कांग्रेसी इकोसिस्टम और इंडी गठबंधन के नेता मीम-भीम समीकरण पर बड़ा एजेंडा चलाते हैं। कथित मीम-भीम भाईचारे की बात करते हैं। ऐसे में आइए समझने का प्रयास करते हैं कि Meem Bheem समीकरण की सच्चाई क्या है और इस कथित भाईचारे में कौन ‘भाई’ है और कौन ‘चारा’?
सबसे पहले जोगेंद्र नाथ मंडल की बात करते हैं। स्वतंत्रता से पहले वे दलितों के बड़े नेता थे और कथित मीम-भीम भाईचारे के पक्षधर भी। पाकिस्तान बनने पर वे अपने समर्थक दलितों को पाकिस्तान ले गए। बाद में जानते हैं क्या हुआ?
हिंदू होने के कारण पाकिस्तान में उन्हें जमकर जलील किया गया। उन्हें गद्दार की तरह देखा गया। उन्हें बेइज्जत किया गया। स्थिति ये आ गई कि जोगेंद्र नाथ मंडल को चुपचाप पाकिस्तान से भागना पड़ा। वे तो भागकर कलकत्ता आ गए लेकिन उनके समर्थक दलित हिंदू जो पाकिस्तान गए थे वे नहीं लौट पाए।
बाद के वर्षों में पाकिस्तान से कैसे दलितों को ख़त्म किया गया, ये बात किसी से छिपी नहीं है। जोगेंद्र नाथ मंडल ने भारत आकर स्वीकार किया कि पाकिस्तान जाना उनकी बड़ी गलती थी लेकिन तब तक बहुत देर हो गई थी, उन्होंने मीम-भीम भाईचारा निभाया और दलित हिंदुओं को ‘चारा’ बना दिया।
जोगेंद्र नाथ मंडल तो इस कथित भाईचारे की सच्चाई बाद में समझ पाए लेकिन बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर इसके पीछे छिपे एजेंडे को शुरू से समझते थे।
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शायद, इसीलिए उन्होंने हमेशा दलित हिंदुओं से कहा कि धर्म परिवर्तन करके कभी मुसलमान मत बनना। बाबा साहब कहते थे कि मुसलमानों और मुस्लिम लीग पर भरोसा करना घातक होगा। स्वतंत्रता के बाद से लेकर आजतक बाबा साहब की बात 100 प्रतिशत सही साबित होती दिखाई दे रही है।
कथित Meem Bheem भाईचारे की सच्चाई का पर्दाफ़ाश तो स्वतंत्रता के तुरंत बाद ही हो गया था। पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री लियाकत अली खान ने हिंदू दलितों को भारत नहीं लौटने दिया था।
उन्हें पाकिस्तान में ही रोकने के लिए उन्होंने पाकिस्तान में एसेंशियल सर्विस एक्ट लागू कर दिया था। जब उनसे पूछा गया कि उन्होंने ऐसा क्यों किया तो उन्होंने कहा कि अगर दलित हिंदू चले जाएंगे तो कराची की गंदगी कौन साफ करेगा?
पाकिस्तानी नेता मानते थे कि दलित हिंदू नालियां और पाखाना साफ करने के लिए हैं और अगर ये पाकिस्तान से चले गए तो फिर ये काम कौन करेगा।
आज भी पाकिस्तान में दलितों को इसी दृष्टि से देखा जाता है और उन्हें चूहड़ा कहकर संबोधित किया जाता है। इससे भी समझ आता है कि कथित मीम-भीम भाईचारे में कौन भाई है और कौन चारा। ख़ैर, हम आगे बढ़ते हैं और बात कश्मीर की करते हैं।
आप ये जानकर भी हैरान रह जाएंगे कि 1956 में शेख अब्दुल्ला पठानकोट, जालंधर, अमृतसर और होशियारपुर समेत कई स्थानों से वाल्मीकि समाज के हिंदुओं को कश्मीर लेकर गए थे, जानते हैं क्यों? सफाई करवाने के लिए।
जी हाँ, इसके लिए बाकायदा राज्य की विधानसभा से शासनादेश पारित कराया गया था। अलग-अलग स्थानों पर कॉलोनी बसाकर इन हिंदुओं को रखा गया था और सरकारी दस्तावेजों में इनके काम को ‘भंगी-पेशा’ का नाम दिया गया। इन लोगों के सफाई के सिवाय कोई और काम करने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था।
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अब आप विचार कीजिए, कश्मीर में बहुसंख्यक मुसलमान हैं फिर सफाई करवाने के लिए देश के दूसरे हिस्सों से हिंदू वाल्मीकि समाज के लोगों को क्यों ले जाया गया?
शायद यही वास्तविक मीम-भीम भाईचारा है, जिसमें भीम यानी हिंदू समाज के लोग हमेशा चारा बनते दिखते हैं और मीम यानी मुस्लिम समाज के लोग भाई बनते दिखते हैं।
ऐसा नहीं है कि ये पहले होता था अब नहीं होता, आज भी दलित हिंदू ही चारा बनते दिखते हैं। पिछले वर्षों में आए लव जिहाद के ऐसे तमाम मामले हमें दिखते हैं जहाँ पीड़िता दलित हिंदू है और आरोपी मुस्लिम।
इस आधार पर एक बात कही जा सकती है कि Meem Bheem भाईचारा के पूरे नैरेटिव के पीछे का असली एजेंडा भीम यानी दलित हिंदुओं को निशाना बनाने का है और जो राजनीतिक दल इस एजेंडे को आगे बढ़ाते हैं वो दलितों के हितैषी तो कतई नहीं कहे जा सकते।