों के सभी इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस लैपटॉप, मोबाइल आदि सीज कर दिए हैं।
इस मामले में आईपीसी की निम्न धाराओं के तहत मुकदमा दर्ज़ किया गया है:-
धारा 420 (छल करना और बेईमानी से बहुमूल्य वस्तु / संपत्ति देने के लिए प्रेरित करना) ,धारा 468 ( छल के प्रयोजन से फ़र्ज़ीवाड़ा करना ) , धारा 469 (ख्याति को हानि पहुँचाने के आशय से फर्जीवाड़ा ) ,धारा 471 (फ़र्ज़ी दस्तावेज का असली के रूप में उपयोग ), धारा 500 (मानहानि के लिए दंड ),120B ( अपराधिक षड्यंत्र )
यह मामला द वायर -मेटा विवाद से जुड़ा हुआ है। यह ज्ञात हो कि द वायर ने मेटा (फ़ेसबुक और इंस्टाग्राम) से जुड़ी एक तथ्यहीन रिपोर्ट प्रकाशित की थी और उसके फ़र्ज़ी साबित होने के बाद न्यूज़ पोर्टल ने यह रिपोर्ट अपने पोर्टल से हटा दी।
क्या है यह पूरा प्रकरण
6 अक्टूबर, 2022 को न्यूज़ पोर्टल द वायर ने एक खबर प्रकाशित की जिसमें यह दावा किया गया कि इंस्टाग्राम (मेटा कंपनी का एक सोशल मीडिया प्लेटफार्म) ने अमित मालवीय के कहने पर अपने प्लेटफार्म से एक पोस्ट डिलीट किया है। साथ ही द वायर द्वारा यह आरोप भी लगाया गया कि मेटा समय-समय पर अमित मालवीय के साथ मिलकर सोशल मीडिया से भाजपा विरोधी कंटेंट हटाती रहा है।
इसके बाद 10 अक्टूबर, 2022 को द वायर ने फिर एक खबर प्रकशित की जिसमें दावा किया गया कि मेटा से अमित मालवीय को ’क्रॉस चेक ‘या ‘Xcheck’ जैसे विशेषाधिकार प्राप्त हैं जिसमें वे अपनी स्वेच्छा और प्रभाव से इंस्टा सामग्री को डिलीट करने को कह सकते हैं और इसी प्रभाव के चलते वह अब तक 705 पोस्ट डिलीट करवा चुके हैं।
हालाँकि अगले दिन 11 अक्टूबर 2022 को ही यह दावा झूठा साबित हो गया था जब मेटा के संचार प्रबंधक अधिकारी एंडी स्टोन ने द वायर की इन खबरों में किये गए दावों को सरासर झूठा बताया। उन्होंने कहा, “कहानी कहाँ से शुरू करूँ? Xcheck का पोस्ट को रिपोर्ट करने से कोई सम्बन्ध ही नहीं है। इसे किसी व्यक्ति द्वारा नहीं बल्कि AI रिव्यू से हटाया गया था और द वायर द्वारा जो भी आधारभूत दस्तावेज प्रस्तुत किए गए हैं, वे सब मनगढंत हैं।”
द वायर ने अपनी स्टोरी न केवल अड़ा रहा बल्कि अपने इन झूठे दावों को पुख्ता बनाने के लिए उसने सनसनीखेज खुलासा किया कि उनके पास मेटा कम्पनी के अधिकारी एंडी स्टोन के ई मेल्स हैं जिनमें एंडी स्टोन ‘आतंरिक दस्तावेजों’ के लीक होने पर आपत्ति जता रहे हैं। लेकिन द वायर ने जब इन ईमेल के स्क्रीनशॉट जारी किये तो वह फेक निकले। यह महज़ एक कहानी थी जिसे शातिराना अंदाज़ में गढ़ा गया था
एक महीने तक अपनी कहानी को सच दिखाने की जद्दोजहद में फ़ज़ीहत करने के बाद 26 अक्टूबर को द वायर ने इस प्रकरण पर माफीनामा जारी किया एवं सभी फेक ख़बरों को अपने पोर्टल से हटा दिया। अपने माफीनामे में वायर ने अपने पाठकों से ‘बेहतर’ स्टोरी उपलब्ध कराने का वादा किया। लेकिन माफीनामा सिर्फ नाम मात्र ही प्रतीत हुआ क्यों कि इसमें असल बिंदुओं पर माफ़ी ही नहीं मांगी गयी थी।
द वायर ने अपनी मेटा स्टोरी में दावा किया था कि उनके निष्कर्ष स्वतंत्र और प्रतिष्ठित विशेषज्ञों द्वारा डेटा की जांच के बाद ही प्रकाशित होते हैं। जबकि वायर की टीम ने इन स्वतंत्र विशेषज्ञों के नकली बयान दर्ज किए थे। माफीनामे में इसका जिक्र नहीं था।
अब अमित मालवीय द्वारा द वायर एवं इसके सम्पादकों के खिलाफ मुकदमा दर्ज़ करने से इस पूरे मामले में नया मोड़ आ गया है। वहीं दिल्ली क्राइम ब्रांच की आरोपियों के आवास पर की गयी छापेमारी की कार्रवाई को कुछ लोगों द्वारा गलत बताया जा रहा है।
पुलिस कार्रवाई की आलोचना ?
