अमेरिकी राष्ट्रपति जो बायडेन ने आजकल एशियाई देशों पर ज़ीनोफोबिया का आरोप लगाया है, यानी नस्लीय घृणा का आरोप। इसमें उन्होंने भारत के साथ साथ चीन, जापान और रुस जैसे देशों को भी रखा। जेनोफोबिक उनको कहा जाता है, जो बाहरी लोगों से नफरत करते हैं। बाइडेन ने कहा कि चीन, जापान और भारत में जेनोफोबिया की वजह से ही विकास धीमा है।
अभी इसके ही साथ ग्लोबल नैरेटिव भारत की सुरक्षा एजेंसीज के ख़िलाफ़ भी चलाया जा रहा है, कभी फ़ायनांशियल टाइम्स कह रहा है कि रॉ विदेशों में आतंकवादियों को मार रही है तो कभी अमेरिका का ही दी गार्डियन कहता है कि मोदी सरकार की सुरक्षा एजेंसीज विदेशों में भी ऑपरेशन कर रही हैं और भारत के दुश्मनों को घर में घुस कर मार रही हैं। कल ही अमेरिका ने कहा कि वो इन आरोपों पर भारत की प्रतिक्रिया का इंतज़ार भी कर रहे हैं। पालतू पाकिस्तान ने भी आरोप लगाए जिस पर हम बात नहीं करेंगे।
अमेरिका भारत पर जब ये आरोप लगा रहा है तब हम अमेरिकी नागरिकों के साथ एक गेम खेलते हैं। इस खेल का नाम है – never have i ever
पहले हम बात कर लेते हैं जीनोफोबिया की और इसके लिए ज़रूरी है अमेरिका से पूछना कि मैक्सिको से जो लोग अमेरिका जाते हैं, उन्हें वो किस तरह से रोकते हैं? बहुत पीछे जाने की ज़रूरत भी नहीं है, तीन हज़ार किलोमीटर से ज़्यादा लंबी दीवार खड़ी कर दी गई और अरबों रुपए बहाए जा रहे हैं ताकि मैक्सिको से लोग अमेरिका में ना घुस सकें।
एक ऐलान कुर्दी की लाश आप लोगों को याद होगी ही,साल 2015 के तुर्की के समुद्री तट पर एक सीरियाई बच्चे का शव बहता हुआ पहुंचा था, ऐलन कुर्दी उन करोड़ों लोगों में से एक था, जो सीरिया के भयानक गृह युद्ध से जान बचाने के लिए देश छोड़कर भाग रहे थे. एलन की तस्वीर ने सीरिया में चल रहे गृहयुद्ध का सबसे भयावह चेहरा दुनिया के सामने रखा, ऐलन कुर्दी का परिवार उस वक्त सीरिया के गृहयुद्ध से भागकर ग्रीस जा रहा था , इस तस्वीर ने दुनिया को हिलाकर रख दिया था मगर अमेरिका को इस से क्या फ़र्क़ पड़ा? क्या उन्हें नागरिकता मिली? ये ISIS का दानव किसने तैयार किया?
अमेरिका में अश्वेतों के प्रति कैसा रवैया रहा है उसका उदाहरण मार्टिन लूथर किंग हैं, मेल्कम एक्स है, उन्होंने कितनी लंबी लड़ाई लड़ी अश्वेतों के अधिकारों की लड़ाई के लिए लेकिन नतीजा क्या हुआ? जब अमेरिका से नस्लीय घृणा के बदले अश्वेतों ने अधिकार माँगे तब उनके सामने जॉर्ज फ्लॉयड जैसे उदाहरण पेश किए गए, और आज भी वहाँ पर BLM आंदोलन चल रहे हैं जहां पर जॉर्ज फ़्लॉयड की हत्या कर दी गई, सुपरप्रिडेटर थ्योरी का भी मैंने एक बार आपको बताया था कि ब्लेक्स को कैसे अपराधी साबित करने के संस्थागत तरीक़े अपनाए गए।
वर्ल्ड वॉर २ के बाद जब विश्व खुलने लगा तो अमेरिका में ये आइडिया डेवलप होने लगा कि जो अप्रवासी वहाँ आ रहे हैं, नौकरी या अन्य कामों के लिए, वो अमेरिका के पारंपरिक तरीक़े को ख़राब कर देंगे। यानी जो उनके जैसे नहीं थे, उनसे घृणा का बीज बोया जाने लगा। अमेरिका की सत्ता में बैठे लोग कहते थे कि every communist is russia’s spy।
अब ये तो थी अमेरिका और जेनोफोबिया की बात , जिसे मैंने आगे नहीं करूँगा।
