The PamphletThe Pamphlet
  • राजनीति
  • दुनिया
  • आर्थिकी
  • विमर्श
  • राष्ट्रीय
  • सांस्कृतिक
  • मीडिया पंचनामा
  • खेल एवं मनोरंजन
What's Hot

राजकोषीय घाटे का प्रबंधन सही दिशा में है

December 2, 2023

भारत ने उम्मीदों से बेहतर प्रदर्शन किया, दूसरी तिमाही में जीडीपी 7.6% बढ़ी

December 1, 2023

बिहार: युवक की सरकारी नौकरी लगने पर बंदूक की नोक पर पकड़ौआ शादी

December 1, 2023
Facebook X (Twitter) Instagram
The PamphletThe Pamphlet
  • लोकप्रिय
  • वीडियो
  • नवीनतम
Facebook X (Twitter) Instagram
ENGLISH
  • राजनीति
  • दुनिया
  • आर्थिकी
  • विमर्श
  • राष्ट्रीय
  • सांस्कृतिक
  • मीडिया पंचनामा
  • खेल एवं मनोरंजन
The PamphletThe Pamphlet
English
Home » द केरल स्टोरी को रोकने के लिए पश्चिम बंगाल की ‘अलग’ डेमोग्राफी का सहारा ले रही हैं ममता बनर्जी
राष्ट्रीय

द केरल स्टोरी को रोकने के लिए पश्चिम बंगाल की ‘अलग’ डेमोग्राफी का सहारा ले रही हैं ममता बनर्जी

क्या ममता बनर्जी सरकार और कॉन्ग्रेस के वरिष्ठ नेता व वकील अभिषेक मनु सिंघवी पश्चिम बंगाल के सामने 1947 की स्थिति नहीं दोहरा रहे?
Jayesh MatiyalBy Jayesh MatiyalMay 20, 2023No Comments4 Mins Read
Facebook Twitter LinkedIn Tumblr WhatsApp Telegram Email
Mamata Banerjee on The kerala Story
ममता बनर्जी द केरल स्टोरी
Share
Facebook Twitter LinkedIn Email

भारतीय राजनीति में सत्ताधारी कांग्रेस ने मुस्लिम तुष्टिकरण के जिस इतिहास की प्रस्तावना लिखते हुए विस्तार किया वो अब हमें जगह-जगह दिखाई दे रहा है। 

दरअसल राजनीति की इस विधा पर अब केवल कांग्रेस का एकाधिकार नहीं रहा। अब तुष्टिकरण की होड़ का नतीजा ये है कि इस टेम्पलेट को और राजनीतिक दलों ने अपना लिया है। इसी का नतीजा है कि तुष्टिकरण हर राज्य में दिखाई दे रहा है, फिर चाहे कश्मीर हो या पश्चिम बंगाल। 

तुष्टिकरण हर मौक़े पर भी दिखाई देता है फिर चाहे चुनाव की बात हो, हिन्दू त्योहारों की बात हो या फिर कला और फिल्मों की। 

हाल का एक उदाहरण लीजिए! जब सुप्रीम कोर्ट ने द केरल स्टोरी पर लगाया बैन हटा दिया तो ममता बनर्जी सरकार की ओर से कॉन्ग्रेसी वकील मनु सिंघवी ने दलील दी कि पश्चिम बंगाल की डेमोग्राफी अलग है, इस लिहाज से कोर्ट को अपने फ़ैसले पर विचार करना होगा। 

आप ही बताइए क्या यह सीधे-सीधे भारतीय संविधान की आत्मा के विरुद्ध नहीं है। सिंघवी का यह तर्क ममता बनर्जी के उस तर्क से जरा भी अलग नहीं है जिसका इस्तेमाल पिछली रामनवमी पर करते हुए ममता बनर्जी ने हिंदुओं से मुस्लिम इलाक़ों में न जाने की सलाह दी थी। 

तब यह सवाल उठा था कि क्या देश में अब हिंदू इलाक़े और मुस्लिम इलाक़े जैसी बात राज्य की मुख्यमंत्री भी करेंगी? और यह क्या ऐसा तर्क है जिसे अभिषेक मनु सिंघवी जैसे बड़े वकील सुप्रीम कोर्ट में इस्तेमाल करें? 

ऐसा करके क्या ममता बनर्जी सरकार और कॉन्ग्रेस के वरिष्ठ नेता, संविधान के जानकार अभिषेक मनु सिंघवी पश्चिम बंगाल के सामने 1947 की स्थिति नहीं दोहरा रहे? ऐसे ही तर्क दिये जाते रहे तो उस संविधान की आत्मा का क्या होगा जिसे बचाने के लिए ये बेचारे रोज़ लड़ने की शपथ लेते रहते हैं? 

अब सवाल ये है कि यदि डेमोग्राफी को देखते हुए ये फ़ैसला किया जाएगा कि कौन सी फ़िल्म कहाँ दिखाई जाएगी या नहीं दिखाई जाएगी तो फिर सरकारों द्वारा संविधान की रक्षा करने की शपथ का क्या होगा? 

एक फिल्म जो पूरे भारत में रिलीज हुई, उस पर पश्चिम बंगाल में बैन इसलिए लगा दिया गया क्योंकि ममता बनर्जी सरकार को लगा कि 13 लोगों ने फिल्म का विरोध किया। वो तो भला हो सिंघवी साहब का जिन्होंने कोर्ट में 13 ही कहा, 72 नहीं। 

अब यदि फ़िल्म आतंकवादी संगठनों और आतंकवादियों के विरुद्ध है और उसके बावजूद वह आतंकवादियों से अधिक किसी मज़हब विशेष को ठेस पहुँचाती है तो फिर उस छद्म सेकुलर दर्शन का क्या होगा जिसके अनुसार आतंक का कोई मज़हब नहीं होता?