DIGIPUB संस्थान ने इसे मीडिया की आज़ादी पर हमला बताया और कहा कि भारत में ऐसी कार्रवाई पत्रकारों को उनके कार्य रोकने के लिए की जा रही है। DIGIPUB संस्थान कुछ कंपनियों द्वारा बनाया गया एक संगठन है, जिसमें द वायर के साथ साथ कोबरापोस्ट, ऑल्ट न्यूज़, बूमलाइव, HW न्यूज़, न्यूज़क्लिक, न्यूजलौंड्री, न्यूज़ मिनट, स्क्रॉल और क्विंट जैसी कंपनियां शामिल हैं जिनको मीडिया पोर्टल्स भी बताया जाता है।
कई लोगों ने DIGIPUB के इस बयान पर सवाल उठाये। उनका कहना था कि DIGIPUB ने इस बयान में जानबूझकर सिर्फ मानहानि की धारा का उल्लेख किया है ताकि हल्की धाराओं में दिल्ली पुलिस की बड़ी कार्रवाई अनुचित दिखे। इस आपत्ति के बाद DIGIPUB ने बयान हटा दिया एवं सभी धाराओं का उल्लेख कर पुनः नया बयान जारी किया।
वहीं ,न्यूज़ मिनट की मुख्य संपादक धनिया राजेंद्रन ने ट्विट कर कहा,
“एक पत्रकार या मीडिया जो एक झूठी रिपोर्ट प्रकाशित करता है उसे समाज द्वारा जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए। लेकिन सत्ताधारी दल के एक प्रवक्ता द्वारा मानहानि की एक निजी शिकायत के आधार पर पुलिस की कार्यवाही में दुर्भावना नज़र आती है।”
धनिया के इस ट्वीट के जवाब में यूजर्स द्वारा उन्हें याद दिलाया गया कि शिकायत सिर्फ मानहानि की नहीं बल्कि अपराधिक षड्यंत्र द्वारा फर्जीवाड़े से जुड़ी आईपीसी की गंभीर धाराओं 420 ,468,471 ,469 और 120B से संबधित थी।
यह कोई पहला वाकया नहीं है जब वायर और उसके संस्थापक वरदराजन, जो अमेरिकी नागरिक है, भ्रामक एवं झूठी ख़बरें प्रसारित कर रहे हों।
वायर: द लायर
टेकफॉगफिक्शन
इससे पूर्व वायर टेक फॉग फिक्शन षड्यंत्र में भी शामिल रह चुका है। मेटा स्टोरी पर काम करने वाले उसकी टीम के कुछ सदस्य टेक फॉग फिक्शन में भी शामिल थे। दरअसल, इसी वर्ष जनवरी में टेक फॉग के बारे में द वायर ने तीन भागों में एक रिपोर्ट प्रकाशित की।
इसमें वायर ने आरोप लगाया कि भारतीय जनता पार्टी का सोशल मीडिया सेल टेक फोग नामक एप्प के जरिये नागरिकों के निजी डेटा को संग्रहित कर रहा है जिसका इस्तेमाल भाजपा द्वारा ट्विटर पर आटोमेटिक रीट्वीट ,व्हाट्सएप्प पर निष्क्रिय ग्रुप्स को हाईजैक करने के लिए किया जाएगा।
हालाँकि लगभग एक वर्ष बाद द वायर ने यह स्टोरी हटा ली है जिसके बाद एडिटर्स गिल्ट ऑफ़ इंडिया समूह ने भी अपने बयान को वापस ले लिया है। वायर की टेक फॉग स्टोरी को एडिटर्स गिल्ड ऑफ़ इंडिया ने समर्थन देते हुए कहा था कि एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया महिला पत्रकारों के ऑनलाइन उत्पीड़न की निंदा करता है, जिसमें महिलाओं को निशाना बना कर ऑनलाइन ट्रोलिंग के साथ-साथ यौन शोषण की धमकी भी शामिल है।
यह एक सुनियोजित प्रॉपगेंडा था यह अब साबित हुआ है लेकिन तब तक इस खबर का इस्तेमाल कर कई लोग एवं संगठन अपना हित साध चुके थे।