अब मामला आता है विदेशों में अपनी संप्रभुता की रक्षा के नाम पर ऑपरेशन चलाने की, तो उसके लिए मुझे बायडेन या फिर जस्टिन ट्रूडो की तरह बेबुनियाद आरोप लगाने की भी आवश्यकता नहीं है, जैसा कि वो भारत के अगेंस्ट कर रहे हैं। अपने इन कारनामों का महिमामंडन तो अमेरिका ने हॉलीवुड फ़िल्मों के ज़रिए ख़ुद ही किया है। जिसमें उनकी ही CIA विदेशों में जाकर कुछ भी कर रही होती है, कहीं वो सत्ता पलटने की साज़िश करते हैं तो कहीं प्रॉपगैंडा के ज़रिए सरकारों को गिरानी का काम करते हैं। जर्मनी और बर्लिन में हायरिंग कर उन्हें मौत के मुँह में झोंकने वाले क़िस्से हों या फिर CIA के सोवियत के ख़िलाफ़ चलाए गए एजेंडा के किससे। बायडेन और ट्रूडो ने तो कभी भी इनके सबूत नहीं दिये लेकिन इनकी फ़िल्में कहती हैं कि अमेरिका तो विदेशों में इतना ज़्यादा घुसा रहता है। और इनमें से अधिकांश तो fail ऑपरेशन ही रहे हैं जिनमें कई विदेशी एजेंट्स की जान गई और अमेरिका ने पल्ला झाड़ लिया । आप रैम्बो फ़िल्म के ये पोस्टर देखिए या फिर डेविड हेडली को तो आप जानते ही होंगे।
तो मेरे अमेरिकी दोस्तों, गेम तो आपने खेला ही नहीं, चलो आज गेम खेलते हैं।
Never have i invaded iran
विश्वभर में लोगों के लोकतंत्र के साथ जीने की इच्छा और उनके अरमानों का अमेरिका ने किस तरह से गाला घोंटा वो भी देखते हैं । सबसे पहले ईरान से शुरू करते हैं- जहां पर तेल पर क़ब्ज़ा करने के लिए अमेरिका ने शाह नाम का अपना मोहरा वहाँ पर प्लांट किया, इस्लामिक क्रांति की जब हम बात करते हैं तो अक्सर हम यही कहते हैं कि कुछ मुल्लों ने कट्टरपंथियों ने मिलकर शाह को हटा दिया लेकिन इसकी वास्तविकता ये थी कि अमेरिका ने वहाँ पर अपने आदमी को प्लांट कर दिया था ताकि वहाँ तेल पर उनका क़ब्ज़ा हो सके। इसके लिए CIA ने ऑपरेशन चलाए, पैसा, फेक न्यूज़ और प्रॉपगैंडा के ज़रिए लोगों को सड़क पर उतरवा दिया था वहाँ के प्रधानमंत्री के ख़िलाफ़। इसके बारे में आप विस्तार से जानने के लिए मेरे यूट्यूब चैनल पर भी देख सकते हैं कि ईरान में असल में हुआ क्या था। सोशल मीडिया पर आप हैशटैग सिविलाइज़ेसन स्टोरी में इन सभी कहानियों को सुन सकते हैं।
तो प्रिय अमेरिका, अब बोलिए कि
नेवर हैव आई एवर इन्वेडेड ग्वाटेमाला
ग्वाटेमाला में CIA का हाथ 1954 में राष्ट्रपति जैकोबो आर्बेंज की लोकतांत्रिक रूप से चुनी हुई सरकार को गिराने में था। इस ऑपरेशन को “ऑपरेशन PBSUCCESS” के नाम से जाना जाता है, उन्होंने आर्बेंज की सरकार को कमजोर करने के लिए प्रपैगेंडा अभियान भी चलाया और एक बड़ी विद्रोही फ़ोर्स तैयार की, जिसने CIA के समर्थन से सफल सैन्य अभियान चलाए, हुआ ये कि आर्बेंज को इस्तीफा देना पड़ा और वह देश छोड़कर भाग गए।
इसके बाद ग्वाटेमाला में दशकों तक राजनीतिक अस्थिरता, सिविल रायट्स और मानवाधिकारों का जमकर दोहन हुआ । जब CIA की इन हरकतों को न्यूयॉर्क टाइम के एक एडिटर ने पब्लिश किया तो CIA ने उसके मालिकों से कहा कि CIA के प्रयासों के बीच उनका एक एडिटर आ रहा है, जिसे कि फिर हटा दिया गया। यानी प्रेस फ्रीडम का एक अमेरिकी उदाहरण।
never have i ever invaded Cuba
लोकतंत्र में हस्तक्षेप और अपने आदमी प्लांट करने की ये अकेली कहानी नहीं थी, अमेरिका ने क्यूबा को नहीं छोड़ा, क्यूबा में बतिस्ता को प्लांट कर के अमेरिका वहाँ अपना पैर रखना चाहता था, जिसके अरमान चे ग्वेरा और फ़िदेल कास्रो ने पूरे नहीं होने दिये।
Never have i ever invaded afghanistan
America ने अफ़ग़ानिस्तान को हमेशा के लिए युद्ध में झोंककर ख़ुद आख़िर में अमेरिका वहाँ से निकल भागा उसे उसके हाल पर छोड़कर। ये तो अभी कुछ ही साल पहले की बात है।
नेवर हैव आई एवर इन्वेडेड वियतनाम
वियतनाम में भी अमेरिका ने अपनी नाक घुसाई, वियतनाम युद्ध करीब 20 सालों तक वियतनाम, लाओ और कंबोडिया की धरती पर लड़ा गया सबसे भीषण युद्ध था। अमेरिका ने पांच लाख सेना युद्ध में झोंक दी।
