1990 की गर्मियों की बात है। उस समय लीना सरमा रेलवे में सेंट्रल फॉर रेलवे इंफॉर्मेशन सिस्टम की जनरल मैनेजर थी। एक बार वे किसी काम से लखनऊ से अहमदाबाद जा रही थी। किसी वज़ह से उन्हें अपनी आरक्षित सीट छोड़कर दूसरे कोच में जाना पड़ा। दूसरे कोच में उनके पास सीट नहीं थी, ऐसे में एक शख्स ने अपनी सीट लीना सरमा को दे दी और खुद फर्श पर चादर ओढ़कर सो गया।
उस रात जो शख्स चादर ओढ़कर ट्रेन के फर्श पर सो गया था वो नरेंद्र मोदी थे। जी हाँ, पूरी रात ट्रेन के फर्श पर चादर ओढ़कर सोने वाले व्यक्ति पिछले 10 वर्ष से अधिक समय से देश के प्रधानमंत्री हैं और आज भी वो वैसे ही हैं। आज भी उनके काम में वही समर्पण, वही त्याग, वही परिश्रम की पराकाष्ठा दिखाई देती है।
22 नवंबर को रात में लगभग 9 बजे पीएम मोदी तीन देशों की यात्रा से लौटे। यहाँ से लौटने के बाद रात को लगभग 9.30 बजे पीएम मोदी ने न्यूज़ 9 ग्लोबल समिट को संबोधित किया।
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यही वो बात है जो पीएम मोदी को भारत के दूसरे सभी नेताओं से अलग बनाती है- परिश्रम की पराकाष्ठा। ऐसा परिश्रम जिसकी कल्पना भी मुँह में सोने की चम्मच लेकर पैदा होने वाले नेता नहीं कर सकते।
ऐसे सैकड़ो उदाहरण हैं जब हमें दिखाई देता है कि आधी रात में पीएम मोदी कोई बैठक कर रहे हैं। रात के 11 बजे कोई मीटिंग कर रहे हैं। किसी दौरे से लौटे और लौटकर तुरंत दूसरे काम में जुट गए।
यह मेहनत आसान नहीं है। ये मेहनत मजाक नहीं है। ये तपस्या है, ये समर्पण है, ये त्याग है, ये अपना सर्वस्व देश के लिए न्योछावर कर देने का संकल्प है।
74 साल के पीएम मोदी आज भी सप्ताह में लगभग 100 घंटे काम करते हैं। आज भी हर दिन काम करते हैं। उनके लिए कोई संडे नहीं होता, कोई होली-डे नहीं होता। हर दिन बस देश के लिए काम होता है। सिर्फ इतना ही नहीं नवरात्रि में जब वे उपवास पर होते हैं तब और ज्यादा काम करते हैं।
ऐसे में एक बात कही जा सकती है कि विपक्षी नेता चाहे पीएम मोदी के विरुद्ध कितना भी एजेंडा चलाएं। उनके ऊपर निजी हमले करें। उनके विरुद्ध अंतरराष्ट्रीय षड्यंत्र करें। पीएम एक संकल्प के साथ आगे बढ़ते दिखाई देते हैं और उस संकल्प को पूरा करने के लिए वे परिश्रम की पराकाष्ठा में कभी कोई कसर नहीं छोड़ते।
राजनीति के जानकार कहते हैं कि पीएम मोदी जहाँ से आए हैं। जिन परिस्थितियों से आए हैं। जैसा जीवन उनका रहा है। जो गरीबी उन्होंने देखी है। उससे ऐसा प्रतीत होता है कि परिश्रम ही उनके जीवन का दर्शन बन गया है।
मेहनत के इस दर्शन का ही नतीजा है कि वे पिछले एक दशक से भारतीय राजनीति के शीर्ष पर विराजमान हैं। कहते भी हैं कि मेहनत करने वालों की कभी हार नहीं होती।