अब राजनीतिक दल या राजनेता यदि किसी समुदाय विशेष को ख़ुश रखने के लिए ऐसे आर्गुमेंट देते हैं तो समझ में आता है। जैसे राजीव गांधी ने शाहबानो केस में सुप्रीम कोर्ट का फैसला बदल दिया। जैसे देश के संसाधनों पर अल्पसंख्यकों खासतौर मुस्लिमों का पहला अधिकार बताने वाले मनमोहन सिंह कश्मीरी हिन्दुओं के हत्यारे यासीन मलिक को पीएम आवास पर न्योता भिजवाया। 

लेकिन जब संविधान के जानकार वकील ऐसे आर्गुमेंट देते हैं तो मेरे और आपके जैसे एक आम भारतीय को क्या समझना चाहिए? 

मनु सिंघवी जैसे संविधान के जानकारों को समझने की जरूरत है कि फ़िल्में भारतीयों के लिए बनाई जाती हैं, समुदायों के लिए नहीं। यदि कोई समुदाय द कश्मीर फ़ाइल्स या द केरल स्टोरी को नकार देता है और उसे भारतीय फिर भी देखते हैं तो फिर ये उस समुदाय के बारे में क्या संदेश देता है?

बात बस इतनी सी है कि भारतीयों को फिल्म से कोई समस्या नहीं है इसलिए वे देखते हैं और समुदाय को समस्या है इसलिए वे नहीं देखते। अब यह ममता बनर्जी या अभिषेक मनु सिंघवी को समझने की ज़रूरत है कि ऐसी परिस्थितियों में भारत प्रीवेल करेगा न कि समुदाय विशेष। 

यह भी पढ़ें: द केरल स्टोरी की तरह टैगोर को भी बैन करती दीदी?

Author

  • Jayesh Matiyal
    Jayesh Matiyal

    जयेश मटियाल पहाड़ से हैं, युवा हैं। व्यंग्य और खोजी पत्रकारिता में रूचि रखते हैं।

    View all posts

Featured
Share. Facebook Twitter LinkedIn Email
Jayesh Matiyal
  • Facebook
  • X (Twitter)
  • Instagram

जयेश मटियाल पहाड़ से हैं, युवा हैं। व्यंग्य और खोजी पत्रकारिता में रूचि रखते हैं।

Related Posts

राजकोषीय घाटे का प्रबंधन सही दिशा में है

December 2, 2023

भारत ने उम्मीदों से बेहतर प्रदर्शन किया, दूसरी तिमाही में जीडीपी 7.6% बढ़ी

December 1, 2023

बिहार: युवक की सरकारी नौकरी लगने पर बंदूक की नोक पर पकड़ौआ शादी

December 1, 2023

भारत की GDP में उद्योग क्षेत्र का बढ़ता योगदान

December 1, 2023

तेलंगाना चुनाव से पहले आंध्र प्रदेश ने नागार्जुन सागर बांध का आधा हिस्सा अपने कब्जे में लिया

December 1, 2023

WTO की कृषि वार्ता प्रमुख विवादित मुद्दों पर सहमति तक पहुंचने में विफल रही

November 30, 2023
Add A Comment

Leave A Reply Cancel Reply

Don't Miss
आर्थिकी

राजकोषीय घाटे का प्रबंधन सही दिशा में है

December 2, 20233 Views

कंट्रोलर जनरल ऑफ अकाउंट्स द्वारा जारी किए गए नए डाटा के अनुसार राजकोषीय घाटे का प्रबंधन सही होने से आंकड़ों में सुधार हुआ है।

भारत ने उम्मीदों से बेहतर प्रदर्शन किया, दूसरी तिमाही में जीडीपी 7.6% बढ़ी

December 1, 2023

बिहार: युवक की सरकारी नौकरी लगने पर बंदूक की नोक पर पकड़ौआ शादी

December 1, 2023

भारत की GDP में उद्योग क्षेत्र का बढ़ता योगदान

December 1, 2023
Our Picks

पश्चिम बंगाल में औद्योगिक विकास लाने में असफल रही है ममता बनर्जी सरकार

November 30, 2023

तेलंगाना: सरकार बनाने के खातिर कांग्रेस कर सकती है अपने विधायकों को कर्नाटक स्थानांतरित

November 27, 2023

कर्नाटक: आय से अधिक संपत्ति मामले में CBI से बचने के लिए कॉन्ग्रेसियों ने बदला येदियुरप्पा सरकार का फैसला

November 27, 2023

उत्तर प्रदेश के बाद अब बिहार में हलाल सर्टिफाइड उत्पादों पर प्रतिबंध की मांग

November 23, 2023
Stay In Touch
  • Facebook
  • Twitter
  • Instagram
  • YouTube

हमसे सम्पर्क करें:
contact@thepamphlet.in

Facebook X (Twitter) Instagram YouTube
  • About Us
  • Contact Us
  • Terms & Conditions
  • Privacy Policy
  • लोकप्रिय
  • नवीनतम
  • वीडियो
  • विमर्श
  • राजनीति
  • मीडिया पंचनामा
  • साहित्य
  • आर्थिकी
  • घुमक्कड़ी
  • दुनिया
  • विविध
  • व्यंग्य
© कॉपीराइट 2022-23 द पैम्फ़लेट । सभी अधिकार सुरक्षित हैं।

Type above and press Enter to search. Press Esc to cancel.