ये इतना भयानक था, ख़ुद अमेरिका में लोग अपनी सरकार के ख़िलाफ़ इसके दृश्य देखकर उतर आए थे, उन्हें भी गोलियाँ मारी गईं। ये बेहद क्रूर संघर्ष था जिसमें अमेरिका ने कई भयानक हथियारों का इस्तेमाल किया था, इनमें नापाम और एजेंट ऑरेंज का प्रयोग शामिल किया, नापाम, जो कि एक ज्वलनशील पेट्रोकैमिकल पदार्थ होता है और 2700 डिग्री सेल्सियस के तापमान पर जलता है, और एजेंट ऑरेंज – एक ऐसा कैमिकल था जिसका इस्तेमाल जंगलों को नष्ट करने में किया गया, इसने वियतनामी खेतों में खड़ी फसल भी नष्ट कर दी जिसकी वजह से स्थानीय लोगों को भुखमरी का सामना करना पड़ा। युद्ध में 30 लाख से ज्यादा लोग मारे गए। इसमें 58 हजार अमेरिकी शामिल थे और मरने वालों में आधे से ज्यादा वियतनामी नागरिक थे।
लिस्ट तो इतनी लंबी है कि सारे अमेरिकी नागरिक इस गेम को खेलते हुए थक जाएँगे – आख़िर में मैं एक और उदाहरण अमेरिका के नागरिकों को देना चाह रहा हूँ, जो ना केवल जीनोफोबिया का उदाहरण है बल्कि अमेरिका के सबसे क्रूर और दानवीय चेहरे को दर्शाता है – उस देश का नाम है जापान!
– अमेरिका की ये परंपरा रही है कि जब भी उसने कहीं कुछ कांड किए , तब उसने पहले उन्हें ईविल साबित करने की कोशिश की, फिर उन पर नस्लीय हमले किए, फिर उनके विद्रोहियों के ज़रिए अपना काम निकालने का प्रयास और फिर अंत में वहाँ पर नरसंहार।
इसे समझने के लिए हम बात करेंगे जापान की।
जापान पर नस्लीय हमला अमेरिका ने छेड़ दिया, कहा कि वो इंसान ही नहीं हैं बल्कि दूसरी ही कोई रेस है। जापान के बच्चों की बंदरों से तुलना की गई, ऐसे पोस्टर बनाकर उन्हें सानव दिखाने की कोशिश की गई। इन प्रॉपगैंडा पोस्टर से आप देख सकते हैं कि जापान के लोगों को कभी सुअर , कभी बंदर बनाकर पेश किया गया, ये घृणा आज भी अमेरिका में मौजूद है। लोग मारे तो मारे, ब्लास्ट किया तो किया लेकिन जापान के ख़िलाफ़ एक बड़े स्तर पर नस्लीय संघर्ष छेड़ दिया गया, अमेरिका को जापान पर परमाणु हमलों के बाद बग़ावत से निपटने का सबसे आसान तरीक़ा ये लगा कि अमेरिका के लोगों में जापान की ऐसी छवि बन दी जाए जिससे वो ख़ुद उनके नरसंहार और समूल नाश की माँग करने लगें।
और फिर बारी थी, मानव इतिहास की सबसे भयानक हरकत की, एक क़िस्म का मानवता के विरुद्ध हमला, सबसे शर्मनाक क़िस्सा, जब अमेरिका ने अपनी परमाणु क्षमता को विश्व पर थोपने के लिए जापान के नागासाकी और हिरोसीमा पर न्यूक्लियर बम गिराए। ये तो सबसे आख़िरी स्टेप थे, इससे पहले अमेरिका ने जापान के लोगों के ख़िलाफ़ अमेरिका का जनसमर्थन हासिल करने के लिए क्या कुछ नहीं किया?
पमाणु हथियार गिराने से पहले अमेरिका ने जापान पर आसमान से बम की वर्षा की जिनमें 80000 क़रीब लोग मारे गए। जो परमाणु हमले में मारे गए उनकी संख्या को भी अब इसमें जोड़कर देखिए। बमबारी में हिरोशिमा में अकेले 1,40,000 लोग और नागासाकी में 74,000 लोग मारे गए थे। जो लोग ज़िंदा बच गए वो आने वाले समय में ल्यूकेमिया, कैंसर, या रेडिएशन के दुष्प्रभाव का सामना कर रहे हैं।
वर्ल्ड वॉर २ के समय को भी अगर छोड़ दें तो ऐसी कौन सी कंट्री है जहां अमेरिका ने क़ब्जा करने या सरकार गिराने या फिर अपने लोगों को प्लांट करने के लिए ऑपरेशन नहीं चलाए? चाहे लैटिन अमेरिका हो, मिडिल ईस्ट, या एशिया , अमेरिका ने किसी को भी नहीं छोड़ा। इसलिए वेस्ट या अमेरिका के मुँह से ये जेनोफोबिया या डेमोक्रेसी या प्रेस फ़्रीडम की बातें अच्छी नहीं लगती हैं।