भारत ने पिछले कुछ सालों में ख़ुद को औपनिवेशिक ग़ुलामी से दूर करने की क़सम खाई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस स्वतंत्रता दिवस पर तो पाँच प्रणो में भी इसे सबसे ऊपर रखा है। इस सबके बीच भारत विश्व में लगभग हर मोर्चे पर कामयाबी हासिल कर रहा है। ऐसे में एक ब्रिटिश पत्रिका ‘द इकोनॉमिस्ट’ एक ऐसा कार्टून जारी करता है, जो भारत के ख़िलाफ़ नस्लीय घृणा को दिखाता है।
इस इमेज को लोग कार्टून नाम दे रहे हैं लेकिन अख़बारों में छपने वाले कार्टून में एक फ़िलासोफ़ी होती है, रचनात्मकता होती है, यदि वो आलोचना भी हो तब भी उसमें एक क्लास होती है, जबकि जो इस तस्वीर में इकोनॉमिस्ट ने किया है उसे सिर्फ़ घृणा या द्वेष कहते हैं। इसमें अमेरिकी राष्ट्रपति जो बायडेन को एक बाघ के साथ दिखाया गया है, जो कि भारत का प्रतीक है और भारत का राष्ट्रीय पशु भी। इसे दिखाने के पीछे इकोनॉमिस्ट ये संदेश देना चाहता है कि ‘भारत अमेरिका का पालतू है’।
मैगजीन ने ये नस्लीय घृणा वाली तस्वीर ऐसे समय में जारी की है जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अमेरिका दौरे पर जाने वाले हैं। साल 2018 में प्रसून जोशी के साथ लंदन में एक साक्षात्कार में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि 23 साल तक भारत विश्व के साथ व्यापार में संकोच ही करता रहा। लेकिन अब हम जिस देश से चाहेंगे उनसे आँख से आँख मिलाकर व्यापार करेंगे, चाहे इज़रायल से या फिर फ़िलिस्तीन से या UAE से या फिर अमेरिका से। वो शायद उन औपनिवेशिक मजबूरियों की ओर ही लोगों को याद दिलाना चाह रहे थे जिन्हें नेहरू गांधी परिवार इतने वर्षों तक ढोता रहा।
द इकोनॉमिस्ट ने 15 जून 2023 को एक ट्वीट में कहा, “भारत पश्चिम से प्यार नहीं करता। लेकिन अमेरिका को इसकी जरूरत है- और दोनों देशों का रिश्ता 21वीं सदी का सबसे महत्वपूर्ण व्यापारिक रिश्ता हो सकता है।”
इस कवर इमेज को एक लेख के साथ दिया गया है। इसकी हेडलाइन है, “अमेरिकाज न्यू बेस्ट फ्रेंड”। अंडरटेक्स्ट में लिखा है – “व्हाई इंडिया इज इंडिस्पेंसेबल”। यानी भारत इतना ज़रूरी क्यों है?
इस चित्र में भारत को एक पालतू जानवर के रूप में दिखाया जा रहा है। ये पहली बार नहीं है जब इकोनॉमिस्ट ने भारत के प्रति अपनी कुंठा ऐसे सामने रखी हॉग, इस से पहले २०१३ में भी इकोनॉमिस्ट ने एक शीशे के सामने बिल्ली को बिठाकर शीशे में उसे शेर दिखाने वाला कार्टून जारी किया था।
पश्चिमी मीडिया अक्सर भारत पर ऐसे नस्लीय हमले करता रहा है। इससे पहले एक बार न्यूयॉर्क टाइम्स ने लिखा था कि भारत में साड़ी पहनना राष्ट्रवाद का प्रत्येक बन गया है। ऐसा ही एक कार्टून न्यूयॉर्क टाइम्स ने तब प्रकाशित किया था जब भारत मंगलयान के साथ सफलतापूर्वक मंगल ग्रह पर उतरा था।

इस कार्टून में पगड़ी पहने हुए एक भारतीय को गाय के साथ ‘एलीट स्पेस क्लब’ का दरवाजा खटखटाते दिखाया गया था। क्लब के कमरे में संभ्रात से दिख रहे कुछ लोग बैठे हैं और एक सदस्य को अखबार पढ़ते दिखाया गया, जिसमें भारत का मंगल मिशन टॉप हेडलाइन था। कमरे में बैठे दोनों ही सदस्य बाहर के शख्स के दरवाजा खटखटाने से खुश दिखाई नहीं दे रहे थे। बाद में उन्होंने इसके लिए माफ़ी भी माँगी थी। न्यूयॉर्क टाइम ने गोधरा दंगों पर भी झूठ प्रकाशित किया था, भारतीय कंपनी अपनी मैनुफ़ैक्चरिंग यूनिट जब अमेरिका में खोलती है तब भी न्यूयॉर्क टाइम को परेशानी होती है।
समय के साथ भारत की बढ़ती वैश्विक ताक़त से परेशान ब्रिटेन और इसके समाचार पत्र अपनी नफ़रत को क़ैद तक नहीं कर पा रहे हैं। इनकी समस्या यही है कि इन्हें भारत में आज अपने मुखबिर और उनके तरीक़े से शासन करने वाले लोग यहाँ पर अब नहीं हैं। भारत औपनिवेशिक काल से बाहर निकल रहा है। ऐसे में ब्रिटेन जैसे देशों का भारत के वैश्विक व्यापारिक संबंधों का मज़बूत होना समस्या का विषय बनना जायज़ बात है।
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