भारत में भी मीडिया संस्थानों से जुड़े कई लोगों ने इस रिपोर्ट को जनता के साथ साझा किया था। इस रिपोर्ट को इंटरनेशनल मीडिया के सहारे प्रचारित प्रसारित किया गया था। जिसके बाद वैश्विक राजनीति में भारत की सत्ताधारी पार्टी भाजपा पर सवालिया निशान लगाए गए।
टेक फॉग को इतना प्रचारित किया गया कि यह समाचार चैनलों पर प्राइम टाइम बहस का हिस्सा बन गया। एनडीटीवी इंडिया के रवीश कुमार ने इसे नाटकीय रूप से पेश किया था। इस मुद्दे को संसद में भी उठाया गया था और जाँच की माँग की गई थी
‘किसान’ आंदोलन
इससे पूर्व जनवरी, 2021 में गणतंत्र दिवस के दंगों के तुरंत बाद जब सैकड़ों तथाकथित किसानों ने लाल किले पर हमला किया था, उस दौरान एक ‘प्रदर्शनकारी’ नवप्रीत सिंह जिस ट्रैक्टर का इस्तेमाल कर रहा था, उसके पलट जाने से उसकी मौत हो गई।
वायर ने अपने लेख में कहा था कि नवप्रीत की मौत गोली लगने से हुई थी। लेख में यहाँ तक झूठा दावा किया गया था कि पोस्टमार्टम करने वाले डाक्टर ने कहा कि गोली लगने के दौरान ‘उसके हाथ बंधे हुए थे’। सरकार और पुलिस ने इस से इनकार कर पोस्टमार्टम रिपोर्ट साझा की। लेकिन यह खबर कहीं नहीं छापी गयी।
पेगासस जासूसी कांड
भारत में राहुल गाँधी से लेकर सामाजिक कार्यकर्ताओं ने जिस पेगासस कांड पर सियासत की थी वह पेगासस स्पायवेयर सुप्रीम कोर्ट के पैनल की रिपोर्ट में भी कहीं नजर नहीं आया। इस पेगासस जासूसी कांड की खबर के पीछे द वायर की अहम भूमिका थी। उस समय द वायर ने इसे अपनी उपलब्धि बता कर छापा था।
पेगासस जासूसी कांड को लेकर बनाए गए पैनल ने सुप्रीम कोर्ट को अपनी रिपोर्ट सौंपी थी ,जिसमें कहा गया कि पेगासस स्पायवेयर को खोजने के लिए 29 मोबाइल फ़ोन की जांच की गई लेकिन, इनमें ऐसा कोई सबूत नहीं मिला है कि पेगासस स्पायवेयर का इस्तेमाल किया गया हो।
मेटा-वायर प्रकरण के मायने
मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहा जाता है, यह स्तम्भ कितना मजबूत है इस पर चर्चा की जा सकती है लेकिन यह जानना जरुरी है कि उसी लोकतंत्र का एक स्तम्भ कार्यपालिका एवं न्यायपालिका भी है। जिनके कार्य एवं कर्तव्य संविधान में तय हैं इसलिए पुलिस की कार्रवाई भी जांच प्रक्रिया का एक हिस्सा है।
यह पाठकों के लिए भी गंभीर चिंता का विषय है कि देश के बाहर बैठे सिद्धार्थ वरदराजन जैसे कुछ लोग मीडिया पोर्टल्स की आड़ लेकर जनता को भ्रमित करते है और अपने हितों को साधते हैं।
वहीं, मीडिया में एक पहलू यह भी है कि टीआरपी की जिम्मेदारी हर संस्थान लेना चाहता है, लेकिन जवाबदेही तय करने करने के लिए कोई आगे नहीं आना चाहता है। फ़र्ज़ी खबरें फैलाना, आपत्तियां आने के बाद उसे हटाना और फिर एक माफ़ीनामा।
इस पूरी प्रक्रिया में एक चरण जो हमें नहीं दिख पाता है वो है गलत ख़बरों का प्रभाव। ऐसे प्रकरणों में कार्रवाई न होना, टीआरपी से परे जा कर सही ख़बरों को जनता तक पहुंचाने वाले लोगों के लिए हतोत्साहित करने वाला होता है।